Wednesday, July 6, 2022

अग्निवीर योजना आ असंतोष

 

अग्निवीर योजना आ असंतोष

अग्निवीर योजना आ युवकक असंतोष एखन किछु दिन पूर्व समाचार मे छल. पहिल कारण युवा असंतोष, आ दोसर कारण असंतोषक कारण भड़कल हिंसा. ई दुनू बेरोजगारीक रोगक लक्षण मात्र छल, जे अप्रत्याशित घोषणाक कारण एकाएक बढ़ि गेल. एकर पृष्ठभूमि मे एकटा आओर कारण रहैक: कोविड-१९ महामारी.

कोविड-१९ महामारी जेहने आकस्मिक छल तेहने संहारक. जेकर जान नहि गेलैक, जीविका चल गेलैक. जकरा जीविका नहि रहैक आ जीविका तकैत छल, तकर जीविकाक बाट बन्न भए गेलैक. सड़कक कात जे चाह-पकौड़ी वा इडली बेचि गुजर करैत छल तकर घरसँ बहरायब बन्न भए गेलैक. जे घरसँ बहरा सकैत छल, ओकर जेब खाली छलैक. नौकरीक एहन उम्मीदवार जे सेना वा पुलिस मे भर्ती हेबाक ले चुनल गेल छलाह, हुनक भर्ती स्थगित की भेलनि. दू वर्षक बाद हुनका लोकनिकें बुझबा मे  अयलनि जे पुरनका भर्तीक प्रक्रिया निरस्त भए गेल ! सब श्रम बेकार भए गेल. तखन कतेको गोटे मुँहे भरे खसलाह. कारण, सेना-पुलिसक भर्ती तं भारतीय प्रशासनिक सेवाक नियुक्ति नहि थिकैक, जकर पात्रता पैंतीस वर्ष धरि बचल रहत. तै परसँ पहिलुका कयल-धयल सब आब बेकार छल.

मार्च २०२० आ जून २०२२. सवा दू वर्षक अंतराल पर जखन सशस्त्र सेना मे बहालीक सूरसार आरम्भ भेलैक तं सब किछु नव. वयस-सीमा, सेवा-शर्त आ सुविधा, किछुओ पहिने जकाँ नहि. सेना मे भर्ती हयब ओहुना कठिन छैक. अनेक स्तर मे विभाजित चुनाव प्रक्रिया मे शारीरिक क्षमताक परीक्षा सबसँ पहिल थिक. अनेक वर्षक तैयारी चाही. शारिरिक दक्षताक परीक्षा पास हएब ततेक कठिन छैक जे दिल्लीक एकटा युवक नित्य दिल्ली-आगरा हाईवे पर घर आ नौकरीक स्थान धरि दौड़ि कए अबैत-जाइत छलाह. ई बहुतो गोटे देखलनि. हुनक विडियो जखन समाचार मे आयल तं सेना भर्ती हेबाक युवक लोकनिक आतुरता समाजक दृष्टि पर एलैक.  एहि धावक युवकक छवि एखन धरि बहुतोकें बिसरल नहि हेतनि. मुदा, ई युवक एहन परिश्रम कयनिहार पहिल आ अंतिम नहि छलाह.

सेना मे भर्तीक प्रक्रिया जटिल छैक. सबसँ पहिने शारीरिक क्षमताक प्रतियोगिता में सफलता. तकर पछाति मेडिकल जांच होइत छैक. मेडिकल जांच मे निर्धारित वजन, ऊंचाई, आ छातीक चौड़ाई चाही. एकर अतिरिक्त हाथ-पयर, आँखि, नाक-कान-गला, हृदय, फेफड़ा, पाचन-प्रणाली, मानसिक विकास, चमड़ा आ दांत धरिक जांच होइत छैक. जांच प्रक्रिया मे मूलतः छटनीक कारण ताकल जाइछ. तकर कारणों  छैक. सेना मे कहावत रहैक, जखन एक टा पद ले एक हज़ार उम्मीदवार छैक, तखन ताजा सेव केर पथिया म सँ  छोट, हरियर, दगल, सड़ल, घोकचल फल किएक लेब ! गप्प एकदम ठीक. कारण, साधारण योद्धा सैनिक (combatant)क काज दिल्ली आ देहरादून मे एयरकंडिशन्ड ऑफिस मे कलम चलायब नहि छैक. दिन-प्रतिदिनक काज श्रमसाध्य होइछ. अत्यंत गर्म रेगिस्तान, जान लेबा ठंडा पहाड़, आ ऊँच पर्वतीय प्रदेश मे जतय बिना वजनहु चलला पर श्वास फूलैछ, ओतय ओजन उठबय पड़ैत छैक,अस्त्र-शस्त्रसँ ल कए गेंती-बेलचा धरि चलबय पड़ैत छैक.  तें, शरीरक ओ साधारण समस्या जे स्वास्थ्यकर स्थान मे बुझबो मे नहि अबैत छैक, से अत्यंत विपरीत जलवायु, जनशून्य स्थान, जानलेबा भूमि मे अनेरे उपकि जाइछ. एहन अशक्तता शत्रुकें पराजित करबाक प्रयास मे अपना अतिरिक्त अनको हेतु घातक साबित भए सकैछ. तें, सेनाकें शारीरिक रूपें सक्षम, दक्ष, ऊँच मनोबल युक्त एहन सैनिक चाही जे अपन बलिदानक भावना आ प्रत्युत्पन्नमतित्वसँ शत्रुकें पराजित कए धधकैत आगि बाटें सोना जकाँ चमैक बहार होअय !

अस्तु, कठिन शारीरिक क्षमताक परीक्षा आ मेडिकल जांचक पछाति लिखित परीक्षा होइत छैक. शारीरिक दक्षता, आ लिखित परीक्षाक परिणामक योग्यता सूची म सँ चुनावक पछाति पुलिस जाँच होइछ. तखन, रिक्तिक आधार पर उम्मीदवारक नियुक्ति होइत छैक.

सेना मे कहावत छैक, भारतीय सेना स्वैच्छिक सेवा थिक. अर्थात् जे उम्मीदवार स्वेच्छासँ ई बाट चुनैत छथि, सएह सैनिक बनैत छथि. इसरायल वा चीन जकाँ भारत मे सैनिक सेवा नागरिकक हेतु अनिवार्य वा बाध्यता नहि छैक. मुदा, समाज मे सेनाक प्रति दृढ़ विश्वास छैक. बाढ़ि अबौक, आतंकवादी हमला हो, कश्मीर वा भारतक उत्तरपूर्व मे उपद्रव होइक, पुलिसक ओ काज जे पुलिस बुते नहि सम्हरैछ, से काज सेना करैछ. तथापि, प्रशासनक दृष्टि मे सैनिक ओहने वेतनभोगी कर्मचारी थिक, जेहन दिल्लीक सचिवालयक वेतनभोगी कर्मचारी, वा सुविधाक दृष्टिएं ओहूसँ कम ! तथापि, जतय असैनिक कर्मचारीक संख्या, वेतन आ सुविधा, समाचार पत्र वा टेलीविज़न डिबेट मे कहिओ नहि अबैछ, सेनाक वेतन आ पेंशनक खर्च पर निरंतर बहस चलैत रहैछ. सारांश ई, जे एतेक व्यय सरकारक साधनकें तेना सोखि लैछ जे सरकार लग सेनाक आधुनिकीकरणक हेतु बहुत थोड़ साधन बचैछ. तें, सेनाक वेतन आ पेंशन पर व्यय घटय. उचिते. एहि व्ययकें थोड़ करबाक अनेक उपाय छैक: सेनाक संख्या घटय. सैनिकक सुविधा घटाओल जाय. सैनिकक सेवा अवधि सीमित हो. सैनिकक पेंशन थोड़ हो, वा ग्रैच्युटी एवं पेंशन नहि देबय पड़य. सैनिकक सेवानिवृत्तिक पछाति ओकरा पर स्वास्थ्य सेवा सुविधाक व्यय नहि हो. ततबे नहि, जखन सैनिक सेवा मुक्त होथि, तखन सैनिकक हेतु सरकारकें थोड़ एकमुश्त राशि देबय पड़ैक. अग्निपथ स्कीम आ अग्निवीर सैनिकक भर्ती सरकारक एहि सब लक्ष्य-प्राप्तिक एक उपाय थिक.

प्रशासनिक निर्णय सरकारक अधिकार थिक ! एहि मे दू मत नहि. किन्तु, समाधानक विषय मे सब एक मत होथि से आवश्यक नहि. ततबे नहि, लोकतंत्र मे सरकार बदलैत रहैछ. तें, सरकारक दायित्व थिक जे सरकार अपन निर्णय मे विपक्षहुक  विचारक समावेश करय, खास कय तखन, जखन निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षासँ संबंधित होइक. मुदा, ई आदर्श भेल. व्यवहार मे आदर्श अपवादे बूझल जाइछ. अस्तु, अग्निपथ आ अग्निवीर योजनाक घोषणाक जे तात्कालिक परिणाम भेल जे आँखिक सोझाँ अछि. ओकर दूरगामी परिणाम भविष्य कहत. किन्तु, एतय आब हम एक दोसर विन्दु पर विचार करब जकरा राजनीति वा राष्ट्रीय सुरक्षा विषयक विशेषज्ञक विचारसँ कोनो मतलब नहि. मुदा, एकर संबंध  सेना, सैनिकक जीवन आ भारतीय समाज दुनूसँ छैक.

पहिने, सेनाक गप्प. प्रगति जीवन थिक. भारतीय सेनाकें सेहो समयक संग चलबाक चाही. हमरा लोकनिक सेना अंग्रेजक द्वारा एवं योरोपीय प्रणाली पर आधारित अछि. एतबे नहि, टेक्नोलॉजीक विकासक संग युद्ध केर परिभाषा, ओकर आयाम आ विधि बदलि रहल छैक. अमेरिका सन टेक्नोलॉजी हो तं बिना भूमि पर पयर रखनहि इरान सन देशकें परास्त कए सकैत छी. तथापि, जखन भूमि पर प्रतिस्पर्द्धा हेतैक तं सेना एक दोसरासँ हाथसँ लड़ैत मरत आ मारत, जकर उदहारण ताकब असंभव नहि. तथापि, समयक संग आधुनिकीकरण चाही. आ सरकार से करत, से समाज मानि कए चलैछ, आ सरकार पर विश्वास रखैछ.

आब, समाजक गप्प. सैनिक समुदायक अधिकांश भाग एखनो एहन देहाती निम्न वर्गसँ अबैछ. शहरी मध्यवर्ग, नौकरशाह आ राजनेताक सन्तान सिपाही भर्ती नहि होइत छथि. शहरी आ उच्च वर्ग समाज मे परिवर्तन होइतो, ग्रामीण समाज कतेक अर्थ मे जड़ अछि. बहुतो दिनसँ चल अबैत, ग्रामीण समाजक अपरिवर्तित संरचना, वर्तमान  सैनिकक जीवनकें प्रभावित करैछ. देहाती निम्न वर्गक सिपाही पर ओकर सम्पूर्ण परिवार- माता-पिता, भाई- बहिन- आश्रित रहैछ. तें, जखन कोनो बेरोजगार सैनिकक नौकरी पाबि जाइछ तं परिवार मे सब एक स्वर मे उत्सव मनबैछ; ‘नत्था सिंह/ बंता सिंह / गुलाब सिंह/ किताब सिंह/ राम भरोसे/ पेरूमल/ सेबेस्टियन को नौकरी मिल गई’. माने, आब परिवारकें गुजर करबाक एकटा सुदृढ़ आधार भेटि गेलैक. मुदा, जखन ई खबरि अबैछ जे  ‘नत्था सिंह/ बंता सिंह / गुलाब सिंह/ किताब सिंह/ राम भरोसे/ पेरूमल/ सेबेस्टियन मर गया, या डिस्चार्ज हो कर घर वापस आ रहा है’ तं उचिते घर-परिवारक पयर तरसँ धरती घिसकि  जाइछ. अग्निवीर योजनाक इएह अवगुण भारतीय युवकक असंतोषक मूल कारण थिक ! अग्निपथ योजना मे अग्निवीरकें साधारण सिपाहीसँ अनेक अर्थ मे  सुविधा सेहो बहुत कम छैक. नौकरीक स्थायित्व आ घर घुरलाक पछाति जीविकाक आश्वासनक सत्य की छैक, से ओहि भूतपूर्व सैनिक सबसँ पुछियौक जे पन्द्रह वर्ष ‘कलर सेवा’ बाद पेंशन ल कए घर घुरैत अछि. ओहि वयस में जखन कतेक नौकरशाह लोकनि नौकरी आरंभ नहि कयने रहैत छथि, सैनिक रिटायर भए जाइछ. ओहि समय मे ओकर जीवनक कोनो दायित्व, जेना धिया-पुताक पढ़ाई, घर बान्हब इत्यादि भेलो नहि रहैत छैक.

तैओ, नौकरी ले मुँह बओने बेरोजगार सबटा देह लगा कए मारैत, जं नौकरीक स्थायित्वक भरोस रहितैक. किन्तु, एहि योजना मे स्थायित्व कतय पाबी. तें, अग्निवीर योजना किछु अर्थ मे  नौकरी स्थायित्वक भरोसक प्रति भयानक कुठारघात थिक ! ओकर बाँकी गुण-अवगुण पर तं निरंतर सेवारत आ सेवा निवृत्त सुरक्षा विशेषज्ञ मंथन कइए रहल छथि, जे सबठाम छपि रहल अछि. तें, एतय ओहि पर आओर बेसी किछु कहब आवश्यक नहि.

 

         

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