Saturday, March 24, 2018

संस्मरण :हमहूँ चण्डीगढ़ जेबै

हमहूँ चण्डीगढ़ जेबै 
डाक्टरीक वैज्ञानिक व्यवसाय थिकैक, जाहिमें शारीरिक रोग आ मनोदशा दुनूक अध्ययन सन्निहित छैक.  शारीरिक संवेदनाक मानसिक प्रभाव रोगक अभिन्न आयाम थिकैक; मनोभावक शारीरिक प्रभाव सुपरिचित तथ्य थिक. जेना, शरीरमें व्यथा हो तं मन उदास भ जाइछ. आ मन उदास हो तं, भूख मरि जायब  वा माथ दुखायब आश्चर्यनक नहिं. किन्तु, शारीरिक रोग सं दूर एकटा छोटि कन्याक  मनोरथक रोगक रूपमें प्रकट हयबाक विरल घटना हमरा एकबेर लद्दाख़में भेटल.
एकदिन हम लेह जनरल हॉस्पिटल में ओ पी  डी  में बैसल रही. एकटा स्थानीय नारि हकासल-पियासल हमर ओ पी डी में प्रवेश केलनि. संग में काषाय वस्त्रधारी, कपार छिलल,बरख बारहेक एकटा कन्या. गप्प कयला सं बुझबामें आयल जे ई बौद्ध भिक्षुणी  - स्थानीय भाषामें 'चोमो'- ओहि महिलाक कन्या छलनि जकर एक आँखिक रोशनी एकाएक समाप्त भ गेल छलैक. ने आँखिमें कोनो पीड़ा, ने लाली वा आँखिमें चोट- लगबाकक गप्प. तखन आँखिक रोशनीक एना  चल जायब अस्वाभाविक लागल. तथापि, हम कन्याक  आँखिक जान पड़ताल केलियैक. हमरा कोनो रोग देखबामें नहिं आयल. किन्तु, चिकित्सा व्यवसायमें जं जं अनुभव बढ़त, अपने बुझबै, डाक्टरक ज्ञानक सेहो एकटा सीमा छैक. तें, डाक्टरकें भले रोग देखबा में नहिं अबैक, जं रोगीकें कष्ट छैक, तं रोगिक कष्टक तं समाधान चाही. हमरा लोकनि तें, विद्यार्थीकें पढ़बैत छियैक: 'You may not find a disease, yet the patient may have a problem.'
अस्तु, हम रोगक अनुसंधानमें लागि गेलहुं आ अंततः रोगीक माय कें कहलियनि, एहि बच्चाक मस्तिष्ककेर MRI scan क आवश्यकता छैक. किन्तु, एहि में एकटा समस्या छलैक; लेह में तहिया एम् आर आइ स्कैन क सुविधा नहिं छलैक. अर्थात रोगी जांच ले दिल्ली वा चण्डीगढ़ जाय. किन्तु, गरीब लोक हवाई-यात्रा, डाक्टरी  फीस आ इलाजक साधन कतयसं जुटाओत. जं परिवार समृद्ध रहितैक तं बेटी भिक्षुणी किएक होइतैक. सहजहिं हमर गप्प सूनि मायक मन झूर-झमान  भ गेलनि. कहलनि, चंडीगढ़ जयबाक खर्चा हमरा कतय सं आओत, अहाँ  एतय जे क सकियै, करियौक. हम गप्प बूझि गेलियैक. लडकीक एक आँखिक रोशनी ख़राब छलैक ने, जान पर कोनो खतरा तं छलैक नहिं. संगहिं, हमरा  नेनाक रोगक लक्षणपर संदेह छले. अस्तु, हम माताकें  बोल-भरोस देलियनि, आ कहलियनि, 'कन्याकें  ल कय परसू पुनः आउ'. लड़की आ माता ख़ुशी-ख़ुशी आपस चल गेलीह.
तेसर दिन, जेना कहने रहियैक दुनू माय-बेटी पुनः आयलि. माय चिंतित छलीह. रोग जहिनाक तहिना रहैक, आँखिक सूझबमें कोनो सुधार नहिं . तथापि,लडकी प्रसन्न चित्त छलि.
हम पुनः कन्याक  आँखिक जांच केलियैक. हमरा पहिनहिंसं  संदेह तं छले जे कन्याक आँखिक ज्योतिमें कोनो ह्रास नहिं भेल छैक. अस्तु, अपन धारणाकें प्रमाणित करबाले जांच पड़ताल शुरू कयल. आरम्भ में तें जांच संदेहास्पद रहैक किन्तु, एक केर बाद एक जेना-जेना दोसर जांच होमय लगलैक, कन्याक भगल केर परदा उठय  लगलैक. अंततः, हम मद्धिमे स्वरमें पुछलियैक, तोहर  दुनू आँखिक रोशनी तं ठीक छह. एहि पर चोमो मुसुकीक संग मूड़ी झुका लेलक. निर्धन माता-पिताक एतेक छोट नेना, आ बौद्ध विहारक जीवनक कठोर अनुशासन.सत्यतः, निर्धनता मनुक्खक  मनोरथकें मसोढ़ि दैत छैक, किन्तु, मनोरथ मरैत नहिं छैक. एहू कन्याक एकटा कोनो संगीकेर आँखिक कोनो रोग भेल छलैक. जांच-पड़ताल ले ओ चण्डीगढ़ गेल छलि. हवाई यात्रा आ पैघ शहरक अनुपम अनुभव. बौद्ध विहारमें कन्या लोकनि बीच स्पृहाक कारण भ गेल.
अस्तु, लामोकें सेहो आँखिक रोगक बाट सुलभ बूझि पडलैक. कहलक, ' ताराकेर  आँखिक  रोशनी घटि गेल रहैक. ओ  चंडीगढ़ गेल छलि. हमहूँ चण्डीगढ़ जेबै. '
हमरा हंसी लागि गेल . मायक चेहरापर घनीभूत पीड़ा एकाएक उडि गेलैक. हमरा सेहो डाक्टरी जीवनक एकटा नव अनुभव भेल.   

No comments:

Post a Comment

अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

हिन्दुस्तान का दिल देखो