समाचारपत्रक भविष्य
१९८७ मे प्रकाशित ‘Does
Writing Have a Future’ नामक अपन पोथी क भूमिका में दार्शनिक विलेम फ्लस्सर लिखैत
छथि: ‘सत्यतः, (अक्षरक माध्यमससँ) लिखबाक (विधाक) कोनो भविष्य नहि
छैक. कारण, एखन जे किछु अक्षर द्वारा संप्रेषित कयल जाइछ से सब किछु, आ जे अक्षर
द्वारा प्रेषित नहिओ कयल जा सकैछ ( जेना चित्र आ ध्वनि) सेहो, कंप्यूटर कोड आ
रिकॉर्डिंग द्वारा प्रेषित कयल जा सकैछ.’
एही पोथीक एक अन्य
अध्याय, समाचार पत्र, मे आगू ओ लिखैत छथि, ‘ समाचार पत्र आब ओतबे पुरान प्रतीत
होइछ जतेक घुड़सवारीक बाट.....ओहुना (पोथीक तुलना मे) समाचार पत्रक अस्तित्व
तत्कालिके छैक, एहन जे लोक तुरत बिसरि जाइछ..... ( ओहुना) समाचार पत्र
राजनैतिक आ ऐतिहासिक चेतनाक अंतिम पड़ाव थिक, आ अपन एहि स्वरुप मे ई नितांत
प्रतिक्रियावादी थिक, खास कए तखन, जखन ई (समाचार पत्र) अपनाकें प्रगतिवादी जकाँ
प्रस्तुत करैछ.’[1]
लिखित शब्द आ समाचार
पत्रक भविष्यक प्रति ई एक टा विद्वानक विचार भेल. एहि विषय पर मंथन भए सकैछ. मुदा,
एतय हम समाचार पत्रक भविष्य पर एक वस्तुनिष्ठ दृष्टि प्रस्तुत करए चाहैत छी. एहि दृष्टि मे समाचार पत्र
उद्योगक परिस्थिति, पाठक लोकनि स्वभाव आ रुचि मे परिवर्तन, आ समाचार पर संबंधी भाषाई
प्रश्न पर दृष्टिपात करब सेहो हमर लक्ष्य अछि.
विकिपीडिया पर उपलब्ध
अद्यतन सूचनाक अनुसार ‘ समाचार पत्रक प्रचलनक संबंध विश्वक क्षेत्रसँ छैक.’ अर्थात्
, विश्वक विभिन्न भाग मे परिस्थिति भिन्न-भिन्न भेटत. मुदा, जं संयुक्त राष्ट्र
अमेरिकाक आंकड़ाकें देखी तं ‘२०१९ एवं २०२२ क बीच अमेरिका मे प्रति सप्ताह दू गोट
समाचार पत्रक ह्रास होइत गेलैए. एहिसँ अनुमान कयल जाइछ जे आब ‘करीब ७ करोड़ जनता लग
चाहे तं समाचार पत्र नहि पहुँचि पबैछ, वा संभावना छैक जे समाचार पत्र नहि पहुँचतैक.’
ततबे नहि, समाचार पत्रक बिक्री मे आयल एहि पैघ ह्राससँ पहिनहुँ, अमेरिका मे समाचार पत्रक बिक्री मे ७%
क कमी दर्ज भेल छलैक.[2]
अमेरिकाक विपरीत भारत
में रजिस्ट्रार ऑफ़ न्यूज़पेपर्सक आँकड़ाक अनुसार वर्ष २००९-१०सँ ल’ कए वर्ष २०१५-१६ केर बीच समाचार पत्र बिक्री
में अभूतपूर्व उछाल आयल छल. ई वैश्विक अनुमान विपरीत छल. मुदा, तकर बाद २०१९-२०
धरि समाचार पत्रक बिक्री में करीब ३६ प्रतिशतक ह्रास भेले.[3]
उपरोक्त आँकड़ा अवश्य
समाचार पत्रक लोकप्रियता आ बिक्री मे ह्रासक द्योतक थिक, जे हमरा लोकनिक अनुभूत
सत्यक समर्थन करैछ. अनुभव कहैछ जे हमरा लोकनि पहिने भोरुका चाहक संग समाचार पत्र तकैत
रही. डेरा पर वा होटल मे, सब ठाम सम्पूर्ण देश मे ई सुविधा प्राप्त छल. पछाति, टीवी
पर चौबीस घंटा समाचार, समाचार पत्र मे प्रकाशित समाचारकें बासि बना देलक. तखन आयल,
गूगल, सोशल मीडिया, whatsapp यूनिवर्सिटी, पार्टी सबहक मीडिया डिपार्टमेंट, फेसबुक
आ आओर की-की ने. अस्तु, आब शहर बाज़ार मे नवका पीढ़ीकें समाचार पत्र किनैत कदाचिते
देखबैक. आब होटलहु आ हवाई जहाजहु पर भोरुका
पेपर नहि भेटत.
अमेरिका मे हम ई
परिस्थिति बारह वर्ष पहिनहु देखने रहियैक. ओहि ठाम भोरे-भोर घर-घर समाचार पत्रक
चलन नहि देखलिऐक. छोट-छोट शहर केर दोकान-दौड़ी काउंटी न्यूज़पेपर भेटत. मुदा, २५-३० पेजक पत्र(
broadsheet) मे मोसकिलसँ पाँच पेज समाचार. बाँकी सब विज्ञापन. समाचारहु मे बेसी
सांस्कृतिक, खेल-कूद आ साहसिक उद्यमक गप्प. स्थानीय सामाजिक आ राजनैतिक समाचार
थोड़-बहुत. देश आ दुनियाक समाचार तं एकदम नहि. न्यूयॉर्क वा वाशिंगटनक गप्प हम नहि कहब.
मुदा, कम सँ कम न्यूयॉर्क मे मेट्रो स्टेशन पर हम समाचार पत्र बिकाइत नहिए
देखलियैक.
एहिसँ हम ई निष्कर्ष
निकालैत छी जे ‘डिजिटल जेनरेशन’क युवक वर्ग बहुत छोट हिस्सा छपल समाचार पत्र किनैत
छथि. तखन की ई समाचार पत्रक भविष्य दिस संकेत नहि करैछ ?
आब समाचार पत्र आ भाषाक
गप्प करी. भाषा एखन धरि नागरिकक अस्मितासँ जुड़ल छल. किन्तु, वैश्वीकरणक युग मे
भाषाक आवशयकताक मानदंड आ मूल्य में परिवर्तन भेलैए से सब ठाम देखबा मे अबैछ. भाषा आब अस्मिता नहि सफल व्यवसाय आ आर्थिक
संपन्नताक सोपान थिक. नहि तं दिल्लीक मुख्यमंत्री किएक ई प्रचार करितथि जे दिल्ली
स्कूलक छात्र ओहिना फटाफट अंग्रेजी बजैत अछि, जेना प्राइवेट स्कूलक छात्र ! दिल्ली
सरकारक स्कूल मे अंग्रेजी बजबा मे दक्षताक हेतु कोचिंग अभियान समर्थन मे अरविन्द
केजरीवाल कहैत छथि जे ‘ एहिसँ युवक लोकनिक व्यक्तित्वक विकास आ रोजगारक अवसर मे वृद्धि
हएत.’ [4] कारण, भूमंडलीकरणक एहि युग में अंग्रेजी ‘समानताकारक(leveller )’ थिक. तखन,
जखन मैथिल आ मराठी, सबकें अंग्रेजीएसँ रोजगार
भेटतैक, तखन ओकरा मातृभाषा मे दक्षताक कोन काज ? मातृभाषा मे समाचार पत्र पढ़बाक कोन बाध्यता ? आ
से बाध्यता जं नहि रहतैक, तं विज्ञापनक बल पर भाषाई समाचार पत्रक बिक्री कहिया धरि
टिकि सकत. ताहू मे डिजिटल विज्ञापन त्वरित आ सर्वव्यापी होइछ. ओतहु प्रतियोगिता
छैक. रहल गप्प ओहन भाषाई समाचार पत्रक जनिका ने साधन छनि, ने विज्ञापन, आ ने सक्षम लिखनिहार ओ लोकनि अपन भविष्य अपने
देखथु.
सन्दर्भ:
1. Flusser V: Does Writing
Have a Future (1987): London; University of Minnesota Press.
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Decline_of_newspapers accessed 07/ 08 /2022
3. Indian Newspaper Market: A Sinking Star? (https://www.statista.com/chart/27469/circulation-of-print-newspapers-and-periodicals-in-india/ accessed 07/ 08 /2022 data source: Office of the Registrar Newspapers India
4. TIMESOFINDIA.COM / Jul 23, 2022, Delhi (https://timesofindia.indiatimes.com/city/delhi/delhi-cm-arvind-kejriwal-announces-free-spoken-english-course-for-youths/articleshow/93070297.cms accessed 07/ 08 /2022
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