Friday, June 5, 2020

समालोचना आ पाठकीय दृष्टि

समालोचना पाठकीय दृष्टि

समालोचना वा आलोचना साहित्यक स्तम्भ थिक. ई विज्ञान थिकैक; एकर व्याकरण, पद्धति आ परम्परा छैक. किन्तु, विशुद्ध मनोरंजन ले उपन्यास, कविता , कथा , नाटक  आ लेख पढ़निहार पाठक समालोचना पढ़िकय सामग्रीक चयन नहिं करैत छथि. तखन प्रश्न उठैछ, की समालोचना साहित्ये- जकां लेखकक हेतु केवल  मनोरंजनक विधा थिक ? वा ई साहित्य-लेखनक व्यवसायसं जुड़ल व्यक्तिक बीच एक दोसराक दल में हेबाक, वा एक दोसरासं बदला सधयबाक, वा परस्पर प्रशंसा वा निंदा करबाक रंगमंच वा अखाड़ाक अतिरिक्त, किछु आओर  थिक ? एहि लेखमें हम एही किछु विन्दु पर विचार करय चाहैत छी. गूढ़ ग्रंथकनामूलं लिख्यते किंचित् नानपेक्षितमुच्यते’- सदृश भाष्यकार आ हुनक कृतिक उपादेयता एहि लेखक परिधि सं बाहर अछि.

अस्सीक दशकमें एकटा हिंदी सिनेमा आयल रहैकनिकाह. ओ सिनेमा खूब सफल भेलैक आ ओकर गीत सब खूब सेहो लोकप्रिय भेल.  एहि सिनेमा में सलमा आगा नामक हिरोइन पहिले बेर सिनेमाक पर्दा पर आयल रहथि. गीत सब सेहो ओएह गओने रहथि.  मुदा, जखन अभिनेत्रीक रूपमें सलमा आगाक चर्चा भेलनि, तं, केओ हुनका  ज्यामितीय सुन्दरी (geometric beauty) कहि देलखिन. मने, नाक ठाढ़ छनि,ठोर  पातर छनि, गाल पुष्ट छनि, गरदनि सुरेबगर छनि, केश सघन आ कारी छनि, मुदा, सब किछुकें मिलाकय पूर्णतामें सुन्दरताक बोध नहिं होइछ. तहिना, सकैत अछि, साहित्य, शिल्प- भाषा, कथानक, कथ्य, कथोपकथन आ संदेश- क दृष्टियें संतुलित हो, किन्तु, लोकप्रियताक तराजू पर झूस साबित हो. तें, सामान्य धारणा छैक, पुरस्कृत पोथी , आ फिल्म कदाचिते लोकप्रिय होइछ.  अर्थात्, आलोचना आ पुरस्कारक भिन्न-भिन्न मानदंड होइछ. प्रोफेसर श्रीश चौधरी कहैत छथि, ‘ इतिहास कहैत अछि, लार्ड अल्फ्रेड टेनिंन्सन आ विलियम वर्ड्सवर्थ कें छोडि ( इंग्लैंडमें ) कदाचिते कोनो  राज-कवि ( poet laureate ) अपना समयक पछाति साहित्यमें सुपरिचित छथि.’ अर्थात् पुरस्कार पुरस्कृत कवि लोकनिकें अमर बनयबामें समर्थ नहिं भेल ! किन्तु, रचनाक लोकप्रियता साहित्यकार लोकनि कें अवश्य अमर करैत आयल छनि. इहो तथ्य समकालीन समालोचना-पुरस्कार आ लोकप्रियताक दू टा भिन्न बाटक संकेत थिक. अस्तु,  साहित्यक समालोचनाक मानदंड  आ साहित्यक लोकप्रियताक बीच सम्बन्ध फरिछयबाक आवश्यकता हमर प्रतीत होइत अछि. एहि विषय आरम्भ हम 90क दशकमें पुरस्कृत एकटा मैथिली कविता-संग्रह सं करब.   सर्वविदित अछि, वैद्यनाथ मिश्र-यात्री-नागार्जुन अपन विशिष्ट शैली, कृति आ बेछप व्यक्तित्वक कारण प्रसिद्द छथि. वर्ष 1995में जखन मैथिली भाषाककविता-कुसुमांजलिनामक ग्रन्थ पर साहित्य अकादमीक पुरस्कारक घोषणा भेलैक तं नागार्जुन कहि देलखिन, ‘ अमुक कविमें काव्य-बीज नहिं छनि !’ एकरा कविक साहित्य पर साहित्यकारक उक्ति बुझू वा लोकप्रियताक मानदंडपर साहित्यक तौल, से अहाँपर निर्भर अछि.

ई सत्य थिक, साहित्यमें कविताक पाठक सबसं कम होइछ. एखनुक युगमें तं आओर कम. लार्ड मेकॉले तं एतेक धरि कहि गेल छथि, ‘सभ्यताक विकासक संग, कविताक ह्रास होइत जाइछ - Civilization advances, poetry declines.’ से नहिओ होउक तथापि हमरा नहिं बूझल अछि, अनेक भाषाक पुरस्कृत साहित्यक समाजमें कतेक मांग छैक. किछु पोथी तं पुरस्कारक ठप्पा आ मार्केटिंग सं अवश्य बिकाइत हेतैक. तथापि,एतबा तं अवश्य जे पुरस्कृत कृति निर्णायक-मंडलक दृष्टिमें निर्धारित कालखंड मे प्रकाशित कृति सब म सं अव्वल होइछ. तथापि, निर्णायक-मंडलक सदस्य लोकनिक पुरस्कृत पोथी पर दसो पांतीक , फूट-फूट समीक्षा लिखबाक परिपाटी छैक कि नहिं, से हमरा ई नहिं बूझल अछि. इहो कहब असम्भव जे पी एच-डी क थीसिस के जं  छोडि दी, तं, कहब कठिन, जे  पुरस्कृत पोथी सब म सं कतेक पर समीक्षा लिखल जाइछ.

आब एकटा दोसर विन्दु.   विन्दु पोथीक लोकप्रियता आ आलोचनाक परिणामक बीच अंतर सं सम्बन्धित अछि :   समकालीन साहित्यक आलोचना  आ समाजक व्यवहारमें निरपेक्षता असम्भव नहिं, तं, कठिन अवश्य छैक.   कोर्ट-कचहरी सं ल कय पुरस्कारक निर्णयमें सेहो जूरीक परिपाटी एकरे समाधान-जकां थिक. तथापि, आवश्यकता छैक साहित्य, साहित्यक तौलबा भजारबाक निकतीपर अवश्य चढ़य. प्रायः, चढ़ितो अछि. किन्तु, तकर समय सीमा नहिं छैक. तें, कतेको बेर सैकड़ों वर्ष अपरिचयक अन्हारमें पड़ल साहित्य एकाएक धूमकेतु-जकां जं नहिओ, तं क्रमशः कालजयी कृतिक आसन पर बैसि जाइछ. किन्तु, तकर निर्णय समाज करैत अछि. तहिना, की साहित्यक समालोचना द्वारा कृतिक लोकप्रियताक भविष्यवाणी  सम्भव छैक ? नहिं, तं, कि साहित्यिके समालोचना-जकां पाठकीय समालोचनाक नव विधाक आरम्भ करबाक औचित्य छैक ? जं, हं, तं, कोना ? 

ई विदित अछि आम पाठक लोकनि लिखबाक पचड़ामें नहिं पडैत छथि. तथापि लोकप्रिय साहित्य पर लिखित  वा मौखिक  पाठकीय प्रतिक्रिया आ औपचारिक समालोचनाक अध्ययन सं सम्भव अछि, साहित्यक मूल्यांकनक  कोनो मध्य मार्ग स्थापित हो . एहि सम्भावनाक  अन्वेषण हेबाक चाही.

विदित अछि, साहित्यिक समालोचनाक विधाक खेतिहर  साहित्यकार  थिकाह.  समकालीन समालोचककें बिरादरीमें भाई-भतीजाबाद सं ऊपर उठब कठिन छैक . भाग्यवश, पाठक  एहि बिरादरीक हिस्सा नहिं थिकाह. ओ पढ़बाक व्यसनसं, चाह-काफी-सिगरेट-वा शराब-जकां पोथी किनैत छथि. तें, नीक लागल तं नीक. अधलाह, तं, थूकि देल. पैसा बेकार भेल, भेल. तें, पाठकीय प्रतिक्रियामें लोभ-लाभ (conflict of interest)क दोष नहिं अबैत छैक. समकालीन समालोचक ले एहि लोभ-लाभक विषय सं ऊपर उठब जं असम्भव नहिं, तं,  कठिन अवश्य.  जे समकालीन समालोचक एहि सं ऊपर उठैत छथि ओ तं चाहे नवसिखा थिकाह, जनिका लोक मोजर नहिं दैत छनि, अथवा ओ  कालिदास थिकाह जे ओही ठारि पर कुड़हरि बजारैत छथि जाहि पर चढ़ल छथि. एहि सं भिन्न तेसर कोटिक निरपेक्ष समालोचक प्रशंसनीय थिकाह. किन्तु, एहि सब कोटिक समालोचक जं अंततः अपन आलोचनाक तुलना पाठकीय प्रतिक्रिया एवं सत्साहित्य पढ़निहार पाठकक बीच पोथीक लोकप्रियतासं करथि तं आलोचना साहित्यमें प्रायः नव परिपाटीक उत्थान होइत.    

 

2 comments:

  1. एहितरहक श्रेष्ठ लेख केर आवश्यकता मैथिली के छैक,,हमरा त एहिमे कतहु दुराव नहि लागल..

    ReplyDelete

अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

हिन्दुस्तान का दिल देखो