Saturday, June 27, 2020

भारत-चीन सीमा विवाद : परिप्रेक्ष्य आ प्रतिकार

भारत-चीन सीमा विवाद : परिप्रेक्ष्य आ प्रतिकार  

करी युद्ध जं तौली चारि

शत्रु, मित्र, अपन बुत्ता, आ लाभ  

-तिरुवल्लुवर, कुरल,471.

एखनुक युगमें जखन ककरहु सं किछु छिपल नहिं रहैत छैक, तखन सीमा क्षेत्रमें दुश्मनक चौंका देबबला गतिविधि अवश्य कोनो चूक दिस संकेत करैत अछि. प्रश्न उठैत छैक, एहन चूक होइत कोना छैक ? किन्तु, एहि प्रश्नकें एखन कनेक कात राखी आ पडोसीक संग सीमा विवादक दोसर दृष्टान्त पर नजरि घुमाबी. हालहिंमें नेपाल सरकार  भारत-नेपाल सीमा विवादक समाधान अपने संविधानक संशोधन सं कय लेलक. प्रश्न उठैत छैक दू राष्ट्रक बीचक सीमा विवादक समाधान एकदिसाहे कोना भ’ गेलैक ? एहि दुनू प्रश्नक उत्तर एके छैक: देशक भीतरक राजनीतिक बाध्यता आ लम्बित विवादक समाधानकें अनठायब. पाकिस्तानक संग सीमा विवाद तं पाकिस्तानक उदयेक संग आरम्भ भेल छल आ धर्म पर आधारित एहि राष्ट्रक संग सीमा विवादक मामिला एकटा भिन्न विषय थिक.

सर्वविदित अछि, देशक भीतरक रानीतिक परिस्थिति राष्ट्रक अपन समस्या थिक. किन्तु, दू देशक बीच लम्बित विवादक अनिर्णयक दोष ककर ? प्रायः, विवाद सं जुडल पक्ष वा राष्ट्रक. विदित अछि, जतय विवाद पुरान छैक, ततय लम्बा अवधिमें अनेक बेर सरकार बदलैत छैक. तथापि, विवादकें नहिं सुलझयबाक दोष कोनो एक पार्टीक सरकारपर होइक से असंम्भव. तथापि एकर दोष जं अहाँ कोनो एक राजनितिक पार्टी पर दैत छियैक तं से एहि पर निर्भर अछि जे पार्टी सबहक समूह में अहाँ कोन दिस छी. किन्तु, लम्बित विवाद बल-प्रयोगमें बदलि गेल वा विवादक एकदिसाह  निर्णय भ’ गेल से तं सामनहिं अछि.

आब भारत-चीन सीमा विवादक गप्प करी. भारत आ चीन पडोसी थिक ,किन्तु, एहि दुनू देशक बीचक 1959 सं पहिने सीमा मिलैत नहिं रहैक. किन्तु, चीनमें साम्यवादक उदयक पछाति  जखन चीन तिब्बतकें खा गेल तखन भारत-तिब्बत सीमा भारत-चीन सीमा भ’ गेल. भारत-तिब्बत सीमा पूर्वोत्तरमें अरुणाचल सं ल कय पश्चिममें लद्दाख़ धरि पसरल अछि. नेपाल, भूटान आ सिक्किम बीच-बीचमें भारत आ तिब्बतकें फुटओने रहैक. भूटानक प्रतिरक्षा भारतक जिम्मा भेने भूटान-चीन सीमापर भारत-आ चीन एक दोसरासं समय-समय पर विवाद होइते एलैये. सिक्किमकेर भारतमें विलयकेर बाद सिक्किमक क्षेत्र सेहो भारत-चीन सीमा क्षेत्र थिक. एखन एकमात्र नेपाल भारत-चीन सीमाक मध्य भागक बीच ‘बफर’ अछि. यद्यपि नेपालमें चीनक बढ़इत प्रभाव आ तिब्बत-नेपालक बीच रेल-सम्पर्क एहि स्थितिकें कहिया बदलि देत से कहब कठिन.

सर्वविदित अछि सम्पूर्ण भारत-चीन सीमा पहाड़ी अछि. जहाँ अरुणाचलक क्षेत्रमें पहाड़ी क्षेत्र जंगली छैक, ततहि लद्दाखमें सीमा-क्षेत्र विशाल, बंजर शीतल मरुभूमि थिक. सीमा क्षेत्रक ई जनशून्य, दुर्गम इलाका मनुष्यक बासक हेतु प्रतिकूल छैक . खेत-बारी आ पशुपालन सेहो असंभव छैक. अस्तु, एहि इलाका में सीमा सुरक्षाक व्यवस्था प्रतिद्वंदी राष्ट्र सामरिक खतरा आ प्रतिरक्षाक आवश्यकतानुसार करैत तं अछि, किन्तु, टेक्नोलॉजी आ स्थान-स्थान पर भूमिपर तैनात सेनाक माध्यमसं एक दोसराक गतिविधिपर नजरि अवश्ये  रखने रहैछ. नजरि रखबाक एहि प्रक्रियामें जं केओ कखनो ढील भेलैक कि अपन अधिकारक क्षेत्रक निरंतर विस्तारक हेतु लोभी, घात लगौने चीन अपन अनुकूल स्थानकें छेकि लैछ. दुनू प्रतिद्वंदी राष्ट्र सीमा क्षेत्रमें अपना सामरिक क्षमता बढ़यबाक हेतु आधारभूत संरचनाक निर्माण आ सुधार करिते रहैत अछि. एहि द्वन्दमें एक राष्ट्रक बढ़इत क्षमता आ संरचनाक दोसर पक्ष विरोध करैछ. विरोध जं प्रत्याशित परिणाम पयबामें विफल भ’ जाइछ तं सीमापर तैनात सीमा-बल वा सेना सबहक बीच हाथापाई, घूंसा-मुक्का भ’ जाइत छैक ; भारत-पाकिस्तान सीमा क विपरीत, पूर्वमें भेल समझौताक अनुसार भारत-चीन सीमा क्षेत्रमें सेना सबहक बीच गोला-बारूदक प्रयोग वर्जित छैक आ से नीके. तथापि,जखन स्थानीय स्तर पर मामिला नहिं फड़िछाइत छैक तखन बहुतो बात कूटनीतिक वा अन्ततः राजनितिक स्तर पर पहुँचैत छैक, जतय विवादक समाधानक बिना वर्षों धरि पड़ल रहि जाइछ. भारत-चीन सीमा विवाद एहने विवाद थिक. तें, 1962 में भारत-चीनक बीच संघर्षक पछाति 1988 में जखन दुनू देशक बीच सोझ राजनैतिक सम्पर्क आरम्भ भेलैक, दुनू सरकार विवाद तं स्वीकार केलक मतभेदकें दूर करबा जटिलताकें देखैत जहां दुनू देशक बीच आर्थिक, सांस्कृतिक आ वैज्ञानिक आदान-प्रदान बढ़इत गेलैक, सीमा-विवाद सुलझयबामें तेहन प्रगति नहिं भ’ सकलैक. समाधानक प्रयासक एना  बसियायब भारतक हितक प्रतिकूल आ निरंतर ज़मीन हथिययबाक चीनक हिस्सकक अनुकूल छल. विगत किछु वर्षक अनुभव कहैत अछि, दुनू पक्षक सीमा विवादकें सुलझयबा में असफलता भारतक हेतु अहितकर आ चीनक हेतु हितकर साबित भेलैये. एहि अवधिमें चीन भारतक संग व्यापार सं जे लाभ उठौलक से फूटे. आजुका तारीखमें भारत आ चीनक बीच व्यापार में भयानक असंतुलन छैक जाहि ले भारत चिंतित भले हो, तकर  सोझ समाधान तुरत तं नहिंए  टा छैक. संयोग सं जाहि सब स्थानपर- पेंगोंग झील, गलवान नदी घाटी, हॉट स्प्रिंग, आ देपसांगक पठार-  एखन पुनः भारत-चीनक बीच विवाद ठाढ़ भेल छैक, 1962 में सेहो एहि सब स्थान पर भारत-चीनक बीच युद्ध भेल रहैक.

आब एखनुका सीमा संघर्षक गप्प करी. एहि बेर भारत-चीन नियंत्रण रेखाक समीप  सीमापर चीनी सेनाक जमावक पहिल खबरि सरकारकें कखन भेलैक से तं सरकारक गोपनीय सत्य थिक. किन्तु, समाचार पत्रमें  दुनू देशक सेनाक बीच हाथापाईक पहिल खबरि मई 2020 में आयब आरम्भ भ’ गेल रहैक. सरकार एकर प्रति सजग छल हयत ताहि में संदेह करब तं उचित नहिं. किन्तु, कूटनीतिक स्तर पर एहि समस्याकें भारत सरकार कहिया आ कोन  रूपें  उठओलक तकर खबरि जनसामान्य कें नहिं छैक. किन्तु, ओहिसं एके हफ्ता पूर्व पूर्वी लद्दाखमें तैनात भारतीय आ चीनी सेनाक कोर कमांडर लोकनिक बीच वार्ता भेल छल. वक्तव्यमें  कहल गेल छल जे ‘दुनू सेना क्रमशः अपन-अपन पहिलुका स्थानपर वापस भ’ जायत’. ताहि पर सहमति भेल  छलैक. तथापि, परिणाम सामने अछि; 15 जून 2020 क रातिक संघर्षमें  16 बिहार रेजिमेंटक कमान अधिकारी कर्नल बी संतोष बाबू सहित बीस भारतीय सैनिकक वीर गति प्राप्त कयलनि.इएह घटना जनसामान्य, पूर्वसैनिक, कूटनीतिज्ञ  आ बुद्धिजीवीक मन में संका उत्पन्न करैछ. ताहि पर प्रधानमंत्री घोषणा केलनि जे ‘भारतक सीमा में केओ नहिं आयल छल’. फल ई भेलैक जे  सरकार समर्थक किछु समाचार चैनल एतेक तक कहि गेल जे एहि घटना हेतु ‘ सेना दोषी अछि, सरकार नहिं !’ हमरा-सन बहुतो बुद्धिजीवीले प्रधानमंत्रीक वक्तव्य जं आश्चर्यनक छल, तं मीडियाक  दोषारोपण असह्य. संयोगसं प्रधानमंत्रीक वक्तव्य पर प्रकाश दैत सरकार स्पष्टीकरण जारी केलक. किन्तु, ताधरि जे नुकसान हेबाक छलैक, भ गेलैक; चीनी मीडिया ‘भारतीय प्रधानमंत्रीक वक्तव्य प्रशंसा’ केलक. भारतमें राजनितिक पार्टी सब दोषारोपणक मोर्चा ठाढ़ करैत गेलाह. टी वी स्टूडियो सबमें टीवी ग्लेडीएटर लोकनि मोर्चा सम्हारलनि आ जनता COVID-19, बेरोजगारी, पेट्रोल-डीजलक बढ़इत दाम लड़बामें लागि गेल. फलतः, जनसामान्य ले एखनुक परिस्थिति अस्पष्ट अछि. संवाद लोकतंत्रक आत्मा थिकैक आ सरकार सं प्रश्न पूछब राष्ट्रक अधिकार. लोकतन्त्रमें  जनता सरकारकें राष्ट्र हितक आ सुरक्षा भार दैत छैक, किन्तु, राष्ट्र हित पर सरकारक एकाधिकार नहिं होइछ. तें, भूतपूर्व सेनानी, कूटनीतिज्ञक प्रश्नक उत्तरमें अपमानक जे संस्कृति भारतमें पनपि रहल अछि, से चीन-सन अधिनायकवादी समाजमें तं उचित  भ' सकैछ, भारतमें अक्षम्य अछि, से नहिं बिसरबाक थिक. 

आब आगू की हेतैक ? हमरा जनैत, चीनकेर व्यवहारमें परिवर्तन हेबाक आशा इतिहासक प्रतिकूल थिक. दृढ़प्रतिज्ञ आ सबल शत्रु सं सब सावधान रहैत अछि. एतबा अवश्य जे 1962 केर युद्ध आ ओकर पछाति, भारत केर नोकसान पहिनहिं भ’ चुकल छैक. आवश्यक छैक, एखन चीन  जाहि  विवादित इलाकाक अतिक्रमण कयलक  अछि वा जाहि पर दावा करैत अछि, भारत ओहि इलाकाकें खाली करयबाक हेतु चीन कें बाध्य करय. एहि हेतु उचित वातावरणक निर्माण आ दृढ़ता दुनू आवश्यक.  एकर अत्तिरिक्त हमरा लोकनिकें निरंतर अपन सामाजिक, आर्थिक आ सामरिक शक्ति बढ़बैत रहय पड़त; समाजक विभिन्न वर्गक बीच मतभेद आ टकराव राष्ट्रक संकल्प आ शक्ति दुनूकें क्षीण करैछ, से मोन रखबाक थिक. हमरा लोकनिकें सीमा पर सेहो सतर्क रहहिं पड़त. सीमा सुरक्षाक निगरानीमें टेक्नोलॉजीक भरपूर प्रयोग, सीमा क्षेत्रमें आधारभूत संरचनाक निरंतर निर्माण, सामरिक शक्तिक आधुनिकीकरण सं भारत अपन हितक रक्षा में सफल हयत आ  एके समय पर  चीन आ पाकिस्तान सं दूतरफा  आक्रमणकें विफल करबामें सेहो सफल भ’ सकैत अछि. अमेरिका, रूस वा यूरोपीय यूनियन एतय आबि हमरा लोकनिक समस्याक समाधान करत, से आशा जतबे असंगत, ततबे असत्य. ज्ञातव्य थिक, युद्ध द्वारा लद्दाख-सन इलाकामें सीमाकें बदलब ने सुलभ छैक, आ ने आजुक भारतीय सेना 1962 जकां साधनहीन अछि ; एखन सेना लग साधन, क्षमता आ दृढ़ता सब किछु छैक. राष्ट्र अपन हितक रक्षामें तत्पर अछिए.       



3 comments:

  1. बड्ड सटीक,निष्पक्ष आ वस्तुनिष्ठ आलेख । मुदा आजुक समय मे राष्ट्रक आंतरिक राजनीतिक पर्यावरण एतेक दूषित भ'गेल छैक जे सरकार आ विपक्ष दुनू अपन सम्पूर्ण मेधा आ शक्ति अपन विपक्षीसॅ लड़बामे वयय करैत अछि ।पूर्व सरकारक प्रशीतन मे पड़ल संवाद के पुन:जगबै लेल कैल प्रयास पर ऑगुर उठैत छैक तॅ विपक्ष एहि सरकारक व्यापारिक प्रवाहकें असंतुलन पैदा करबाक दोषी ठहरा जनता मे संशय बना देलकै । ऑकड़ाक अनुसार वर्तमान सरकार 34% धरि आयात बढ़ौलक । एहिसॅ राष्ट्रहितक दाबी कमजोर तॅ पड़िते छैक। एक सीमा धरि अपन जनता सॅ संवाद सेहो आवश्यक होइछ मुदा से नहि भ'रहलैक। एखन धरि चीनी कम्पनी कें धड़ाधड़ नब नब आर्डरक टाल लागल जा रहलैय ।किछु तॅ सोचऽ पड़तैक । नेपाल कोना हाथ सॅ बाहर भ'गेल ,ईहो विचारणीय अछि ।

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  2. अनेक धन्यवाद.

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  3. Dear Mohanji,
    you have said nothing about the landscape, difficulties in living and fighting in that region, state of our preparedness, comparison of the two countries' communication and transport systems in that area, support and medical care systems of the two countries for their troops in that region, etc which you alone know and know best. What you have said here is relevant, but the more interesting part is still unwritten. Would you mind doing it again, please?
    shreesh

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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

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