Wednesday, July 20, 2022

जीतन

जीतन

जीतन. नेनपनक चिन्हल. सब काज आगू बढ़ि करैवला, पंथक पाकड़ि छलाह, जीतन .१९७१ ई. मे जखन हम गाम छोड़ैत रही हम हुनका कहने रहियनि, ‘ ई दवाई बन्द नहि करिहह.’ गप्प प्रायः १९६७ ई थिकैक. जीतनक हाथक आंगुर में पोरे-पोर घाव भए गेल रहनि. केओ कहलकनि, ‘ डिठौरी थिकह. झड़बा लैह. दोसर केओ कहलकनि, ‘ गरमीक फोका थिकह.’ केओ आन कहलकनि, ‘चानन लगाबह.’किन्तु, घाव सुखयला पर जखनि, आंगुरक पोरक टुरनी सब छोट भए गेलनि तं जीतन अपनहुँ चौंकलाह. हमरा लोकनिक संपर्क (दरभंगा मेडिकल कालेज) लहेरिया सराय अस्पतालसँ छल. हम हुनका दरभंगा लए गेलियनि. चर्मरोग विशेषज्ञ ‘ ‘हैन्सन डिजीज’ कायम केलखिन. फलतः, हमरो लोकनि चौंकलहुँ; तहिया तं हम मेडिकल कालेज मे प्रवेशो नहि केने रही.

हैन्सन डिजीज’ अर्थात् कुष्ठ ! महारोग !!

पहिने तं लोक कुष्ठकें पूर्व जन्मक पापक फल  बूझैत रहैक. उपरसँ रोग संक्रामक रहैक. तें, लोक कुष्ठ रोगीकें परिवारे नहि, शहर-नगर धरिसँ बहार कए दैक. दरभंगा मे के नहि विकलांग कुष्ठ रोगी सबकें भीख मंगैत देखने हेतैक. हमरा मन पड़ैत अछि, करीब १९८१ वर्षक गप्प थिक. एकटा वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ आ हमर शिक्षक, मोतियाबिंदुक ऑपरेशन ले आयल, एक निकट संबंधीकें ऑपरेशन टेबुल परसँ केवल एहि हेतु उतारि देने रहथिन, कारण, हुनका हैन्सन डिजीज’ रहनि ! आब तं हम अपने सैकड़ो ‘हैन्सन डिजीज’क रोगीक ऑपरेशन कयने हयब. पोखरा नेपालक ग्रीन पास्चर्स हॉस्पिटलक ढेरो रोगी हमरा लग अबैत छल. खैर.

जीतन समांग छलाह. पंथक पाकड़ि छलाह. हुनका भगा देबनि कहिओ ई प्रश्नो नहि मन मे आयल. ततबे नहि जं हिनका बिदा कए देल वा ई अपने भागि गेलाह, तं प्रायः इहो ‘ कोढ़िया’ लोकनिक ओहि समूह मे बिला जेताह जे शहर सब में भीख मंगैत देखल जाइत अछि. ओहि भिखारिकें केओ दूरसँ एकटा कैंचा फेकि दैत छैक वा केओ मुँह फेरि चलि दैछ.

पछाति, टी बी जकाँ ‘हैन्सन डिजीज’क हेतु सेहो ‘मल्टी ड्रग थेरापी’ आरंभ भए गेलैक.आब भारत कुष्ठरोग-मुक्त  घोषित भए चुकल अछि. मुदा, सत्तरिक दशक मे लगभग एके टा औषधि- डैप्सोन- रहैक. ओकर खुराक क्रमशः बढ़ाओल जाइक. तरीका  मोन राखब जीतन सन अशिक्षित ले कठिन छलैक. हमरा लोकनि ओकर समाधान निकालल. दरभंगासँ मुफ्त दवाई आनब हमर ड्यूटी छल. नियमानुसार जीतनकें दवाई देबाक भार हमर स्वर्गीय माता लेलनि. फलतः, कतेक वर्षक निरंतर उपचारक बाद जीतन स्वस्थ भेलाह. तावत् जनसामान्यो मे हैन्सन डिजीज’क प्रति चेतना जगलैक. हैन्सन डिजीज’क निदान आ चिकित्सा मे नव परिपाटीक सूत्रपात भेलैक. फलतः, हैन्सन डिजीज’ ने महारोग रहलैक, ने दुर्निवार, आ ने पूर्वजन्मक फल. मेडिकल कालेज मे पढ़ैत हमरा अपनो ‘हैन्सन डिजीज’क क्षेत्र में होइत परिवर्तन ज्ञान भइए गेल छल.

किन्तु, अनंत कालसँ चल अबैत धारणा बदलबा मे समय लगैत छैक.  डाक्टरी में रोगक इलाज छैक. मुदा, भयक इलाज कठिन छैक. रोगीक मनोबल पर पड़ल आघातक चिकित्सा सुलभ नहि छैक. कुष्ठरोगक भले इलाज संभव भए गेलैक, किन्तु ओकर कारण बहुतो रोगी विकलांग तं भइए जाइत छल.  जीतन विकलांग नहि भेलाह. चिकित्सासँ रोग निर्मूल भए गेलनि. फलतः, रोगक सुधारक संग जीतनक अपन चिन्ता सेहो कम होइत गेलनि. सबसँ बड़का संतोष ई जे हुनक बेटी, मंगली, दोसर बेर टुअर नहि भेलनि. दोसर गप्प इहो जे रोग भेलनि, इलाज भेलनि, ठीक भेलाह, मुदा, गाम मे ककरो किछु बुझबो मे एलैक जे हिनका कोनो कठिन रोग भेल रहनि. कारण, कुष्ठरोग भेने केओ कदाचिते बिछाओन धरैत अछि.

खैर, बहुत दिन बीतल. जीतनक बेटा लोकनि कलकत्ता, डिल्ली, अलीगढ़, सूरत रहय लगलखिन. लोक कहय लगलनि, अपने कमायल खाइत छह, घर आँगन छहे. की डाक्टर साहेबक दलान पर धड़फड़निया देने रहै छह !

मुदा, जीतनक हेतु धनि सन. हाथी चलय बजार, कुत्ता भुके हज़ार. कखनो मोन खोंझाइत रहनि, कहथिन-‘ मर बंहि, धड़फड़निया देने रहै छी हम, माथ दुखाइत छौ तोरा सबकें ! आइ हम ई दरबज्जा छोड़ने रहितहुँ तं तों सब पतिआनी मे बैसि कए खाइओ दितें ! लोटना बिसरि गेलौक. भरि टोल कहैक जे गउ गरासक चाउर चोरा कए खेलें एसगरे. आब कुष्ठ फुटलौए त टोल पर रहबें. हमरा कुष्ठ फूटल. डाक्टर साहेब दरभंगा ल’ गेलाह. बौआसिन अपने हाथें गोटी खाइ ले हमर तरहत्थी पर राखि देथि. ओ लोकनि हमर घाव सेहो धोलनि. नीकें भेलहुँ. केओ बुझलही. हम ओही थारी मे खाइत रहलहुँ. ओही दरबज्जा पर सुतैत रहलहुँ. तों सब लोटनाकें टोल पर सं बैला दै गेलही. डाक्टर साहेब अपन दुधपीबा बच्चा कहियो हमरा कोरासँ छिनलनि ?'

टोलबैया सबकें जवाब नहि फुरलैक.      

१९८१ ई. दादा मरि गेलाह. जीविका भेटब सुलभ नहि रहैक. हमरा दादाकें मरणासन्न छोड़ि दिल्ली जाए पड़ल. दादा चलि गेलाह. हम दिल्लीए मे रही. गाम आपस एलहुँ. जीतन कोनिया ओसरा पर अपन चौकी पर बैसल छलाह. जीतनक चौकी दादाक चौकीक समानान्तर कहियासँ लागल रहनि, हमरा ठीकसँ स्मरण नहि अछि. जीतन हमरा देखिते भोकारि पाड़ि कए कानए लगलाह: ‘ बौआ, आब एसकरे दरबज्जा पर बैसल रहब.  बड़का बौआ कते तमसाइत छलाह, कते बिगड़ैत छलाह. तैयो राति- बिराति कहथि, ‘ जीतन तमाकू लेबह ? दुखित पड़ला. तमाकू छूटि गेलनि.  कहथि, तोर दुआरे तमाकू छोड़ि देल ! जखन-तखन कहितें, ‘ बौआ एक ज़ूम तमाकू छै ? जोत्तोरी के ! छोड़िये देल !! मुदा, कहियो काल बुन्नी- बिकाल मे गाम परसँ एबा में अबेर भ जाय तं अपने, चोरबत्ती ल कए टोल पर पहुँचि जाथि. कहथि, ‘ चलह, अन्हार, धोन्हार के कोन ठेकान! आब तं टौआइते रहब !!’ आ जीतनक गरा फेर बाझए लगलनि.

दादा चल गेलाह. जीतन दरबज्जा पर एसगर भए गेलाह. मुदा, अपन ठाम नहि छोड़लनि. केओ टोनि दैनि तं कहथिन, ‘ रौ, हम ककरोसँ किछु मंगै छियौ. हम कोनो नौकरी करै छी. बच्चा-बुच्चीक लोभे पड़ल रहै छी. जहिया मरि जायब, तहिया जा क’ क’ दिहें किरिया करम !'

पछाति हमर भातिज डाक्टर पंकज जी अवाम मे रहि प्रैक्टिस करब आरंभ केलनि. ओ सपरिवार अवाम मे रहय लगलाह. जीतन कें फेर दोसराति भेटी गेलखिन. जीतन कें आओर भर भए गेलनि. आदरक शब्द आ मुफ्त दबाई भेटब ओहिना रहलनि जेना पहिने. पंकज कें जीतन कनहा पर चढ़ओने रहथिन, कोरा-कांख खेलओने रहथिन. तं एतबा तं जीतनक अधिकार रहबे करनि. मुदा, जीतन बूढ़ा रहल रहथि अवश्य. पंकज कखनो काल चौल करथिन, ‘की मनेजर, कलमी आमक डारि, कि जामुन ? नहि, कहब तं एकटा कटहरेक फेंड़ कटबा देब !'

जीतन बिहुँसथि आ कहथिन, ‘सहजहिं, सब गाछ मे तं पानि ढारनै छिऐक. अहूँ सब कें तं कन्हा पर चढ़ौनहि छी. जाधरि जीवै छी, बड़ बेस. जखन लोथ भए जायब तं अहाँ सब सोंगर लगा देब. जखन मरि जायब तं ई गाछ बिरिछ सब पार लगा देत.’

१९९६ क अगस्त मे मायक चिट्ठी आयल: ‘जितना बड़ दुखित छथि. लगैए नै बचतै.’ सोचलहुँ, गाम नहि जा सकब, तैयो जहाँ धरि भए सकत, चिकित्सा मे सहायता कए देबनि. दाई यथासाध्य सहायता केलखिन. पंकज तावत् गाम छोड़ि चुकल रहथि. मुदा, जीतनकें तकर बाद बेसी दिन नहि ठहरलाह. दसमीक पूजा चलैत रहैक. दुइए दिनक बाद गामसँ चिट्ठी आयल, ‘जितना नवमी दिन मरि गेलाह. अहाँक बड्ड चर्चा करैत छलाह.’

चर्चा तं कखनो काल हमरो लोकनि आबहुँ  करैत छियनि,. मुदा, मन तं सतत पड़ैत छथि. सपनामे एखनो अबैत छथि, जीतन ! आब ओहन लोक कतय पाबी. आब ओहि पीढ़ीक ओहन लोक गाम मे बिरले भेटताह !   

1 comment:

  1. हमरो मोन छैथ जीतन

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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

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