हमरा
लोकनिक ओतय
अबोध नेनाकें
छोडि आन ककरो ले सम्पूर्ण संसार अपन नहिं होइत छैक. तथापि, अपन घर-अंगना आ माय-बापक
संपत्तिओ जं अपन नहिं हेतैक तं धिया-पुता कथीकें अपन कहत !
गौरीकें
जहियासं बजबाक लूरि भेलनि, हुनका अपन घर-अंगनामें जाहि कथू पर नजरि पड़नि, हुनके
रहनि. दुलारि कन्या आ छोटि, प्रतिवाद के करितनि ! जं केओ हंसिओ में कहि देनि,’ बड़
भेलीहे घरवाली ! अहांके बियाह हयत आ अपना घर जायब ’ तं , नोरे-झोरे एक भ’ जाथि.
बाप बुझबथिन, ‘ तों बताहि भेलह-ए ! तोरा केओ किछु कहैत छथुन तं एतबे कहहुन ने ,
अहाँके जे पुछबाक हो , बाबूजी सं पूछि लियनु. हम बुझा देबनि’. आ गौरी बूझि जाथि.
आब गौरी साठि
बरखक छथि. अपन घर-अंगना छनि. नैहर जहिया जाइत छथि, पाहुन-जकां . माय छथिन. सब
समस्याक तत्काल समाधान कयनिहार पिताक आब केवल स्मरण छनि. तथापि, मध्यवयसाहु शरीरक
कोनो कोन में आम-लतामक गाछ पर फुदकैत, पोखरिमें चुभकैत, आमक गाछी-कलममें आब बिछैत नान्हि-टा
गौरी कतहु ओहिना नुकायल छथि. नैहर, ‘ हमरा लोकनिक ठाम’ आ ओतुका संपत्तिक चर्चा, ‘हमरा लोकनिक पोखरि,
मन्दिर, गाछी आ समाज’- जकां करैत छथि.
आइ भोर में
गौरीक पुतहु, पुतुल, अमेरिकासं फोन केलथिन. सासुसं पुतुल कें किछु बात-व्यवहारक
गप्प पुछबाक छलनि. नारि कतहु रहथु, हुनका संग गौरी-गणेश- गोसाउनि सब ठाम संगहिं
जाइत छथिन.
पुतहु पूछय
लगलथिन, ‘ माँ, करवां-चौथ आबि रहल छैक. पूजा भारतक सूर्योदय-सूर्यास्तक हिसाबें
हेतैक, कि अमेरिकाक तारीख सं ?
गौरी प्रश्न
तं सूनि लेलनि, किन्तु, पुतहुक प्रश्नक उत्तर देबाक बदला हुनका मुँह सं प्रश्ने
बहरयलनि : आब अहांके करवां-चौथ कोना हयत. आब नैहरक बिध-व्यवहार-पाबनि तिहार अहाँक
नहिं थिक. हमरा सबकें करवां-चौथ नहिं होइत अछि.’ बेचारी पुतुल चुप भ’ गेलीह. मनहिं-मन सोचलनि, हम करवां-चौथ केलहुं, कि नहिं,
से तं माँ के तखने बुझबा जोग हेतनि ने जखन हम पूजाक फोटो पठेबनि. तें सासुक
प्रतिवाद उचित नहिं बूझि चुप भ’ गेलीह. कहलथिन, ‘ जी. ठीक छैक .’
गौरी बड
प्रसन्न भेलीह. कहलखिन ‘ देखियनु पुतुल कें. सासुरक व्यवहारकें अपन बूझि, सासुरेक
व्यवहारकें ध’ लेलनि ! अजुका युगमें सबहक बुते ई पार लगतैक !!’
-
‘पहिनहु नहिं पार
लगैत छलैक ’- लगेमें बैसल गौरीक बेटी मुन्नी गप्प काटि देलखिन.
-
ऍ ? से की कहलहु, मुन्नी
!
-
उचिते कि ने !
-
की उचित ? गौरी कें
मुन्नीक बात काटब नीक नहिं लगलनि.
-
की उचित ? तों अपने
कहिया सासुरक विधि-व्यवहार केलहिक ? हमर पितामही कहिते रहि गेलीह. तों हमरा तुसारी
नहिंए पूजय देलें. कि तं हमरा ओतय नहिं होइत छैक ! हमर बाबा दुद्धा वैष्णव. एहि परिवारमें कहियो बलिप्रदान
नहिं भेल. आ तों, एखनो नैहर जा कय कबुला-पाती करैत छें आ बलि-प्रदान करबैत छें. ऊपर
सं नैहरक गप्प होइत छौक तं कहैत छहिक, ‘ हमर सबहक
बाड़ीमें ओ गाछ अछि. हमरा लोकनिक ओ खेत-पथार, ओ कलम, ओ पोखरि अछि, ब्रह्म-बाबा
छथि.
-
ठीके कि ने !
-
ठीक कोना ? तोहर बियाह-दान भेलह. सासुर बसलह. जमाय-पुतहु
भेलखुन. नैहर कोना तोहर घर भेलह ? - कातमें बैसल, ओतहि जलखै करैत, गौरीक माय
निर्विकार भावें निर्णय द’ देलखिन.
गौरी
अवाक् भ गेलीह !
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