ऋतु परिवर्तन
समय सुखद हो वा विपरीत
ऋतु परिवर्तन सहजे थीक।
पतझड़ |
1
मेरुदंडक बल
मारि आ बिहाड़िओक असरि
नहि होइछ सबतरि एक समान!
भलहि,
खसौक पात, टूटौक डारि,
भोगय मनुख कष्ट
आ सहय देहक मारि,
मजगूत जड़ि,
आ मेरुदंडक बल
वृक्ष, वा मनुखकेँ
रखने रहैत छैक ठाढ़,
आ बिहाड़िओमे सोझ डांड़।
पतझड़-2
पतझड़क रंग |
बरखा खूब, नीक भए तीतल,
गाछ-वृक्ष केर गाल,
प्रकृति निआरि नीक कए औंसल,
रंग-विरंग गुलाल।
पतझड़ – 3
सब वृक्ष,
एके गाछक सब डारि,
ओकरे गोट-गोट पात,
आ लगहि अगराइत, दुर्बल-सन गाछ,
नहि लैछ,
पतझड़हुक संज्ञान एक समान!
कोनो सुट्टा, क्रान्तिक भाषा
बजैत
रहैए लाल टरेस, ठाढ़,
दोसर, महंथ-सन मोट
गाछक पात
ऋतु परिवर्तन पर तमसाइत
भए जाइछ लाल, फेर पिरोंछ
आ सुखाकय सोझे भूभिसात्!
आ कोनो-कोनो बुढ़बा गाछक
झमटगर डारिपर
वायुमे उमकैत पात
रहैए, बेपरवाह,
हरिअर,
जा धरि नहि धबैत छैक कड़कड़ौआ
जाड़!
आश्चर्य!
एके वायु, एके सूर्य,
एके भूमि
एकहि टा आकाश
तथापि, असरि किएक
भिन्न?
एके आकाश तर
ककरो दिन,
आ ककरो अदिन!
पतझड़ - 4
विपरीत ऋतुमे
पात जखन छोड़ैछ डारिक संग,
देने जाइछ ओ भूमिकेँ
अपन किछु रंग ।
क्रमशः सड़ि-गलि भले होइछ
ओ खाद,
अपना जे भेलैक, होउक
अनायास
जीवक तँ होइछ किछु उपकार।
पतझड़ – 5
चित्र : एकसर ठाढ़ वीर |
जखन आन सब पड़ोसी वृक्षकेँ
धऽ लेलकैक पाण्डुरोग,
तखनो ई युवक-
बीचमे ठाढ़ हरियरका गाछ
मानलनि नहि हारि।
जेना, होथि ई
सियाचिनमे तैनात प्रहरी,
जे बारहो मासक हिमपात
आ निरंतर बहैत ग्लेशियरसँ
रहैछ निरपेक्ष, अडिग,
मौसम आ ऋतुसँ बेपरवाह!
केवल रखने ध्यान, निरंतर
शत्रु पर।
ओकर शत्रु तँ थिकैक,
शीत आ बसातो,
कनकनीओ,
आ फेफड़ा तथा मस्तिष्क पर
जानलेवा प्रहारो ।
मुदा,
प्रहरीक ध्यान रहैछ केन्द्रित
केवल सीमाक पार, शत्रु पर ।
ओएह लक्ष्य ओकरा
दैत छैक
अंतरमे ऊर्जा
आ शरीरमे उष्मा,
आ शत्रु पर विजय!
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