Tuesday, August 9, 2022

कबीर पर केस हो !

 

कबीर पर केस हो !

पण्डित बटेश मिश्रकें काल्हि साँझुक पहर बड्ड तामस चढ़लनि. हुनक पौत्र, बंभोला बहरी ओसारा पर बैसल हिन्दीक दोहा सब रटि रहल छलनि. पहिने तँ पण्डित जी व्यस्त रहथि. एहि बेर खेतक धान द्वारि तक कोना आबय तकर चिन्ता रहनि. अंगना मे दाउन-दोगाउन कहिया ने बन्न भए गेलैक. आब थ्रेसर आयल. ओहो चटसँ उपलब्ध नहि. तखन जा धरि खेत मे जाकल, काटल धान अंगना नहि आयल, कोन किसानकें चिन्ता नहि हेतैक. पण्डित जी तकरे व्यवस्था मे सियाराम साहुसँ मोल भाव करैत रहथि. एतेक टा गाँओ आ एकेटा थ्रेसर. तथापि, अपन गामक मशीन आ अनगौआं मे तँअन्तर हेबे करतैक. जे किछु. सियाराम साहु तँ गेल. मुदा, बंभोलाक पाठ अभ्यास हएब एखनो जारी छल. ओ फेर शुरू भेल:

पाहन पूजे हरि मिले, तौं मैं पूजूं पहाड़

ताते ये चक्की भली पीसि खाय संसार

आब बटेश मिश्रकें बुझबा मे किछु भांगठ नहि रहलनि. दमसि कए पौत्रकें पुछलखिन: की अंट-संट पढ़ैत छह?

 - बाबा हिन्दीक पोथी थिकैक.

- पोथी. आइ काल्हि पोथी मे इएह सब लिखल छैक !

- जी. सर सबटा याद क’ कए काल्हि स्कूल आबय कहने छथिन. पाठ याद नहि भेने, बड्ड कान जोरसँ कान ऐंठि दैत छथिन. हमरा आँखि मे नोर आबि जाइए.

जहिया पण्डित बटेश मिश्रक धियापुता स्कूल जाइत रहथिन, हुनका एहि सब पर ध्यान देबाक अवसर कहाँ भेटलनि. तहियाक गृहस्थी सुलभ नहि रहैक. मुदा, आब तँगृहस्थी नामे ले बचल छैक. तैओ जकरा बचल छैक, ओ परम पहपटि मे अछि. तखन, जथा अछि, तँ किछु तँ करहि पड़तैक. आइ-काल्हि पण्डित बटेश मिश्र खेती-बारीक सब किछु दरबज्जा पर बैसले-बैसल निबटबैत छथि.

मुदा, अजुका दोहा सुनि कए हिनकर मन विचलित होबए लगलनिए. मनहि मन सोचए लगलाह, शास्त्री तँ हमहू सम्पन्न केलहुँ. मुदा, पाठशाला मे केओ एना बजैत, से साधंश होइतैक. मुदा, गप्प ककरासँ करताह. गाम पर आब ने बेटा लोकनि छथिन, आ ने टोल पर गप्प करैवला छैक. दरबज्जा पर केओ आओत ? केहन गप्प करैत छी ! अस्तु, पण्डित बटेश मिश्र मनहि मन भरि राति गुम्हरैत रहलाह.

दोसर दिन रवि छलैक. रवि दिन पण्डित बटेश मिश्रकें  बिदेश्वर बाबाक दर्शन करब वृत्त छलनि. ई हिस्सक ओ तहिएसँ लगौने रहथि जहिया ओ लोहना पाठशाला मे पढ़ैत रहथि. तें दोसर प्रात ओ अहल भोरे उठि नित्यक्रियासँ निवृत्त भेलाह. एक हाथ मे लोटा, दोसर हाथ में लाठी लेलनि. काँख तर कोंचियाओल धोती लेलनि. आ विदा भए गेलाह. दरबज्जा परहक पोखरिक पानि आब नहयबा जोग नहि. मुदा, बिदेश्वर बाबाक पोखरिक पानि एखनो टुटैत छैक. रवि  दिन सौ-दू सौ भक्त नहाइते अछि. ताहू मे भोरे-भोरे पूब मुँहे डूब देला पर ओतय सबसँ सूर्यक लाल चक्काक सोझे दर्शन हएत. पण्डित जीकें से नीक लगैत छनि.

आइ बिदेश्वर धाम आबि ओ सोझे पोखरिक घाट पर अयलाह. पक्का घाटक एक कातक सिमेंट झाड़ि, धोती-लोटा-सोंटा नीचा रखलनि आ पानि मे डूब देबा ले पोखरिक पानि मे धसि गेलाह.

अगहनक मास. जाड़ तँरहैक. मुदा, भोरुका सूर्य देखि पण्डित जीक मोन प्रसन्न भए गेलनि. ओ स्नान कए सूर्यकें जल चढ़ौलनि आ  घाट पर आबि धोती फेरलनि. धोती फेरि लोटा मे जल लए बाबाक दरबार दिस बिदा भेलाह तँबाटक कात बैसल बालदेव दासके हिनका पर नजरि पड़लनि. ओ ओतय घूड़ लग बैसल छलाह. ओ पण्डित जीकें देखि दुनू हाथ जोड़ि माथ मे सटबैत दूरेसँ, ‘ बाबा परनाम. कनेक आगि तापि लियअ. बड्ड जाड़ छै.’

पण्डित बटेश मिश्रकें लोकक लग बैसि मनक भड़ास निकालबाक विचार नहि छलनि, से नहि. मुदा, सोचलनि, पहिने बाबाकें हाज़री बजाइए ली. तें, ‘कनेक थम्हह. बाबा लगसँ  भेल अबैत छी’ कहैत ओ  झटकारनहि, बाबाक मंदिर दिस बढ़ि गेलाह. मुदा, जाड़ तँहोइते रहनि. सोचलनि, गप्प तँ बालदेव कोनो बेजाय नहि कहैए. मुदा, घुरैत छी तखन बैसब.

पण्डित जी बिदेश्वर बाबा लग जल चढ़ौलनि, पूजा केलनि. मुदा, आइ धरि कहिओ बाबाकें शिवपंचाक्षर, शिवमहिम्न आ शिवताण्डव स्तोत्र बिना सुनओने ओ मंदिर नहि छोड़लनिए. से चाहे मकरे केर मेला किएक नहि होउक. बाबा हिनका ओहि अवसरसँ कहिओ वंचित नहि केलखिन-ए. हिनक तकर संतोष आ बाबा पर असीम श्रद्धा छनि.

आइ जखन पूजा-पाठ कए पण्डित बटेश मिश्र बहरएलाह तँरौद उगि गेल रहैक. मुदा, जाड़ तँ रहैक. अस्तु, घूड़क लगहि चबूतरा पर बैसि गेलाह. ओतय आनो कतेक गोटे बैसल छल. मौक़ा नीक रहैक. बस शुरू भए गेलाह: ‘भगवानक एहन अपमान. अनर्थ ! एहन नास्तिक !! बाबाकें की, शालिग्राम-नर्मदेश्वर धरिकें नहि छोड़लक. आ से दोहा हमरा लोकनिक नेना स्कूल मे रटैत अछि. कलियुग समर्थ भए गेल ! कहि पण्डित जी अपन अंतिम वाक्यकें जोर दैत पुनः दोहरौलनि: ‘ कलियुग समर्थ भए गेल !!’

पण्डित जीक अंतिम वाक्यक श्रोता पर समुचित प्रभाव भेलैक. बालदेव पुछलकनि,’ की भेलै, बाबा ? किए तमसैल छिऐक ?’

बालदेव दासक प्रश्न सुनि पण्डित जीकें संतोष भेलनि. मुदा, ओ क्षण भरि ले थम्हि चारू कात नजरि घुमौलनि. हुनका भेलनि जे बालदेवक प्रश्न पर आनो बहुत लोक आकृष्ट भेले. बस ओ पुनः जोर-जोरसँ शुरू भए गेलाह: ‘बाबाक अपमान ! चोरी आ सीना जोरी !! सेहो स्कूल मे !!!’

ताबत अओरो लोक ओतय जमा भए गेल. किछु गोटे पण्डित बटेश मिश्रक वाक्यकें पुनः पकड़लक: ‘एं ? बाबाक अपमान ? के अछि एहन पापी ? बज्जर खसतैन !’

‘ हं हौ. अपमान नहि तँकी ?  सेहो धिया पुता पढ़ैए. अनर्थ !’ अनर्थ शब्दक संग स्वर ऊँच आ वाक्य कनेक आओर दीर्घ भेल. आ तकर पछाति, पण्डित जीक चारू कात ओतय एकटा छोट-छीन मेला लागि गेल. संगहि शुरू भए गेल तरह-तरहक  प्रश्न, पण्डित जीक उत्तर, आ श्रोता सबहक टीका टिप्पणी आ संकल्प सेहो.

जखनि बेस लोक जमा भए गेलैक तँ पण्डित जी विस्तारसँ अपन चिन्ताक मीमांसा शुरू केलनि. काल्हि बंभोला कोना दोहा रटैत छल. ओहि मे कोना पाथरक भगवानक तुलना पहाड़ आ जाँतसँ कयल गेल छलनि. सेहो, जे पहाड़े आ जाँते बाबासँ पैघ थिक, नीक थिक !

एहन धर्म विरोधी गप्प ककरो नीक नहि लगलैक. एक गोटे आगू आयल : ‘बाबा के थिक एहन डपोरशंख !’

‘कहै छल, केओ कबीर थिक. कबीरे नाम थिकैक. हम तँ सएह बुझलिऐक.’

ओही समय अब्दुल रहीम अपन दोकान ल’ कए बिदेश्वर स्थान आयल छल. भगवान जानथि, ओकर परिवार कहियासँ, बेंगक चामसँ बनल, माटि आ बाँसक कमचीक, डिगडिगिया गाड़ी बिदेश्वरक मेलामे बेचैत आबि रहल अछि. जहां आब आन कतेक ठाम  हिन्दू धार्मिक स्थल मे हिन्दुए टा कें दोकान-दौड़ी करबाक अनुमतिक गप्प चलि रहल छैक, बिदेश्वर बाबा एखनो धरि टेक रखने छथि. एतय ककरो पर कोनो प्रतिबन्ध नहि छैक. ओहुना अब्दुल रहीमक परिवारक कतेक पुश्त,  पण्डित बटेश मिश्रक दुबौलीक खेत जोतैत आबि रहल अछि. हुनका उत्तेजित होइत देखि अब्दुल रहीम अपन बेटा मजीदकें दोकान पर बैसा देलकैक आ सहटि कए, पण्डित जीक चारू कात जमा मेला लग आयल. फेर ओएह प्रश्न. फेर ओएह उत्तर. मुदा, पण्डित जीकें आशा नहि रहनि, भगवान-भगवती चर्चा आ अपमान मे केओ मुसलमान एना भए क संग देत. तें, जखन ओ अब्दुल रहीमकें सहमति मे मूड़ी डोलबैत देखलखिन, तँ हुनका आश्चर्य भेलनि. मुदा, अब्दुल रहीम ओतबे पर नहि थम्हल. ओ बाजए लागल: ‘बाबा वाजिवे न बोललखिन. कल त हमहू लड़िका के एक तमाचा दिया. साला, कुफ्र करता रहे. बलू किताब मे लिखिस है, ‘मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खोदा ! जुलूम करता रहे छोकरा. थप्पड़ मारली त ओहे बात: कि त हिन्दी किताब मे लिखा रहा. हम डांटे, ‘ ऐ, मरदूद, ये कोन सा तालीम है, रे,  जो अल्ला मियाँ को भला-बुरा बोलता है ? त बोला, कोई ....... कबीरबा रहे !! हम चुप हो गये. अभी बाबा बोलते रहे तो, बात मिल गया !’

ताबते दोसर दिससँ फटफटिया पर हलुमान जादब आबि कए, बाबाक मंदिरक गेट लग अपन मोटर साईकिल ठाढ़ केलक. मुदा, पीपरक गाछक चबूतरा लग ठाढ़ भीड़ देखि ओकरा रहि नहि भेलैक. नवका नेता. पछिला लोकसभा चुनावक समय कालेज छोड़ि जे लीडरी मे लागल, से कतबो माए बाप कहलकैक घूरि कए कालेज नहिए गेल. बाप बड्ड बुझेबाक कोशिश केलकैक. मुदा, हलुमान ओकरा तेहन ने पट्टी पढ़ौलक जे ओहो चुप्प भए गेलैक. कहलकैक, तोरा ने होइ छह हम कॉलेज छोड़ने छी. ओतय तँ पाँचो टा विद्यार्थी अबिते ने छै. तखन परीक्षा बेर मे हमरा के रोकत. आ परीक्षा देबै, त, फेल के करत !’ बाप  गुम्म भए गेलैक.

आइ मौका देखि हलुमान जादब मेला मे सन्हियायल आ लोक सबकें धकियबैत आगू आयल. पण्डितजीकें दूरेसँ हाथ जोड़लकनि. मुदा, यावत् ओ आगू आबए, जियालाल सेहो कबीरबाक विरोध मे ठाढ़ भए चुकल छलाह. मिडिल स्कूल तक पढ़ल जियालालकें तखने मन पड़ि एलनि. बाजए लगला, ‘ ई कबीरबा ढीठ अछि, बाबा. वयस मे तँ आब अहाँसँ कम नहिए हएत. ओकर दोहा तँ हमरो लोकनि किताब मे पढ़ने रही. ओ तँ..... राजा राम धरि के नहि छोड़लक ! बंभोला बाबा सुधंग. हुनकासँ  की  डेरायत ओ. हेहर अइ, कहै छैक, कि तँ: जँ कबीर कासी मे मरिहों, रामक कोन निहोरा

‘एतेक हहंकाल !’ कहैत जिया लाल अपन कपार पीटि अपन अपन दुनू हाथ ऊपर कए आकाश दिस तकलनि.

हलुमान जादब ले ई असली मौका छलनि. ओ उपरेसँ गप्प लोकि लेलनि: ‘एं ? भगवान रामक अपमान. छोड़बनि नहि. केस क’ देबनि.  जमानत नहि भेटतनि ! जमानत ले ओकील नहि भेटतनि !!’

सब जोरसँ  हलुमानक समर्थन केलक: ‘छोड़बनि नहि !! केस क’ देबनि !!’

पण्डित जीक असंतोष, धार्मिक सद्भावक हेतु एहि इलाका मे एहन अचूक औषधि बनत से अजुका युग मे आश्चर्यजनक छल. मुदा, हलुमान जादब ई बीड़ा उठा लेने छलाह. धर्मक रक्षाक गप्प रहैक. ओ दौड़ धूप शुरू कए  देलनि. दोसरे दिन भोरे ओ थाना पर गेलाह. प्राथमिकी दर्ज करेबा मे पांचो मिनट नहि लगलनि. हलुमानकें के नहि चिन्हैत छलनि. ताहि परसँ  नेता जीक ओहि ठाम हुनका रहरहां सब देखिते रहनि. मामिला संगीन रहैक. धार्मिक भावनाक ठेसक गप्प रहैक. ततबे नहि एके टा उपद्रवी, तीन तरहें, धार्मिक सद्भाव पर चौतरफा चोट कए रहल छल. सामाजिक सद्भावकें ठेस पहुँचला पर अनर्थ हेबाक भय रहैक. मामलाक गंभीरता कें देखैत कोर्ट सेहो एहि केसक अविलंब संज्ञान लेलक. तें, तेसरे दिन केसक सुनबाई शुरू भए गेल. सुनवाई शुरू भेल.

सरकारी ओकील सरकार दिससँ ठाढ़ भेलाह आ एके श्वास मे संपूर्ण आरोप पत्र पढ़ि गेलाह.

कबीरक बचाव मे ककरो नहि आयल देखि, कोर्ट प्रश्न उठौलक:

-  आरोपी ?

- कबीर हजूर ! फरार है !!

- बाप का नाम ?

- नामालूम, हजूर.

- बासिन्दा ?

- बनारस बोलता रहा, कोई . ऐसा लोक का कोई ठिकाना होता है, हजूर.

- कोई बात नही. कहीं का भी हो. धार्मिक भावना को ठेस ! न्ना !! केस कहीं भी दायर हो सकता है. पुलिस कहीं भी जा कर जांच करे, छूट है !

कोर्टक उक्तिसँ दरोगाक हौसला बढ़लनि. आगू प्रश्न जारी छल: 

- उमर कितना होगा ?

 - पता नही, सरकार. का पता मर-मरा गया हो. लेकिन, बात वो नहीं है, हजूर !

- क्या बात नही है ?

‘गौर कीजिये हजूर’, ओकील अपन दुनू हाथें, बेल्टकें दू दिससँ पकड़ि, धोधि परसँ ससरैत पैन्टकें ऊपर घिचैत बाजब शुरू केलनि, ‘ सरकार जो सौ साल पहले मर गये उनको पुरस्कार तो मिलता ही है. सजा भी मिलता है. और ई कबीरबा मरते-मरते भोला बाबा, खोदा और, रामजी, सब को भला बुरा कह गया. हमरे भावना को ठेस लगा गया. तो, आप ही कहिए इसको छोड़ देना मोनासिब होगा ?

जज साहेब आँखि परसँ पढ़बाक चश्मा उतारि प्रशंसाक दृष्टिसँ ओकील दिस देखि प्रभावकारी आ रौबदार शब्द में घोषणा केलनि: ‘नहीं छोड़ेंगे !’

एकाएक तालीक गड़गड़ाहटसँ कोर्टक कमरा गूंजि उठल.

अपन दहिना हाथक लकड़ीक हथौड़ी टेबुल पर जो-जोरसँ पटकैत जज साहेब चेतावनीक स्वर मे घोषणा केलनि: आर्डर ! आर्डर !!                        

    

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