मेडिकल
व्यवसाय आ समाज: वर्त्तमान परिस्थिति आ सुधारक बाट
वर्ष 2019
में एकटा एहनो समय आयल जे इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA ) सम्पूर्ण भारतमें
आकस्मिक सेवा छोडि बांकी सब काज कें स्थगित केने छल. कारण: देशक विभिन्न भागमें मेडिकल
व्यवसाय- डाक्टर, मेडिकल प्रतिष्ठान, आ पैरामेडिक कर्मी- पर रोगीक परिवारजन अपराधीतत्वलोकनिक
प्रहार. पुरान कहबी छैक:
शरीरे
जर्जरी भूते व्याधि ग्रस्ते कलेबरे
औषधं
जाह्नवी तोयं बैद्यः नारायणः हरिः
अर्थात शरीर
जखन जर्जर भ’ गेल तखन गंगाजले औषधि थिक आ वैद्ये नारायण थिकाह . लोक एकरा एना बना
देलक जे वैद्ये नारायण थिकाह. फलतः, वैद्यलोकनिकें सेहो होमय लगलनि जे ओ लोकनि
भगवाने थिकाह. किन्तु, से जं सत्य रहितैक, तं, एखुनका जे परिस्थिति अछि, से कोना भेल ? डाक्टर-वैद्य
नारायणक पीड़ी परसं कोना उतारल गेलाह ? डकैत
आ किछु डाक्टरकें लोक एक समान कोना बुझय लागल ! दोसर प्रश्न थिक, समाज आ मेडिकल
व्यवसायक बीच एहि परिवर्तित सम्बन्धक हेतु के जिम्मेवार अछि ? की मेडिकल व्यवसाय
अपने एहि परिस्थितिले जिम्मेवार अछि ? वा, एहिमें समाजमें होइत चतुर्दिक परिवर्तनक
सेहो कोनो योगदान छैक ? एहि लेखमें हमरालोकनि एही प्रश्नपर विचार करी.
हमरा जनैत, एहिमे कोनो संदेह नहिं जे जीवन-रक्षाक पर्याय, आ माध्यम, डाक्टरी-बैदागरी,
सेवाक अतिरिक्त एकटा व्यवसाय आ जीवन-यापनक माध्यम सेहो थिक. तथापि, वैद्यलोकनि सनातन
कालसँ ‘सर्वे सन्तु निरामयाः’ क आकांक्षा
रखैत आयल रहथि. से संगतो अछि : केवल पेट भरबाले कोनो डाक्टर-वैद्य मनुष्यकें रोगग्रस्त
हेबाक कामना करैत होथि से ककरो देखल-सुनल नहिं छनि. तखन समाज आ मेडिकल समुदायक बीचक
सम्बन्ध एहन कोना भ’ गेल ? जं विगत तीन सौ सालकेर भारतक इतिहास देखी तं प्रतीत हयत
जे भारतमें चिकित्साक हेतु अनेक प्रकारक समानांतर पद्धति समाजमें उपलब्ध छलैक. एहि
उपलब्ध पद्धतिमें सबसँ पुरान योग-टोन, भगता-भावसं ल कय, आयुर्वेद, यूनानी, होमियोपैथी
आ आधुनिक एलोपैथी पद्धति धरि संग-संग चलैत छल. हं, अंग्रेजक शासनकालमें ‘एलोपैथी’
भारत आयल आ अन्ततः, इएह पद्धति वैज्ञानिक चिकित्सा प्रणालीक रूपमें सरकारी
व्यवस्था आ समाजक आदर पओलक. संयोगसं चिकित्साक केवल इएह टा एहन प्रणाली साबित भेल जे
विज्ञानक निरंतर प्रगतिकसंग डेग में डेग मिलबैत आगू बढ़ल. सरकारक परश्रय सेहो
आधुनिक चिकित्सा-विज्ञानकें भेटलैक. 19 आ बीसम शताब्दीमें रसायन-शास्त्र, शरीर-क्रिया
विज्ञान, भैषज्य-विज्ञान, रेडियोलोजी, आ शल्य-क्रिया विज्ञानक अभूतपूर्व विकासक
संग पोषण इत्यादिक क्षेत्रक विकास चिकित्सा आ स्वास्थ्यक क्षेत्रमें अभूतपूर्व क्रांति आनि देलक. एहि सबसं मनुष्य
आयु बढ़लैक, पीड़ा घटलैक. किन्तु, प्रत्येक परिवर्तन केर दू टा पक्ष होइत छैक: लाभ आ
हानि. अस्तु, जं आधुनिक चिकित्सा पद्धति मनुष्यक आयु कें बढ़ओलक तं संगहि चिकित्साक
बढ़इत व्यय ओकर बजटके असंतुलित करय लगलैक. सत्यतः, पहिने बहुत दिन धरि स्वास्थ्यक
सरकारी आ प्राइवेट व्यवस्था संग-संग चलैत
रहल, यद्यपि भारतमें स्वास्थ्यकें कहियो मौलिक अधिकार दर्जा नहिं भेटलैक. पछाति,
अर्थतंत्रमें उदारीकरण वा निजीकरणक संग सरकार चिकित्सा आ जनस्वास्थ्यसँ हाथ झिकैत गेल आ प्राइवेट स्वास्थ्य व्यवसाय
एकटा उद्योग जकां विकसित होइत गेल जाहिमें निवेशक, अर्थलाभक उद्देश्यसं निवेश करब
आरम्भ कयलनि. कमजोर सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्थाक कारण समाजकें क्रमशः प्राइवेट स्वास्थ्य-सेवा
दिस जयबाक बाध्यता बढ़ैत गेलैक. स्वास्थ्य सेवाक हेतु बढ़ैत मांग सेवा आ सामग्री बेचनिहारमें प्रतिस्पर्धा आ
द्वन्दक जन्म देलक आ बेसी सं बेसी रोगीकें अपना दिस घिचबाक घींच-तान होमय लगलैक. प्रतिस्पर्धा
शत्रुताकें जन्म देलक आ समाज एहि युद्धक मंझधारमें फंसि गेल. बाज़ार बहुतो दक्ष डाक्टर
लोकनिकें किनबाक आ बेचबाक वस्तु बना देलकनि
आ डाक्टर वैद्य लोकनि दुविधाग्रस्त भ’ गेलाह ; ( कटहरक) को खाऊ कि कामरू ? मेडिकल
एथिक्स मेडिकल प्रैक्टिसक जाहि प्रचारक मनाही करैत छल, धुआँधार शुरू भ’ गेल. संगहिं
संग शिक्षाक हेतु बढ़इत मांग आ शिक्षामें सरकारी
निवेशक कमीसं शिक्षा व्यवस्था स्वास्थ्य सेवाक संग दोसर प्रमुख उद्योग रूप लैत छल गेल. शिक्षाक क्षेत्रमें
मेडिकल शिक्षामें निवेशक तुलनामें अधिक सं
अधिक लाभक द्वारि खुजैत गेल, जाहिसं मेडिकल
शिक्षामें निजी निवेश तं बढ़बे कयल,मेडिकल शिक्षा उद्योग पर नियामक संस्थाक पकड़ ढीले
टा नहिं होइत गेल, मिद्कल शिक्षाक नियामक संस्था- मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इण्डिया -
भ्रष्टाचारक पर्याय भ’ गेल. फलतः, मेडिकल कालेज सब में सीटक बढ़इत मांगक संग बहुतो कालेजमें मेडिकल सीटक बतर
नीलामी होबय लागल.
‘उदारीकरण’क
एही युगमें जखन सरकार क्रमशः स्वास्थ्य सेवासं हाथ झिकि रहल छल, नागरिक आ सरकारी स्वास्थ्य
सहायताक बीच इन्स्योरेन्स कम्पनी सब अपन व्यापार खोललक. एहि बदलैत परिदृश्यमें किछु डाक्टर लोकनि या तं एहि व्यवस्थाक अंगीभूत
अंग भ’ गेलाह अथवा प्रतियोगिताक दवाबमें अपन हितक रक्षामें उचित-अनुचितक विचार
छोडि केवल लाभकें केंद्रमें राखि डाक्टरी करय लगलाह. सत्य थिक, अधिकांश डाक्टर-वैद्य
भ्रष्टाचारमें नहिं लागल छथि. किन्तु, कहबी छैक सातुक संग घुन सेहो पिसल जाइछ. अस्तु,
डाक्टरीक प्रति समाजक बढ़ैत अविश्वास नीक-बेजाय (ईमानदार आ भ्रष्ट डाक्टर आ डाक्टरी
प्रतिष्टान) क बीचक भेद करब बिसरि गेल. दोसर दिस, पाँच सितारा मेडिकल व्यवस्थाक
चकाचौंधमें आन्हर समाजक सोझाँ स्वतंत्र
प्रैक्टिस केनिहार समाजक सदासँ विश्वासी डाक्टर-फॅमिली फिजिशियन- बौनबीर-सन प्रतीत
होबय लगलाह. फलतः, फॅमिली-फिजिशियनक संस्था टूटैत चल गेल. आ अन्ततः, समाजक बीच चिन्हार
डाक्टरक परिचयक जे विश्वास छलैक से विलुप्त भ’ गेल. ई सब किछु परिवर्तन क्रमशः
भेलैये किन्तु एकर गति कें पाछू मुँहे मोड़ब
एखन असंभव लगैछ.
सत्य थिक,विज्ञानक
गति आगूए जेतैक आ जेबोक चाही. लोककें ओहिसं लाभ तं भेलैये. किन्तु, हमरा लोकनिक आधारभूत
मेडिकल चिकित्साक व्यवस्था लचर अछि. रेफरलकेर सिस्टम नियमबद्ध नहिं छैक. अस्तु, जकरा
सुविधा छैक सोझे मेडीकल कालेज वा टर्सियरी केयर सेंटरमें पहुंचि टाका खर्च कय अपन
समस्याक समाधान करैछ आ जकरा साधनक आभाव छैक सरकारी तन्त्रक माध्यमे ओकर समस्याक निवारण
नहिं भ’ पबैत छैक. कखनो जं लोकके सरकारी सहायता भेटितो छैक तं सरकारी सहायता वा
इन्स्योरेन्सक ऊपर अपना जेबसं आओर टाका जोड़य पडैत छैक. प्राइवेट मेडिकल व्यवस्थाक
एहि प्रतिष्ठान सबमें ठाम रोगी आ रोगीक
परिजनक संग सब ठाम डाक्टरे-वैद्य सम्पर्क में अबैत छथि, निवेशक वा सेठ जी जनिकर
निरंतर दवाब मेडिकल कर्मी रहैत छनि, कखनो समाजक सोझ संपर्कमें नहिं अबैत छथि. फलतः,
समाजक सम्पूर्ण असंतोष आ क्रोधक लक्ष्य चिकित्साकर्मीए (वा अस्पताले) बनैत छथि, पाछू बैसल निवेशक नहिं
!
प्रश्न उठैछ,
एहि सब में कि डाक्टर वर्ग पूर्णतः निर्दोष वर्ग थिकाह ? एकर उत्तर कनेक विस्तारसँ
दैत छी. किन्तु, एहि विस्तारसँ पूर्व समाजक
असंतोषक किछु कारणकें ठीकसँ देखी :
1.
सरकारी सेवामें नियुक्त डाक्टर सरकारी कार्यसं बहुधा उनुपस्थित रहि लगहिंमें अपन प्राइवेट प्रैक्टिसमें जान लगौने रहैत छथि. बेईमानीक एहि उदाहरणक
हेतु कोन प्रमाण चाही.
2.चिकित्सक
समुदायमें अनेको ठाम ईमानदारीक कमी आ भ्रष्टाचारक उदाहरण सामने अबैत रहैछ, से के नहिं
मानत. तें, एहि हेतु चिकित्सक समुदाय आत्म-मंथन करथि जे वृहत्तर समाज आ डाक्टरी
सेवाक बीच अविश्वासक एहि परिस्थिति ले हुनका लोकनि बीचक सदस्य लोकनिक अपन आचरण कतय
धरि जिम्मेदार अछि.
3 .
रोगीक दृष्टिमें निरर्थक जांच-पड़ताल किछु लोकक दृष्टिमें डाक्टरक आमदनी जरिया-जकां बूझि पड़ैछ. ई सत्यो थिक. समाजमें
एकरो प्रमाण अछि. किन्तु, निरर्थक जांच रोगीक हेतु खर्चक बाट थिक.
4 .
जानि बूझि कय इलाजक अत्याधुनिक किन्तु महग
विकल्प कें चुनबाक परिपाटीक रोगीसं खर्च
बढ़इछ.
5.
चिकित्सा सेवा आ सामग्रीक उत्पादकक बीचक लोभ-लाभ सम्बन्ध जगजाहिर अछि. समाज एहि सम्बन्धकें संदेहक दृष्टिसं देखैछ. बहुतो ठाम
संदेहक कारण नहिं छैक से कहब उचित नहिं हयत.
6 .
चिकित्सक समुदायक अपना बीच आत्म-मंथनकें संस्थागत व्यवस्थाक अभाव.
प्रस्तावित समाधान :
1.
चिकित्सक समुदाय आत्म-मंथन करथि जे वृहत्तर समाज आ डाक्टरी सेवाक बीच अविश्वासक
एहि परिस्थिति ले हुनका लोकनि बीचक सदस्य लोकनिक अपन आचरण कतय धरि जिम्मेदार अछि. चिकित्सक
समुदाय समाजमें अपना प्रति घटैत सम्मानक स्थितिके सुधारबाक हेतु ठोस डेग उठाबथि.
2.
भोजन-वस्त्र-आवास, आ शिक्षाक संग स्वास्थ्य-सेवा
नागरिकक मौलिक अधिकार मानल जाय.
3.
साधारण रोगक उपचारक मूलभूत सुविधा सबठाम सुलभ आ सुनिश्चित नहिं अछि. हमरा लोकनिक
गाम घरमें एखन धरि सरकारी सेवा नहिं पहुंचल अछि. चिकित्साक मूलभूत सुविधा स्थानीय प्रशासन आ सरकारक दायित्व घोषित हो. एहि
सं प्राइवेट स्वास्थ्य-सेवा पर लोकक निर्भरता घटतैक.
4.
प्रत्येक इलाकामें सरकारी डाक्टरक नियुक्ति हो, आया उपस्थिति सुनिश्चित कयल जाय . अपन
क्षेत्रमें अबैत नागरिकक मौलिक उपचारक दायित्व स्थानीय डाक्टरक होइनि. एहि व्यवस्थाक
नियमतः ऑडिट हो. जे चिकित्साकर्मी अपन दायित्वक निर्वाहमें असफल होथि हुनका विरुद्ध कार्रवाई प्रावधान हो.
5.
चिकित्सा सेवामें संलग्न कर्मीक हेतु गाम-गाम में आवासक व्यवस्था सुनिश्चित हो,
एहिसं उपस्थितिक समस्याक निराकरण हेतैक.
6.
चिकित्सा-सेवाक हेतु आवश्यक सामग्रीक उपलब्धता सरकार सुनिश्चित करय.
7.
स्थानीय सेवासं जाहि रोगीक चिकित्सा असंभव हो हुनका लोकनिकें सरकारी वाहनमें रेफरल
अस्पतालमें पठेबाक व्यवस्था हो. रेफरल अस्पतालमें सुविधा नहिं उपलब्ध भेला पर रोगीकें
सरकारी खर्चपर चिकित्साक व्यवस्था कायम कयल जाय. मेडिकल कालेज अस्पतालक भूमिकाकें
संस्थागत बनाओल जाय. एखन बिहारमें मेडिकल कालेज अस्पताल सब जर्ज्जर अछि.
8.
मेडिकल कालेज अस्पताल सबहक सुविधा राष्ट्रीय स्तरक हो एवं मेडिकल कालेज अस्पतालक
वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट प्रकाशित हो.
9.
दूर दराज में काज करैत डाक्टर लोकनिक समय-समयपर बदलीक अतिरिक्त हिनका लोकनिक स्नात्तकोत्तर
शिक्षाक व्यवस्थाक व्यय सरकार उठाबय.
10.
अत्याधुनिक इलाज महग छैक, डाक्टर से रोगीकें बुझायब आवश्यक.अतः प्राइवेट सेक्टरक डाक्टर
ई सुनिश्चित करथि जे चिकित्साक उपलब्ध विकल्पसं डाक्टरक सहायतासं रोगी अपनहिं अपन
हेतु चिकित्साक विकल्प चुनथि. जाहि सं डाक्टर आ रोगीक बीच विश्वास सुदृढ़ हो, विश्वास
बनल रहय
11.
अस्पतालसब में रोगी एवं हुनका लोकनिक परिवारजनक संग संवादक हेतु लोक-संपर्क
अधिकारीक बहाली हो, जाहि सं रोगीक निर्बाध चिकित्सा डाक्टर अपन समय द’ सकथि. स्वास्थ्यकर्मी
लोकनि सेहो रोगी आ रोगीक परिवार सं निरंतर संवाद कायम राखथि.
12.
सरकार अस्पताल आ स्वास्थ्यकर्मीक सुरक्षाक ठोस व्यवस्था करय. संगहिं समाजमें
स्वास्थ्य सेवाक जटिलताक हेतु जागरूकता जगाओल जाय.
समुचित प्रयाससं समाज आ चिकित्सा क्षेत्रक बीच टूटैत विश्वासकें पुनर्स्थापित करब सम्भव छैक, से हम मानैत छी. काज आसान नहिं छैक, किन्तु असंभवो नहिं. किन्तु, एहि ले डाक्टर समुदायक भीतरक इमानदार सदस्यक सहयोग, स्वास्थ्य सेवा विभागक संकल्पक संग राजनैतिक संकल्पक सेहो आवश्यकता छैक. मुदा, करत के ? प्रायः जागरूक जनताक निरंतर दवाबसं एहन परिणाम संभव अछि जे अद्यावधि असंभव छल. बुझबाक थिक जखने कोनो वर्गक निहित स्वार्थ पर चोट पडैत छैक, विरोध तं हेबे करतैक, किन्तु, सम्मिलित आ निरंतर दवाब आशातीत सफलताक बात खोलैछ, से नहिं बिसरबाक चाही. एहिमें समाज आ चिकित्कसक वर्ग दुनूक दूरगामी हित निहित छैक.