Tuesday, December 29, 2020

नासीमें माटि भरब, गाम नाशक निसानी थिक

 

                                                नासीक भरब, गाम नाशक निसानी थिक

लोहना रोड रेलवे स्टेशन केर लाल ईंटाक छोट-सन भवन इतिहास भ’ चुकल अछि. पछिला एक शताब्दीसँ एतुका इतिहासक साक्षीक स्थान आब एकटा बेजान-सन मिलिटरी बैरकनुमा, चुनेटल भवन ल चुकल अछि. सतही स्तर पर तं लगैत अछि पछिला एक वर्षमें एहि इलाकाक सबसँ प्रमुख परिवर्तन इएह थिक. किन्तु, से छैक नहिं. कोरोनाक आगमन सम्पूर्ण समाजकें कोना बदलि देलक-ए तकरा दोहरयबाक एतय काज नहिं. सर्वविदित अछि, सब किछुक अतिरिक्त कोरोना जाहि वस्तुकें सबसँ बेसी प्रभावित केलक अछि ओ थिक हमरा लोकनिक मनोदशा. कोरोना महामारीक आरम्भ में हम अपना पर कोरोनाक प्रभावक एके टा तराजू निर्धारित कयने रही: जं कोरोनासं प्राण बंचि गेल तं कोनो हानि नहिं भेल. अन्यथाक उत्तर, विदिते अछि. यातायातमें बाधा आ कोरोना-संक्रमणक भयक कारण दुर्गापूजामें गाम नहिं जा सकलहुं. तें, एहि बेर सवा वर्षक पछाति गाम आयल छी. सेहो, किछुए काल ले. सेहो नीके. कारण, एखन जाड़ सबहक हाड़कें हिलौने अछि.

लोहना रोड रेलवे स्टेशन, वर्ष 2020 

परिवर्तन जीवनक रस थिक. मुदा, बहुतो परिवर्तन जीवनकें बेरस सेहो बना दैत छैक.परिवर्तनकें देखबाले आँखि चाही. किन्तु, सुनब सेहो बहुतो परिवर्तनक सूचनाक श्रोत थिक. हमरा संग जे ड्राईवर एहि बेर गाम चललाहे ओ निरंतर हमरा लोकनिक गप्प सुनि टोक तं दैते छथि, ओही गति में बजितो छथि. तें, गाम जाइत-अबैत दस घंटा सं बेसीक टैक्सी यात्रामें हमरा नहिं लगैए गाम-घरक संबंधमें अनकासँ किछु आओर पूछय पड़त ! आम ड्राईवरसं भिन्न, विजय कुमार ,सूचनासं पूर्ण आ मुखर दुनू छथि. डेरा पटना सिटीमें छनि. पुछलियनि, ‘ अहाँ लोकनि समाजिक दूरी आ कोरोनासँ  रोकथाम कोना करैत छी ? हुनक उत्तर सोझ आ स्पष्ट छल : हमरा लोकनि सब गोटे डेरासँ  निकलैत छी. करीब पच्चीस गोटे रौदमें चबूतरा पर बैसि गप्प सप्प करैत, चाह-पान करैत छी, सब सबहक हाल-चाल बूझैत अछि आ फेर सब अपन-अपन घर आपस जाइछ अछि, अपन काज-बुत्ता करैत अछि !’ हम कहलियनि; एहि बेरुका ( विधान सभा ) चुनावक गप्प कहू. कहलनि, रिजल्ट मैनेज भ’ गेलैक ! अच्छा ? तं, की !! सत्यतः, बिहार विधा सभाक चुनावक परिणामक सम्बन्धमें एहि बेर जकरासँ  गप्प भेल- पार्टी कार्यकर्ता, नेता, आ बुद्धिजीवी- सबहक एके कहब: ‘रिजल्ट मैनेज भ’ गेलैक’. मुदा, ड्राईवर विजय कुमारसँ गप्पक क्रम में हमरा मुँहसँ निकलि गेल, ‘ चलू कम सँ  कम लालूक कुनवा तं नहिं जीतल. नहिं तं अपहरणकेर उद्योग फेर आरम्भ भ’ जाइत.’


‘से तं आरम्भ गेल छलैक, सर !

माने ? माने कि आब डिजिटल फिरौती होइत छैक !

अच्छा ?

तं, की !’- विजय कुमार जोर दैत कहलनि.

हाईवे रेस्टारेंटक एक दृश्य , मुजफ्फरपुर जिला, दिसम्बर 2020

रास्तामें भगवानपुर, मुज़फ्फरपुरमें चाह ले ठमकलहुँ. उत्तम खौलौआ चाह. भोरक बेर छलैक. अजस्र लोक जलखैक हेतु एहि ठाम खुला रेस्टोरेंटमें बैसल छलाह. ने ककरो मास्क- (खयबाक काल लोक मास्क कोना लगाओत !), ने सामाजिक दूरी. सुनैत छी, एतय नीक गुलाब जामुन भेटैत छैक. जाड़में गरम गुलाब-जामुन ! गरम पूड़ी-तरकारी आ गरम गुलाब जामुन एतय स्वतः कोरोनाकें पराजित केने अछि ! तकर आओरो  प्रमाण भेटल. हमर एकटा भातिजक विवाह हालहिं में भेलनि-ए. बस भरि कय  गौआं लोकनि बरिआती पुरय गेल छलाहे. काल्हिए हमर एक, बृद्ध  ममिऔत भाईक मृत्यु ओड़िसामें भेलनि-ए. सुनैत छी, आइ शरीर गाम आबि रहल छनि. कोरोना महामारीक आरंभिक कालमें ई सम्भव नहिं छलैक.आब सरकारी नियंत्रण, आ नागरिकक लोकनिमें भय, दुनू कम भेलैए.फलतः हमहूं किछु हिम्मत कयल. पटनामें एक दिन नोत सेहो खेलहुँ. गाम में हमर गौआं, भैरव भाई, हालहि में दिवंगत भ’ गेलाहे. हुनक पत्नी गामहिं छथिन. अस्तु, हुनका ओतय गेलहुँ आ संवेदना व्यक्त केलिअनि आ अपन नवीन पुस्तक, ‘लोहना रोडसँ लास वेगस’ उपहार में देलिअनि.अस्सी वर्षसं ऊपर वयसक भौजी, पोथी पढ़ैत छथि. आइ धरि हम अपन सब पोथी दैत एलियनिए. हमरा नहिं बूझल अछि हुनका तुरिया अओर कोनो महिला एतय आब पूजा-पाठक पोथीक अतिरिक्त आन कोनो पोथी पढ़इत हेती. कारणों छैक, ई भौजी स्व.पं. दुर्गाधर झाक पुत्री आ डाक्टर सर गंगानाथ झाक दौहित्री थिकीह !  

हमर पुरान सीनियर आ ‘गामक गार्जियन’  शिबू भाई, एवं शिबू भाईक पौत्र शशांक सेहो भेंट करै ले भोरे अयलाह. हमरा लोकनि घूड़ लग बैसलहुँ तं ‘ सामाजिक’ दूरी राखब हमरो बिसरि गेल. सत्यतः, प्रिय जनक संगति लोकक मन पर घनीभूत चिंता कें ओहिना उड़ा दैत छैक, जेना, बसातक झोंकी करियायल उमड़ल मेघ कें. हिनका लोकनिक लगमें, भले कनिए काल ले, कोरोनाक जीवाणु हमरो चेतनासँ  बिला गेल छल. शहर बाज़ारक एकाकी वासमें इएह नहिं भ’ पबैत छैक. आ तें, लोककें चिंतासँ पाचन बाधित भ’ जाइछ छैक, निन्न बिला जाइत छैक. ताहि पर दूइए तीन गोटेक बीच, मिनट-मिनट पर कोरोनाक चर्चा चिंताए टा नहिं, निरंतर परिवारिक कलह आ अशांतिक बीआ सेहो बाग़ करैत रहैछ. पहिलुका संयुक्त परिवारक विपरीत एखनुक अल्ट्रा नुक्लेअर परिवार में , ‘झगड़ा केओ सुनि लेत’ तकर संकोचक काज नहिं. अर्थात् कलहक आगि अनेरे पसरैत चल जाइछ; फोन्सरि भोकन्नर भ’ जाइछ !

शिबू भाई हमरा सं वयसमें किछु बेसी छथि. किन्तु, पुरान संगी. एहि बेर हुनकासँ  नव सूचना भेटल. एहि गामक उतरबरिया सीमा पर स्थित कमला नदीक पुरान छाड़न, जकरा एतुका लोक नासी कहैत छैक, कें गौआं खंड, खंडमें कीनि रहल अछि आ अपन-अपन हिस्साकें कमलाक बालुसँ  भरि रहल अछि. मुदा, ज्ञानवान एहि में आसन्न संकटक छाया देखि रहल अछि. हमर जेठ भाईक संगिनी- छोटकी भौजी- इस्कूल नहिं गेल छथि. ओ बंगलोर आ जैसलमेरमें बरखाक कारण मकान सबहक प्रथम तल धरि डुबबाक इतिहास सबसँ सेहो अपरिचित छथि. मुदा, ओ अवाम गामक पछिला सताबन वर्षक बीच अबैत प्रत्येक बाढ़िक साक्षी  छथि. हुनका ज्ञानमें हमरा गाम लग तीन बेर कमलाक बांह टुटलैक-ए. ओ प्रत्येक बेर घर अंगनामें पानि भरलाक पराभवकें बेर-बेर भोगने छथि. भौजी कहैत छथि, आब जखन लोक नासी कें भरि रहल अछि,तखन  आब बाढ़िक कोन कथा, बरखहुसँ  पानि लोकक घर अंगनामें भरि जेतैक. हमर माथ  ठनकैत अछि. पछिला चौंतीस वर्षमें केवल तेसर वर्षक बाढ़िमें हमर घरमें पानि ढुकल छल, सेहो कमलाक बान्ह टुटला पर . आब बरखे-बरख घरमें बरसातमें पानि ढुकत ! मुदा, गौआं लोकनि बम्बई-बंगलोर आ चेन्नईमें, फ्लैट में रहैत  जमींदार जेकाँ बाढ़ि पानि आसन्न खतरा सं आँखि मुनने छथि ! आ नासीक भरब, गाम नाशक निसानी थिक, से स्वार्थमें आन्हर गौआंक चेतना धरि किएक पहुँचतैक ! तखन, बाहरसँ  कहियो काल गाम अयनिहार  लोक, गौआं के ज्ञान द’ कय मारि खायत !

 

 

Monday, December 28, 2020

कोरोना काल में दोसर हवाई यात्रा

                              कोरोना काल में दोसर हवाई यात्रा

कोरोना-काल में सब किछु संदिग्ध भ’ गेल अछि. मानि कय चलू, अहाँक अतिरिक्त सब केओ, सब किछु कोरोना -संक्रमित अछि. वायु संक्रमित अछि. बैसबाक स्थान, गाड़ी-घोड़ा, दोकान-होटल, मन्दिर-गिरजाघर, अस्पताल-कोर्ट-कचहरी, स्कूल-कालेज, रेल-हवाई जहाज-टैक्सी-बस सब किछु संक्रमित अछि. चतुर्दिक संदेहक  फलस्वरुप  मनुष्य पूर्णतः परेशान अछि. की करी, की  नहिं, तकर विचार मात्रसँ  लोक कें चक्कर आबय लगैत  छैक.

गाममें केओ अस्वस्थ भ’ गेल, कोनो ख़ुशी वा दुःखक अवसर आबि गेलैक,तं  मन मारि बैसल रहू. नहिं, जं हिम्मत क कय कतहु गेलहुँ तं अगिला दू हफ्ता एहि  तनाव ले तैयार रहू जे कखन ने कोरोना-संक्रमणक  लक्षण आ रोग हड़हड़ी  बज्र-जकां माथ पर खसि पड़य. शहरमें बेसी ठाम एहने परिस्थिति भेटत. किन्तु, मिथिलांचलक देहातमें हमरा परिस्थिति एकदम भिन्न भेटल. कतहु केओ मास्क नहिं लगबैछ. कतहु कोनो समाजिक दूरी नहिं. संयोगसँ  कोरोनाक प्रकोप सेहो लोककें देखबा में नहिं आबि रहलैक अछि. लॉक-डाउनक बाद जेना लोक साकांछ छल, ने तेहन सावधानी, आ ने तेहन भय. पटनामें सेहो लोक इच्छानुसार मास्क लगबैछ. एक-दोसराक ओहिठाम आयब-जायब चलि रहल छैक. हाट-बाज़ारक भीड़के दोष देबाक कोनो औचित्य नहिं. पटना एअरपोर्टक भीतर आ पटना जंक्शनक बाहरक भीड़क सघनतामें कोनो विशेष अंतर नहिं.  तथापि, जं हवाई यात्रा क कय बाहर सं मिथिलांचल वा मिथिलांचलसं आन ठाम कतहु पहुँचबाक हो तं हवा निकलि जायत ! हमरा एखन तेहने अनुभव भेल. तकरे गप्प सुनू.

2020क मार्च मास. 11 तारीखक जोधपुरसँ चेन्नई आयल रही तं पहिल बेर चेन्नई हवाई अड्डापर कोरोना सम्बन्धी जाँच-पड़तालसँ पाला पड़ल छल. तकर बाद ने कोनो यात्रा कयल, ने यात्राक अनुभव भेल. एखन नौ मासक पछाति, 12 दिसम्बर कय जखन पटना बिदा भेलहुँ तं चारू भुवन नजरि आबय लागल. खैर, ईश्वर में विश्वास नहिओ रहैत, भगवान-भगवान करैत चिरपरिचित-चिन्हार टैक्सीवाला कें संग कयल. एअरपोर्ट पर सरकारी अनुदेशक अनुपालन करैत आगू गेलहुँ. हमर सीट बिचला छल, तें, पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (PPE) कें ओहिना पहिरल जेना ऑपरेशन करबा काल ऑपरेशन थिएटर में पहिरैत आयल छी. चेहराक सामनेक फेस शील्ड यात्रामें नव अनुभव छल. तथापि, पटना जयबा काल बिहार सरकारक तरफसँ  जाँच-पड़तालक कोनो सख्ती नहिं. मुदा, अयबाक तैयारीमें  पसीना छूटय लागल. चेन्नईमें उतरनिहार प्रत्येक व्यक्ति केर e-रजिस्ट्रेशन  तमिलनाडु सरकार अनिवार्य केने छैक. ई e-रजिस्ट्रेशन सबसँ बड़का कवायद साबित भेल. लगैत अछि, मिथिलांचलमें विवाहहुक हेतु कनियाँ-वरक उतेढ़क एतेक जांच-पड़ताल नहीं होइत छैक. लगभग पांच पेजक फॉर्म. दू तीन बेर तं एही हेतु फॉर्म भरब बिच्चहिंमें बंद भ गेल- ‘टाइम-आउट’ भ गेलैक ! तकर बाद  जे खाना पूरी रहैक, ताहिमें जं-जं आगू बढ़इत जाइ, नव-नव देवाल ठाढ़ भ जाइत छल. अपन नाम-लिंग-वयस, पिताक नाम, फ़ोन नंबर आ ईमेल आइ-डी. आधार- पैन कार्ड नम्बर आ तकर फोटो. PNR नंबर, फ्लाइट-सीट संख्या  आ हवाई टिकट केर कॉपी. फ्लैट , सड़क, मुहल्ला, शहर, तालुका आ पिनकोड. गंतव्य- डेराक पता, सड़क, मुहल्ला, रोड, तालुका, शहर, पिनकोड; जं पिनकोड मैच नहिं भेल तं फॉर्म भरब  फेरसँ  शुरू करू. एकर आगू संग यात्रा करैत कुल यात्रीक संख्या. संग अबैत परिवार जनक पूर्ण विवरण. एहिसँ आगू, एअरपोर्टसँ बाहर जयबाक हेतु बुक कयल टैक्सीक प्रकार, गाड़ीक रजिस्ट्रेशन नंबर आ गाड़ीमें उपलब्ध सीटक कुल संख्या. ड्राईवरक नाम आ टेलीफोन नंबर. फॉर्म में इहो घोषित करबार रहैक जे गंतव्यक हमर आवास पर क्वारंटाइनक हेतु समुचित स्थान उपलब्ध अछि.अंततः, ई सबटा भरैत-भरैत ततेक समय लागि गेल आ मोन ततेक परिश्रान्त भ’ गेल जे, यात्राक निर्णय पर तमस चढ़य लागल. मुदा, करितहुं की ! अंतमें जखन फॉर्म पूर्ण भेलाक बाद फॉर्म जमा भ’ गेल तं एकटा e-पास बनल. कि, तं, चेन्नई एअरपोर्ट पर एकर जांच हयत तखने आगू बढ़ि सकैत छी. मुदा, जखन करीब साढ़े दस बजे रातिमें चेन्नई हवाई अड्डा पर उतरलहुँ, तं कतहु कोनो जांच-पड़ताल नहिं. हमर नियामिकी टैक्सी-ड्राईवर- सुरेश-कें जखन ई सबटा दुखड़ा सुनौलियैक, तं, ओ कहलक, करीब मास दिन पूर्व धरि सत्ते सबटा जांच-पड़ताल होइत छलैक. तें लोक कें एअरपोर्टसँ बहरयबा में सामान्य समयसँ एक घंटा बेसी लागि जाइत रहैक. किन्तु, आब सब बंद भ गेल छैक. लगैए, कोरोना संक्रमणक दोसर लहरिक खतराक बावजूद सरकार आ जनता सब थाकि चुकल अछि. तें आब सब किछु भगवानहिंक भरोसे !                                              

फिलहाल हम कान पकडल: आब एहि  महामारीक बीच यात्रासँ भगवान बंचाबथि !     

        

Monday, December 7, 2020

वर्तमान आर्थिक संकट आ ओकर निराकरण

 

वर्तमान आर्थिक संकट आ ओकर निराकरण

COVID-19 नामक महामारी सम्पूर्ण विश्वमें पोआरक आगि-जकां पसरल. किन्तु, रोगक भयक अन्हारमें COVID-19 महामारीक  आर्थिक परिणाम सोझे आँखि पर नहिं पड़इछ. मुदा, एकर मारिसँ  केओ छूटल नहिं. सबसँ पहिने जखन तालाबंदी भेलैक तं सरकारक आश्वासनक अछैतो, निजी क्षेत्रमें काज कयनिहारकें कतेक के नौकरीए नहिं रहलैक, कतेककें वेतन नहिं भेटलैक. जखन बंदी खुजलैक आ लोक काज पर आपस आयल  तं वेतन में कटौती भ’ गेलैक. महगाई कतेक बढ़लैक तकर अनुमान सोनाक दाम में आयल बृद्धि सं कय सकैत छी; तीस हज़ार में भेटैत दस ग्राम सोनाक मूल्य छप्पन हज़ार भ’ गेल. दोसर दिस, कर्मचारी आ पेंशनरक महगाई भत्ता पर अगिला डेढ़ वर्ष ले रोक लागि गेल. तथापि, उपर-उपरसँ  लोक तेना व्यवहार करैत छल जेना सब किछु सामान्येरहैक. आब जखन COVID-19 महामारीक छौ माससँ बेसी भ’ गेलैये महामारिक आर्थिक मारिक पक्ष जहाँ-तहाँ सोझे देखबामें अबैछ : होटल-रेस्टोरेंट खाली अछि. होटल सबहक बाहर तैनात सिक्योरिटी गार्ड नदारद अछि. तर-तरकारीक दोकानमें ने वस्तु छैक, ने बेचनिहार. लोक कें रोग नहिं होइत छैक से असंभव, किन्तु, लोक अस्पताल जेबासं परहेज रखने अछि; खाली हाथें लोक रोग इलाज कराओत कोना ! एक टा उदाहरण देखू. ककरो अस्पतालमें मोतियाविंदुक आपरेशन हेतनि. फीस 3 हज़ार टाका. किन्तु, रोगी COVID-19 सँ मुक्त छथि से बिनु प्रमाणित भेने ऑपरेशन नहिं हेतनि. अस्तु, COVIDक जांच आ छातीक CT-scan में चारि हज़ार अओर खर्च करथु. ऑपरेशन कालमें डाक्टर आ रोगीक हेतु सुरक्षा उपकरण चाही. दाम तीन हज़ारसँ उपर. माने, तीन हज़ारक ऑपरेशनक खर्च दस हज़ार भ’ गेल. एहि तरहक उदहारणक कमी नहिं. आब जं ककरो पेट, छाती, ह्रदय, वा जोड़क इलाज होउक, तं अस्पताल जं भरती करब स्वीकार कइओ लेलकनि, तं खर्चक भारसँ लोक रोगकें देह लगाकय मारने अछि ! अस्पताल आ प्राइवेट प्रैक्टिसमें लागल डाक्टर रोगीक चिकित्सासँ दूर भगैत छथि से फूटे. आ सेहो कोना ने होउक. देशमें COVID-19 क कारण पांच सौ करीब डाक्टर मरि चुकल छथि ! जे अपन काज में लागल छथि, रोगक खतराक अतिरिक्त, चिकित्साक परिणाम प्रतिकूल भेला पर  रोगीक परिवारजनक अत्याचारसँ नित्य लडि रहल छथि, से अलग !

छोट-छोट व्यापार, सड़कक कातक दोकान, होटल, चाहक दोकान बन्न अछि. खूजल अछि तं ग्राहक नदारद. स्कूल सब बन्न अछि. मास्टर लोकनि बेकार. पैघ-पैघ शहर में ट्यूशनक व्यवसाय ठप्प अछि. डाकघर- रेल बन्न कहुना मंथर गतिसँ चलि रहल अछि. एहिसँ व्यापारो बाधित अछि. डाकसँ पठाओल सामग्री जकरा जेबा में एक हफ्ता लागैत छलैए आब एक मास लगैत छैक. सीमित मांग आ बाधित संचार मीलि कय व्यापारले एकटा नव देवाल ठाढ़ केने अछि.

16 अक्टूबर 2020 चेन्नई सं प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक ‘ द’ हिन्दू’ अजुका समाचार जेहने रोचक अछि तेहने अभूतपूर्व. ‘Despite relaxation, temple yet to garner revenue’ क शीर्षकसँ प्रकाशित एहि  समाचारक सारांश ई जे लॉक डाउन में छूट के बावजूद मन्दिर सबमें ने स्पेशल दर्शनक टिकट बिकाइत छैक आ ने चढ़ावा चढ़इत छैक. परिसरक दोकान-दौड़ीसँ अबैत किराया सेहो बन्ने छैक. भक्त लोकनिक कहब छनि, जखन लाइन में ठाढ़ हेबेक छैक तं ‘ हम टिकट किएक किनू !’ भक्त लोकनिक लाइनसँ दूर हेबाक कारणे हुण्डी खालीए पड़ल रहैए. माने, एखुनका आर्थिक संकटसँ भगवान-भगवती धरि प्रभावित छथि. एकटा वर्ग जकरा कोनो संकट देखबामें नहिं अबैत छैक, ओ भेल सरकार ! किन्तु, चुनाव जनताक सोच नपबाक थर्मामीटर थिक. बिहारक 2020क विधानसभाक चुनावमें सरकारक प्रति जनताक आक्रोश पहिल बेर सामने आयल अछि. किन्तु, जनताक रोष एखनो राज्य सरकारे टा पर केन्द्रित छैक. देखी सरकार विधानसभा चुनाव 2020क परिणामक की अर्थ निकालैत अछि. किन्तु, अहम से नहिं. अहम ई थिक जे सरकार जनाक्रोशक कारणक निवारण ले कोण डेग उठबैत अछि. समस्या कठिन छैक. समाधानमें समय लगतैक, किन्तु, जनताक धैर्य जवाब दय चुकल छैक. तें, जे किछु हो, अबिलंब हो. किन्तु, की से सम्भव छैक !  

Tuesday, November 10, 2020

ग्लौकोमा(Glaucoma)-कालामोतियासँ आँखिकें कोना बंचाबी

 

ग्लौकोमा(Glaucoma)-कालामोतियासँ आँखिकें कोना बंचाबी

ग्लौकोमा की थिक ?

ग्लौकोमा आँखिक संवेदी पर्दा-रेटिना- सँ  दृष्टिक-संवेदनाकें मस्तिष्क धरि पहुँचयबावला स्नायु- ऑप्टिक नर्व (optic nerve) केर रोग थिक, जकर प्रभाव अंततः मनुष्यक दृष्टि बाधित होइत छैक.

ग्लौकोमा विश्वस्तर पर वयस्क लोकनिक अन्धताक एकटा प्रमुख कारण थिक. व्यवहारिक रूपें, ग्लौकोमाकें  आँखिक रोशनी चोर कही तं अतिशयोक्ति नहिं होयत. मुदा, सर्वविदित अछि, जं साकांक्ष होइ तं चोरकें पकड़िओ सकैत छी. साकांक्ष नहिं होइ, तं  चोरि भइओ  जाय, से संभव. हं, कखनो चोर अनासयो पकड़ा जाइछ, सेहो संभव. ग्लौकोमा सेहो आँखिक ज्योतिक एहने चोर थिक. 

जनसामान्यक हेतु ग्लौकोमाक एहि संक्षिप्त चर्चाक उद्देश्य ग्लौकोमासँ आँखिक रोशनीकें बंचाव अछि.

जनस्वास्थ्यक समस्याक  रूपमें  ग्लौकोमा

विश्वस्वास्थ्य संगठन( WHO) क 2019 क आंकड़ाक अनुसार संपूर्ण विश्वमें करीब  45 लाख व्यक्ति ग्लौकोमाक कारण आन्हर छथि. अनुमानक अनुसार भारतमें 1 करोड़ 20 बीस लाख व्यक्ति ग्लौकोमा सं पीड़ित छथि आ करीब बारह लाख व्यक्ति ग्लौकोमाक कारण आन्हर छथि. अर्थात्  ग्लौकोमा आँखिसँ संबंधित एकटा प्रमुख जन-स्वास्थ्य समस्या ( Public Health Problem ) थिक, जे अधिकतर 40 सँ ऊपर वयसक व्यक्तिककें प्रभावित करैछ. उपलब्ध आंकड़ाक अनुसार ग्लौकोमासँ प्रभावित 90 प्रतिशत व्यक्ति अपन आँखि पर रोगक प्रभावसं  अभिज्ञ रहैत छथि. ई चिन्ताक विषय थिक.

सर्वविदित अछि, इन्टरनेटक युगमें सूचनाक कमी नहिं छैक.एखन फेसबुक आ  व्हात्सएप्प पर जतेक ज्ञानक गंगा बहैत अछि आ जेना सब आयुक लोक नित्तह मोबाइल-टीवी-कम्प्यूटरमें मुडियाडी देने रहैछ, तेना में लोक कें कोनो वस्तुक जानकरी नहिं छैक से विश्वासो करब आश्चर्य लगैछ ! तथापि, सत्य ई थिक जे समाजमें ग्लौकोमाक संबन्धमें लोकक जानकारी बहुत थोड़ वा नहिंए-जकां छैक. चकित करयवला गप्प ई थिक जे विकसित देशहुमें ग्लौकोमा रोगी सब म सँ करीब आधाकें इहो नहिं बूझल छनि जे हुनका ग्लौकोमा छनि. उत्तर भारतक ग्रामीण इलाका में तं ग्लौकोमाक जानकारी नहिंए सन छैक, से अनुसंधान सं विदित होइछ. तें, समय रहैत ग्लौकोमाक निदान हो, आ समाजमें ग्लौकोमासँ होइत अन्धताक रोकथाम हो ताहि हेतु एतय ग्लौकोमा संबंधी मोट-मोट जानकारी दैत छी.

आँखिक फोटो : ग्लौकोमाक अचानक आघात 

ग्लौकोमाक लक्षण

आरम्भमें अधिकतर आँखिमें ग्लौकोमाक कोनो लक्षण नहिं होइछ. तथापि,निम्नलिखित ग्लौकोमाक आरंभिक लक्षण थिक:

1.    कम इजोतमें चश्मा लगाइओ कय पढ़बामें में असुविधा

2.    बिजलीक बल्ब वा गाड़ीक हेड लाइट दिस देखलापर प्रकाशक श्रोतक  चारूकात इन्द्रधनुषी घेरा

3.    आँखिमें अचानक भयानक दर्द, लाली आ पानिक संग आँखिक रोशनी में भयानक कमी

उपरोक्त लक्षण वयस्क लोकनिक  ग्लौकोमाक लक्षण थिक. यद्यपि, ग्लौकोमाक असरि नेनाक आँखि पर सेहो भ' सकैत छैक. किन्तु, तकर चर्चा दोसर लेखमें.

जनिका ग्लौकोमा हयबाक बेसी संदेह होइत छनि   

1.    बढ़इत वयसक व्यक्ति  

2.    जनिका माता-पिता, भाई-बहिनकें ग्लौकोमाक रोग भेल होइनि  

3.    आँखिमें दूर देखबा (myopia) क हेतु चश्मा लागल होइनि  

4.    डायबिटीज( diabetes), ब्लड प्रेशर( systemic hypertension)केर रोग होइनि

5.    किछु दवाई, जेना स्टेरॉयड ( corticosteroid) क लम्बा अवधि धरि उपयोग करैत होथि

6.    आँखिक किछु रोग आ आँखिक पुरान चोट

ग्लौकोमाक जांच के करैत छथि ?

कोनो आँखिक चिकित्सक (eye specialist ) आँखिक जांच कय ग्लौकोमाक संदेह (Glaucoma suspect), आ  ग्लौकोमा (glaucoma)क निदान क सकैत छथि.

ग्लौकोमाक जांचमें की जांच होइत छैक ?

साधारणतया गलौकोमाक जांचक हेतु मूलतः निम्लिखित तीन टा जांच होइछ :

1.    आँखिक प्रेशर( Intraocular Pressure ) क जांच: ग्लौकोमा में आँखिक प्रेशर बहुधा बढ़ल रहैछ .  

2.    आँखिक पुतलीक आकार बढ़ाकय आँखिक स्नायु ( optic nerve head ) केर जांच आ फोटो :ग्लौकोमा जं-जं बढ़इछ आँखिक स्नायुमें परिवर्तन देखबामें आबय लगैछ.

3.   विसुअल फील्ड टेस्ट ( Visual field test )- अर्थात् सामने अतिरिक्त  कात करोट देखबाक आँखिक क्षमताक मशीनसँ जांच. ग्लौकोमा  विसुअल फील्डकें प्रभावित करैछ .

एकर अतिरिक्त आवश्यकता भेलापर आँखिक चिकित्सक आओरो  जांचक सलाह द’ सकैत छथि.

ग्लौकोमाक चिकित्सा( treatment) क उद्देश्य

आँखिक स्नायु (optic nerve) केर नुकसानककें रोकि आँखिक रोशनीकें बंचायब ग्लौकोमाक चिकित्साक मूल उद्देश्य थिक. एहि  हेतु आँखिक प्रेशरकें सामान्य( 16-21 mm Hg) वा सामान्यसँ नीचा राखि आँखिक स्नायु (optic nerve) कें नुकसानसँ बंचयबाक प्रयास कयल जाइछ. यद्यपि, ग्लौकोमाक जड़ि रेटिनाक  ganglion cell layer, जतयसं आँखिक स्नायु (optic nerve)  आरम्भ होइछ, में होइछ, किन्तु,एखन धरि ई बूझब संभव नहिं भेल छैक जे रेटिनाक ganglion cell layer क ह्रासक मूलमें की छैक. तें, ganglion cell layer कें बंचयबाक  सोझ तरीकाक  सेहो आविष्कार बांकीए अछि. सम्भव अछि, भविष्यमें  रेटिनाक ganglion cell layer कें बंचयबाक विधिक आविष्कार हो आ ग्लौकोमाक इलाज सहज भ’ जाय. मुदा, एखन तं आँखिक प्रेशरकेर कंट्रोल ग्लौकोमाक चिकित्साक एकमात्र विधि अछि.

ग्लौकोमाक चिकित्सा( treatment)

ग्लौकोमाक चिकित्सा कोना हयत से एहि पर निर्भर करैछ जे रोगीकें कोन प्रकार ग्लौकोमा छनि. एकर विशद वर्णन एतय उचित नहिं. तथापि, ग्लौकोमाक चिकित्सा तीन भिन्न-भिन्न विधि, वा एही सब विधिक संयोगसँ कयल जाइछ ; ओना:

1.    आँखिक प्रेशर कम करबावाला आँखिक बूँदक:

2.    लेजर द्वारा आँखिक चिकित्सा

3.    ऑपरेशन: बूँद वा लेजरक चिकित्साक असफलताक चिकित्सा ऑपरेशन सं कयल जाइछ.

सामान्यतया अधिकतर इलाज पहिने आँखिक प्रेशर कम करबावाला बूँदवाला औषधि वा लेजरहि सं शुरू होइछ.

ग्लौकोमाक परिणाम( prognosis)

समुचित इलाजसं ग्लौकोमाक कारण आँखिक रोशनी खराब हयबाक संभावना घटैत छैक. किन्तु, जं समय पर बीमारीक निदान नहिं हो वा निदान भेलो पर चिकित्सा नहिं भेल तं ग्लौकोमा आँखिक रोशनीकें समाप्त  कय सकैछ.

ग्लौकोमासँ  बंचाव: आँखि नियमित जांच आ ग्लौकोमाक समुचित चिकित्सा  

जेना ऊपर कहल गेल अछि, अधिक काल ग्लौकोमा बिना लक्षणेक आँखिकें खराब करैत चल जाइछ. तें, ई आवश्यक जे चालीस वर्षक वयसक उपरक व्यक्ति  समय-समय पर आँखिक  जांच कराबथि जाहिसं आरम्भहिं में रोग पकड़ल जाय  आ आँखिक ज्योति ग्लौकोमाक दुष्प्रभावसं बंचि सकय.

किन्तु, जनिका ग्लौकोमा हयबाक बेसी संदेह होइत छनि ओ लोकनि एकर बेसी ध्यान राखथि आ आँखिक जांच नियमित कराबथि. ग्लौकोमाक रोगीक दवाईक नियमित उपयोग करथि आ दोबारा कहिया जांच( follow-up visit ) तकर जानकारी संबंधित नेत्र चिकित्सकसँ अवश्य लेथि.

आँखिक नियमित जांच आ ग्लौकोमाक समुचित चिकित्सासँ ग्लौकोमासँ लड़बामें समाज सफल हयत. संगहिं, भविष्यक वैज्ञानिक अनुसन्धान रोकथाम आ चिकित्साकबाट सहज करैत जायत, से संभव.

Sunday, November 8, 2020

मेडिकल व्यवसाय आ समाज: वर्त्तमान परिस्थिति आ सुधारक बाट

मेडिकल व्यवसाय आ समाज: वर्त्तमान परिस्थिति आ सुधारक बाट

वर्ष 2019 में एकटा एहनो समय आयल जे इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA ) सम्पूर्ण भारतमें आकस्मिक सेवा छोडि बांकी सब काज कें स्थगित केने छल. कारण: देशक विभिन्न भागमें मेडिकल व्यवसाय- डाक्टर, मेडिकल प्रतिष्ठान, आ पैरामेडिक कर्मी- पर रोगीक परिवारजन अपराधीतत्वलोकनिक प्रहार. पुरान कहबी छैक:                            

शरीरे जर्जरी भूते व्याधि ग्रस्ते कलेबरे

औषधं जाह्नवी तोयं बैद्यः नारायणः हरिः

अर्थात शरीर जखन जर्जर भ’ गेल तखन गंगाजले औषधि थिक आ वैद्ये नारायण थिकाह . लोक एकरा एना बना देलक जे वैद्ये नारायण थिकाह. फलतः, वैद्यलोकनिकें सेहो होमय लगलनि जे ओ लोकनि भगवाने थिकाह. किन्तु, से जं सत्य रहितैक, तं, एखुनका जे परिस्थिति अछि, से कोना भेल ?  डाक्टर-वैद्य नारायणक पीड़ी परसं  कोना उतारल गेलाह ? डकैत आ किछु डाक्टरकें लोक एक समान कोना बुझय लागल ! दोसर प्रश्न थिक, समाज आ मेडिकल व्यवसायक बीच एहि परिवर्तित सम्बन्धक हेतु के जिम्मेवार अछि ? की मेडिकल व्यवसाय अपने एहि परिस्थितिले जिम्मेवार अछि ? वा, एहिमें समाजमें होइत चतुर्दिक परिवर्तनक सेहो कोनो योगदान छैक ? एहि लेखमें हमरालोकनि एही प्रश्नपर विचार करी.                                                                                                                  

हमरा जनैत, एहिमे कोनो संदेह नहिं जे जीवन-रक्षाक पर्याय, आ माध्यम, डाक्टरी-बैदागरी, सेवाक अतिरिक्त एकटा व्यवसाय आ जीवन-यापनक माध्यम सेहो थिक. तथापि, वैद्यलोकनि सनातन कालसँ  ‘सर्वे सन्तु निरामयाः’ क आकांक्षा रखैत आयल रहथि. से संगतो अछि : केवल पेट भरबाले कोनो डाक्टर-वैद्य मनुष्यकें रोगग्रस्त हेबाक कामना करैत होथि से ककरो देखल-सुनल नहिं छनि. तखन समाज आ मेडिकल समुदायक बीचक सम्बन्ध एहन कोना भ’ गेल ? जं विगत तीन सौ सालकेर भारतक इतिहास देखी तं प्रतीत हयत जे भारतमें चिकित्साक हेतु अनेक प्रकारक समानांतर पद्धति समाजमें उपलब्ध छलैक. एहि उपलब्ध पद्धतिमें सबसँ पुरान योग-टोन, भगता-भावसं ल कय, आयुर्वेद, यूनानी, होमियोपैथी आ आधुनिक एलोपैथी पद्धति धरि संग-संग चलैत छल. हं, अंग्रेजक शासनकालमें ‘एलोपैथी’ भारत आयल आ अन्ततः, इएह पद्धति वैज्ञानिक चिकित्सा प्रणालीक रूपमें सरकारी व्यवस्था आ समाजक आदर पओलक. संयोगसं चिकित्साक केवल इएह टा एहन प्रणाली साबित भेल जे विज्ञानक निरंतर प्रगतिकसंग डेग में डेग मिलबैत आगू बढ़ल. सरकारक परश्रय सेहो आधुनिक चिकित्सा-विज्ञानकें भेटलैक. 19 आ बीसम शताब्दीमें रसायन-शास्त्र, शरीर-क्रिया विज्ञान, भैषज्य-विज्ञान, रेडियोलोजी, आ शल्य-क्रिया विज्ञानक अभूतपूर्व विकासक संग पोषण इत्यादिक क्षेत्रक विकास चिकित्सा आ स्वास्थ्यक क्षेत्रमें  अभूतपूर्व क्रांति आनि देलक. एहि सबसं मनुष्य आयु बढ़लैक, पीड़ा घटलैक. किन्तु, प्रत्येक परिवर्तन केर दू टा पक्ष होइत छैक: लाभ आ हानि. अस्तु, जं आधुनिक चिकित्सा पद्धति मनुष्यक आयु कें बढ़ओलक तं संगहि चिकित्साक बढ़इत व्यय ओकर बजटके असंतुलित करय लगलैक. सत्यतः, पहिने बहुत दिन धरि स्वास्थ्यक सरकारी आ प्राइवेट व्यवस्था संग-संग चलैत  रहल, यद्यपि भारतमें स्वास्थ्यकें कहियो मौलिक अधिकार दर्जा नहिं भेटलैक. पछाति, अर्थतंत्रमें उदारीकरण वा निजीकरणक संग सरकार चिकित्सा आ जनस्वास्थ्यसँ  हाथ झिकैत गेल आ प्राइवेट स्वास्थ्य व्यवसाय एकटा उद्योग जकां विकसित होइत गेल जाहिमें निवेशक, अर्थलाभक उद्देश्यसं निवेश करब आरम्भ कयलनि. कमजोर सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्थाक कारण समाजकें क्रमशः प्राइवेट स्वास्थ्य-सेवा दिस जयबाक बाध्यता बढ़ैत गेलैक. स्वास्थ्य सेवाक हेतु बढ़ैत मांग  सेवा आ सामग्री बेचनिहारमें प्रतिस्पर्धा आ द्वन्दक जन्म देलक आ बेसी सं बेसी रोगीकें अपना दिस घिचबाक घींच-तान होमय लगलैक. प्रतिस्पर्धा शत्रुताकें जन्म देलक आ समाज एहि युद्धक मंझधारमें फंसि गेल. बाज़ार बहुतो दक्ष डाक्टर लोकनिकें  किनबाक आ बेचबाक वस्तु बना देलकनि आ डाक्टर वैद्य लोकनि दुविधाग्रस्त भ’ गेलाह ; ( कटहरक) को खाऊ कि कामरू ? मेडिकल एथिक्स मेडिकल प्रैक्टिसक जाहि प्रचारक मनाही करैत छल, धुआँधार शुरू भ’ गेल. संगहिं संग शिक्षाक  हेतु बढ़इत मांग आ शिक्षामें सरकारी निवेशक कमीसं शिक्षा व्यवस्था स्वास्थ्य सेवाक संग दोसर प्रमुख  उद्योग रूप लैत छल गेल. शिक्षाक क्षेत्रमें मेडिकल शिक्षामें निवेशक  तुलनामें अधिक सं अधिक  लाभक द्वारि खुजैत गेल, जाहिसं मेडिकल शिक्षामें निजी निवेश तं बढ़बे कयल,मेडिकल शिक्षा उद्योग पर नियामक संस्थाक पकड़ ढीले टा नहिं होइत गेल, मिद्कल शिक्षाक नियामक संस्था- मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इण्डिया - भ्रष्टाचारक पर्याय भ’ गेल. फलतः, मेडिकल कालेज सब में सीटक  बढ़इत मांगक संग बहुतो कालेजमें मेडिकल सीटक बतर नीलामी होबय लागल.

‘उदारीकरण’क एही युगमें जखन सरकार क्रमशः स्वास्थ्य सेवासं हाथ झिकि रहल छल, नागरिक आ सरकारी स्वास्थ्य सहायताक बीच इन्स्योरेन्स कम्पनी सब अपन व्यापार खोललक. एहि बदलैत परिदृश्यमें  किछु डाक्टर लोकनि या तं एहि व्यवस्थाक अंगीभूत अंग भ’ गेलाह अथवा प्रतियोगिताक दवाबमें अपन हितक रक्षामें उचित-अनुचितक विचार छोडि केवल लाभकें केंद्रमें राखि डाक्टरी करय लगलाह. सत्य थिक, अधिकांश डाक्टर-वैद्य भ्रष्टाचारमें नहिं लागल छथि. किन्तु, कहबी छैक सातुक संग घुन सेहो पिसल जाइछ. अस्तु, डाक्टरीक प्रति समाजक बढ़ैत अविश्वास नीक-बेजाय (ईमानदार आ भ्रष्ट डाक्टर आ डाक्टरी प्रतिष्टान) क बीचक भेद करब बिसरि गेल. दोसर दिस, पाँच सितारा मेडिकल व्यवस्थाक चकाचौंधमें आन्हर समाजक सोझाँ  स्वतंत्र प्रैक्टिस केनिहार समाजक सदासँ विश्वासी डाक्टर-फॅमिली फिजिशियन- बौनबीर-सन प्रतीत होबय लगलाह. फलतः, फॅमिली-फिजिशियनक संस्था टूटैत चल गेल. आ अन्ततः, समाजक बीच चिन्हार डाक्टरक परिचयक जे विश्वास छलैक से विलुप्त भ’ गेल. ई सब किछु परिवर्तन क्रमशः भेलैये किन्तु एकर गति कें पाछू  मुँहे मोड़ब एखन असंभव लगैछ.

सत्य थिक,विज्ञानक गति आगूए जेतैक आ जेबोक चाही. लोककें ओहिसं लाभ तं भेलैये. किन्तु, हमरा लोकनिक आधारभूत मेडिकल चिकित्साक व्यवस्था लचर अछि. रेफरलकेर सिस्टम नियमबद्ध नहिं छैक. अस्तु, जकरा सुविधा छैक सोझे मेडीकल कालेज वा टर्सियरी केयर सेंटरमें पहुंचि टाका खर्च कय अपन समस्याक समाधान करैछ आ जकरा साधनक आभाव छैक सरकारी तन्त्रक माध्यमे ओकर समस्याक निवारण नहिं भ’ पबैत छैक. कखनो जं लोकके सरकारी सहायता भेटितो छैक तं सरकारी सहायता वा इन्स्योरेन्सक ऊपर अपना जेबसं आओर टाका जोड़य पडैत छैक. प्राइवेट मेडिकल व्यवस्थाक एहि प्रतिष्ठान सबमें  ठाम रोगी आ रोगीक परिजनक संग सब ठाम डाक्टरे-वैद्य सम्पर्क में अबैत छथि, निवेशक वा सेठ जी जनिकर निरंतर दवाब मेडिकल कर्मी रहैत छनि, कखनो समाजक सोझ संपर्कमें नहिं अबैत छथि. फलतः, समाजक सम्पूर्ण असंतोष आ क्रोधक लक्ष्य चिकित्साकर्मीए  (वा अस्पताले) बनैत छथि, पाछू बैसल निवेशक नहिं !

प्रश्न उठैछ, एहि सब में कि डाक्टर वर्ग पूर्णतः निर्दोष वर्ग थिकाह ? एकर उत्तर कनेक विस्तारसँ  दैत छी. किन्तु, एहि विस्तारसँ पूर्व समाजक असंतोषक किछु कारणकें ठीकसँ देखी :

  1. सरकारी सेवामें नियुक्त डाक्टर सरकारी कार्यसं बहुधा उनुपस्थित           रहि  लगहिंमें  अपन प्राइवेट  प्रैक्टिसमें   जान लगौने रहैत छथि. बेईमानीक एहि उदाहरणक हेतु कोन       प्रमाण चाही.

2.चिकित्सक समुदायमें अनेको ठाम ईमानदारीक कमी आ भ्रष्टाचारक उदाहरण सामने अबैत रहैछ, से के नहिं मानत. तें, एहि हेतु चिकित्सक समुदाय आत्म-मंथन करथि जे वृहत्तर समाज आ डाक्टरी सेवाक बीच अविश्वासक एहि परिस्थिति ले हुनका लोकनि बीचक सदस्य लोकनिक अपन आचरण कतय धरि जिम्मेदार अछि.

3 . रोगीक दृष्टिमें निरर्थक जांच-पड़ताल किछु लोकक दृष्टिमें  डाक्टरक  आमदनी जरिया-जकां बूझि पड़ैछ. ई सत्यो थिक. समाजमें एकरो प्रमाण अछि. किन्तु, निरर्थक जांच रोगीक हेतु खर्चक बाट थिक.

4 . जानि बूझि कय  इलाजक अत्याधुनिक किन्तु महग विकल्प  कें चुनबाक परिपाटीक रोगीसं खर्च बढ़इछ.

5. चिकित्सा सेवा आ सामग्रीक उत्पादकक बीचक लोभ-लाभ सम्बन्ध जगजाहिर अछि. समाज एहि  सम्बन्धकें संदेहक दृष्टिसं देखैछ. बहुतो ठाम संदेहक कारण नहिं छैक से कहब उचित नहिं हयत.

6 . चिकित्सक समुदायक अपना बीच आत्म-मंथनकें संस्थागत व्यवस्थाक अभाव.

प्रस्तावित समाधान :

1. चिकित्सक समुदाय आत्म-मंथन करथि जे वृहत्तर समाज आ डाक्टरी सेवाक बीच अविश्वासक एहि परिस्थिति ले हुनका लोकनि बीचक सदस्य लोकनिक अपन आचरण कतय धरि जिम्मेदार अछि. चिकित्सक समुदाय समाजमें अपना प्रति घटैत सम्मानक स्थितिके सुधारबाक हेतु ठोस डेग उठाबथि.

2. भोजन-वस्त्र-आवास, आ  शिक्षाक संग स्वास्थ्य-सेवा नागरिकक मौलिक अधिकार मानल जाय.

3. साधारण रोगक उपचारक मूलभूत सुविधा सबठाम सुलभ आ सुनिश्चित नहिं अछि. हमरा लोकनिक गाम घरमें एखन धरि सरकारी सेवा नहिं पहुंचल अछि. चिकित्साक मूलभूत सुविधा  स्थानीय प्रशासन आ सरकारक दायित्व घोषित हो. एहि सं प्राइवेट स्वास्थ्य-सेवा पर लोकक निर्भरता घटतैक.

4. प्रत्येक इलाकामें सरकारी डाक्टरक नियुक्ति हो, आया उपस्थिति सुनिश्चित कयल जाय . अपन क्षेत्रमें अबैत नागरिकक मौलिक उपचारक दायित्व स्थानीय डाक्टरक होइनि. एहि व्यवस्थाक नियमतः ऑडिट हो. जे चिकित्साकर्मी अपन दायित्वक निर्वाहमें असफल होथि हुनका विरुद्ध   कार्रवाई  प्रावधान हो.

5. चिकित्सा सेवामें संलग्न कर्मीक हेतु गाम-गाम में आवासक व्यवस्था सुनिश्चित हो, एहिसं उपस्थितिक समस्याक निराकरण हेतैक.

6. चिकित्सा-सेवाक हेतु आवश्यक सामग्रीक उपलब्धता सरकार सुनिश्चित करय.

7. स्थानीय सेवासं जाहि रोगीक चिकित्सा असंभव हो हुनका लोकनिकें सरकारी वाहनमें रेफरल अस्पतालमें पठेबाक व्यवस्था हो. रेफरल अस्पतालमें सुविधा नहिं उपलब्ध भेला पर रोगीकें सरकारी खर्चपर चिकित्साक व्यवस्था कायम कयल जाय. मेडिकल कालेज अस्पतालक भूमिकाकें संस्थागत बनाओल जाय. एखन बिहारमें मेडिकल कालेज अस्पताल सब जर्ज्जर अछि.

8. मेडिकल कालेज अस्पताल सबहक सुविधा राष्ट्रीय स्तरक हो एवं मेडिकल कालेज अस्पतालक वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट प्रकाशित हो.

9. दूर दराज में काज करैत डाक्टर लोकनिक समय-समयपर बदलीक अतिरिक्त हिनका लोकनिक स्नात्तकोत्तर शिक्षाक व्यवस्थाक व्यय सरकार उठाबय.

10. अत्याधुनिक इलाज महग छैक, डाक्टर से रोगीकें बुझायब आवश्यक.अतः प्राइवेट सेक्टरक डाक्टर ई सुनिश्चित करथि जे चिकित्साक उपलब्ध विकल्पसं डाक्टरक सहायतासं रोगी अपनहिं अपन हेतु चिकित्साक विकल्प चुनथि. जाहि सं डाक्टर आ रोगीक बीच विश्वास सुदृढ़ हो, विश्वास बनल रहय

11. अस्पतालसब में रोगी एवं हुनका लोकनिक परिवारजनक संग संवादक हेतु लोक-संपर्क अधिकारीक बहाली हो, जाहि सं रोगीक निर्बाध चिकित्सा डाक्टर अपन समय द’ सकथि. स्वास्थ्यकर्मी लोकनि सेहो रोगी आ रोगीक परिवार सं निरंतर संवाद कायम राखथि.

12. सरकार अस्पताल आ स्वास्थ्यकर्मीक सुरक्षाक ठोस व्यवस्था करय. संगहिं समाजमें स्वास्थ्य सेवाक जटिलताक हेतु जागरूकता जगाओल जाय.  

समुचित प्रयाससं समाज आ चिकित्सा क्षेत्रक बीच टूटैत विश्वासकें पुनर्स्थापित करब सम्भव छैक, से हम मानैत छी. काज आसान नहिं छैक, किन्तु असंभवो नहिं. किन्तु, एहि ले  डाक्टर समुदायक भीतरक इमानदार सदस्यक सहयोग, स्वास्थ्य सेवा विभागक संकल्पक संग राजनैतिक संकल्पक सेहो आवश्यकता छैक. मुदा, करत के ? प्रायः जागरूक जनताक निरंतर दवाबसं एहन परिणाम संभव अछि जे अद्यावधि असंभव छल. बुझबाक थिक जखने कोनो वर्गक निहित स्वार्थ पर चोट पडैत छैक, विरोध तं हेबे करतैक, किन्तु, सम्मिलित आ निरंतर दवाब आशातीत सफलताक बात खोलैछ, से नहिं बिसरबाक चाही. एहिमें  समाज आ चिकित्कसक वर्ग दुनूक  दूरगामी हित निहित छैक.   

Saturday, October 31, 2020

डायबिटिज रोगी आँखिक ज्योतिक सुरक्षा कोना करथि

 

डायबिटिक रेटिनोपैथीसँ आँखिक सुरक्षा कोना करी

डायबिटीज विश्व स्तर पर एकटा प्रमुख समस्या थिक. उपलब्ध आंकड़ाक अनुसार वर्ष 2020में भारतमें करीब सात करोड़ सत्तरि लाख नागरिक डायबिटीजसं पीड़ित छथि. ई संख्या भविष्यमें बढ़त. ज्ञातव्य थिक, डायबिटीजक  दुष्प्रभाव शरीरक अनेक भाग पर पड़ैत छैक. आँखि सेहो ओही सब म सं एक थिक. बुझबाक इहो थिक जे विकासितो देशमें 20-74 वर्षक आयुक नागरिकमें डायबिटीज अन्धताक एक प्रमुख कारण थिक. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्लीक हाल केर एक अध्ययनक अनुसार अनुमानित अछि, भारत वर्षमें डायबिटीजसं पीड़ित व्यक्ति लोकनिमें फी सदी लगभग 17 व्यक्तिक आँखि जांच कयलासं आँखिमें  डायबिटीजक  दुष्प्रभाव (डायबिटिक रेटिनोपैथी) देखबामें आएल. ई संख्या थोड़ नहिं. अस्तु, एहि समस्याक  हेतु हमरा लोकनिके डायबिटिक रेटिनोपैथीक विषयमें मोट-मोट बातक जानकारी आवश्यक, जाहिसं आँखिक ज्योतिकें डायबिटिक रेटिनोपैथीक दुष्प्रभावसं बंचाओल जा सकय.

एहि लेखमें लोक-स्वास्थ्य आ लोकहितक हेतु एही विषयपर जानकारी देब हमर लक्ष्य अछि.एकरा हम एतय सामान्यतया पूछल गेल प्रश्नोत्तरीक रूपें प्रस्तुत करैत छी. एकर अतिरिक्त हम सहर्ष प्रश्नोत्तरीक हेतु प्रस्तुत छी.

आरम्भमें कहि दी,  तीस वर्षक वयससं पहिने होबयबला डायबिटिज ( type 1 diabetes mellitus ) तीस वर्षक वयससं बाद होबयबला डायबिटिज ( type 2 diabetes mellitus ) एक होइतहु मूल स्वभावमें  भिन्न-भिन्न थिक. तें आब आगू एहि दुनूक चर्चा भिन्न-भिन्न नामें हयत.

की प्रत्येक डायबिटिक के रेटिनोपैथी हेबे करतनि ?

अमेरिकामें एक समुदायमें डायबिटिजक किछु रोगी लोकनिक लम्बा अवधिक देखभालसं किछु तथ्य सामने आयल अछि जे नीचा देल अछि:

1. type 1 diabetes mellitus में 20 वर्षक रोग बाद 99 % रोगीमें  में रेटिनोपैथी देखल गेलैक  

2. type 2  diabetes mellitus में 20 वर्षक रोग बाद  60 % रोगीमें रेटिनोपैथी देखल गेलैक

यद्यपि आँखिक रोशनी खराब हयबाक सम्भावना एहि म सं किछुए प्रतिशत रोगीमें  मानल गेलैये.

डायबिटीजक आँखिकें कोना प्रभावित करैछ  ?

डायबिटीज मूलतः शरीरक सूक्ष्म रक्त नली सबकें प्रभावित कय रक्तक बहाव, आ रक्तक लाल कोशिकासं रेटिनाक बांकी कोशिका धरि आक्सीजनक बहावकें बाधित करैत. एकर अतिरिक्त डायबिटीजमें रक्त आ लाल रक्त कोशिकामें सेहो किछु आओरो विपरीत परिवर्तन रक्तक बहावकें बाधित करैछ. रक्तक केशनली सब बाटें रक्त बहाव बहावक इएह समस्या आँखिक संवेदी परत, रेटिना,क स्वास्थ्यक अहित करैछ. फलतः, जहाँ-तहाँ रेटिनाक भीतर शोणितक जमाव, शोणितक नव-नव आ हानिकारक केशनलीक बनब, आँखि भीतर रक्तक थक्काक जमाव आँखिक रोशनीकें खराब करैछ. डायबिटीजमें रेटिनाक भीतरक एही सब परिवर्तनक संकलित स्वरुपक नाम थिक डायबिटिक रेटिनोपैथी. डायबिटिक रेटिनोपैथीक  अतिरिक्त डायबिटीजमें मोतियाविंदु आ ग्लौकोमा ( काला मोतिया ) क संभावना सेहो बेसी होइछ. अंततः, सब किछु मिलि डायबिटीजक रोगीक आँखिक ज्योतिमें बाधाक सम्भावना बढ़ि जाइछ.

डायबिटिक रेटिनोपैथीक खतरा कोना बढ़इछ ?

1. डायबिटीजक अवधि डायबिटिक रेटिनोपैथीक हेतु सबसँ मूल खतरा थिक, जकर चर्चा ऊपर भेल अछि. किन्तु, एकर उपाय नहिं. बढ़ैत उम्रक संग डायबिटिक रेटिनोपैथीक खतरा बढ़ब स्वाभाविक थिक.

2. ब्लड सुगर केर परिमाण डायबिटिक रेटिनोपैथीक दोसर मूल खतरा थिक.

3. हाई ब्लड प्रेशर

4. रक्तमें वसा (Lipid)केर अधिक मात्रा

5. नस्लगत ( यूरोपीय आ एशियाई ) खतरा, गर्भाधान, तमाकूक सेवन  (smoking)

डायबिटिक रेटिनोपैथीसँ बचाव कोना करी ?

1. डायबिटीजक पकड़में अबिते आँखिक विशेषज्ञ द्वारा आँखिक पुतलीक आकारकें बढ़ाकय आँखिक परदा (रेटिना)क जांच हो आ पछाति आँखिमें डायबिटिक रेटिनोपैथीक लक्षण नहिओ हो तं प्रतिवर्ष आँखिक विशेषज्ञ द्वारा आँखिक पुतलीक आकारकें बढ़ाकय आँखिक परदा (रेटिना)क जांच हो.

2. ब्लड सुगरकेर नीक कंट्रोल रहय. रक्तमें Hb1Ac कमात्रा 7 % सं कम रहब  रेटिनोपैथीसं,  आ आँखिक रोशनी ख़राब हयबा सं बंचबैछ.

3. ब्लड प्रेशरकें कंट्रोल में राखी.

4. ब्लडमें वसा (Lipid)केर  नियंत्रण ले तेल-घी सं बंची. आवश्यकता भेला पर डाक्टर औषधि (statin tablet ) सेहो लिखताह.

5. सिकरेट-बीड़ी-तमाकूसं बंची.

6. डायबिटीजक महिला जं गर्भ धारण करथि तं आरम्भमें आँखिक जांच हो. पछाति आँखिक डाक्टरक सलाह अनुसार देखबैत रही.

7. आँखिक रोशनीमें शिकायत भेला पर आँखिक डाक्टरसँ तुरत सलाह ली.

सारांशमें सुगर, बीपी, वसाक नियंत्रण, आँखिक नियमित जांच आ तमाकू-बीडी सिकरेट सं बंचावसं डायबिटीजोमें आँखिक ज्योतिक रक्षा संभव छैक.

       

Friday, October 30, 2020

Thinking Aloud-2: Publishing in Maithili Needs Multipronged Approach

 

Publishing in Maithili Needs Multipronged Approach

Oftentimes I buy English books after reading reviews in The Hindu. Reviews help me chose book/s of my taste, books that satisfy my needs intellectual, or serve a good time-pass during travel. Maithili has no newspapers. Journals and magazine publish reviews irregularly, sometimes from readers, and sometimes reputed authors. Yet,conflict of interest makes it difficult to shift grain from the chaff. Travelers at railways stations buy books and magazines more out of instinct. They rarely read reviews. However classics, works of reputed writers and publications sell more. Maithili draws a blank there too. No reputed publishers. No writers to write abundantly on genres that satisfy popular taste. Even in popular genres we haven’t have Premchand, Chatursen, or Renu. No Bachchan or Dinakara either. We have not produced one books of the kind of Aranyak or Srikant. Why? Is it all because finance or market? No. We have’nt created literature of popular taste that commercially stands on its own feet. We have plenty of writers who publish out of their own pocket. Yet when it comes to quality and taste, they are not ready to face the truth. Yes, we have publications. But none to publish quality literature and is commercially successful. They all thrive on out pocket finance by the authors. I think situation is not beyond control. It only needs plan and sustained efforts. I have a few suggestions that may serve Maithili in long-term. Efforts to include Maithili in curriculum in schools have to go hand-in-hand.   

Here are my suggestions:

1.    Survey popular taste

2.    Hunt for quality writing; inspire talents to write on topics of their interests. Dr. Yogendra Pathak Viyogi is an excellent example of quality writing in popular science. Identify writers with expertise in their fields.

3.    Expand the genre of writing. Illustrated literature for children has huge market. 

     Organising events in schools and mohallas for authors to read their works for children and interested adults shall popularise good literature and inculcate reading habit.

4.    Offer editorial help. Even good writers benefit from editing.

5.   Subject works to honest pre-publication double-blinded peer reviews.

6.   Offer the authors/ publishers consultancy, and guide them to tap in potential government/ non-government sources of finance

7.   Seek established publishers from other languages. Profit draws investors like honey draws ants. Also seek out authors ready to finance his publication.

8.    Expand marketing to rural areas; motivated unemployed youth may be roped in on the basis of fair share of profit. Nothing comes for free, mother tongue included.

9.   Make writing in Maithili remunerative; get the authors their share of profit that at least defrays the expenditure on printing.

      Above prescription sounds impossible ?  But short-cuts guarantee no cure.Who will do all this ? You may ask. Well, the answer is: anyone who aspires to be a successful publisher , may be even as a cooperative venture of like-minded authors, like नवारम्भ, किसुन संकल्प लोक or जखन- तखन for a start ! It’s just a food for thought. Yes, I am thinking aloud.

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

हिन्दुस्तान का दिल देखो