Wednesday, January 3, 2018

लेह सं कारगिल, बटालिक बाटें

बाज़्गो, सासपोल आ आल्ची 
1999 क भारत-पाक युद्धक पछाति भारतमें एहन कमे पढ़ल-लिखल लोक हेताह जे बटालिकक नाम नहिं सुने होथि. एहि युद्धमें बटालिकक इलाकामें सैनिक लोकनि सैन्य इतिहासक कतेको कीर्तिमान स्थापित केलनि. किन्तु, बाज़्गो, आल्ची, दा, हानु गामक नाम नव थिक. आइ हम लेह सं कारगिलक यात्रापर छी.  लेह सं पश्चिम खालसे सं आगू  कारगिल जेबाक बाट दू दिस फूटि जाइछ . एकटा लामयुरु आ फोतुला होइत आ दोसर बटालिक बाटें. लग रास्ता पहिल लग रास्ता छैक. ओहि रास्तामें अनेक ऐतिहासिक आ भौगोलिक स्थल दर्शनीय छैक. तें, लामयुरु आ फोतुला, मुलबेख होइत कारगिलक रास्ता पर्यटक लोकनि आम बाट थिक. कखनो काल हिमपातक कारण फोतुला पास बंद भ जाइछ तखन खालसे सं अचिनाथांग, दा, हानु आ बटालिक होइत हम्बोटिंग-ला  पास पार कय कारगिल बाटें सैनिक यातायात जारी रहैछ. सीमा  क्षेत्रक समीप भेलाक कारणें, बटालिकक  बाटपर निरन्तर  सैनिक यातायात आवश्यको.  हमरा लोकनि बटालिके  बाटें कारगिल जायब. एहि यात्रामें सिन्धु हमर संगबहिना छथि. तें गप्प सिन्धुए सं आरम्भ करी. सिन्धुक उद्गम मानसरोवर झील लग तिब्बतमें छैक. भारत सिन्धुक लम्बाई करीब 800 किलोमिटर  हेतैक; सिन्धु देमचोक नामक स्थानमें भारतमें प्रवेश करैत अछि आ बटालिक सं आगू भारतक सीमा सं निकलि पाकिस्तानमें चल जाइ.
एहि सं पूर्व हमरा लोकनि सिन्धुक कछेरे-कछेर निम्मू लग सिन्धु आ जानस्कार नदीक संगम धरि गेल रही. आइ ओहि सं आगू पश्चिम मुंहे जायब. रास्तामें बाज़्गोक राजप्रसादक भग्नावशेष, सास्पोल गाँव, आल्चीक बौद्ध विहार, अचिनाथांग, आर्यन मूलक नागरिकक बस्ती- दा आओर हानु  एवं  बटालिक आओत. तकर पछाति हम्बोटिंग-ला क दर्रा होइत हमरा लोकनि कारगिल धरि जायब. निम्मू गांओ लग एकटा पैघ सैनिक मुख्यालय छैक. एतय ज़मीन कनेक चौड़ा होइत छैक, किन्तु, बेसी नहिं . समतल भूमिक दाहिना कातक पहाड़ सं झहरइत बालुक देवाल आ बामा कात सिन्धु .
सिन्धुक सटले दक्षिण जान्सकार पर्वत श्रृंखला . इएह पर्वत श्रृंखला लद्दाख़ आ जान्सकारक बीचक देवाल थिक. आ एहि श्रृंखलाक कारण जान्सकार जयबा ले लोक लगभग 200 कि मी पश्चिम कारगिल जाइछ. ओत्तहि सुरु नदीक काते-कात  जान्सकार जयबाक बाट भेटत. जं रोमांच नीक लगइए, पौरुष अछि, टाका खरचैले तैयार छी तं जाड़क मासमें जमल , पाथर भेल जान्सकार नदीक धार पकडि जान्सकारक चदर-वाक पर चलू . एकर विशेष वर्णन हमर जान्सकार वृत्तांतमें भेटत. निम्मो सं कनेक पश्चिम सड़कक  दाहिना भाग पहाड़ीक उपर बाज़्गोक राजप्रसादक भग्नावशेष दूरहिं सं देखबामें आओत.
बाज़्गो भग्नावशेषक बाहर बोर्ड 
एक समयमें ई प्रासाद लेहक राजपरिवारक एक शाखाक आवास छल. पछाति जम्मूक राजा गुलाब सिंहक वज़ीर आ सेनानायक ज़ोरावर सिंह सेहो अपन लद्दाख़ अभियानक अवधि में बाज़्गो महल में डेरा देने छलाह. ई भग्नावशेष आब  संरक्षित स्मारक थिक . एहि महलकेर भीतर एखनहु बौद्ध मूर्ति, पूजा स्थल, आ पेंटिंग सब छैक जे बाहर लगाओल बोर्डक अनुसार ई स्मारक कतेक अर्थमें अद्वितीय अछि . किन्तु, एहि सबहक वर्णन एतय आवश्यक नहिं. तकर कारणों छैक. लेह-लद्दाख़ अबैत टूरिस्टलग समयक कमीक कारण  बाज़्गो आम टूरिस्टक भ्रमणक लिस्टमें नहिं अबैछ. हँ, निम्मू बाज़्गो सं आओर पश्चिम आल्ची गांओ आ बौद्ध विहार अबस्से प्रमुख पर्यटन स्थल थिक. तथापि एतय सं आगू बढ़बासं पूर्व एकटा गप्प कहय  चाहब: बौद्ध मूर्ति आ चित्रकलाक अतिरिक्त एहि मन्दिर परिसरमें एतुका राजा सिंग्गे नामग्यालक माताक हेतु, जे जन्म सं बाल्टी-मूलक मुस्लिम छलीह,  एकटा बाल्टी मुस्लिम धर्मक पूजा-स्थल सेहो रहैक. ई एक अर्थ में बौद्ध धर्मक संग इस्लामक सहअस्तित्व द्योतक छल. पछाति प्रायः ओ रानी बौद्ध धर्म वरण कय लेलनि आ इस्लामी पूजास्थल सेहो बौद्ध मन्दिर में परिवर्तित भ गेल.
आब  आगू चली. बाज़्गो सं पश्चिम सासपोल नामक गाम अबैत छैक. गर्मीक मास में सासपोल कें पारम्परिक सन्दर्भमें सुखी- सम्पन्न गाओं कहि  सकैत छियैक. ओना तं, एहि इलाकामें परम्परासं प्रत्येक घर, प्रत्येक गांओ  आत्मनिर्भर रहैत आयल अछि. माने ,जे किछु चाही -भोजन,वस्त्र, आवास, जारनि-काठी,दबाइ-बिरो, आ सुरक्षा- सबहक भार जं पूर्णतया व्यक्तिगत नहिं तं , सामुदायिक कहि  सकैत छियैक; लद्दाख़सं बाहरक वस्तुक आम आदमी कें कोन काज. किन्तु, आधुनिक अर्थमें अर्थव्यवस्था जेना-जेना विकसित होइत जाइछ, अनका पर निर्भरता, वस्तु किनबाले  टाका, आ टाकाले  बेसीसं बेसी  कमयबाक बाध्यता, आ लोभ बढ़ल जाइछ. अपनो सबहक ओहिठाम एहिना भेलैये. आब लद्दाख़हु में 'प्रगति' बिहाडिक संग बदलाव देखबामे आओत. आब एत्तहु जौ-गहुमक खेतमें फसिलक बदला होटल पनपि रहल अछि. लोक सातु बदला भात खाइछ.  मिथिलांचले जकां एतहु फसिलक दौनी थ्रेसर सं होइत अछि. पारंपरिक पहिनावामें बाहरसं किनल कपड़ा-लत्ताक प्रयोग होइछ. किन्तु, एहिमें बेजाय की ! जहिया, कश्मीर आ हिमाचल सं लद्दाख़क जोड़ै बला ऑल-वेदर सुरंगक निर्माण पूर्ण भ गेल, आ बारहो मास श्रीनगर-दिल्लीसं माल-असबाबक  आबाजाही शुरू भ गेल, सुविधाक दृष्टिऐं लेह-लद्दाख़ आ भारतक मुख्य भूमिमें मात्र जलवायुएक अन्तर रहि जेतैक. ई नीक हयत वा बेजाय से कहब कठिन. एतबा अवश्य जे जलवायुक परिवर्तन एहि विरल वातावरणकें कोना प्रभावित करतैक तकर एकटा चेतावनी 2010क एतुका बरखा आ बाढ़ि, जाहिमें विनाशक अभूतपूर्व विपदाक ताण्डव घर-अंगना-खेत-खरिहानकें ध्वस्त क गेल, चैन सं सूतल लद्दाख़कें एकाएक जगा गेल !जे किछु. आब आगू चली.
सासपोल सं  पश्चिम जेना-जेना दुनू कातक पहाड़ी लग आबय लगैछ, सिन्धुकेर पाट  गहिंड आ संकीर्ण, तथा धार द्रुत  होबय लगैछ . आल्चीक दूरी लेह सं करीब 65 कि मी छैक. आल्ची गांओ जेबा ले सिन्धु नदीपर पुल कें पार करैत नदीक दक्षिणी कछेर पर आबय पड़त.

आल्चीक परिचय-पात 

आल्ची बौद्ध विहार: लद्दाख़क बौद्ध विहार सबमें आल्ची विशिष्ट अछि. मानल जाइछ आल्ची बौद्ध विहारक  स्थापना 10-11 हम शताब्दीक बीच बौद्ध गुरु रिन्जिंग जांग्पोक द्वारा भेल छल. ज्ञातव्य थिक, भाषाक बाधाक कारण भारत सं तिब्बत में गेल बौद्ध साहित्यकें बुझबाक एकमात्र माध्यम अनुवाद छलैक. एहि हेतु राजनेता लोकनि अनेक अनुवादककें समय समयपर भारत पठबैत रहथि. जिज्ञासु आ भिक्षु लोकनि लद्दाख़ सं ल कय नालंदा धरि आबि अनेक ग्रन्थक अनुवाद कयलनि आ अनुवाद सब कें पुनः तिब्बत ल गेलाह. लोत्सावा ( महान अनुवादक ) क नाम सं प्रसिद्द  गुरु रिन्जिंग जांग्पो तिब्बती बौद्ध धर्मक एही अनुवाद परम्पराक एक प्रमुख स्तम्भ आ विभूति  थिकाह. मानल जाइछ, अपन भारत  प्रवासक अवधि में गुरु रिन्जिंग जांग्पो आल्चीक आलावा शताधिक बौद्ध मठ स्थापना कयने छलाह जाहि म सं अनेक आब नष्ट भ चुकल अछि.
आल्ची बौद्ध विहारमें देखबाक वस्तु सबमें दर्शनीय स्थल सब थिक , प्रार्थना भवन (दुखांग), तिनमहला मन्दिर (त्सुमसेग ) , मंजुश्री मन्दिर आ छोट आकारक 'छोरतेन' ( बौद्ध  स्तूप )सब.
विहारक भीतरक एकटा भव्य मूर्ति 

छोर्तेन्न : शांति स्तूप 

त्सुम्सेग : तीन मंजिला मन्दिर


बौद्ध देवी-देवता आ बुद्धकेर जीवनकें देखबैत एहि परिसरक भवन सबमें प्राकृतिक रंगक चित्रकला एतुका विशिष्टता थिक. मानल जाइछ, एतुका चित्रकला तिब्बती आ स्थानीय कलाकारक संग  कश्मीर आ हिमाचलक कलाकार लोकनिक सहयोगक उत्कृष्ट उदाहरण थिक .परिसरक बाहर एकटा पोप्लारक गाछकें एतुका लोक सब 'लारछांग' वा लोत्सावाक छड़ी कहैत छथि !
गुरु रिंनजिग जांगपो क हाथक ठेंगा: पोपलार क गाछ
किन्तु, एहि तरहक जनश्रुति आन कतेक ठाम आओर अनेक महापुरुषसं जोड़ैत भेटत. सत्य के कहत ! ई गाछ, तं कोनो तरहें हज़ार वर्ष पुरान नहिंए अछि.
गोम्पाक भवन आ चित्रकला इंद्रधनुषी रंगके एतेक दिन धरि सम्हारि रखबाक श्रेय एतुका जलवायु आ जनसमूह दुनू कें छैक. तथापि, बहुतो ठाम भवन दुर्बल भ गेल छैक आ पानिक टघार सं चित्रकलाक रंग दूरि  भ गेल छैक. किन्तु, स्थानीय लोक आ भक्त लोकनि एकर जीर्णोद्धारमें लागल छथि आ मानव सभ्यताक इतिहासक प्रतीक आल्ची-सन पुरान विहारकें भावी पीढ़ीले सहेजि कय रखने छथि. आल्ची बौद्ध विहारक देखभालक भार सिन्धुक उत्तरक लगेक गाम लिकिरकेर बौद्ध विहारक जिम्मा अछि. ज्ञातव्य थिक, पर्यटन एहि  इलाकाक कामधेनु थिक. अतः एतुका सब विरासतकें बचाकय राखब  समाजक हित थिकैक. एतय से सब बूझैत छथि, अन्यथा एहि बंजर भूमि  आ निर्मम जलवायुमें पर्यटक की करय अबैत. लद्दाख़क बाहर, भारतक आन  इलाकाक  नागरिक आ राजनेता जं ई बूझि सकितथि, तं भारतमें प्रायः ई प्रश्न नहिं उठैत जे ताजमहल-लालकिला आ सोमनाथ मन्दिरक निर्माता के छलाह !

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