सूक्ष्म आदर्श आ स्थूल प्रतीकक प्रासंगिकता
राष्ट्रीय आदर्श आ मान्यता सूक्ष्म थिक. राष्ट्रीय
आदर्शकें राष्ट्रक अस्मितासँ जोड़ने होसगर नागरिक स्वतः आदर्शक पालनक बाध्यता अनुभव
करैत छथि. मुदा, सामाजिक परिस्थिति आ स्वार्थक कारण लोक आदर्श बिसरिओ जाइत अछि. तें,
समय-समय पर समाज सुधारक प्रेरक आ गुरु समाजकें
कर्तव्य स्मरण दिअबैत छथिन. किन्तु, जखन चारूकात सामजिक मूल्यक ह्रास होबय लगैत
छैक, आ जखन स्वार्थक बस मे लोक कर्तव्यसँ विमुख होमय लगैछ, तखन स्थूल प्रतीक सब, आदर्शक
आ सामाजिक मूल्यक स्थान लेबय लगैछ. एहना स्थिति
मे सूक्ष्म आदर्श जहिना बिलाइत चल जाइछ, स्थूल प्रतीक जतबे पैघ होइत जाइछ. एखन,जखन
विश्व भरि मे निरंतर सामाजिक मूल्यक ह्रास भए रहल अछि, सब ठाम स्थूल प्रतीक राष्ट्रीय
संस्कारकें धकियौने जा रहल अछि. कोना ? से देखी. अपन कथ्यक पक्ष मे हम दुनू प्रकारक उदाहारण दैत छी, जे कोना विराट् स्थूल प्रतीक,
सूक्ष्म मूल्यक रक्षा मे विफल भेल, आ कोना आदर्शक अवहेनाकें विराट् प्रतीकसँ झाँपल
जा रहल अछि. निष्कर्ष अहाँ स्वयं निकाली. कारण, विचार मे भिन्नता आ दोसरक विचारक
आदर लोकतंत्रक आत्मा थिकैक.
आब हमरा लोकनि पहिने किछु विराट् प्रतीक, आ
पछाति सूक्ष्म मूल्यक परिस्थिति कें देखी.
बामियान बुद्ध: अफगानिस्तानक बामियान
क्षेत्र मे हेबनि धरि, करीब ८००० फुटसँ ऊपर ऊंच पहाड़ी क्षेत्र मे, महात्मा बुद्ध केर
दू गोट मूर्ति रहनि. अनुमानित अछि, पहाड़क पक्खा पर बनल एहि मूर्ति सबहक निर्माण छठम्
आ सातम शताब्दी मे भेल छल. एहि म सँ एक मूर्तिंक ऊंचाई ५५ मीटर आ दोसरक उंचाई ३८
मीटर रहैक. वर्ष २००१क घटना थिक. निर्माणक करीब १३ सँ १४ सौ वर्षक पछाति, ओतुका तत्कालीन
शासक, तालिबानक, समर्थक लोकनिकें बुद्धक ई
मूर्ति सब अनसोहांत लगलनि. आ ओ लोकनि बामियान बुद्धकें ध्वस्त कए अपन ‘धार्मिक
कर्तव्य’ पूर्ण कयलनि. किन्तु, सोचबाक विषय ई थिक जे, जं बुद्धक विराट् मूर्ति अफगानिस्तान
मे अनंत काल धरि बौद्ध मान्यताक स्थायित्व निर्धारित कए पबैत तं बामियान बुद्धक
अछैत, अफगानिस्तानसँ बुद्ध नहि, बिलैतथि; बोधगयाक
अछैत बिहारसँ बौद्ध धर्म नहि बिलाइत. मुदा, ई तं यथार्थ थिक ! बुद्ध ओहिना बैसले
रहि गेलाह आ बौद्ध धर्म एहि दुनू क्षेत्रसँ बिला गेल छल !!
स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी ( Statue of Liberty): अमेरिका मे स्टैच्यू ऑफ़
लिबर्टीक विशाल मूर्ति, ४ जुलाई १७७६ क दिन स्वतंत्र राष्ट्रक रूप मे अमेरिकाक उदय
आ ओतुका दास प्रथाक समाप्तिक उद्घोष थिक. ओतय एहि मूर्तिक स्थापना २८ अक्टूबर १८८६
क दिन भेल छल. किन्तु, मूर्तिक स्थापना अमेरिका मे समान अधिकार आ व्यक्तिक समानता
स्थापित करबा मे सफल तं नहिए भेल, अमेरिकी
सरकारी तन्त्र आ स्वयं समाज, अश्वेत नागरिकक स्वतंत्रताक विरुद्ध कतेक षडयन्त्र
रचलक से ककरोसँ छपल नहि अछि. फलतः, मार्टिन लूथर किंग जूनियरकें स्टैच्यू ऑफ़
लिबर्टीक मूर्ति स्थापनाक करीब सौ वर्ष पछाति,१९५५ ई. मे समान अधिकारक हेतु अहिंसक
आन्दोलन आरंम्भ नहि करय पड़ितनि. ओएह आन्दोलन अंततः हुनक प्राणक बलि सेहो लेलक. मुदा,
अमेरिकी समाज मे कतेको अश्वेत एखनो ओहिना तिरस्कारक सामना करैत छथि, जेना भारत मे अनेक
ठाम दलित आ आदिवासी जनजाति.
मुक्तिदाता ईसा (Christ the Redeemer) : हिओ द’ जानिरो, ब्राज़ील
मे मुक्तिदाता ईसाक मूर्ति विश्व भरि मे स्थापित ईसाक तेसर सबसँ पैघ मूर्ति थिक. मुक्तिदाता
ईसाक एहि मूर्तिक निर्माण समाज मे पसरैत ‘अनीश्वरवादी प्रकृति’क निराकरणक
उद्देश्यसँ प्रेरित छल. संसार भरिक कैथोलिक
लोकनिक आस्थाक केन्द्र ई मूर्ति समाज मे खंडित होइत धार्मिक प्रवृत्तिक संरक्षण
में कतेक हद धरि सफल भेल अछि, से आँखिक सोझाँ अछिए.
राष्ट्रीय ध्वजक आकारक ओदौद: फ्लैग कोड ऑफ़ इण्डियाक नियमानुसार राष्ट्रीय
ध्वजक न्यूनतम आकार १५ सेंटीमीटर गुणा १० सेंटीमीटर
आ अधिकतम आकार ६३० सेंटीमीटर गुणा ४२० सेंटीमीटर निर्धारित अछि. आकार अतिरिक्त
राष्ट्रीय ध्वजक मर्यादा सेहो भारतीय संविधान मे विहित अछि. मुदा, आइ जखन राजनेता,
आ समाजक सबल वर्ग, प्रतिदिन संवैधानिक नियमक उल्लंघन कए रहल छथि, ध्वजक आकार, राष्ट्रीय
मूल्यक स्थान लेने जा रहल अछि. फलतः समाजक जे वर्ग सबसँ बेसी झंडा फहरबैत अछि, कानूनक
सबसँ बेसी उल्लंघनो ओएह वर्ग करैछ ! देशक विभिन्न भाग मे न्यायालय सब मे राजनेता
लोकनिक विरुद्ध लंबित आपराधिक मामलाक संख्या एकरा प्रमाणित करैछ. तखन सामान्य
नागरिकक मन मे ई प्रश्न उठब उचिते: की
बहुतो लोकक दृष्टि मे राष्ट्रध्वजक आकार राष्ट्रीय मूल्यसँ अधिक महत्वपूर्ण तं नहि
भए गेले ?
रामानुजार आ समताक मूर्ति : संत रामानुजार भक्ति
आन्दोलनक स्तंभ थिकाह. हुनक विचार आ व्यवहार लाखों मनुष्यक प्रेरणाक श्रोत थिक. हेबनि
मे संत रामानुजारक पंचलोहक विशाल मूर्ति तेलंगाना राज्य मे स्थापित भेले. सुनैत
छी, चीन मे निर्मित समताक मूर्ति नामक एहि मूर्तिक ऊंचाई २१६ फुट छैक. की एतेक
महान संतक एहन आडम्बर पूर्ण प्रतीक, संतक संदेशक अपमान नहि थिक ! की ई मूर्ति हुनक
विचारक पराजय नहि थिक ? प्रश्न उठैछ, की रामनुजारक मूर्तिक आकार हुनक विचारसँ पैघ
भए गेल !! एकर उत्तर देबा मे अनेको वैष्णवकें
ठकमुड़ी लागि जेतनि.
सरदार पटेल आ एकताक मूर्ति : एकताक मूर्तिक नामे
प्रसिद्द, नर्मदाक कछेर पर स्थापित सरदार पटेलक मूर्ति विश्व केर सबसँ पैघ प्रतिमा
थिक! मुदा, विराट् मूर्ति लग ठाढ़ मनुष्य एहन बौनवीर प्रतीत होइछ, जे हुनक पयर लग
ठाढ़ भए ओ हुनक छविओ नहि देखि सकैछ. एहि योजनाक व्यय,आ पर्यावरणक असंतुलन मे एहि
योजनाक योगदान एहि लेखक विषयसँ भिन्न थिक. हं, एतबा तं अवश्य जे ३१ अक्टूबर २०१८क
एहि मूर्तिक अनावरणसँ पूर्व जखन सम्पूर्ण कच्छ जिला आ आसपासक छौ गोट आओर तहसील
भयानक रौदी आ पानिक भयानक अभावक चपेट मे छल, तखनो उद्घाटनक अवसर पर मूर्तिंक चारूकातक
बनाओल गेल कृत्रिम झीलकें भरबाक हेतु सरदार सरोवर डैमसँ पर्याप्त पानि छोड़ल गेल.
सुनैत छी, डैमसँ आयल पानिकें पंप द्वारा पुनः डैम दिस आपस करबाक व्यवस्था सेहो सुनिश्चित
कयल गेल छल ! की सरदार पटेल अपना जीवन काल मे लगभग ३००० करोड़ रुपैयाक एहन योजनाक
मंजूरी दितथि ? पहाड़क मस्तककें ढाहि राष्ट्रपिताओक स्मारकक निर्माण करितथि? मुदा, समयक
संग-संग परिपाटीओ बदलैत छैक, समृद्धिक संग प्राथमिकताओ बदलैत छैक ताहिसँ के असहमत
हएत.
अशोक स्तंभ आ संसद भवन
अशोक स्तंभ राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न थिक ! उपलब्ध
अशोक कालीन स्तंभ पुरातन थिक ! संसद भवन लोक सभा थिक. जनताक आकांक्षाकें अभिव्यक्ति
देबाक हेतु, आ ओकरा साकार करबाक हेतु सांसद एतय एकत्र होइत छथि. किन्तु, जखन लोकसभा
मे लोकहितक चर्चा निरंतर थोड़ भए रहल अछि, प्रस्तुत बिल पर गंभीर मंथनक परंपरा मरि
रहल अछि, तखन प्रायः पैघ राष्ट्रीय प्रतीक चिह्ने टा सांसद लोकनिकें संसदक गरिमाक
स्मरण करबैछ. प्रश्न उठैछ, की विशाल अशोक-स्तंभ संसदक गरिमाक पर्याय थिक ! की
संविधानक शपथ लेनिहार सांसद लोकनिकें संसदीय मूल्यक स्मरणक हेतु आँखिक सोझाँ मूर्त
अशोक स्तंभकें राखब आवश्यक अछि. वा ई एहि बातक संकेत थिक जे सांसद लोकनि अपन शपथ
तेना बिसरि रहल छथि जे केवल संसद भवन पर स्थापित विशाल सिंहहि टा हुनका लोकनिकें
कर्तव्यक स्मरण दिआ सकैत छनि? ई सब किछु सोचबाक थिक.
सोचबाक कारण एकटा आओर. १७/२/२२ क बंगलोरसँ
प्रकाशित दैनिक ‘हिन्दू’ मे भारतक सर्वोच्च न्यायालयक मुख्य न्यायाधीशक एक वक्तव्य
छपल छल. एहि वक्तव्य मे मुख्य न्यायाधीश एन भी रमना कहैत छथि:’अकारण आ जल्दीबाजी
मे गिरफ्तारी, लम्बा अवधि धरि विचाराधीन कैदीक जेलबंदी, (पुलिस द्वारा) जमानतकें लगभग
असंभव करब, एहि तथ्यक प्रमाण थिक जे व्यवस्था
मे परिवर्तन अत्यावश्यक अछि.’
मुख्य न्यायाधीश आगू कहैत छथि, ‘हमरा लोकनि आपराधिक
दण्ड व्यवस्थाक प्रक्रिया स्वयं दण्ड थिक. एकरा अबिलंब बदलब आवश्यक अछि. (कारण) सम्पूर्ण
भारत मे जेलबंद कुल छौ लाख १० हज़ार कैदी म
सँ ८० प्रतिशत कैदी, विचाराधीन कैदी छथि.’
ततबे नहि, नई दिल्लीसँ प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक
‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ प्रकाशित एक समाचार मे मुख्य न्यायाधीश रमना केर दोसर
वक्तव्य छपल अछि. १६/७/२०२२क दिन राजस्थान
विधान सभा द्वारा आयोजित ‘ संसदीय लोकतंत्रक ७५ वर्ष’ नामक आयोजनक अवसर पर भाषण
दैत मुख्य न्यायाधीश रमना ‘वर्तमान भारत मे राजनितिक प्रतिपक्षक सीमित होइत
भूमिका, बिना वाद-विवाद आ गहन छानबीनक (विधायिका द्वारा) कानून पास करबाक परिपाटी,
आ सत्ता एवं विपक्षक बीच ‘शत्रुताक भाव’ पर खेद व्यक्त केलनि. ओ इहो कहलनि, ‘ई
लोकतंत्रक हेतु स्वस्थ परंपरा नहि थिक.’
दोसर दिस जं भारत मे प्रेस स्वतंत्रताक दिस
नजरि घुमाबी. एहि विषय पर ५/५/२२क, चेन्नईसँ प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक ‘हिन्दू’ मे ‘प्रेस
स्वतंत्रताक सूचकांक मे भारतक स्थान’ नामक लेख मे पत्रकार जी संपत लिखैत छथि, ग्लोबल
मीडिया वाचडॉग, ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ द्वारा प्रकाशित अद्यतन रिपोर्ट मे विश्व
केर १८० देशक बीच, प्रेस स्वतंत्रताक सूचकांक मे भारतक स्थान १५०म अछि; पछिला वर्ष
एहि सूची में भारत १४२म स्थान पर छल.’
उक्त रिपोर्ट मे कहल गेल अछि, जे पत्रकारक
विरुद्ध हिंसा, राजनीतिसँ प्रेरित पत्रकारिता, आ पत्रकारिताक स्वामित्व पर बढ़ैत
एकाधिकारक कारण, पत्रकारिताक हेतु भारत एखन विश्व मे सर्वाधिक खतरनाक देश म सँ एक
अछि.’
मुख्य न्यायाधीश रमनाक उक्त दो गोट कथन आ भारत
मे प्रेस स्वतंत्रताक वर्तमान स्थितिक
उपरोक्त रिपोर्टकें जं मिलान करी, तं एतबा
अवश्य प्रतीत होइछ जे संसद भवन पर एतेक पैघ अशोक स्तंभक स्थापनाक एहिसँ बेसी
उपयुक्त समय भारत मे आओर कहिओ नहि छल. संगहि, एहि मे अविश्वासक कोनो संभावना नहि जे संसद भवन दिस अबैत जाइत, विधायिका आ कार्यपालिकाक सदस्य लोकनिक दृष्टि एहि विशाल राष्ट्रीय
प्रतीक पर पड़बे टा करतनि, आ हुनका लोकनिकें अपन शपथ मन पड़बे टा करतनि. जं से भेल
तं भारतक भविष्य आ लोकतंत्र सुरक्षित अछि.
अंतिम विन्दु: अशोक स्तंभ पर विराजमान सिंह केर
छवि पर उठल विवाद पर पुरातत्वविद माथापच्ची करथु. नवका प्रतीक चिह्न पर प्रदर्शित
सिंह, शान्त एवं गंभीर अछि, वा आक्रामक आ भयानक तकर निर्णय ओएह लोकनि कहथु. नहिं,
तं संविधानक भाष्यकार, माननीय सर्वोच्च न्यायालय तं छथिए. ओना आँखि तं हमरो अहाँकें
अछिए. प्रश्न उठैछ, अशोक स्तंभक निर्माण पर कतेक खर्च भेलैक ? तकर उत्तर एतबे:
सरकार लग धन छैक, तं धनक व्यय ओ कोना करय, से सरकारक अधिकार थिक. हं, प्रश्न पुछबाक
अधिकार जनता आ जन प्रतिनिधि दुनूकें छनि.
ओ अपन अधिकारक उपयोग अवश्य करथु.
No comments:
Post a Comment
अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.