किरणजीक व्यक्तित्व आ कृतित्वक अनेक पक्ष एखनहु अपरिचिते अछि
एहि वर्ष 9 अप्रिलक किरणजीक निधन के 29 वर्ष पूरि जेतनि. हिनक व्यक्तित्व आ कृतित्व में विद्वान लोकनिक रूचि एखनहु छनि आ रहतनि. तथापि, हमरा जनैत, किरणजीक नाम पर बेर-बेर बुझले बातक आवृत्ति होइत रहल अछि.सत्यतः, बुझले तथ्यकें रटब अनुसंधान नहिं थिक. अनुसंधान थिक, अपरिचित विषयकें ताकि-हेरि बहार करब, वा सुपरिचित विषयपर नव दृष्टिक प्रतिपादन . आवश्यकता अछि, खोजी प्रवृत्तिक अध्येता लोकनिक जे किरणजी जीवन,व्यक्तित्व, कृति आ एहि सबहक मैथिली भाषा आ लेखनपर प्रभावकें नव दृष्टिए देखथि.
अनुसंधानमें अनेक समस्या छैक; साधन आ समय मूल समस्या थिक. मुदा, ताहू सं बेसी पैघ समस्या थिक नव तथ्यके प्रकाशमें अनबाक आग्रहक अभाव .
किरणजीक रचनाकाल दीर्घ छलनि. बहुतो रचना हुनक जीवन कालमें छपलनि. बहुतो रचना हुनक निधनक पछाति संकलित रूपमें प्रकाशमें आयल. तथापि, सम्भव अछि हुनक अनेको रचना एखनो अप्रकाशित होइनि. एहि म सं जे हुनक अपन घरमें छनि, आइ ने काल्हि प्रकाशमें एबे करत. किन्तु, एहन रचना जे ओहि परिधि सं बाहर होइनि तकरा तकबाक आ समेटबाक आवश्यकता छैक. छिडियायल कृति सब कें समेटब किरणक साहित्यिक अवदानकें पूर्णता प्रदान करतनि.
एहि संक्षिप्त लेख में हम किछु एहन विन्दु पर विचार करब जे किरण पर अध्ययनक हेतु नव विषय भ सकैछ.
1. किरणजी आ काशीनाथ झा
सर्वविदित अछि, किरण जी चारि भाई रहथि; तीन सोदर आ एक वैमात्रेय. एहि सब म सं जेठ, काशीनाथ झा प्रसिद्द बलदेव जी, सुनैत छी, बहुमुखी प्रतिभाक धनी छलाह. योग्यता सं काशीनाथ झा वैद्य नहिं छलाह, तथापि. साहित्य-सृजन आ वैदागरीक व्यसन दुनू भाईकें रहनि . चारि दशक सं थोड़ जीवन कालमें काशीनाथ झा धुरझार लिखलनि; हमर माता ( किरणजी छोटि बहिन ) कहने रहथि, कशीनाथ रामायण सेहो लिखने रहथि. काशीनाथ झाक प्रायः थोड़ कृति प्रकाशितभेल रहनि; पुस्तकाकार तं कोनो नहिं . हमरा स्व. काशीनाथ झाक केवल दू टा कथा पढ़ल अछि ; सतमाय ( मैथिली कथा शताब्दी संचयन, साहित्य अकादेमी, दिल्ली ) आ नरक नन्दन रेलवे कंपनी ( भारती, 1937 ). 'मिथिला मोद' आ आन अनेक पत्रिकामें प्रकाशित काशीनाथ झाक कृतिक चर्चा स्व. कैलासनाथ झाक पी एच डी थीसिस में छनि, से किरणजीक मुंहे सुनल अछि. अस्तु, किरणजी एवं काशीनाथ झाक रचनामें समानता व भिन्नता अनुसंधान एकटा विन्दु थिक. किरण जी स्वतन्त्र प्रवृत्तिक लोक रहथि, तथापि, किरणजीक रचनापर काशीनाथ झाक किछुओ प्रभाव छनि वा नहिं से अनुसंधानक विन्दु थिक.
2. किरण जीक व्यवसाय
किरणजी शिक्षासं वैद्य, वृत्तिसं शिक्षक आ खेतिहर, प्रवृतिसं आन्दोलनकारी आ साहित्यकार छलाह. ओहि युगमें मैथिल लोकनिक बीच डाक्टरी व्यवसाय हेय बूझल जाइत छल. मैथिल डाक्टरक संख्या सेहो नगण्य छल. तथापि, किरणजी 'दरभंगा मेडिकल स्कूल में नामांकन ले गेल छलाह आ नामांकन ले चुनलो गेल छलाह. किन्तु, 'पचास टाकाक उपाय नहिं छलनि तें नाम नहिं लिखा सकलाह' से कहने रहथि.अस्तु, काशी विश्वविद्यालय में आयुर्वेदक कोर्स में नाम लिखओलनि. आ पछाति, कलकत्ता विश्वविद्यालय सं डिग्री प्राप्त केलनि.किन्तु, किरण जीक वैदागरी पढ़बाक पाछू कोन प्रेरणा रहनि से हमरा नहिं बूझल अछि. तथापि एतेक कष्ट आ श्रम सं उपार्जित डिग्री सं हासिल वैदागरी व्यवसायकें किरणजी किएक छोडि देलनि ?
सत्तरिक दशकमें गप्प-सप्पक क्रम में हमरा ओ एकबेर कहने रहथि :
ओहि युगमें मिथिलामें जहिनाअत्यंत गरीबी रहैक तहिना रोगक बाढ़ि. जं कतहु रोगिक चिकित्साले जाउ तं लोक लग डाक्टरकें देबा ले किछु रहैक नहिं. जं कोनो नेनाक हाथ-पयरमें काडा-माठा होइक , दलान पर गाय-बडद होइक तं ओहि सबकें बेचि चिकित्साक खर्च सधयबाक अतिरिक्त आओर कोनो उपाय नहिं . ई हमरा ले दुखद छल.' संभव छैक एहना स्थिति में डाक्टर-वैद्यक गुजर-बसर सेहो कठिन छल होइक.
तथापि, समाजक दुखद परिस्थितिमें स्वेच्छा सं चुनल व्यवसायकें छोड़बाक पाछू किरण जी कोन व्यथा छलनि ? एतबे नहिं, वैद्यक रूपमें समाजमें किरणजीक छवि केहन छलनि, से प्रायः आइ धरि प्रकाशमें नहिं आयल अछि.
जेना कहल, किरणजी वृत्ति सं शिक्षक रहथि. किन्तु, शिक्षकक रूप में किरणजीक अवदानक पक्ष एखन धरि अछूते अछि. किरणजीक व्यक्तित्वक इहो पक्ष अनुसंधेय थिक.
3. किरणजीक मानसिकता
सर्वविदित अछि, किरणजीक जीवन-पद्धति अत्यन्त सादा रहनि. धोतीक स्थान पर 'आम-छाप' कपड़ाक टुकड़ा, आ कुर्ताक स्थानपर ओही 'आम-छाप' कपड़ाक गोल-गला गंजी किरणजीक 'वर्किंग यूनिफार्म' रहनि , से पहिलुका युगक अनेको लोककें देखल छनि. ओ व्यवहारमें सहृदय रहथि; नवतुरिआ लोकनिकें प्रेरित आ प्रोत्साहित करथिन. किन्तु, सबल, प्रतिष्ठित मठाधीश सबसं सोझे ढाही लड़यबामें कोनो भय नहिं होइनि. परम्परा भंजन, निर्भीकता, आ सत्यक संधानक अतिरिक्त किरणजीक एहि व्यवहारक पाछू कोन मानसिकता रहनि, से विश्लेषण विषय थिक.
ततबे नहिं. किरणजी कहने रहथि, एकबेर केओ किरणजीसं पुछने रहथिन, 'अहांक योग्यता सुपरिचित अछि, तखन ( एम् ए , पी एच डी आदि ) परीक्षा पास करबाक कोन काज !'
किरणजी कहलथिन, ' से तं जे बूझैत अछि , से ने . जकरा नहिं बूझल छैक, तकरा हेतु तौलि-भजारि देलियइए.' किरणजीक एहि उक्तिसं हम दू गोट निष्कर्ष निकालैत छी: एक, परम्पराक भंजक किरणजी व्यावहारिक रहथि. विश्वविद्यालय सेवाक पात्रताक हेतु एम् ए , पी एच डी क डिग्री आवश्यक रहनि. किरणजी, घर-परिवार, व्यवसाय, खेती-बारीक झंझटिक पर्यन्त लक्ष्यबेध केलनि. एहि पात्रताक कारण हिनका विश्वविद्यालय सेवाक अवसर भेटलनि. तथापि एकटा गप्प अओर: मैथिली-साहित्य-समाजमें जनिका लोकनिसं हिनका सैद्धान्तिक मतान्तर रहनि ओलोकनि बहुत दिन सं उच्चपदासीन रहथि. किरणजी अपन अनेक समकालीन सं अपनाकें कम बुझबाक तं गप्प छोड़ू, हुनका लोकनिके अपन समकक्षो मानबा ले तैयार नहिं रहथि.अस्तु, वार्धक्यमें डिग्री प्राप्तकय अपन योग्यताकें अनकर समकक्ष प्रमाणित करबाक आग्रह सेहो किरणजी लक्ष्यमें प्रेरक छल हेतनि. ई तं सर्व विदित अछि, अपन अकाट्य तर्कसं किरणजी अपन पक्ष रखबामें बेजोड़ रहथि. जीवनक छ्ठम दशकमें डिग्रीले पढ़ब-लिखब प्रायः किरणजीक अपन पक्ष रखबाक एकटा विरल आ अनुकरणीय शैली छल. भीमनाथ झा कहितो छथि, ' किरण जी शास्त्रार्थी पंडित लोकनिक विगत परंपराक प्रतिनिधि रहथि' .
4. किरणजीक रचना संसार सुपरिचित अछि. साहित्यक प्रायः कोनो विधा हिनकासं छूटल नहिं रहनि. ई जाहि विधामें लिखलनि, परिमाण में भले थोड-बेस हो, गुणवत्तामें सबटा विलक्षण मानल जाइछ.जं हिनक काव्य-कृति के देखी तं किरणजीक काव्य-संकलन छपैत-छपैत जीवनक सांझ भ गेल रहनि. एहि सब संग्रहमें किरणजीक नव कम, पुरान कविता बेसी रहनि. किन्तु, हिनक काव्यकृति 'पराशर' अबैत-अबैत किरणजी प्रायः बिछाओन ध' नेने रहथि. 'पराशर'पर मरणोपरान्त किरणजी कें साहित्य- अकादमी पुरस्कार सेहो भेटलनि. पुस्तकमें सुमनजीक भूमिकाक अतिरिक्त, हमरा जनैत, 'पराशर'पर कोनो गंभीर चर्चा नहिं भेल अछि. आ ने एकर दोसर संस्करण छपल अछि. हमरा जनैत 'पराशर' किरण जीक अंतिम आ सर्वोत्कृष्ट ( swan song आ magnum opus ) कृति थिक. आवश्यकता अछि, किरणजी अवसानक पछाति जनमल पीढ़ी एहि कृतिकें स्वयं पढ़य आ एकर स्वरुपसं स्वयं परिचित होअय.
5. किरणजीक जीवनी : समग्रतामें किरणजीक जीवनी स्वयं एकटा अनुसंधानक विन्दु थिक. साहित्य-अकादमी किरणजीपर एकटा मोनोग्राफ छपने अछि. किन्तु, बोनि द कय जनसं काज करयबासं जेहन काज होइत छैक, ई मोनोग्राफ तेहनो नहिं अछि. सत्यतः, साहित्य अकादेमीक पारिश्रमिककें वस्तुतः पारिश्रमिको बूझब कठिन; ई रिसर्च ग्रांट तं नहिंए टा थिक. किन्तु, से विषयान्तर भेल. अस्तु, आवश्यकता अछि, खोजी प्रवृत्ति, उहिगर व्यक्ति कें समुचित साधन उपलब्ध होइनि जाहि सं किरणजीक जीवनीपर सम्यक दृष्टिक एकटा एहन कृति आबय जे किरण-विषयक शोधार्थीले एकटा प्रमाणिक सन्दर्भ-ग्रन्थ उपलब्ध होइक. साधन-संपन्न शोध-संस्थानसं जं एहि हेतु अर्थक व्यवस्था हो तं ई शोध नव साहित्यिक
अवदान होयत. संगहिं ई शोध सम्बंधित शोध-संस्थानक सार्थकता सेहो प्रमाणित करत.
6.अंत में हम प्रोफेसर शंकरकुमार झाक नामे , अस्सीक दशकमें किरणजीक लिखल एकटा कविता-बद्ध अप्रकाशित पत्र उद्धृत करैत छी:
बिनु कहने बुझि जाइत छथि, मनक बात विद्वान्
तें बाजब पुनरुक्ति बूझि चुप्पे रहथि सुजान
अनुजक तनुज थिकाह ई धरा-भूमि सं हीन
रहितहु नाम रवीन्द्र छथि अन्धकारमें लीन
--------------------------------------------
------------पूर करथु
से शंकर मतिमान.
( बीचक किछु पांति एखन बिसरि रहल अछि ; पत्र हमरा फाइल में अछि )
विश्वास अछि, एहि प्रकारक अनेक छोट-छीन चिट्ठी-पत्री, पुर्जा, पाण्डुलिपि, लेख, प्रकाशित/ अप्रकाशित कृति, आ संस्मरण बहुतो लोकक लग आ जीवित व्यक्तिक स्मरणमें छिडियायल हो. सब किछुकें समेटब किरणक समग्र पुनर्मूल्यांकन हेतु अमूल्य साबित भ सकैत अछि.
किरणजी पर एहि तरहक काज हो,से निश्चित रूपसँ महत्वपूर्ण होयत।जेना अहाँ कहैत छी,ठीक ओहि लाइन पर काज हो त निश्चये किछु परमावश्यक वववस्तु सोझाँ आओत..शुभकामना
ReplyDelete