Tuesday, June 2, 2020

आन्हर

आन्हर

25 मार्च 2020. एकाएक सब किछु बन्न भ’ गेल: रेल-ट्रेन-मन्दिर-मस्जिद-गुरुद्वारा-दोकान-दौरी आ जीविका. देश संकल्प केलक कोरोनाक पयर आगू नहिं बढ़य देबैक. कोरोनासं बंचबाले लोक मुँह पर जाबी बान्हि लेलक. मुदा, पेट कोना बान्हि लेत. शहरमें रोजी अछि तं खोली अछि, रोजी अछि तं रोटी अछि. नहिं तं, खोलीओ बन्न आ रोटिओ बन्न. मुदा, भूख मानतै ! बस जकरा जेना भेलैक, मोटा-मोटरी उठौलक, धिया-पुताकें पंजियओलक, जनी-जाति जकरा संग छलैक आ नहिं छलैक, बिदा भ’ गेल.

गर्मीक मास. अकादारुन रौद सीमेंट, आ अलकतरा. तैयो जे बाट धेलक तकरा पहुँचबाक सुरता. मुदा, जे देखलकैक तकरा अधैर्य भ’ गेलैक. सरकार आ समाज किछु बन्दोबस्त केलक. मुदा, आकासे फाटत तं दरजी कतेक सियत !

अंततः, किछु गोटे कें रहि नहिं भेलैक. अर्जी ल’ कय माननीय सुप्रीम कोर्टक द्वारि  पर जा कय द्वारि खटखटौलक. गर्मीक मासमें तं सर्वोच्च न्यायालयमें तातिल होइत छैक. किन्तु, एहि बेर एहि विपत्तिमें हिनकर द्वारि खूजल छनि ! आवश्यक काजकें कात कय न्यायाधीश लोकनि गोहारि सुनलनि. किन्तु, सरकार बहादुरकें बड्ड तामस चढ़लैक. एहन सपरतिब. शिकायत करत. बस, राताराती महाधिवक्ता जगाओल गेलाह. आदेश भेटलनि. ब्रीफ तैयार केलनि, गाउन लेलनि आ  सुप्रीम कोर्ट बिदा भेलाह. दिल्लीक सड़क सूनसान छलैक. ई देखि सरकारी निर्देश आ पार्टी प्रवक्ता लोकनिक उक्ति पर विश्वास  दृढ़ भेलनि. कोर्टमें बैसाड़ आरम्भ हेबहिं पर रहैक कि महाधिवक्ता महोदय मौजूद भ’ गेलाह.  एहन विपत्ति, एहन चौकस सरकार आ ताहि पर सरकार पर आरोप. तामसे लाल महाधिवक्ता  शुरू भ’ गेलाह : ‘हमरा सरकारी आदेश अछि, हम शपथ पूर्वक कहैत  छी, आइ दिन एगारह बजे दिन में, अपन गाम-घर जयबाक प्रयासमें एहि देशमें एको गोटे  सड़कपर नहिं चलि रहल अछि. (माने, ई तं दिल्लीकें देखि हम कहिए सकैत छी.) राष्ट्रिय आ विभिन्न राज्यक आपदा प्रबन्धन विभाग सेहो अनेक आदेश निर्गत केने अछि आ डेग उठौने अछि. मजदूर सबले स्थान-स्थान भोजन आ आवासक व्यवस्था अछिए. अओर चाही की !’

आइ कोर्टमें सरकारी वकीलक दलीलक प्रायः आवश्यकताओ नहिं छलैक. न्यायमूर्तिं  लोकनि स्वयं एहिसं सहमत छलाह जे केंद्र आ राज्य सरकारक पहल पर शहर सबसँ मज़दूर लोकनिक पलायन पूर्णतः पर थम्हि गेल अछि. सरकारी व्यवस्था पर्याप्त छैक.  असल में न्यायमूर्ति लोकनि प्रत्यक्ष रूपें सरकारी व्यवस्था पर संतोष प्रकट कयलनि . उपर सं न्यायमूर्ति लोकनि कें अपना दिससं इहो चिंता रहनि जे महामारीक एहि संकटमें ( मज़दूरक पराभवक) मिथ्या  समाचार कोरोना वायरस सं बेसी घातक अछि. ताधरि विश्व स्वास्थ्य संगठनक मुखिया सेहो ई गप्प सत्यापित कय चुकल रहथि.तखन, सरकारके कथिक निर्देश आ कोन भर्त्सना ! तथापि, दू हफ्ताक पछाति न्यायमूर्ति लोकनिक चेतनामें कनेक कुचकुची भेलनि आ केंद्र सरकार कें कहलथिन, ‘फरियादी लोकनिक चिंता दूर करबाक हेतु उचित काररवाई करथि ’.

मोनाजिर मंडल आ चिन्मय मोहंती पछिला बेयालिस दिन सं चेन्नईमें फंसल छथि. चेन्नई ‘रेड जोन’ थिक. आन्ध्र आ तेलंगाना अपना राज्यमें संक्रमणक पसरबाक भयसं,  आ केंद्र सरकारक आदेशसं,  अपन इलाका बाटें सड़क बन्न केने अछि. लोक जायत कतय. मोनाजिर मंडल आ चिन्मय मोहंती दुनू गोटे शिक्षित छथि. किन्तु, चेन्नईमें मजदूरी सं पेट भरैत छथि. मोनाजिर मंडल प्रतिदिन मोबाइल बाटें आ अनकर मुँहे जे समाचार भेटैत छनि ताहि पर नजरि रखने छथि. कहुना एतय सं निकली तं. दुनू गोटे भगवान पर कम आ सर्वोच्च न्यायलय पर बेसी आस लगौने रहथि. मुदा, से आस जखन टूटि गेलनि  तं आब निश्चिंत भ’ कय भगवानक वा सरकारक भरोसे बैसल छथि. एकठाम बैसल- बैसल कतेक सुतताह. ताहि पर चिंतामें सुतली राति निन्न उचटि जाइत छनि तं समय-समय पर तं दुनू गोटे एक दोसरा सं गप्प करय लगैत छथि. दिनुका रौद  आ उमस में माथा काज नहिं करैत छनि.

एक राति दुनू गोटे बैसल रहथि. समुद्री पुरिवा एहि कोरोनाक अंधड़ आ धाहमें  सहृदय पड़ोसीक सहन्नुभूति-जकां बूझि पड़लनि. चिन्मय पूछय लगलखिन, ‘सेह. आइ थिकैक 2 जून 2020. हमरा लोकनि रोज हजारों कें एतय फंसल देखैत छियैक. लाखों हमरा लोकनिक आँखिक सोंझा देने एतयसं चोराइत - नुकाइत,  पैदल, साईकिलसं , ठेलापर, तिनपहिया आ ट्रक-ट्रेलरपर एही बाटें बिहार, उत्तरप्रदेश, उड़ीसा, बंगाल गेले. आ आइओ धरि जा रहल अछि. तखन दिल्लीमें दू मास पहिने कोना सरकारी वकील सपत खाकय कहलखिन, एखन  दिन में एको मज़दूर  सड़कपर नहिं चलि रहल अछि. मुदा, आश्चर्य तकर नहिं. आश्चर्य जे एतेक बड़का-बड़का जज लोकनि, जनिका सं दिन-दुनियाक कोनो खबरि नहिं छिपल छनि, से कोना सरकारक गप्प मानि लेलखिन, जखन एतहु बैसल-बैसल हमरो लोकनि दू माससं, भरि देशमें चौबीसों घंटा, पैदल जाइत लोकक धर्रोहि अपना आँखिक सोझां आ टी वी पर देखि रहल छी !

मोनाजिर मंडल भभाकय हंसय लगलाह. चिन्मय कें किछु बुझबामें नहिं अयलनि. पछाति, जखन मोनाजिरक हंसी थम्हलनि तं चिन्मयकें लक्ष्य क कय उपहास करैत-जकां कहलखिन,’ रे बोका, रे  चिन्मोय. तू साला इतना भी नहीं समझा ! छोबी देखता तो ? कोर्ट देखा ? जज के सामने का छोबी देखा ? रे बोका, छोबीके  हाथमें तराजू और चोख पर पोट्टी होता रे ! चोख बोन्न !! फुल आंधा !!!

चिन्मयक मुँह विवरण भ’ गेलनि. सोचय लगलाह, न्याय सत्ते आन्हर होइछ !


2 comments:

अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

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