Monday, May 25, 2020

हमरा लोकनिक ओतय: लघु कथा


हमरा लोकनिक ओतय

अबोध नेनाकें छोडि आन ककरो ले सम्पूर्ण संसार अपन नहिं होइत छैक. तथापि, अपन घर-अंगना आ माय-बापक संपत्तिओ जं अपन नहिं हेतैक तं धिया-पुता कथीकें अपन कहत !
गौरीकें जहियासं बजबाक लूरि भेलनि, हुनका अपन घर-अंगनामें जाहि कथू पर नजरि पड़नि, हुनके रहनि. दुलारि कन्या आ छोटि, प्रतिवाद के करितनि ! जं केओ हंसिओ में कहि देनि,’ बड़ भेलीहे घरवाली ! अहांके बियाह हयत आ अपना घर जायब ’ तं , नोरे-झोरे एक भ’ जाथि. बाप बुझबथिन, ‘ तों बताहि भेलह-ए ! तोरा केओ किछु कहैत छथुन तं एतबे कहहुन ने , अहाँके जे पुछबाक हो , बाबूजी सं पूछि लियनु. हम बुझा देबनि’. आ गौरी बूझि जाथि.
आब गौरी साठि बरखक छथि. अपन घर-अंगना छनि. नैहर जहिया जाइत छथि, पाहुन-जकां . माय छथिन. सब समस्याक तत्काल समाधान कयनिहार पिताक आब केवल स्मरण छनि. तथापि, मध्यवयसाहु शरीरक कोनो कोन में आम-लतामक गाछ पर फुदकैत, पोखरिमें चुभकैत, आमक गाछी-कलममें आब बिछैत नान्हि-टा गौरी कतहु ओहिना नुकायल छथि. नैहर, ‘ हमरा लोकनिक ठाम’  आ ओतुका संपत्तिक चर्चा, ‘हमरा लोकनिक पोखरि, मन्दिर, गाछी आ समाज’- जकां करैत छथि.
आइ भोर में गौरीक पुतहु, पुतुल, अमेरिकासं फोन केलथिन. सासुसं पुतुल कें किछु बात-व्यवहारक गप्प पुछबाक छलनि. नारि कतहु रहथु, हुनका संग गौरी-गणेश- गोसाउनि सब ठाम संगहिं जाइत छथिन.
पुतहु पूछय लगलथिन, ‘ माँ, करवां-चौथ आबि रहल छैक. पूजा भारतक सूर्योदय-सूर्यास्तक हिसाबें हेतैक, कि अमेरिकाक तारीख सं ?
गौरी प्रश्न तं सूनि लेलनि, किन्तु, पुतहुक प्रश्नक उत्तर देबाक बदला हुनका मुँह सं प्रश्ने बहरयलनि : आब अहांके करवां-चौथ कोना हयत. आब नैहरक बिध-व्यवहार-पाबनि तिहार अहाँक नहिं थिक. हमरा सबकें करवां-चौथ नहिं होइत अछि.’ बेचारी पुतुल चुप भ’ गेलीह.  मनहिं-मन सोचलनि, हम करवां-चौथ केलहुं, कि नहिं, से तं माँ के तखने बुझबा जोग हेतनि ने जखन हम पूजाक फोटो पठेबनि. तें सासुक प्रतिवाद उचित नहिं बूझि चुप भ’ गेलीह. कहलथिन, ‘ जी. ठीक छैक .’
गौरी बड प्रसन्न भेलीह. कहलखिन ‘ देखियनु पुतुल कें. सासुरक व्यवहारकें अपन बूझि, सासुरेक व्यवहारकें ध’ लेलनि ! अजुका युगमें सबहक बुते ई पार लगतैक !!’
-       ‘पहिनहु नहिं पार लगैत छलैक ’- लगेमें बैसल गौरीक बेटी मुन्नी गप्प काटि देलखिन.
-       ऍ ? से की कहलहु, मुन्नी !
-       उचिते कि ने !
-       की उचित ? गौरी कें मुन्नीक बात काटब नीक नहिं लगलनि.
-       की उचित ? तों अपने कहिया सासुरक विधि-व्यवहार केलहिक ? हमर पितामही कहिते रहि गेलीह. तों हमरा तुसारी नहिंए पूजय देलें. कि तं हमरा ओतय नहिं होइत छैक !  हमर बाबा दुद्धा वैष्णव. एहि परिवारमें कहियो बलिप्रदान नहिं भेल. आ तों, एखनो नैहर जा कय कबुला-पाती करैत छें आ बलि-प्रदान करबैत छें. ऊपर सं नैहरक गप्प होइत छौक तं कहैत छहिक, ‘ हमर सबहक  बाड़ीमें ओ गाछ अछि. हमरा लोकनिक ओ खेत-पथार, ओ कलम, ओ पोखरि अछि, ब्रह्म-बाबा छथि.
-       ठीके कि ने !
-        ठीक कोना ? तोहर बियाह-दान भेलह. सासुर बसलह. जमाय-पुतहु भेलखुन.  नैहर कोना तोहर घर भेलह ?  - कातमें बैसल, ओतहि जलखै करैत, गौरीक माय निर्विकार भावें निर्णय द’ देलखिन. 
     गौरी अवाक् भ गेलीह !
   

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