Tuesday, July 5, 2022

कन्नगी-कोवलनक कथा

 

 नारी विद्रोहक एक पुरान कथा ±

देवीपूजा भारतीय परम्पराक अंग थिक. किन्तु, नारीक प्रति समाजक व्यवहार एहि परम्परासँ  निरपेक्ष रहैत आयल अछि. फलतः, समाजसँ बहुतो नारीक अपेक्षा पूर नहि भेलनि. अहिल्या, सीता, कुन्ती-कन्नगी, मादवि-मणिमेखलै, वा आम्रपाली, सब अपन संकल्पक अपनहि पूर कयलनि. एहि नारि लोकनि म सँ अहल्या, सीता, कुन्ती, आ आम्रपाली सुपरिचित छथि. मुदा, कन्नगी-मादविक उत्तर भारत मे  अपरिचित छथि. तें, मैथिली मे समकालीन दृष्टिऐ कन्नगी-मादविक कथाक  कहबाक विचार भेल. तमिल महाकाव्य ‘शिलापत्तिकारम्’क एहि कथाक आधार थिक. ई ग्रन्थ ‘तमिल संगम’ युगक अनुपम उपहार थिक. एहि ग्रंथक प्रणेता चेर राजकुमार जैन संत इलांगो थिकाह. कथा तमिलनाडुक पुबरिया कछेर पर बसल पुहर-पुम्पुहार-कावेरिपत्तिनम् , तथा मदुरै नगरक, एक  ऐतिहासिक घटना थिक जकर प्रमुख केन्द्रीय पात्र कन्नगी आ हुनक पति कोवलन थिकाह. मुदा, कथाक घटनाक्रम मे कन्नगीक एहन विद्रोही स्वरुप समाजक समक्ष अबैछ  जे अन्यायक विरुद्ध एसगरिए ठाढ़ भए पांडियन सम्राट्कें पराजित कय देलकनि. ई असाधारण थिक. अतः, अपन दृढ़ता आ गुणक कारण कन्नगी सम्पूर्ण समाज मे दूर-दूर धरि पत्नी देवीक नामे  प्रतिष्ठित भेलीह. तें, कन्नगीक उदात्त चरित्र आइओ प्रेरक अछि. इएह हुनक कथाक पुनरावृत्तिक औचित्य थिक.

किन्तु, जखन समाज कोनो मनुष्यकें देवता बना दैत छैक, तखन कालक्रमे ओहि व्यक्तिक चारू कात अनायास अनेक कथा, उपकथा, रहस्य-रोमांच जुड़ैत चल जाइत छैक. कन्नगीओक कथा एकर अपवाद नहि. अस्तु, मूल कथा सोझ होइतो ‘शिलापत्तिकारम्’क कथा अनेक शाखा-उपशाखा दिशा दिस पसरल अछि. ई रचना कालक युगधर्म वा महाकाव्यक बाध्यता थिक. तथापि, शिलापत्तिकारम् प्राचीन तमिल समाजक ऐतिहासिक दस्तावेज सेहो थिक. तें, एहि मे राजा लोकनिक शौर्य-पराक्रमक अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णनक अतिरिक्त पौराणिक कथा-उपकथा सेहो अछि. सब किछुक बीच यद्यपि, सत्य, अहिंसा,तप, पूर्व जन्मक कर्मक फल तथा सांसारिक ऐश्वर्यक अनश्वरताक संदेश एहि कथा मे मूल चिंतनक रूप मे सोझाँ अबैछ, तथापि, कन्नगी-कोवलनक कथा तहियाक समाज मे प्रचलित अनेक समानांतर आस्थाक शान्तिपूर्ण धार्मिक सहअस्तित्वकें सेहो रेखांकित करैछ. ई बढ़ैत धार्मिक असहिष्णुताक अजुका युग मे प्रासंगिक अछि.

हिन्दी मे ‘शिलापत्तिकारम्’ क अनुवाद भेल छैक. अमृतलाल नागरक हिन्दी उपन्यास ‘सुहाग के नूपुर’ कन्नगीएक कथा पर आधारित अछि. मैथिली मे प्रायः शिलापत्तिकारम् केर अनुवाद नहि भेल अछि. तें, हम शिलापत्तिकारम् क अनुवादक नहि, सोझ आ सरल भाषा मे एकर कथा कहबाक विचार कयल. मुदा, एतय प्रस्तुत कथा, किछु अर्थ मे मूल कथाक  हमर अपन बोधक परिणाम थिक.

शिलापत्तिकारम् पुरान तमिल ग्रन्थ थिक. तें, साधारण तमिल पाठकक हेतु शिलापत्तिकारम् पढ़ब संभव नहि. स्कूल-कालेजक पाठ्यक्रम मे कन्नगीक कथा छैक. संग्रहालय मे आ  समुद्रक कछेर पर चेन्नई आ पुहर मे कन्नगीक मूर्तिओ देखबनि. मुदा, गीत-संगीत,वाद्ययंत्र आ नाट्यकला सूक्ष्मतासँ वर्णन ‘शिलापत्तिकारम्’क दोसर प्रमुख आयाम थिक. ‘शिलापत्तिकारम्’ संगम कालक गीत-संगीत, वादन, आ नाट्यकलाक श्रोत ग्रंथ जकाँ अछि. किन्तु, ग्रन्थ मे प्रतिपादित गीत-संगीत, नृत्य, नाट्यकलाक आ वाद्य यंत्रक एतेक सूक्ष्म वर्णन जनसामान्यक रुचिसँ  बाहर तं अछिए, ओकरा बूझब विशेषज्ञक हेतु सेहो कठिन अछि. तें, एहि मैथिली कथा मे शिलापत्तिकारम् मे संग्रहित गीत, संगीत, नृत्यकला आ वाद्य-यंत्रक वर्णन  नहि भेटत.

प्राचीन तमिल साहित्य मे तमिल क्षेत्र भौगोलिक दृष्टिए पाँच प्रकार मे विभक्त कयल जाइत छल: कुरिञ्जी (पर्वत प्रदेश), मुल्लै (वन्य प्रदेश),मरुदम् (समतल कृषि क्षेत्र), नेयडल (समुद्र तटवर्ती प्रदेश), आओर पालै (शुष्क मरुभूमि वा पाथरसन भूमि). पृथक्-पृथक् भूभागक निवासी, वृक्ष, फूल, संगीत, वाद्य आ ओतुका देवी देवता भिन्न-भिन्न रहथि. ‘शिलापत्तिकारम्’ मे ओकर सबहक यथास्थान वर्णन छैक. ताहू कारण शिलापत्तिकारम् कें समन्वयवादी साहित्य कहि सकैत छियैक.  मुदा, एहि मैथिली पोथी मे जे गीत सब अछि ओकर पृष्ठभूमि आ प्रेरणा कथाक समीपस्थ घटनाक्रम आ भूगोल सँ होइतो, ओ सब मूल ग्रंथक कोनो गीत-विशेषक अनुवाद नहि थिक. तथापि, कन्नगी-कोवलनक कथा पढ़ि जं किछुओ पाठककें तमिल साहित्यक प्रति रुचि जगलनि तं हमर उद्देश्य अंशतः पूर्ण भए जाएत. हमर प्रयाससँ जं अओरो तमिल ग्रन्थ सबहक मैथिली अनुवाद आ पुनर्पाठकें बल भेटलैक तं हमर उद्देश्य पूर्ण भए जायत.        

± शीघ्र प्रकाश्य कन्नगी-कोवलन कथा उपन्यासक भूमिका )

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