Friday, May 7, 2021

पांडिचेरी में आठ वर्ष -1


नीलबेम्बू कुडिनीर’ काढ़ाक एक बोतल हमरा जीति लेलक   

उत्तर भारत अथवा दक्षिण, हमर बास सब दिन पर्यटनक दृष्टिए प्रसिद्द शहरे में होइत रहल : चण्डीगढ़, दिल्ली, शिमला, बंगलोर,लेह, लखनऊ आ आब पांडिचेरी. सत्यतः, हम पांडिचेरी पहिनहुँ आयल रही ; 1999-2002 ई. क बीच जहिया हम बंगलोर में रही, चेन्नई- पांडिचेरी घुमबाले आयल रही. पछाति, 2012 में महात्मा गाँधी मेडिकल कालेज आ रिसर्च इंस्टिट्यूट में नेत्र-चिकित्सा विभागक प्रोफेसरक रूप में नियामिक रूपें पांडिचेरी अयलहुँ.

पांडिचेरी अनेक अर्थमें भारतक आन शहर सबसँ भिन्न अछि ; इतिहास, भूगोल, आ स्थानीय संस्कृति, सबमें. आ से नहिं रहैत तं क्रांतिकारी युवक, सिद्धहस्त कवि-लेखक आ गहन चिन्तक-साधक अरविन्द घोष पांडिचेरीए कें अपन आश्रमक हेतु किएक चुनितथि. हं, ओहि समय में अरविन्द तत्कालीन ब्रिटिश शासनक नजरि में सजायाफ्ता क्रांतिकारी रहथि. ते, ओ फ्रांसक नियंत्रणक क्षेत्र अपनाले चुनने रहथि सेहो महत्वपूर्ण थिक.

पुदुच्चेरी  केन्द्रशासित प्रदेशक रोचक भूगोल सेहो बहुतोकें  बूझल नहिं हएत. पांडिचेरी प्रदेशक क्षेत्र, एक दोसरासँ दूर-दूर, चारि भिन्न-भिन्न स्थान पर अछि. राज्यक भूभागक एहन स्थितिक उदहारण विरले भेटत. पांडिचेरीक भूभाग म सँ  यानम ( आंध्र प्रदेशक तट पर ), पांडिचेरी आ करैक्कल ( तमिलनाडुक तट) भारतक पूर्वी तट पर, आ माहे (केरलक तट) भारतक पश्चिमी कछेर पर अछि. तथापि, पर्यटक वा मेडिकल-शिक्षाक क्षेत्रमें काज कयनिहार ले  सामान्य अर्थमें पांडिचेरी शब्दसँ, राज्य केर मुख्यालय पांडिचेरीए जिलाक बोध होइछ, जे  अरविन्द घोषक आश्रम-स्थली, औरोविल नामक अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिक गामक क्षेत्र, आ अंतर्राष्ट्रीय पर्यटनक केंद्र-विन्दु थिक. एतय तमिल मुख्यभाषा थिकैक. यद्यपि, एतय किछु फ्रेंच भाषी सेहो भेटिए जेताह. कारण, तमिल केर अतिरिक्त फ्रेंच भाषा पुदुच्चेरी राज्यक दोसर सरकारी भाषा थिक.पांडिचेरी जिलाक भूभागक सीमा सरल रेखा-जकां नहिं भेने,पांडिचेरी जिलाक भीतर यात्रा करैत तं अहाँ कतेक बेर पांडिचेरी सबसँ तमिलनाडु , आ तमिलनाडुक क्षेत्र में पैसब आ बहरायब ! एकर अनुमान अहाँकें सरकारी प्रतिष्ठानक साइन बोर्ड वा गाछ वृक्षक प्रकारमें अन्तर देखि कय बुझबामें आओत. तमिल लिपि तं सबठामे देखबैक. महात्मा गाँधी मेडिकल कालेज आ रिसर्च इंस्टिट्यूटक परिसर पांडिचेरी शहरक क्षेत्रक भीतर, किन्तु, शहरसँ बाहर पांडिचेरी आ तमिलनाडुक कडलूर जिलाक मुख्यालय, कडलूर शहरक बीच पड़ैछ.

हम 14 नवंबर 2012 क पांडिचेरी पहुँचल रही. ओहिसँ ठीक चारि दिन पूर्व - 09 नवम्बर 2012क - हम मणिपाल मेडिकल कालेज, पोखरा, नेपालसँ कार्यभार मुक्त भेल रही.13 नवंम्बर 2012 क दीपावली रहैक . प्रायः एखन धरि केवल ओही वर्ष हमरा लोकनि आशियाना नगर, पटनाक अपन फ्लैट में दीपावली मनौने रही. दोसर दिन भोरे पटनासँ चेन्नई विदा भेल रही. मोन अछि, चेन्नई एअरपोर्टसँ  पांडिचेरी शहर केर करीब 175 किलोमीटर केर दूरी कालेजक ड्राइवर केवल पौने तीन घंटा में ल अनने छल. ज्ञातव्य थिक, प्रति वर्ष होइत दुर्घटना आ सड़क दुर्घटनामें होइत मृत्युक संख्याक दृष्टिए, चेन्नई आ पांडिचेरीकें जोडैवला ईस्ट कोस्ट रोड भारतक सबसँ बेसी खतरनाक सड़क  थिक.

हमरा लोकनि जखन पांडिचेरी पहुँचल रही तं रातिक पौने एगारह बाजि गेल रहैक. एतावता, पोखरामें पूरा घर समेटबाक काजसँ ल कए, पटना घर धरि केर साफ़-सफाई आ नेपाल-पटना आ चेन्नईक एतेक लम्बा यात्राक कारण नीक थकान भेल छल. संयोगसँ  आरंभिक तीन दिन में रहबाक व्यवस्था होटल में छल आ जयबाक हेतु अस्पतालक गाड़ी रहय. तें दोसरे दिन 15 नवम्बर 12 क जा कय अस्पताल में ज्वाइन कयल आ काज आरम्भ भए गेलैक. किन्तु, पांडिचेरी पहुँचैत-पहुँचैत हमर पत्नी कें डांडक भयानक दर्द आरम्भ भ’ गेल रहनि. ई एकटा नव समस्या छल. किन्तु, सुख वा दुःख, जवान, मध्य वयस वा वृद्ध एखन सब कें निमहता अपनहिं करय पडैत छनि. सेह कयल. 

17 नवम्बर 12 शनि दिन छलैक. हमरा प्रशासनसँ सूचना भेटल जे होटल रूम केर हमर बुकिंग रवि अठारहे तारिख धरि अछि. माने, रवि दिन डेरा में शिफ्ट हयब अनिवार्य छल. कालेजक इलाकामें डेरा अलॉट भइए गेल छल. मुदा, सामानक नाम पर हमरा सब लग केवल दू टा सूटकेस छल. हवाई जहाजमें एहि सबसँ बेसी जे किछु सामान अनने रही तकर भरपूर किराया पटनामें लागिए गेल छल. वस्तुतः, हमरा लोकनि लखनऊसँ पोखरा सेहो अहिना गेल रही. अस्तु, बाज़ार जा कय बेसिक फर्नीचर किनल आ ओकरा डेरामें राखि अयलहुँ. पोखराक विपरीत एतुका क्वार्टर में फर्नीचरक नाम पर किछु रहबे नहिं करैक. खरीददारीक कालमें, भानस करबा ले  बिजली पर चलबाबला एकटा इंडक्शन स्टोव सेहो किनि लेलहुँ. रवि दिन भोरे एकटा टैक्सी कयल आ होटलसँ  विदा भए डेरा आबि गेलहुँ. सुतबा ले बिछाओन, भानस करबा ले स्टोव आ राशनक सामग्री छले. जीवन में पहिल बेर भानस-भात आ पीबाक हेतु पानिक व्यवस्था करय पड़ल. ई नव अनुभव छल. ओहि दिनुक दुपहरियाक भोजन ले पर्याप्त चूड़ा आ दही कीनी नेने रही. बस, गृहस्थी आरम्भ भ’ गेलैक. पछाति, टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन, माइक्रोवेव इत्यादि किनल. खबासनी राखल. हमर बेटा अमिय आ पुतहु, अदिति जखन बंगलोर सं अबैत गेलीह तं घरकें कनेक-मनेक सजायब सेहो भेलैक. किन्तु, ई सब तं सामान्य भेल. सैनिक-अफसरक रूपमें हमरा लोकनि सत्यतः सबदिने खानाबद्दोशक जिनगी जिबैत आयल छी.

किन्तु, पांडिचेरी शुरूएमें एक झटका दए देलक. हमरा पांडिचेरी पहुंचलाक अफिले हफ्तामें डेंगू बुखार भए गेल. वस्तुतः, भारत में आब कतहु जायब, मच्छड़- महिस आ गाय-गोरु सब ठाम भेटत. मच्छड़ भेटत तं, मलेरिया, फैलेरिया, डेंगू, चिकुनगुन्या, स्वाइन फ्लु सोहाग-भाग थिक ! पहिने सब शहर में पीबाक पानि मुफ्त भेटैत रहैक, आब जहियासँ  पानि बोतल में बिकाय लागल, केवल मच्छड़ आ बुखार मुफ्तमें भेटैत छैक ! से हमरो भेटल. हम सोचल चलू, दरभंगे में छी. किन्तु, हमर पत्नीक मनोभाव पर एकर एकटा भिन्न असर भेलनि. ओहि वर्ष 2012 में तमिलनाडुक केवल मदुरै शहरमें डेंगू सँ करीब दू सौ व्यक्तिक जान गेल रहैक. मुदा, हमरा रोगसँ हठे भय नहिं होइत अछि. चिकित्सकक रूपमें हमर चिंतन रोग-व्याधिमें हमरा सबसँ बड़का बल प्रमाणित होइछ. मुदा, हमरा विभागमें लोक नीक-जकां जनितो नहिं छल. तथापि, हमार सुखद आश्चर्य तखन भेल जखन वर्त्तमान विभागाध्यक्ष डाक्टर श्रीकान्त, अपने मोने, हमराले सिद्ध चिकित्साक प्रणालीक, डेंगूक हेतु गुणकारी औषधि-‘ नीलबेम्बू कुडिनीर’- नामक  काढ़ाक एक बोतल, हमराले कीनि कय अनने रहथि. हुनक एहि सौजन्यसँ  हमरा तहिया भान भेल छल जे हम अपन परिवारक बीचे आबि गेलहुँ-ए. हुनक ई गुण हम से कोना बिसरबा योग्य नहिं छल.  

हम एतेक ठाम भारत देखल, हमर धारणा अछि, भारतमें सबठाम लगभग एके प्रकारक लोक भेटत. यद्यपि, सब  दोसरा कें अपनासँ भिन्न कहत, आ निम्न क कए बूझत. तथापि, व्यक्तिगत स्तर पर बाहरी लोककें स्थानीय लोक संदेहक दृष्टिसँ तखने देखैत छैक, जखन अपन जीविका पर खतरा बूझि पड़ैत छैक. जिलाक कलक्टर जं तमिल हो तं ककरा परिबाहि छैक. किन्तु, संगमें काज केनिहार किरानी पटनाक हो तं कहबैक, ‘ ओकर गप्प करै छी, धुर ! ओहि मगहियाक ! एहन अनुभव हमरा भारतीय सेना, नेपाल , आ पांडिचेरी में सेहो भेल. मुदा, एकर कारण केवल ओहि व्यक्तिक असुरक्षाक भावना प्रतीत भेल छल, जनिका हमर ओतय गेला पर अपन कुर्सी पर खतराक अनुभव भेल छलनि. मुदा, जन सामान्यमें हमरा कतहु एहन भावना कदाचिते देखबा में आयल. जे किछु.

सत्यतः, पांडिचेरी अयलाक बाद अस्पतालक बाहर सबसँ  बेसी असोकर्य भाषाएसँ  बूझि पड़ल छल. यद्यपि, तमिल वर्णमाला आ तमिलक किछु परिचयात्मक वाक्यसँ हम ओतबे दिनसँ  परिचित छी, जहियासँ संत तिरुवल्लुवरसँ . तथापि, शहरक भीतर आ दोकान-दौरी-होटल-अस्पतालमें मोटामोटी अंग्रेजीसँ काज चलि जाइत छल. बंगलोर, हैदराबाद आ केरल केर विपरीत, एतय हिन्दीक प्रयोग नगण्य. तें, टेम्पो-टैक्सी ड्राइवर, दोकानदार  आ तरकारी बेचनिहारक संग गप्प कोना करब. कखनो तामसो होइत छल; ककरो अंग्रेजी किएक नहिं अबैत छैक. मुदा, दरभंगा टावर पर चाह-पानक दोकानदार वा गुदरी बाज़ारक कुजडनी अंग्रेजी बजलासँ चाह वा तरकारी किनि सकब ! ई सोचला पर तामस कर्पूर भए उड़ि जाइत छल. संगहि, हमर संकल्प तं तमिल सिखबाक छल. तथापि, तुरत काज कोना चलत. टेलीफोनक लाइन मैनसं फ़ोन पर गप्प कोना हयत, फ़ोन पर गैस कोना बुक करब, बाहर सबसँ रोगी फोन करत तं कोना जवाब देबैक ! क्रमशः, हम तकरो समाधान निकालल. मुदा, एहि ले हम अपन सहकर्मीक सहयोगेक बड़ाई करबनि. जहाँ कोनो तमिलभाषीक फ़ोन आबय हम फ़ोन अपन सहयोगी लोकनिके थम्हा दियनि. डेरा पर हमर बगलगिर प्रोफेसर आ हुनक पतिदेवक सहायता भेटय. फलतः, कहियो अशक्त-जकां अनुभव नहिं भेल. आ हम देश सं दूर छी, से कचोट कहियो नहिं भेल !      


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