Tuesday, May 25, 2021

सिद्धार्थ गौतम बुद्ध केर पदचिन्ह पर चलैत

                                                 सिद्धार्थ गौतम बुद्ध केर पदचिन्ह पर चलैत

सिद्धार्थ गौतम जन्मसँ राजकुमार रहथि. मनन आ चिंतनसँ ओ बुद्ध भए गेलाह. पछाति, हुनक अनुयायी लोकनि हुनका महात्मा, भगवान, आ अवतार, सब किछु बना देलखिन. तथापि, समाज हुनका जे किछु बूझनु, गौतम रहथि तं समाज सुधारक. हमरो लोकनि नेना मे बुद्धक खीसा किछु एहिना पोथीमें पढ़ैत रही. हं, दोसर गप्प जे हमरा मोन अछि, से छल एकटा प्रश्न जे शिक्षक लोकनि हमरा लोकनिसँ  पूछथि : बिहारक नाम ‘बिहार’ किएक पड़लैक. एकर उत्तर – ‘पहिने एहि क्षेत्र में अनेक बिहार सब रहैक’- सेहो छात्र लोकनि  सुग्गा-जकां सुनथि आ सएह जवाबो देथिन. मुदा, ककरो मन में ई नहिं अबैक जे संस्था-बिहार- पहिने बहुतो ठाम छलैक , से कतय चल गेलैक ! ततबे नहिं, जं बुद्ध भगवान छथि तं हुनकर मन्दिर कतहु किएक नहिं छनि !! ई गप्प ने शिक्षक पढ़बथिन, आ ने छात्र पुछथिन. हमरो मन में ई प्रश्न छात्र जीवन में कहियो नहिं आयल. हमरा लोकनिक मोन में प्रश्न किएक नहिं उठैत छल, प्रायःतकर कारण ताकब कठिन नहिं; जाहि परिवारमें ढेर लोक रहतैक ताहि ठाम अनुपस्थित सदस्यक खगता लोक कें कदाचिते अनुभव होइत छैक. हमरा लोकनि कें छत्तीस करोड़ देवताक अतिरिक्त शीतला माता, नाग-नागिन, डिहबार- सलहेस, धरमराज की नहिं रहथि ! तखन जं बुद्ध नहिए छथि, तं कोन खगता. तथापि, बुद्ध केर शिक्षाक जे मूल विन्दु सब रहनि से हम प्राथमिके वर्गमें कंठस्थ कए नेने रही. कारण, ओहि सब म सँ  अनेको - सत्य बाजब, चोरि नहिं करब, अनका दुःख नहिं देब- हमरा रुचैत छल. तथापि, जाधरि हम मैट्रिकक परीक्षा नहिं देलहुँ, बुद्धक विषयमें हमरा एतबे धरि ज्ञान भेल छल जे सिद्धार्थ गौतम राजा शुद्धोदनक पुत्र रहथि.हुनका बोधगया में कठिन साधनासँ ज्ञान प्राप्त भेलनि आ ओ ‘बुद्ध’ कहयलाह . गया तं हिन्दुओ लोकनिक तीर्थ छले. मिथिलांचलसँ माता-पिताक मृत्युक पछाति, जेठ बेटा सुविधानुसार गया जा कय फल्गू नदीक तट पर पिण्डदान कय माता-पिताक मुक्तिक दायित्व पूर्ण करैत रहथि आ गाम वापस आबि गौआं-सौजनिया ले भोज करैत रहथि.

1971 वर्षमें हम मैट्रिकक परीक्षा देल. परीक्षाक पछाति, पहिल बेर पटना जेबाक अवसर भेटल. ओही बेर जेठ भाई लोकनिक संग गया-बोधगया सेहो गेलहुँ. पछाति, 2005 में सारनाथ, 2006 में उत्तरप्रदेश में कुशीनगर गेलहुँ, आ  2008 में बुद्धक जन्म-स्थान लुम्बिनी, नेपाल जा कय बुद्धसँ जुड़ल चारू  पवित्र तीर्थक यात्रा समाप्त भेल. पछाति तं भारतसँ  बाहर सेहो बुद्धक उपस्थितिसँ परिचय भेल. मुदा, तकर  गप्प एतय नहिं.

महत्मा बुद्ध: महाबोधि मन्दिर, बोधगया 

संयोग एहन छल जे बुद्ध हमर चेतनामें बाल्य-कालहिं एकटा महापुरुषक स्थान ल चुकल रहथि, आ ओ भौतिक रूपें सेहो हमरा संग-संग चलैत गेलाह. इहो संयोगे छल जे 1983 में जखन हम सेनामें योगदान कयल तं हमर पहिल पोस्टिंग तिब्बती शरणार्थी लोकनिक संग भेल. ओ लोकनि भारत कें पवित्र देश आ भारतीयकें गुरु-जकां बूझैत रहथि. एतेक तक जे तिब्बती सैनिक आम भारतीय सैनिकक नामक पाछां गुरु जोड़ि देथिन, जेना, शर्मा गुरु, आदि. बौद्ध लोकनिक संगक अनुभव कें हम अपन कथा आ संस्मरण में आनो ठाम लिखने छी. तें, एतय ओकर दोबारा कहब आवश्यक नहिं. तिब्बती शरणार्थी लोकनिक संग छोड़लाक करीब चौदह वर्ष बाद हम लद्दाख़ पहुँचलहुँ. लद्दाख़में भगवान-भगवतीक पूजा-स्थल नाम पर चाहे तं बुद्ध केर मन्दिर रहनि,  वा मस्जिद. लद्दाख़क अढ़ाई वर्षक प्रवासमें पुनः हम बुद्धकेर पद-चिह्नक अनुगमन करैत रहलहुँ . आब पछिला आठ वर्षसँ दक्षिण भारत में छी. एतय बुद्ध केर प्रत्यक्ष दर्शन तं कतहु नहिं हयत, किन्तु, सुदूर अतीतसँ अबैत ध्वनि कें जं नीकसँ अकानबैक तं बुद्धक स्वर सुनबामें अवश्य आओत.ओकर विस्तारसँ चर्चा पछाति फूट हेतैक. तें, ओकर गप्प एतय नहिं. एतय लुम्बिनी, बोधगया, सारनाथ आ कुशीनगरक यात्राक छोट-छोट झलक देब हमर उद्देश्य अछि.

हम जहिया लुम्बिनीक बौद्ध तीर्थ गेल रही, 2008 साल रहैक. नेपाल में राजतन्त्रकेर  सूर्य अस्त भय गेल रहैक आ कम्युनिस्ट लोकनिक लोकतंत्रिक सरकार सत्ता में छल. ओतय पुनः चुनाव हयबा ले रहैक. हमरा लोकनि छुट्टीमें पोखरासँ  पटनाक बाट में रही. सोचल लुम्बिनी सेहो देखि ली. सोनौली बॉर्डर लग नेपालक ‘प्रकाश’ नामक होटल में डेरा छल. रिक्शा लेलहुँ आ लुम्बिनी दिस विदा भ’ गेलहुँ. हम जतय कतहु जाइत छी जकरासँ भेंट भेल, किछु गप्प- सप्प करय लगैत छी. रिक्शावाला हिंदी-भोजपुरी भाषी छल. पुछ्लिऐक : एहि बेर ककरा भोट देबैक, कम्युनिस्ट कें, कि नेपाली कांग्रेस कें ? रिक्शावाला रिक्शा चलयबाक व्यवसाय करैत छलाह, किन्तु, बुद्धि में थोड़ नहिं छलाह. कहलनि, ‘उकासी आयगा, तब न मुँह खोलेंगे !’ हमरा अर्थ लागि गेल ! हम सोचल एखन नीक हयत जे हिनकासँ  लुम्बिनीएक गप्प करी, आ एहि ऐतिहासिक स्थलक दर्शने करी.

सिद्धार्थ गौतमक जन्मस्थल 

सरोवर जतय सिद्धार्थकें नहाओल गेल रहनि 

नेपाल आ भारत पड़ोसी अछि. किन्तु,जखने सीमा पार करब अंतर देखबा में आओत. भारतमें जोगबनी-सुनौली-रक्सौल गंदगीसँ भरल; गंदगीमें बिहारमें रक्सौल सबसँ अव्वल. विराटनगर-भैरहबा-वीरगंज साफ-सुथरा आ चिक्कन-चुनमुन. लुम्बिनी तं अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थान थिक, तें सहजहिं साफ़-सुथरा. ओहुना ई महानगर तं थिकैक नहिं. गाम सब दूर दूर छैक. एतय हमरा लोकनिक पर्यटनक केंद्र-विन्दुमें छल महात्मा बुद्ध केर जन्म-स्थान. एहि ठाम अनेक पुरातात्विक अवशेष आ पवित्र स्थल सब छैक जाहि में सबसँ  प्रमुख थिक ओहि भवनक भग्नावशेष, अवशेषक भीतर ओ स्थान जकरा सिद्धार्थ गौतम  केर माताक पेटसँ बहरयबाक स्थल-जकां चिन्हित कयल गेल छैक. इतिहास विदित अछि, सिद्धार्थ गौतम केर जन्म गाछ तर भेल रहनि. सम्भव छैक, पछाति राजा महराजा लोकनि ओतय भवन-निर्माण कयने होथि जे आब ध्वस्त भय गेल छैक. समीपे में एकटा सरोवर छैक जाहि में जन-श्रुतिक अनुसार शिशु सिद्धार्थकें पहिल बेर स्नान कराओल गेल रहनि. एकर अतिरिक्त एहि ठाम अनेक भवन आ उद्यानक भग्नावशेष छैक. बुझबाक थिक, बुद्धकेर जन्मक पछाति पिछला पचीस सौ वर्षमें कतेक राजा आ सामंत अपन आस्थाक प्रतीक बुद्ध केर जन्म भूमि में कतेक निर्माण करओने हेताह, कतेक उत्सव मनओने हेताह आ ओहि निर्माण में कतेक पुरान घर खसल हयत. तथापि, एहि सब स्थानक वर्णन चीनी तीर्थयात्री आ लेखक फाहियान आ ह्वान त्सांगकेर यात्रा-वृत्तांतमें अछि.

सर्वविदित अछि, प्रागैतिहासिक समयसँ एखन धरिक सब राजा, सामंत आ प्रशासक अपन कार्य आ निर्माणसँ पहिलुक कृति आ निर्माणमें उत्कृष्टताक रंग टीप करैत छथिन.बुद्ध केर निरंतर स्मरणहिक फल थिक जे बुद्ध एखनो लोककें स्मरण छथिन. ककरो, महात्मा-जकां, ककरो ईश्वर-जकां, आ ककरो सनातन धर्मक शत्रु-जकां !

हमरा सर्वदा ई जिज्ञासा रहल अछि जे बुद्ध केर समय में ओ क्षेत्र केहन छल जतय ओ साधनामें बैसल छलाह आ ज्ञान प्राप्त केने रहथि. विदेशी पर्यटक फाहियान आ ह्वेनत्सांगक वृत्तांत आ तारानाथक इतिहास क्रमशः भारतमें बौद्ध परम्पराक पुरान इतिहास सब थिक. किन्तु, फाहियान आ ह्वेनत्सांग सेहो  बुद्धकेर मृत्युक अनेक शताब्दीक पछाति भारत आयल रहथि. फाहियान आ ह्वेनत्सांग अपन वृत्तांतमें बुद्धसँ सम्बन्धित प्रत्येक स्थलक वर्णन कयने छथि. हुनका लोकनिक वृत्तांतमें बाटमें पड़ैत आनो स्थान सबहक वर्णन अछि. भाषाक दुरूहता, विभिन्न अनुवादक विपर्यय आ दीर्घ कालक कारण बहुतो स्थान कें चिन्हब कठिन छैक. तथापि, फाहियान आ ह्वेनत्सांग भारतीय महाद्वीप में ततेक समय बितौने रहथि जे बुद्धसँ सम्बन्धित कोनो स्थान आ ओही दिनुक जनश्रुतिक चर्चा हुनका लोकनिसँ छूटल नहिं छनि.


महाबोधि मन्दिर 

बोधि वृक्ष आ बज्राशन- ओ चबूतरा जाहि पर बैसि सिद्धार्थ साधना केने रहथि 

आब बोधगया पर आबी. फाहियान 399 ई. सँ 412 ई. धरि चीन, मध्य एशिया,भारत, दक्षिण आ दक्षिण-पूर्व एशियाक यात्रा केने रहथि. फाहियान लिखैत छथि,’गया शहर खाली-खाली छल. एकदम भकोभंड’. ओ पहिने गया शहरसँ  करीब 6-7 माइल दक्षिण दिस ओतय पहुँचलाह जतय सिद्धार्थ गौतम बुद्धत्वक प्राप्तिक पूर्व छौ वर्ष धरि कठिन तपस्या कयने छलाह. फाहियानक समयमें ओहि स्थानक चारू दिस जंगल छलैक. ओहि स्थान सं करीब एक माइल पश्चिम ओ जलाशय रहैक जतय बुद्ध स्नान कयने रहथि.स्नान करबाक समयमें सिद्धार्थ गौतम कठिन तपस्याक कारण ततेक दुर्बल रहथि जे हुनका जलाशयसँ  बहरयबाक हेतु ओतुका एकटा वृक्षक शाखाक सहारा लेबय पड़ल रहनि. ओही जलाशयसँ किछुए दूर ओ स्थान सब छलैक जतय ग्रामिका कन्या हुनका चाउरक खीर देने रहथिन आ सिद्धार्थ प्राण-रक्षाक हेतु भोजन केने रहथि. फाहियान लिखैत छथि, ‘ ओ वृक्ष आ ओ शिला एखनहु ओतय अछि, जतय सिद्धार्थ बैसि कय भोजन केने रहथि.’ एहिना फाहियान बुद्धसँ सम्बन्धित आओर सब स्थानक वर्णन कयने छथि. एहि वर्णनमें स्थान-सन स्थूल आ स्थायी संज्ञाक संग मिथक, पूर्व-जन्मक संदर्भ, आ दैविक चमत्कार सब कथुक चर्चा छैक. स्पष्ट छैक, समयक संग-संग ऐतिहासिक घटना आ चमत्कार महापुरुषक जीवनक सत्य संगे ओहिना मिझर होइत चल जाइत छैक जेना चाउर दालि संग अकटा-मिसिया. मुदा, दुनूमें अन्तर छैक, चाउरमें मिझर अकटा-मिसियाक दानाकें बिछि फूट कय सकैत छी. किन्तु, महापुरुषक जीवनक इतिहासक संग मिझड़ायल मिथक आ चमत्कारकें फुटकयबाक प्रयासकें धर्मक विरुद्ध आचरण बूझल जाइछ. कारण दैवी चमत्कार ईश्वरत्वक प्रमाण आ अभिन्न अंग बूझल जाइछ.

हम 1971 क गर्मीक मासमें जहिया बोधगया गेल रही, जहां धरि हमरा स्मरण अछि, महाबोधि मन्दिरक परिसर जनशून्ये-जकां रहैक. मुदा, महाबोधि मन्दिर, ओकर पछुआड़क बोधि वृक्ष आ दुनूक बीच बज्रासनक चबूतरा ओतुका सबसँ प्रमुख  आ दर्शनीय छल. तहिया कैमरा तं छल नहिं. तें फोटो तं नहिंए झिकने रही. मुदा, मन पड़ैत अछि, महाबोधि मन्दिरक अतिरिक्त तब्बिती आ जापानी मन्दिर आ धर्मचक्र तखनो रहैक.  दोसर बेर 2011 में जखन बोधगया गेलहुँ तं महाबोधि मन्दिरक आसपास ओहने चहल-पहल देखलियैक जेना धर्मस्थानमें होइत छैक. मुदा, भीड़-भड़क्का हिन्दू धर्मस्थान-जकां नहिं. कारण बूझब कठिन नहिं. जे किछु. महाबोधि मन्दिर केवल बोधगया केर नहिं, विश्व भरिक बौद्धक हेतु आस्थाक केंद्र-विन्दु थिक. ह्वेनत्सांगक वृत्तांतक अनुसार आरम्भिक महाबोधि मन्दिरक निर्माण एकटा शैव ब्राह्मण द्वरा भेल छल.ओहि ब्राह्मणक भाई एतुका पोखरि खुनबौने छलाह. एहि मन्दिरक पाछांक पीपरक गाछ तं इतिहास विदिते अछि. कहल जाइछ, सम्राट अशोक सेहो अपन शासनक दसम वर्षमें बोध गया आयल रहथि. बोधि वृक्षक प्रति सम्राट अशोकक अगाध प्रेम आ निष्ठाक प्रति इर्ष्यासँ  कारण हुनक पत्नी बोधिवृक्षकें कटबा देलखिन्ह. तथापि, बोधिवृक्ष समूल नाश नहिं भेल.पछाति सम्राट अशोककहिंक प्रेरणासँ बोधिवृक्षक ब’ह श्रीलंका गेल. इतिहासक अनुसार एखनुक बोधिवृक्षक ठीक पहिलुका पूर्वज 1876 ई. क पछातिक थिक. पुरातत्वविद आ भारतक सर्वेयर जनरल एलेग्जेंडर कनिंघम बोधिवृक्षकें 1862 सँ 1875क अनेक बेर भिन्न-भिन्न अवस्थामें देखने रहथिन. कनिंघम लिखैत छथि, ‘1876 में गाछक बंचल भाग केर खसला उत्तर बोधिवृक्ष समूल नष्ट भए गेल छल.’ पछाति ओकरे बीआसँ ओही वृक्षक वंशज आइ बोधिवृक्षक रूपमें अछि.

एखन बोधगयामें महाबोधि विहारक अतिरिक्त अनेको विहार, स्मारक, मूर्ति, सेवा-संस्थान अछि. किन्तु, दुःखद थिक जे बुद्धकेर साधना-भूमि, गया सम्पूर्ण बिहारमें अपराध आ अपहरण ले प्रसिद्ध अछि. तथापि, एहि स्थानक महत्व आ ऐतिहासिकताक कारण अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन आ हिन्दू तीर्थयात्रीक तीर्थाटन एतुका आमदनीक मुख्य श्रोत थिक. गयामें अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनि गेने निर्विवाद पर्यटनकें बल भेटलैए.

नालंदाक अवशेष 

पावापुरीक भव्य द्वारि 

सड़कसँ पटनासँ  गया-बोधगया जाइत जहिना बाटक कातेकात लहलहाइत खेत, भोरुका बसातमें अगराइत फसिल भेटत, तहिना इतिहास एम्हर पग-पग पर छिड़ियायल भेटत. समय अछि, तं थम्हू. आ सुदूर भूत केर इतिहासक स्वरकें अकानू. समय अछि तं थोड़बे घुमानसँ नालंदा, राजगीरक अवशेष , आ  पावापुरीक जैन तीर्थ सेहो देखि लेब. इतिहास बिहारक हेतु जतबे उदार छैक, वर्तमान ओतबे कंजूस. दोष तं हमरे लोकनिक थिक. बिहार आ बिहारी तं ओएह थिक. भूमि, जलवायु, वनस्पति आ भैषज्य तं ओएह छैक. तखन उर्बरता किएक नष्ट भए गेल से सोचबाक थिक. आब सारनाथ चली.

इतिहास विदित अछि, सारनाथक मृग-वनमें गौतम बुद्ध पहिल बेर उपदेश देने रहथि. गौतम बुद्धकें बोधिवृक्षक परिसरसँ  सारनाथ जयबामें किछु दिन लागल रहनि. हमरा ई दूरी तय करबा में करीब 34 वर्ष लागि गेल.

स्तूप: सारनाथ 
वर्ष 2005. बनारसमें अखिल भारतीय नेत्र- चिकित्सक संघ केर वार्षिक सम्मेलन रहैक. हम बनारस पहिनहु अनेक बेर गेल रही. किन्तु, एहि बेर सारनाथ जयबाक पहिल अवसर भेटल. सारनाथ में जे सबसँ  पहिने आकृष्ट करत ओ थिक ऐतिहासिक स्तूप. आब तं ऐतिहासिक हो वा समसामयिक, परमपावन संत होथि वा दुर्दान्त अपराधकर्मी, राजनेता वा अपराधकर्मी-राजनेता, सबहक चारुकात सुरक्षाचक्र, लोहाक गजाड़ा, आ ए.के.- 47 बंदूक नेने सुरक्षाकर्मी अवश्ये भेटत. बोधगया, सारनाथ वा सोमनाथ केओ एकर अपवाद नहिं ! केहन विडंबना ने !    

सारनाथक स्तूपक समीपहिं, संग्रहालयमें अनेक ठामसँ उत्खननमें प्राप्त मूर्ति, शिलालेख, पात्र, आ आन सामग्री सब भेटत. संग्रहालयकेर बाहर बौद्ध-मूर्ति, फोटो, तंखा, पात्रक संग खयबाक वस्तु, चाह-पानि सेहो भेटत. मुदा, जं वाराणसी आ सारनाथमें बौद्ध परम्पराक अनुशासनक कनियो अन्वेषण करबाक मनोरथ हो तं बिसरि जाउ. इतिहास विदित अछि, बौद्ध धर्मकें सनातन धर्म, विरोधीए टा नहिं, धर्मक शत्रु बूझैत छल. अस्तु, बौद्ध चिंतन जं सनातन धर्मक गढ़ बनारससँ बिला गेल तं उचिते. किन्तु, बनारसमें अपराध, ठगी, व्यभिचारकें देखबाक हो तं सब ठाम भेटत. हमरा तं जे अनुभव भेल से भेले. तें, धर्म तं अपन मनहिं में ताकी सएह उचित !

जेना हम सबठाम कहैत आयल छी, जं भारतीय सेनाक देल अवसर नहिं भेटैत, तं टाका खर्च क’ कय पर्यटन ले मध्यवित्त लोक कतेक ठाम घूमत. 2006 ई. हम लखनऊ कमान अस्पताल में पदस्थापित रही. भारतीय सेनाक कलकत्ता स्थित पूर्वी कमान आ लखनऊ स्थित मध्य कमान प्रति वर्ष नेपाल गोरखा भूतपूर्व सैनिक आ हुनका लोकनिक परिवार जनक हेतु प्रति वर्ष अनेक मेडिकल वेलफेयर टीम नेपाल पठबैत अछि. हमरा 1995 आ 2006 में एहि दलक नेतृत्वक अवसर भेटल. लखनऊसँ जाइत ई टीम गोरखपुर होइत जाइछ. 2006 में नेपाल जेबा काल किछु प्रशासनिक कारणसँ  हमरा लोकनिकें गोरखपुरक गोरखा रिक्रूटिंग डिपो ठहरय पड़ल छल. कुशीनगरमें महात्मा बुद्धकेर परिनिर्वाणक स्थान गोरखपुर सं बेसी दूर नहिं. बस, करीप 55 किलोमीटर. अस्तु, एक दिन स्थानीय बस पकड़ल आ कुशीनगरसँ भए एलहुँ .

ह्वेनत्सांग लिखैत छथि, कुशीनगरमें निरंजना नदीक कछेर पर दू गोट वृक्षक बीच, उत्तर दिशा दिस माथ राखि,  गौतम बुद्ध परिर्वाण प्राप्त कयलनि. ह्वेनत्सांग आगू लिखैत छथि, कुशीनगरमें तहिया साधु-समाजक भिन्न-भिन्न समाजक  किछु- किछु सदस्य, निवासी-जकां कतहु-कतहु रहथि.

एहि इतिहासक अनुसार मृत्युक पछाति, बुद्धके स्थानीय राजा, चक्रवर्ती राजाक समान सम्मान दैत, बुद्ध केर अंतिम संस्कारक हेतु अपन राज्याभिषेकक सभागार में स्थान देलखिन. मृत्युक पछाति बुद्धक पार्थिव शरीरकें स्वर्ण-मंजूषामें राखल गेल रहनि.

महापरिनिर्वाण में बुद्ध  (श्रोत: साभार, विकिपीडिया)  

एखनो, कुशीनगरमें परिनिर्वाणक स्थलमें दाहिना करोट लेने बुद्धके लम्बा प्रतिमा छनि. ओत्तहि पुरान भवन सबहक भग्नावशेष, आ  बर्मा देशक बौद्ध लोकनि द्वारा निर्मित आ परिचारित स्वर्णिम  पैगोडा/ मन्दिर सेहो अछि. हमरा लोकनि सब ठाम घूमि इतिहासक दर्शन कयल. एतहि आबि बुद्धकेर पदचिन्ह पर चलबाक हमर परिक्रमाक एक अंश पूर्ण भेल. भारत-नेपाल सीमक ओहि पार लुम्बिनी धरि जेबामें दू वर्ष आओर लगी गेल से तं कहनहि छी.  

सर्वविदित अछि, वैदिक धर्मक विधिक विरोध वा वैदिक धर्ममें सुधारक धाराक रूपमें विकसित बौद्धमत कें सनातनी लोकनि अपन शत्रु बूझि ओकरा भारत वर्षसँ  उखाड़ि फेकबाक संकल्प केने रहथि. फल ई भेल जे बौद्ध धर्म भारतक हृदयस्थल आ ह्रदय दुनूसँ बिला गेल. किन्तु, बौद्ध धर्मक विभिन्न परम्परा उत्तर, पूर्व, आ पूर्वोत्तर भारतक अनेक भागमें एखनहु जीवित अछि. विगत शताब्दीमें समाजमें अपमानित किछु दलित लोकनि डाक्टर अम्बेडकरक नेतृत्वमें बौद्ध धर्मकें अपनओलनि. किन्तु, आब ओहि घटनाक आधा शताब्दी बाद ओ मुहिम आब केवल सांकेतिक भए कए रहि गेले. तथापि, बुद्ध अमर छथि. कारण, केवल ज्ञान आ निर्देशित मार्ग पर चलबाक जीवन पद्धति बौद्ध धर्मक प्राण थिकैक. आ जाधरि बुद्ध केर दर्शनक तत्वकें  बूझनिहार विश्वमें जीवित रहताह, बुद्धकें सुधी मनुष्यक ह्रदयसबसँ केओ निकालि नहिं सकत. कारण, बुद्ध धर्म केर विरोधी नहिं, कृष्ण केर परम्पराक ओहने धर्म संस्थापक छलाह, जे धर्मक अवनति भेला पर समय-समय पर भूमि पर अवतरित होइत आएल छथि !           

  

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