Tuesday, May 19, 2020

मानव-शरीर पवित्र थिक. मृत शरीरक आदर करी

दरभंगा मेडिकल कॉलेजक आठ वर्ष
[ एम बी बी एस पढ़ाई साढ़े चारि वर्षक होइछ. एक वर्षक अनिवार्य इंटर्नशिप वा चिकित्साक अनुभव. तखन हमरा लोकनिक बैचकें इंटर्नशिप पूर्ण होइत नवम्बर 1973 सं मार्च 1981 तक केर अवधि कोना लागि गेलैक ? सुनू ताहि
प्रकरणक धोखरैत चित्र आ बिसरैत गप्प.] 

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मानव-शरीर पवित्र थिक. मृत शरीरक आदर करी 

1973 ई. में मनमे जोगाओल मनोरथ पूर भेल; ओही वर्ष दरभंगा चिकित्सा महाविद्यालयमें एम बी बी एस कोर्स में  हमर नाम लिखल गेल.ठीक तीन वर्ष पूर्व बिहारमे मेडिकल कॉलेजमें एडमिशनले प्रतियोगता परीक्षा आरम्भ  भेल रहैक. एहिसं हमरा-सन अनेको ग्रामीण विद्यार्थीक हित भेलैक.
दरभंगा मेडिकल कालेजक परिसर दू वर्ग किलोमीटरक, पैघ इलकामें पसरल छैक. एखुनका समय-जकां तहिया कालेजक भूमिक  एतेक अतिक्रमण नहिं भेल रहैक. एखने-जकां आरम्भिक डेढ़ वर्षक एनाटोमी, फिजियोलॉजी आ बायोकेमिस्ट्रीक विभाग, अनेक होस्टल, कॉलेजक फील्ड आ फैकल्टी लोकनिक आवास अस्पताल सं दूर, अलग परिसरमें रहैक. इतिहास कहैत अछि, दरभंगाक महाराज रामेश्वर सिंहक विपुल दान आ हुनके देल भूमिसं एहि संस्थाक  स्थापना भेल छलैक.
दरभंगा मेडिकल कॉलेजक बेसिक मेडिकल साइंसक  परिसरक अंग्रेजीक T- आकारक भवनक तीन भिन्न-भिन्न खंडमें तीनू विभाग, लेक्चर-थिएटर, प्रयोगशाला, म्यूजियम सब छैक. दरभंगा मेडिकल  कालेजमें नामांकनसं पूर्व एहि परिसरमें आयब-जायब तं छले. छोट बालकक रूप में जाहि भवन आ परिसरकें भय-मिश्रित आश्चर्यसं देखैत रहिऐक ताहिमें अधिकारपूर्वक प्रवेश हमरा अभूतपूर्व उत्साहसं भरि देने छल. मानव शरीरक छेदन आ शरीर-रचनाक  प्रत्यक्ष दर्शन अद्भुत रोमांचक लागय. संगहिं नव-नव संगी-साथीसं परिचय आ हमर अपन समाजिक  आ मानसिक परिधिक अकस्मात् विस्तारक  अनुभव अभूतपूर्व छल.
प्रतिदिन भोरे क्लास 8.10 बजे आरम्भ होइक. आरम्भमें दू टा लेक्चरक पछाति, प्रतिदिन बारह बजे धरि डिसेक्शन- हॉल में एक सौ पचास छात्र- छात्राक सम्पूर्ण क्लास एके समूहक भिन्न-भिन्न ग्रुप-जकां जमा होइत छल.
तहिया मेडिकल कॉलेज सब में बेसिक साइंसक पढ़ाईमें डिसेक्शनक बड महत्व रहैक. दरभंगा मेडिकल कॉलेजकेर लम्बा डिसेक्शन हालक  दछिनबरिया, पुबरिया, आ उतरबरिया देवालपर बहुत बड़का-बड़का खिड़की शरीर-रचना पढ़बाक हेतु अत्यंत उपयुक्त रहैक. पूब दिसुक देवालमें दू टा द्वार आ बीचममें छोट-सन ब्लैकबोर्डक आगाँ शिक्षक लोकनिक बैसबाक कुर्सी-टेबुल रहनि. ताहिसं आगू प्रायः आठ-आठ टा ग्रेनाइट-टॉप बाला डिसेक्शन टेबुल रहैक. हाल में प्रवेश करिते एनाटोमीक पितामह ‘हेनरी ग्रे’ केर, छत सं झूलैत पेंटिंग रहनि. छतसं झूलैत दोसर बोर्ड पर छात्र लोकनिक हेतु निर्देश रहनि; Body is secred. Pay respect to  it. ( मानव-शरीर पवित्र थिक. शरीरकें आदर दियनि )  .
हमरा डिसेक्शनमें खूब मन लागय. हमर ग्रुप में गोड बीसेक छात्र म सं हमर रूममेट मुसर्रत, आ सतीशक अतिरिक्त हमर करीबी मित्र अजयकुमार झा आ आओर बहुतो गोटे रहथि. विद्यार्थी लोकनिक एहि समूहकें पुनः 5 सं 7 व्यक्तिक छोट-छोट ग्रुपमें बांटि  ककरो, बांहि ( upper extremity ), ककरो, जांघ-पयर (lower extremity ), छाती (thorax), पेट ( abdomen) इत्यादि केर डिसेक्शनक टास्क देल जाइनि. एहि सब अंगकेर छोट-छोट हिस्साक- जेना, तरहत्थी( पांच दिन ), तरबा (पांच दिन )- विस्तृत अध्ययन आ फूट-फूट जांच-परीक्षा आ मार्क ले शिक्षाक आ छात्रक बीच  खींचा-तानी होइक.
डिसेक्शनक छोट-छोट सब-ग्रुप में सब प्रकारक छात्र रहथि; किछु गोटे शरीरक डिसेक्शन करथि. बांकी किछु छात्र लोकनि पोथी पढ़ि-पढ़ि पोथीमें लिखल निर्देश आ थ्योरी सबकें बुझबथिन  आ चिरल-फाडल शरीर रचनाकें अपनहु आत्मसात करथि. डिसेक्शनक एहि क्लासमें ग्रुप-वर्क हंसी –विनोद, आ मित्रताक अद्भुत वातावरण रहैक. क्लासमें गप्प करबाक छूट बड़का बोनस. ताहिसं  किछु गोटे क्लासक समय  हंसी मजाकमें  सेहो गुजारि देथि आ अंतमें उपर-झापर किछु-किछु देखैत हाजिरी बजाबथि आ काज पूरा करथि. बांकी छात्र  मेडिकल कालेजमें पढ़बाक एहि अनूप अवसरसं भावी जीवनक निस्सन आधारशिलाक निर्माण सेहो करथि.
बेरुक पहरक समयमें फिजियोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, हिस्टोलोजीक प्रयोग वा ट्युटोरिअल क्लास आ डेमोन्स्ट्रेशन क्लास होइक.  ओहि अवधिमें डाक्टर भूपेन्द्र नारायण सिन्हा, डाक्टर बी के श्रीवास्तव आ डाक्टर बी एन सहाय क्रमशः एनाटोमी, फिजियोलॉजी एवं बायोकेमिस्ट्रीक विभागाध्यक्ष रहथि.
मेडिकल कालेजक आरंभिक डेढ़ वर्षक जीवनक एकटा अनुभव हमरा एखनो मोन अछि. एकरा कनेक विस्तार सं कही. जेना समाजमें होइत छैक, कालेज आ चिकित्साक व्यवसाय सेहो विभिन्न प्रकारक लोकक बहुरंगी फलक- मोज़ेक- थिक. कोनो शिक्षक  समयक पाबन्द अपन अनुशासनसं बान्हल रहथि, तं केओ लेट-लतीफ़ आ कायदा कानूनसं निरपेक्ष. हमरा लोकनि स्वतंत्रताक पछातिक पीढ़ी थिकहुं , तें ‘ अंग्रेजक जमानामें अनुशासन केहन रहैक’ से सुनैत रहियैक. किन्तु, देखल तं नहिं छल. तथापि, दुनिया में सब अनुशासनसं चलय आ हमर अधिकारक हनन नहिं हो, हमरा किशोर मनमें ताहि हेतु आग्रह ‘ अव्यवहारिकताक हद’ धरि छल. तथापि, लेक्चर क्लासमें  डाक्टर हरिनन्दन द्विवेदी–सन  किछु शिक्षक जं  समयसं पहिनहु आबि जाथि, तं बांकी शिक्षक लोकनि समय पर अवश्य आबथि. किन्तु, डिसेक्शन हालमें  अयबामें शिक्षक लोकनि समयक परबाहि नहिं करथि. माने, अपना समयसं अहाँ अपने पढ़ू- आइ काल्हि शिक्षा-विज्ञानमें एकरा self-directed learning ( स्वाध्याय) कहैत छैक. डिस्सेकशन हालक एहि संस्कृतिसं छात्र सबकें एक दिस क्लासमें रहितो अपन रूचि आ इच्छाक अनुसार स्वतंत्रता भेटनि तं हमरा-सन जिज्ञासु छात्रकें  कखनो-काल शिक्षकक कमी अखरय. शहरी विचार-व्यवहार सं अभिज्ञ तं रहबे करी. अस्तु, एक दिन टीचर लोकनिक टेबुल परसं चौक उठाओल आ ब्लैक बोर्ड पर निम्नांकित संदेश लीखि देल:
“Teachers are requested to come to the dissection-hall on time. Late coming is injustice on the part of students.”
फल ई भेल जे शिक्षक लोकनिकें एना प्रतीत भेलनि जेना हुनका लोकनिक बीच केओ मूर्ख छात्र  अकस्मात बम खसा देने होइनि. दोसर दिस, एखन धरि हमर जे परिचय मित्रे लोकनि धरि सीमित छल, से क्लासक बाहर सीनियर लोकनि धरि नव खबरिक संग पहुँचि गेल. फलतः, टीचर लोकनि डिसेक्शन-हाल आ क्लास में एकाएक सख्ती आरम्भ क’ देलखिन.  हम अपन संदेश नुका कय तं लिखने नहिं रहियैक, हमरा सब देखनहिं छल. केवल हमर एहि  initiative में अनकर ककरो सहयोग वा सहमति  नहिं रहैक. सुरक्षा विज्ञान में एहि  प्रकारक  initiative वा ‘आघात’ कें ‘lone wolf attack’ कहल जाइत छैक. जे किछु. सख्तीसं तिलमिलायल  हमर सहपाठी लोकनि हमरा पर टूटि पड़लाह. भय एकर जे हमर भूलकेर मूल्य प्रायः पूरा क्लासकें ने चुकबय पड़तैक ! ते, हमरा किछु गोटे प्रत्यक्षतः  लुलुआबय लगलाह तं बांकी लोकनि चुप्पे-चाप हमर सोझमतिया प्रकृतिपर मुसुकाथि. किछु ब्राह्मण सीनियर लोकनि हमर बंचावक हेतु आगू अयबाक प्रस्ताव सेहो केलनि. दोसर दिस, किछु व्यवहारिक मित्र हमरा ‘अपन आ क्लासक हितमें’ विभागाध्यक्ष लग जा कय क्षमा-याचनाक सुझाव देलनि. हमरा अपन अनुशासन आ जीवनमें अपन सिद्धान्त पर चलबाक बानि पर कोनो भ्रम नहिं छल. अतः, जातिवादक नाम पर सीनियर लोकनिसं समर्थन लेबाक बदला संगी लोकनिक संग विभागाध्यक्ष लग जा कय अपन ‘अपराध’ स्वीकारैत  क्षमा-याचनाक निर्णय लेल. ओहि में हमर सिद्धान्तहु कें  कोनो  ठेस नहिं पहुँचैत छलैक : विद्यार्थी छी. भूल भेल. गुरु माता-पिताक समान पूज्य थिकाह. जा कय क्षमा मांगि ली. आ सएह कयल.
कालेजक ओहि युग आ ओहि पक्षमें जखन विभागाध्यक्षक अप्रसन्नताक कारण कतेको छात्र वर्षों धरि एके विभागमें फेल होइत रहि जाथि, अंततः हमरा कोनो अवघात नहिं भेल. आ ओहि घटनाक करीब सैतालीस पछातियो ओ शिक्षक, डाक्टर भूपेन्द्र नारायण सिन्हा, हमरा स्मृतिमें पूज्य छथि. ओहुना डाक्टर भूपेन्द्र नारायण सिन्हा स्वभावसं मृदुभाषी रहथि. हमरा शिक्षकक अनुशासनप्रियता ओहुना नीक लगैछ.
किन्तु, क्षमा-याचना आ क्षमाक बीच ओहि दिन जे ज्ञान ओ हमरा देलनि ओ एखन धरि हमरा मोनो अछि, आ हमरा  कहबाक मोनो होइत अछि. स्पष्ट छैक, जखन क्षमा-याचनाले वरिष्ठ शिक्षक लग ठाढ़ हयब तखन भाषण सुनहिं पड़त. तथापि, ओहि दिनुका गप्प म सं दू टा विन्दु एखनो खूब नीक-जकां मोन अछि. सएह सुनू:
पहिल गप्प मुनि अष्टावक्रक रहनि. डाक्टर सिन्हा कहलनि, ‘ अष्टावक्र जखन मायक पेटेमे रहथि, माता-पिताक बीचक शास्त्रार्थक बीच बापक उक्तिकें अशुद्ध कहि देलखिन. फलतः, बाप श्राप द’ देलखिन आ ‘मुनिक’  शरीर आठ ठाम टेढ़ ( अष्टावक्र) भ’ गेलनि. अर्थात् गुरूक त्रुटि क उद्घाटनक परिणाम भयानक होइछ !'
दोसर गप्प, माताक गर्भमें पलैत शिशुक शरीरक रहैक. कहलनि, ‘आगू जखन प्रजनन आ प्रसूति-विज्ञान पढ़ब तं सीखब, जे, मायक गर्भमें पलैत, जाहि शिशुकक गरदनि नीचा झुकल,आ माथ छातीमें सटल रहैत छैक, ओकर जन्म सामान्य रूपें भ’ जाइत  छैक. एकर विपरीत,जं कदाचित शिशुक गरदनि (गौरवाह मनुख-जकां)  पाछू दिस तानल रहैत छैक, तं ओकर प्रसवमें शिशुक जान जेबाक खतरा तं रहिते छैक, मायक जान पर सेहो खतरामें रहैत छैक. तें, कालेजमें आयल छी, गरदनि झुका कय राखू, आ सहजतासं बहराइत चल जाउ. गरदनि जं अकड़ल रहत, तं  अकड़ल गरदनि बला  गर्भस्थ शिशु-जकां कालेजसं बहरायब ( पास करब ) कठिन भ’ जायत.’  हम ओहि गुरुदेव डाक्टर सिन्हाक व्यवहारिक सीखकें आइ धरि गेठरी बान्हि कय रखने छी !
तथापि, आब एतेक वर्षक पछाति कखनो-काल मन में ई भाव अबैत अछि जे यद्यपि हमर व्यवहार उचित नहिं छल किन्तु, की शिक्षक समुदायकें अपन अनुशासनक प्रति आत्ममंथन नहिं करबाक चाहियनि !  
[ नोट: एहि वर्ष ( फरबरी 2020 ) में कालेजक स्थापना दिवसकेर अवसरपर करीब तैतालिस वर्ष बाद हमरा ओहि परिसरमें जेबाक अवसर भेटल. एखन हमर सहपाठी डाक्टर हर्षनारायण झा दरभंगा मेडिकल कालेजक प्रिंसिपल छथि. देखल जे तहियाक ओ डिसेक्शन हाल एखनहु ओहिना अछि. किन्तु, तहिया आ एखुनका डिसेक्शन हालक अंतर ज़मीन आ आसमान सं कम नहिं. सम्पूर्ण हालमें  डिसेक्शन करबाक हेतु वा डिसेक्शन कयल एको टा शरीर नहिं ! भवन प्राकृतिक प्रकोपें आ सरकारी उदासीनताक कारण जर्जर अछि. प्रिंसिपल कहलनि, अगिला बेर आयब तं प्रायः ई भवन देखबाले नहिं भेटत. आब एहि भूमि ( वा दरभंगा मेडिकल कॉलेजक समाधि पर ) पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान बनेबाक सरकारक योजना छैक. अपना आंखिंक आगाँ लगभग एक सौ वर्ष पुरान आ कम सं कम 150000 डाक्टरक दीक्षा-भूमि भूमिसात हेबा पर अछि. हमरा शोक हयब उचिते. ]

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