Sunday, May 10, 2020

अहाँ सब नहिं बुझबै !

अहाँ सब नहिं बुझबै !

एखन मिथिलांचल में एके टा गोलंजर : एतय पांच आदमी पकड़ल गेल; ओतय दस आदमी पकड़ल गेल. ओकरा क्वारंटाइन ( Quarantine) कयल गेलैक; हिनकर शोणित जाँचल गेल, हुनको शोणित जांच हेतनि, आदि, आदि ....  सस्ता फ़ोन आ अफरात समयक कारण गप्पकें पसरैत देरी नहिं लगैत छैक. तें सांझमें आइ जखन सुर्यूकें फोन एलनि तं पिउसि सबसँ पहिने कोरोना-कांडहिंक चर्चा शुरू केलखिन: बौआ अजुका गप्प सुनलहुँ कि नहिं ? मधेपुर में चारि गोटे पकड़ल गेल.
एखन पकड़ल गेल माने, चोर-उचक्का-डकैत नहिं, कोरोना संदिग्ध बहरबैया, जे दूर-दूरक पैघ-पैघ शहरसं जेना-तेना भागि कय, चोरा-नुका कय अपन भूमि पहुँचि रहल अछि. दिनक इजोतमें गौआं आ पुलिस ओकरा सबकें पकडि तेना ढोल पीटैत अछि जेना साओन- भादबक अन्हार रातिमे सेंधकट्टा चोर के पकड़ने हो ! शहर बाज़ारक सेठ-साहुकार, बिल्डर, नेता आ अभिनेता पतनुकान नेने छथि. जेना, ई कोढ़ जतबे दूर रहय, ततबे नीक. एखुनका समयमें अपनाकें छोडि लोककें आन सब पर अविश्वास होइत छैक; कहीं हिनको तं बीमारी नहिं छनि.
‘ से की कहै छी दीदी, आइ तं मधुबनीओ में पन्द्रह गोटे पकड़ायल-ए.  पुलिसक सख्ती छैक, जतय कतहु नुकाउथ, खिहारि मारै छनि. सुनै छी, आब तं मोबाइले सं टेबि लैत छनि, पुलिस.’ माने, गौआं एखन गौआं नहिं करोना-कोढ़-खाज-हौहटि-कलकलि- कैंसर भ’ गेल!
मुदा, एखन  बहरबैयाकें पकड़ब नव नहिं. आइ झलफल सांझमें बिरौल आ कर्णपुरक बीच बड़का परांतमें जखन पांच गोटेक दल चल अबैत रहैक, महिसबारक कोनो दल दूरेसं ओकरा सबकें देखलक. टोल पर खबरि भेलैक. मुखिया सुर्खरू भेलाह. फल ई भेल जे कतेक दिन सं पैदल चलैत ई बटोही सब गामक बाहरे घेड़ल गेलाह. सब गोटे आसे पासक गामक थिकाह, केओ कनिए लग, केओ दू कोस दूर. मुदा, जखन बज्र खसैत छैक सब अपने माथ हंसोथैए. मुखियाक ऊपर एखन गाम भरिक जिम्मेदारी छनि, एहन विपत्तिमें ओ नेता नहिं जेना, पुलिस-कलक्टर-मजिस्टर भ गेलाहे ! दमसि कय पुछलथिन, ‘ बंदी छै, बुझल नहिं छह !
-       ‘आब तं आबिए गेलिएक.. एक गोटे दांत निपोड़इत बजलाह.
-       ‘आ से कोन धरानी ......’ दोसर बाजल
-       आ हमरा सब कें कि कोनो जर-बोखर अछि. कपार छूबि कय देखि ने लियअ. बाटमें पचासों ठाम जंचने हयत.’- तेसर पाछूसं, डराइत- डराइत बजलाह.
-       ‘तै सं मतलब.’- मुखियाक संग आयल एकटा गौआं बजलाह.
-       ‘खूनक जांच तं नहिए भेल हयत’. दोसर गौआं टिपलनि.
-       ‘बीमारीक लसेढ़ तं बिना बोखारोके अबैत छैक’- मुड़ी हिलबैत मुखिया समर्थन केलखिन, आ आदेशक मुद्रामें ‘ चलै-चलू स्कूल पर’ केर आदेश देलखिन.
-       जा ! कथी ले स्कूल पर !! कोनो जर-बोखर हयत तं छिपाकय अपन घर-पलिबार- धिया-पुताकें लेहेब करबै. फोन क’ देब ने अहाँकें , मुखिया जी’ 
     मुदा, कानून सख्त छैक. मुखिया कृतसंकल्प छथि. कहलखिन, ‘ एखन मुनहारि सांझ भ’ गेलैये. तें स्कूल पर. नहिं तं सोझे, महराजनगर.’ मुखिया निर्णय देलखिन. आ सब गोटे महादेव मठक कातक स्कूल दिस बिदा भेलाह.
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महादेव मठ स्कूल क्वारंटाइन ( Quarantine) सेंटर. तीन टा दल, तीन ठाम, बेर-बेरी आयल अछि. सब एके ठाम. शहर सब में लाखों लोक, हजारों परेशानी. गाममें कि हुज्ज़ति कम छैक. गौआं सब सोचैत अछि, अगड़ाही शहरमें लगैत छैक आ चिनगी उडि-उडि गाम अबैये.रोग कलकत्ता, बम्मै, बंगलोर आ सूरतमें आ लेहेब हम सब. अपने गाममें कोनो काज रहितैक तं कोनो बेजाय होइतैक. मुदा, मने-मन गुड़-चाउर फाँकू. तकरे परि.महादेव मठ स्कूल संस्कृत पाठशाला थिकै. पाठशाला कि, पाठशालाक सारा-समाधि थिकैक. सोलह टा विद्यार्थी आ चारि टा स्टाफ: तीन टा शिक्षक आ एकटा सेवक. कोनो युग में नवानीक सर्वतन्त्र-स्वतंत्र पण्डित बच्चा झाक शारदा-भवन संस्कृत विद्यालयक पूर्ववर्ती छात्र, पण्डित लोकनि एहि पाठशालामें पढ़बैत रहथि. तहिया संस्कृतक मोल रहैक आ कतेको व्याकरणाचार्य लोकनि एतय सं बहरा कय भारतक विभिन्न भागमें गेलाह आ सफल भेलाह. दिन बदललैक तं एतुके कोनो आचार्य - अंचार - पीठासीन भेलाह आ पाठशालाक दुर्दिन आबि गेलैक. किच्छु आओर पछाति संस्कृतक दिनक अस्त भेल आ तखने, उदारीकरणक जमानासं पहिनहिं, समाज आ सरकारकें संस्कृत फ़िज़ूल लागय लगलैक. अस्तु, सरकार संस्कृत विद्यालय सबकें गोलियाबय लागल. ओहुना उदारीकरण शब्द सुनबामें बड्ड सोहाओन लगैत छैक. मुदा, एकर भीतर छिपल छैक कंजूसी. माने, चिकित्सा वा शिक्षा, जे किछु चाही, कीनू. जे किछु . ई संस्कृत विद्यालय संस्कृत शिक्षा बोर्डक एकटा इकाई भ’ कय रहि गेल. पढ़ाईओ बदलि गेलैक. लोक कौमुदी पर कम आ विज्ञान, गणित आ अंग्रेजी पर बेसी ध्यान देबय लागल. मुदा, समाज सब परिवर्तनक भिन्न अर्थ लगबैत अछि. जखन अंग्रेजी, गणित आ विज्ञाने सं नौकरी हेतैक तं संस्कृत विद्यालय किएक ! माने, एहि विद्यालयक अस्तित्व पर  बड़का प्रश्नसूचक चिन्ह लागि गेलैक : छात्र कतय सं आनब ! छोट-सं गाओं  सौ-पचास घर आ कुल गोटेक सौ बच्चा. अंततः, चारि टा गौआं स्टाफ लोकनि, भले रजिस्टरे पर, गोड़  पन्द्रहेक विद्यार्थीक व्यवस्था केलनि. आ पछिला पचास सालसं पाठशाला केवल रजिस्टर पर जीवित अछि. हं, एहि सं एहि ऐतिहासिक पाठशालाक  अस्तित्व तं बंचि गेलैक. मुदा, अछि ई हवा में. भवनक नाम पर पुरान भीतक खपरैल घर कहिया ने ध्वत भ’ गेलैक. एखन कतेक वर्षसं, लगक महादेव मठक चबूतरा आ हालेमें गौआं लोकनिक सहयोगे बनल पक्का सभा-भवन जाहि में नवाह, भजन आ कीर्तन होइत छैक, पाठशालाक आश्रय थिक. 
एखन गरमीक मास छै. चारू कात खुला. हवादार जगह. दिन-देखार बिजुली-पंखाक काज नहिं. मन्दिरक भनसाघरमें एखन दिन में तीन बेर क्वारंटाइन ( Quarantine) सेंटरक सदस्य सब ले भोजन बनैत छनि. बगलमें पोखरि, कल, कलमबाग आ खुला मैदान. जतय मोन हो जाउ. लोक सबले सीमेंट पर सतरंजी बिछाओल छैक. छौ-छौ फुटक दूरी पर लोक सूति रहैए. सुनैत छी, ककरो-ककरो बाहरो सं भोजन आबि जाइत छैक, केओ मौका भेलापर कतहु निकलिओ जाइत अछि, तिहाड़ जेल तं छिकै नहिं ! जावत धरि कोनो विरोधी शिकायत नहिं केलकनि , मुखिया सुरक्षित छथि.

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जहिया सं ई कोरोना काण्ड भेलैये, सब परेशान अछि ; सद आ हेहर, अपराधी आ सज्जन. सब. शहरमें सडक पर कर्फ्यू छैक आ पुलिसक हाथ में लाठी. सडक पर निकलब तं लाठी खयबाले तैयार रहू. ताहि पर पैदल छी, माथ पर मोटा अछि, काँख तर नेना अछि, तं सहजहिं. इएह सब सोचैत, मुँह में अंडा लेने, पतियानीमें चल जाइत छुट्टीक धारी पर नजरि गडौने, नथुनी चुपचाप भूमि दिस मूडी गाड़ने क्वारंटाइन (Quarantine) सेंटर में  बैसल छथि. नथुनीकें ऐना मूड़ी गाड़ने देखि फुर्ती लाल दूरे सं पुछलखिन, एना की देखै छियै, भैया ?
-   ‘देखैत छियैक, हमरो आउर तं एहिना चुट्टीक धारी-जकां एलहुं-ए किने’. नथुनी अकस्मात् आयल एहि प्रश्न कें टारबाक हेतु कनेक काल गुम्मीक पछाति मुंह खोलैत छथि. 
-  त्तः.
-   मुदा, एहि में सोचैक की छै? -  केओ तेसर गप्प में टांग अड़बैत अछि.
-   एह ! छै किने’ –केओ आओर समर्थनक सोंगर लगबैत छथि. एहि विपरीत परिस्थितिक गुम्मी तं टूटय !
-   माने ?
-   माने, जे हमरो लोकनि एहने छी. आइ एतय, काल्हि ओतय. ने रहबाक ठौर, ने जेबाक सुभीता. तै पर रौद, बरखा-बुन्नी-बिहाडि आ दस टा विपत्ति. आ सबसँ बड़का गप्प भरि देशमें एहि चुट्टीक धारी पर नजरि सबहक पड़ैत छैक, मुदा, सब सबटा देखितो ओहिना आगू बढ़ि जाइछ, जेना मनुख बाटक बीच चुट्टीक धारीक परबाहि नहिं करैछ'.
-       -अहाँ कोनो बेजाय नहिं कहैत छियैक.
नथुनी आ फुर्ती लालक गप्प सुनि अओरो लोक सब उठि कय बैसल. 
फुर्ती लाल नथुनीक समर्थन में शुरू भेलाह: 'हम जे बम्मै सं बिदा भेलहुँ से कहय गाम पहुँचबह तं जांच हेतह. ओतय जे हुज्ज़ति हेतह से एत्तहि जांच करा लैह, पान सै लगतह. मुदा, पाछू बुझलियैक, बाटे-बाट सेहो चेक होइ छै. मारे मुँह, हम छोडि देलियैक'.
-'ततबे छैक ! हम अबै ले रही तं कहै गेलै, ट्रेन चलतैक. नाम लिखा लेह. पछाति केओ कहलक, नाम लिखेबामें बड़का मेला छै. आधार मंगै छै. सुनलियैक, नामो लिखा जायत तं कोन ठेकान नम्बर एबा में एक मास लागय. तैपर जं गाड़ी बीचे में बन्न भ गेल तं दोसरे बखेड़ा. टिकस सेहो लगबे करत. हम बजरंगबलीक नाम लेलहुं आ बस्स !
फुर्ती लाल आ परमेसर चुप भेलाह तं रामसरूप गप्पक डोरि पकड़लनि : बस्स कतहु होइ ! भरि रस्ता एके टा गप्प : क्यों जाता है ? हम कहलियैकघर है. जाता है. लोक-बेद है. माय-बाप है. जाता है. ओ की बुझलकै, आ नहिं बुझलकै. हमरा छोडि देलक आ हम झटकारनहिं आगू बढ़लहुं .‘आ नहिंए छोडितैक तं मानितियै. माटि जोर मारै रहै. ओतय किन्नहु रहितियै.’ 
सूबे लाल शुरू भेल. ‘हमरा संगे ठीकेदारक मनेजर जिरह करय लागल. कहय, ‘देखता नहीं है बाटेमें कितना लोक मर गिया’. हम कहलियै, सुनू. बम्मै आ गाम में लोक नहीं मरता है. ब्रह्मबाबा का वही एकबाल होगा, तो कोन रोक लेगा !’ त’  बहिं चुप्प भ’ गेल. तैयो कबैत जते करे, हेहर, सार हिसाब त’ नहिएँ केलक. एक हज़ार टाका देलक आ कहलक, आओ तो, हिसाब कर देगा. मने मन सोचलहुं तों हमर भाग करम ल’ जेबह. धिया-पुताक कपार में हेतैक तं ओकर हिस्सा कंठ तर सं झीकि  लेतनि. आ चल एलहुं’.
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विपरीत परिस्थितिमें एकठाम फँसल, अनचिन्हारो मनुखक बीच अपूर्व सहन्नुभूति होइत छैक. राम सोगारथ पछिला दस दिन सं एतय छथि. चारि दिन आओर लगतनि. जं ठीक रहलाह, तं घर जेताह. एखन एतय कहुना दिन कटैत छथि. कपार पर अनेक चिन्ता. एहि क्वारंटाइन ( Quarantine)  सेंटरक लोक सबसं गप्प-सप्प करबाक हुनका मोन नहिं होइत छनि. हेड मास्टर साहेबक गप्प मोन पड़ैत छनि, ‘ रहिमन निजमन की व्यथा मनहिं राखिय गोय’  मुदा, माटिक गप्प सुनि हुनक मोन विह्वल भ’ गेलनि आ रहि नहिं भेलनि. तथापि, बड्ड प्रयाससं मुँह खोललनि आ बाजब शुरू भेलाह. एतेक गम्भीर लोकक बजबासं सब सकांछ भेल. 
राम सोगारथ बाजब शुरू भेलाह: ‘ हमहूँ जखन नागपुरसं बिदा भेल रही, अजब तमाशा रहै. लोक कहै, बम्मै-नागपुर बला कें कतहु पैसय नहिं दैत छै; सबटा रोग कि तं बड़के शहर सब सं गाम पहुंचि रहल अछि . ताहि पर सं भोरे खबरि एलै, कि तं पिछले राति गोड दसेक लोक ट्रेन सं कटि गेल रहै. कहाँ दन सब छत्तीसगढ़ केर छलै. सबहक एके गप्प. कोना कटि गेलै ?  हम कहलियैक, कोना नहिं कटतै ! रोड सब घेडि-बेढ़ि देने छै. ट्रेन चलै नहिं छै. तै पर हज़ार हुज्ज़ति. सडक पर ने ढाठ लगेबह. रेलबी लाइन पर के रोकत. लोक बिदा भ’ जाइ-ए.  तखन मनुखेक देह छियैक. तैपर सं भूखल, पियासल. रौद. मोटा. नेना. जनी-जाति. जतहि देह थाकि गेलै, लोक बैसि गेल.  आ बैसि गेल तं आँखि लागि जेतैक. कोनो काज नहिं करू, तं बिछाओनो पर राति पहाड़ भ’ जाइ छै. देह थाकल रहत तं जतहि, पलखति भेल आँखि लागि जाइत छैक. थाकल देह के चाही की. कहै छै, भूख ने जाने धोबी घाट, निन्न ने जाने टूटल खाट. आ एखन खाट कोन, लोक बाटे-घाटे, उठैत –बैसैत- सुतैत–पड़ैत चलि रहल-ए. तें, टिकस नहिं भेटलैक, सडक बन्न भ' गेलै, खर्चा सधि गेलैक, तें ने बेचारा सब रेलबी लाइन पर बध भ’ गेल ! डेढ़ मास आ ई अधोगति ! ट्रेन पर जगह नै भेटलै, तें, ने ट्रेन तर कटि गेल. मरला पर तं गाम पहुँचौनहिं हेतैक. ओहुना विदेश में कतेक मरै-खपैए. ककरो किछु भेटै छै, आ नहिं भेटै छै, उठा-पुठाकय गाम तं पहुँचाइए दैत छैक. जियैत के तकरो सुविधा नहिं !' कहैत कहैत राम सोगारथक कंठ बाझय लगलनि. आ ओ चुप्प भ' गेलाह.
मुदा, राम सोगारथक गप्पक सुनि कय बिहारि गप्पक डोरि धेलनि,’ ठीके तं कहैत छथिन. हमहूँ तं एहिना उठलहुं  आ बिदा भ’ गेलहुँ. जकरा लग साइकिल रहै ओ सब अपन फूट संगोर केलक. हमरा लग कोन साइकिल छल. बाट में सब ठाम रोकय. जांचय. एक ठाम बाट पर एकटा कोनो बड़का सेठ पनिसाला लगौने छलाह. रोडेक कात में बड़का सामियाना. सब फूट-फूट बैसल दम्म मारैत छल. हम काते-कात चल अबैत रही. भोरमें चलै काल एक गिलास सतुआ पी नेने रही,  माय कहय, ‘ बौआ कतहु बहराइ खाली मुंह नहिं.’ माय मरि गेली, गप्प कोना बिसरत. पनिसालामें हमरो एक गिलास सरबत देलक पी लेलहुं.  खैक केर एकटा डिब्बा सेहो भेटल. लेलहुं आ बढ़ैत चलि एलहुं. मुदा, किछु दूर तं आयल रही कि एकटा गाछ त’र दू तीन गोटेक एकटा दल बाट छेकि लेलक. रौद रहै. मोन पितायल छल. मुदा, सोचल चलू सुनी की कहैये, छाहरि में एक छन पसेना सुखा लेब. ठाढ़ भेलहुँ. फेर ओएह : पूछय, के छियंउ ? कतय जाइ छी ? किएक जाइ छी ? मोन तं बड्ड पिताय. मुदा,कहलियैक, ‘ बिहारी छियहुं . काज नै छै. खोली खाली भ’ गेलैये . टाका निंघटि गेल. घर-पलिबार ले जी घिचने जाइए. माताराम अन्न-पानि छोड़ने फकसियारी कटैत हैत. और की ? तैपर एकटा दोसर हीरो आबि कय बकतूत करय लागल: सरकार टाका द’ रहलैए. रहैओक वेवस्था हेबे करतैक. रहबै नै ?, जेना आन्हर रहय, देखै नहिं जे हम बाट देने छी.
-       हम कहलियैक. ‘ किन्नहु नहिं’ तं बकर-बकर हमर मुंह ताकय लागल. हम कहलियैक, ‘सुनू, अहाँकें ई गाप बूझैमें नहिं आओत’.
-       कहलक, ‘ से किएक ?’ तखने एक गोटे फोटो झिकय लागल. दोसर गोटे एकटा किदुन मोटका कारी डंडा नाहित हमरा थूथुन लगा देलक. हमरा सिरिंग चढ़ि गेल.  उपर दिनकर दीनानाथ. माथ पर मोटा  आ एतेक दूरक बाट. ऐना जे बाटे-बाट कबैत करैत चललहु तं गाम पहुँचैत तीन मास लागि जायत ! हम बाटक कातक सिमटीक देवाल पर मोटरी रखलहु आ ओत्तहि बैसि गेलहुं. हम कहलियैक, सुनू. अहाँ एखन धरि छुच्छेके बड़का शंका-समाधान कलौहें . आब हमर गप्पक जवाब दियअ. तै पर ओ सब गुम्म भ’ गेल . हम पुछ्लियैक: अहाँक कतय घर अछि ?
-      कहलक, ‘ बंगाल.’
-       गाममें  घर अछि ? कहलक, ‘हं’ .
-       हम पुछ्लियैक, ‘ छठि, चौरचन, दसमी- दियाबाती- भोटमें गाम जाइ छी ? कहलनि, ‘नै.’
-       घरमें के  रहैए ? – कहलक, ‘केओ नहिं,तालाबंद अछि’ .
हम कहलियैक, सेह ! अहांके घर अछि आ ताला बंद अछि. अहाँ  छठि, चौरचन, दसमी- दियाबाती- भोटमें गाम जाइ नै छी. हमरा आउर सब पावनि-तिहार, नीक-बेजायमें दाही-जरती में गांओ जाइ छी.’  तैपर ओ सब हमर मुँह ताकय लागल.  
‘हम कहलियैक, नै ने बुझलियैक ! तैपर सब गोटे गुम्म भ’ गेल. हम कहलियैक, आब सुनै जाउ मुरखाहाक गप्प: अहाँक घर बड़का लोकक घर छी. रहब शहर में घर किनब ओत्तहि. गामक घर गहना अछि. नाक ऊँच केने रहैए. मुदा हमरा आउर छोटका छी. हम सब काज करबै बिदेस में, रहबैक गाम में . घूरि कय ओत्तहि एबै. गोसाउनि आ डिहबारकें छोडि कय कलकत्ता, बम्मै, डिल्ली आ बंगलोर में घर नहिं बनेबै. यौ, अहाँ गप्प नहिं बुझबै. हमरा लोकनि अपन माटि ले गाम जाइ छियै. जिबै आ मरबै, माटिए पर रहबै !’
बिहारि एकाएक चुप्प भ’ गेल. चारू कात बैसल लोग सहमति में एके बेर मूडी डोलबय लगलैक.
राम विलास कहलखिन: ‘अलबत्त !’

3 comments:

  1. सर,मुझे मैथिली तो नही आती लेकिन कुछ कुछ समझने की कोशिश करता हूँ, और जितना मुझे समझ में आया उससे एक बात कह सकता हूँ, आपने कोविड के रूप में होने वाली त्रासदी के समय की मानवीय भावनाओं को अच्छी तरह से प्रस्तुत किया है।
    बहुत बहुत बधाई।

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  2. अनेक धनवाद, राजकुमार जी.

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  3. अनेक धन्यवाद,राजकुमारजी.

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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

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