सत्तरिक दशकमें दरभंगा मेडिकल कॉलेज -2
DMCH Campus. Courtesy: Google Earth |
1970 क दशकमें मेडिकल कॉलेजमें नव-नव
आयल छात्रकेर रैगिंग- हुथबाक वा रेबाड़क –विकृत परंपरा आम रहैक. रैगिंग सामूहिक आ
एसगर दुनूमें होइत छलैक. सीनियर लोकनि
एकरा अपन अधिकार आ कर्तव्य दुनू बूझथि. सीनियर लोकनिक धारणा रहनि जे रैगिंग सं
कालेजमें नव-नव आयल विद्यार्थीकें सीनियर लोकनिसं परिचय-पात तं होइते छनि, एहिसं हुनका लोकनिक धाख
सेहो छूटैत छनि. ततबे नहिं, रैगिंगसं समाजक
भिन्न-भिन्न पृष्ठभूमिसं आयल छात्र
आसानीसं ‘ स्मार्ट’ भ’ जाइत छथि. सर्वविदित अछि देशक अनेक भाग आ अनेक संस्थामें
रैगिंगक अति सं अनेको छात्रक मृत्यु धरि भेल छैक. तें, तहियो 1973 में रैगिंग
गैर-कानूनी रहैक आ हमरा लोकनिक तत्कालीन प्रिंसिपल स्व. डाक्टर चक्रधर झा रैगिंगक
ततेक विरोधी रहथि जे कतेक बेर रैगिंग-सन गतिविधिक कनेको आशंका पर ओ स्वयं अपने होस्टल
दिस दौगैत चल आबथि. संयोगसं हम रैगिंगसं आसानी सं छूटि गेलहुँ, किछु अपन
बुधियारीसं आ किछु स्थानीय हेबाक कारणे . तथापि हमर रैगिंग नहिं भेल छल, से कहब तं असत्ये हयत.
ओहि युगमें मेडिकल शिक्षाक चारूकात एकटा आभा-मंडल रहैक, ओहिना जेहन आभा-मंडल
डाक्टरी व्यवसायक चारू कात तहिया रहैक. किन्तु, शिक्षक आ विद्यार्थीक बीच सामाजिक
स्तर पर मेलजोल कम रहैक. छोट-छोट भूल-चूक पैघ दण्ड वा प्रतिशोधक धमकी धरि कारण बनि
जाइक. अधिकतर छात्र लोकनिकें अपन जाति-पांतिक परिचयक प्रति गौरव तं रहबे करनि. तें,
प्रतिद्वन्दिता सेहो पनपैत छलैक. किछु गोटे जाति-भाई आ phylum ताकि कय रूम-मेटक
चुनाव सेहो करथि. संयोगसं जं एक वर्गक छात्रक रैगिंग दोसर वर्गक द्वारा भ’ गेल तं
‘पीड़ित’ छात्रक जातिक नेता लोकनि शुर्ख-रू भ’ जाथि. एहि सं कखनो काल मारि पीटिक
परिस्थिति सेहो आबि जाइक.
फर्स्ट इयरमें हमरा लोकनिकें ओल्ड होस्टलमें कमरा भेटल छल. 24 नम्बर कमराक
चारि कोनक चारि निवासी- कीर्तिनाथ झा, मुसर्रत हुसैन, सतीश कुमार दास, आ विजय
कुमार सिन्हा, संयोग सं सोशल मोसैकक इन्द्रधनुष रही. यद्यपि, एहन उदाहरण कमी नहिं रहैक, तथापि, हमरा
लोकनिकें तकर गौरव छल. कारण, तहिया आ आइओ बिहारमें रहैत अधिकांश बिहारी नागरिकक
सोचकें जाति सं उपर उठबामें बड बाधाक सामना करय पड़ैत छनि. फल सभक सोझां अछि. संयोगसं
विद्यार्थी लोकनिक जातिवादी सोचमें किछु दोष शिक्षक लोकनिक सेहो रहनि. किन्तु, ओ
लोकनि की करितथि, समाजक बहावक विपरीत जायबकें लोक आत्महत्या-जकां बूझैत अछि, तें,
जैसी बहे बयार पीठ तब तैसी कीजै’ क नीति सब अपनाबथि. संगहि, ओ सब जाहि समाजक
गुण-दोष भोगैत रहथि, सएह जीवैत रहथि. किछु शिक्षक प्रायः अपन अहं केर संतुष्टिक हेतु
सेहो विद्यार्थीक जातिवादी विचार आ समूहक पृष्ठ-पोषण करथि. एहिसं हुनका लोकनिकें कोनो
लाभ होइत होइनि, से असंभव . सम्भव छैक, किछु व्यक्ति मनहिं-मन अपन समुदायक छात्रक
सुरक्षाक भर अपना पर उठौने होथि, आ अपन सहकर्मी लोकनिसं प्रतिद्वन्दितामें अपन
हथियार-जकां छात्रक उपयोग करैत
होथि.किन्तु, ओ लोकनि एतबे सं संतुष्ट तं रहबे करथि, प्रत्यक्ष व्यवहारमें केओ जातिवादी बूझि पडलाह तेहन अनुभव हमरा कहिओ नहिं भेल. ओना हमरा लोकनि ने ककरो कृपाक मोहताज रही आ ने ताहि सं कोनो लाभ वा हानि भेल.
सत्यतः, शिक्षकक जातिवादी व्यवहारसं कोनो छात्रकें कनेक लाभ भले भ' जाउक , किन्तु,
प्रत्यक्षतः ककरो हानि भेल हेतनि से हमार नहिं बूझल अछि. तें, कालेजक दिनक जातिवादक
विरुद्ध हमरा लग कोनो शिकायतक कारण नहिं. अस्तु,पहिल डेढ़ वर्षक एनाटोमी, फिजियोलॉजी आ बायोकेमिस्ट्री पढ़बाक अध्याय
निरापद निकलि गेल . यद्यपि, हमर अपन सोझमतिया बुद्धि , आ समाजमें सब कानूनक अनुसार चलय
ताहि धारणाक प्रति आग्रहक, कारण एकटा शिक्षा अवश्य भेटल. किन्तु, ‘हमरा अपन भूल’सं कोनो हानि नहिं भेल, तकरा हम शिक्षक लोकनिक
उदारता आ कानूनक प्रति हुनका लोकनिक निष्ठाक उदाहरण मात्र बूझैत छी. किन्तु, तकर गप्प फेर
कहियो.
दरभंगा मेडिकल कालेजक आरंभिक दिन केहन रहैक, से कहब कठिन. मुदा सत्तरिक दशकमें
एहि कालेजक आर्थिक स्थिति भारतक अर्थव्यवस्थाक भिन्न नहिं रहैक : सारांशमें जर्जर.
बहुत दिन पहिने बनल निस्सन भवन आ दक्ष शिक्षक लोकनिक समूह जं कालेज सुदृढ़ आधार
रहथि, तं कालेजक प्रशासक लोकनिमें कालेज उत्तरोत्तर विकासक हेतु सम्यक दृष्टिक
अभाव आ सरकारक उदासीनता विकासक सबटा बाट छेकि कय रखने छल, जकर परिणाम आइ पचास साल
बाद सभक सोझाँ अछि.
शिक्षण संस्थान आ स्वास्थ्य सेवाक एहि दुर्दशाक कारण म सं सब सं प्रमुख रहैक
बिहार राज्यक जर्जर अर्थव्यवस्था आ समाजक सब स्तर पर व्याप्त चतुर्दिक भ्रष्टाचार, आ उच्च शिक्षा तथा जन स्वास्थ्य सेवाक प्रति राज्य सरकारक उदासीनता .
संयोगसं स्वतंत्र भारतमें गरीबी कें जेना महिमा मंडित कयल गेल रहैक. ओतय तक तं चलू ठीक
छलैक. किन्तु, व्यक्तिगत संपत्तिक उपार्जन , आ निजी उद्यमकें हेय बुझबाक जाहि दर्शनकें ओहि युगमें बल भेटलैक
ओ भ्रष्टाचारक संग मीलि कय अंततः समाजक अर्थकें जर्जर क' देलक. सर्वविदित अछि, ओहि
युग में निजी कल-कारखानामें कोन वस्तुक कतेक उत्पादन हेतैक तकर निर्णय, समाजमें
वस्तुक मांग नहिं, सरकार करैत छल. सब किछु
पर कोटा-परमिटक ताला लागल छलैक. एताबता, सरकारी कोषमें आमदनी बूँद-बूँद अबैत रहैक,
आ खर्च तं रहबे करैक. ततबे नहिं, यद्यपि, उद्योग-धंधा सं ल कय शिक्षा धरिमें
सरकारक एकाधिकार रहैक, तथापि, सरकारक हाथ छुच्छ रहैक. तखन विकासले टाका अबितैक कतय
सं. तें दिन-प्रतिदिनक खर्च, अर्थात वेतन आ मामूली मरम्मति आलावा सरकारी कोषमें धन
रहैत नहिं छलैक. तखन नव योजना आ पुरान संस्थाक विकासमें निवेश कतय सं अओतैक ! फलतः, जाहि विभागमें जतय जे किछु छलैक,
से जं जं टूटिओ-फूटि गेलैक तं काज ओही सं चलैक. नव विभागक स्थापनाक आ नव उपकरणक
खरीद गप्प छोडू, पुरान भवन आ उपकरण धरिक रखरखाव आ मरम्मति नहिं भ' पबैत छलैक. एहन
परिस्थिति सं सब परिचित छल. किन्तु, सरकारी स्वामित्वबला संस्था तं ककरो अपन छलैक
नहिं, जे अपन प्रैक्टिस छोडि केओ ओकर चिंता करितथि.प्रायः नजरिया सं परिचित व्यवहार कुशल प्रशासक लोकनि अपन अनुभव सं,सरकारी तन्त्रसं लडबकें निर्थक बूझैत रहथि. किन्तु, परिस्थिति सं यदा-कदा शिक्षक लोकनिक हताशा परिलक्षित भइए जाइत छलनि. ओहि समयक एकटा फिजियोलॉजीक
प्रोफेसर डाक्टर डी एन शर्मा कहथिन, ‘ हमरा लोकनिक प्रयोगशाला अर्कियोलोजी (पुरातत्व
विभाग) विभागक म्यूजियम थिक !’ डाक्टर डी एन शर्मा स्कॉटलैंडक सेंट एंड्रूज विश्वविद्यालयसं पी. एच-डी. रहथि. ओहि दिन में बेसिक साइंस आ क्निनिकल विज्ञान
विभागमें ब्रिटेनक विश्वविद्यालय सबमें शिक्षित अनेक तेजस्वी आ समर्थ शिक्षक सब रहथि. हुनका सबकें यूरोपकेर अनेको शिक्षण-संस्था आ शिक्षा व्यवस्था देखल रहनि.
किन्तु, अपना ओतय साधन आ संकल्पक अभावमें
छात्रकें पढ़यबाक अतिरिक्त संस्थाक विकास ले केओ किछु नहिं क' सकलाह. आ तकर परिणाम
थिक समयक बहावमें माटिक देबाल-जकां झहरैत
आजुक दरभंगा चिकित्सा महाविद्यालय !
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