Tuesday, May 12, 2020

नेनपनक स्मृति

अपन ब्लॉग ‘आत्मवत्’ केर पन्ना सं : Monday, August 2, 2010,

नेनपनक स्मृति
नेनपन केर सब सँ पुरान स्मृति ? कहब मोसकिल अछि . मुदा जं चिर अतीत में भसिआइ, तं सब सँ पुरान आ भयावन स्मृति कमलाक बाढ़िक हयत. चारू दिस पसरल पानि, त्राहि-त्राहि करैत मनुक्ख , रंग-बिरंगक कीड़ा- मकोड़ा-साँप-बीछ आ असक्क माल-जाल. ने जयबाक बाट, ने खायाबक अन्न , ने जरयबा ले जारनि, आ ने रहबाले निचू चार . मुदा संतोष एतबे जे गाम में सबहक हाल मोटा -मोटी एके रंग रहै. तथापि सब के तं अपने जानक चिंता , अपने धिया-पुताक बेगरता . दिन भयावह लगै, आ राति पहाड़. ककरो टाटक घर भसि जाई, तं  ककरो भीत खसि पड़ैक. ककरो भीतक तर माल-जाल मरि जाई आ पतिया लगै, तं केओ अपनहि अपंग भ जाय.
तै पर सँ लागल जजात दहा जाई , पाकल आम लोक तोडि नहिं पाबय . रेलक पटरी बही जाई , बान्ह भासि जाई . सब कतौक बाट बन्न  जाई . लोक पड़एबो करत त कतय ? इएह ह थिक हमर सब सँ पुरान स्मृति जे एखन धरि मानस पटल पर शिलालेख-जकां पड़ल अछि .
सब सँ सुखद स्मृति ? पोखरि में भरि मोन चुभकब , गाछी में भट- भट खसैत पाकल आम बीछब- चोभा मारब . लातम,जामुक गाछ पर चढ़ब, बाड़ीक गुलाबखाश आमक डारि पर मचकी झूलब . छैठ-चौरचनक पकबान खायब , पंचमी-आर्द्राक खीर सपेटब, आ सरिसब बाला माछक झोर सुरकब.
ठनका सँ डर होइत छल आ ताश- पचीसी सँ दूर रहैत छलहुँ. अनका पढ़एब नीक लागैत छल मुदा लाल-बहिन माय के शिकायत करथिन तै सँ साकांछ रहैत छलहुँ.
दरबज्जा पर गाय छली ,मुदा मरखाहि. दूध नहिए, तरद्दुद ढेर. दादा बेसी काल बाहर रहैत छलाह . हुनका सँ डेरैत बहुत रही , तें नीके लागे.
अन्हरिया पक्ष में चोरहोक बड्ड हल्ला होई , राति में डरे सकदम्म भ’ कय सूती आ भोरे निःश्वास लैत उठी.
पढ़ैक जिज्ञासा अत्यंत छल मुदा गाम में शिक्षित लोकक संख्या बड्ड कम रहै; बाल-बर्गक गणित पढ़ओनिहार धरि केओ नहि. जीबू आ शिबू भाई सबसँ लग में आ सुलभ शिक्षक छलाह. स्कूल में मास्टर सेहो बुझाबथि. स्कूल जयबा काल गाछी सब में सब के भूत-प्रेतक डर होई.गामक चारू कात त गाछी- कलम छलैहे. ताहि पर सँ लकड़सुंघा बाबाजीक भय .संगी-साथी में छर्पा ( स्व. नारायण चौधरी ), नथुनी , राजिन्द्र ( ठाकुर) , दुखी (मंडल) , ठकनी ( प्रभा कुमारी ), मिथिलेश कुमारी , राम दाई आ, अपन लाल-बहिन ( दिवंगता शीला देवी) छलीह . खेलायाबाक खेलौना में कनैलक बीया , काचक गोली- गोलीक मनाही रहैक-, आ गेंद. दौड़-धूप, कबड्डी- कुश्ती सेहो होइक, मुदा हम ताहि सब सँ दूर रही , माय कहथि ई कमजोर छथि, पेट कहियो ठीक नहीं रहै छनि, डंडाडोरि हरदम डांड सँ खसैत रहैत छनि. कोना नहिं होइत , संतुलित आहार शब्द स्कूल में सुनने नहिं रहिए. स्वास्थ्य- विज्ञानक ककरो ज्ञान नहिं रहै . टीकाक नाम पर चेचक केर टीका होई जाहिमें एकेटा रोटरी- लांसेट स हेल्थ-वर्कर भरि स्कूलक नेना के पाचि देथिन. हैजाक टीका के ले केओ आबथि त चांगला चांगला सब स्कूल सँ भागि जाय , की त सुई सँ ज्वर भ’ जायत .
बहुत दिन भ' गेलै, बहुत लोक मरि गेल , बहुत गप्प बिसरि गेल .मुदा होइए ,एक बेर सबटा ओहिना देखतिअइ.

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