Sunday, December 26, 2021

पुस्तक-समीक्षा : प्रसंगवश (कविता-संग्रह)

 

पुस्तक-समीक्षा

प्रसंगवश (कविता-संग्रह)

मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल,2021, दरभंगा मे एकटा युवक हाथें-हाथ एकटा पोथी बिलहैत रहथि. हमरो देलनि। पोथीक नाम छलैक ‘प्रसंगवश’. कवि थिकाह संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) निवासी डाक्टर मनोज कुमार कुमार चौधरी.

पोथी हमरा हेतु श्रेष्ठतम उपहार छी. पान खेनिहारक सामने केओ पनबट्टी खोलि कए राखि देथिन आ ओ पानक खिल्ली नहिं उठओताह से असंभव. तहिना हमरा हाथ में पोथी आयल तं हम तुरत पन्ना उनटाओल. कविता सबहक सहजता आ भाषा आकृष्ट केलक. लग में प्रोफेसर भीमनाथ झा बैसल रहथि. हम कहलियनि, ‘कवि सिद्धहस्त छथि. कविता सब नीक छैक.’ पछाति जखन पटना आपस अयलहुँ तं एकहिं बैसार कुल तीसो कविता पढ़लहुँ. हमर आरंभिक धारणा दृढ़ भेल.

आजुक युग में जखन मैथिलीक अस्तित्वे पर प्रश्न-चिन्ह ठाढ़ अछि, ‘प्रसंगवश’ एकटा शुभ संकेत थिक. कारण, मैथिली विश्व भरि में पसरल मैथिली भाषीक ह्रदय में ओहिना जोगाओल राखल अछि जेना माटि में बीआ सब जोगाओल रहैत अछि जे अनुकूल समय पर स्वतः अंकुरित भए जाइछ. डाक्टर चौधरीक ‘प्रसंगवश’ तकरे प्रमाण थिक. कवि स्वयं सेहो से स्वीकार करैत कहैत छथि. पोथीक निवेदन मे ओ कहैत छथि:

‘हमर व्यक्तित्व मे जे किछु सरस अछि, कोमल अछि, ताहि सभसँ पोअरियामे अपन पितामह (स्वर्गीय कुशेश्वर चौधरी) संग बितैल समय मूलभूत रूपे जुड़ल अछि. संभवतः ओकर श्रोत अछि. छव दशकसँ ऊपर बीति गेल. मुदा, मोन अछि ओ ‘कचहरी’ ( माटिक देबाल आ खरक छप्पर वला एकटा रसोई घर, ताहिसँ सटल एकचारी) आ तकर सम्मुख ओ विशाल वट वृक्ष, ओकर सघन छाहरि मे असगर खेलाइत स्वयं-अविष्कृत खेल-कूद, मुक्त कल्पनाक उड़ान, इनारक जलसँ बनल भातक लालपन, बबूरक लस्सासँ विविध आ विचित्र रूप रचना, गर्मीमे बड़कल अलकतरासँ बनल गोली, दरभंगा बागमतीसँ निकसल पार्श्व धारक पारदर्शी पानि आ ओहिमे झलकैत माछ, बथनिआ सभक महिसक टटका दूहल फेन भरल दूध आ ओहिमे फुलैल चूड़ा जे बिना गूड़ोके लगैत छलैक मीठ .’

अर्थात् , कविक मन मे नेनपनसँ  जोगओल संवेदनाक बीआ विदेशहुँ मे अनुकूल अवसर पाबि, जे किछु कविताक रूप में समय-समय पर अंकुराइत रहल तकरे संकलन थिक, ‘प्रसंगवश’. तें, स्पष्ट अछि, सुदूर भूतहु में जोगाओल मैथिलीक बीआ, विदेशहुँक जलवायुक संयोगे कखन, कतय, कोन रूप मे प्रष्फुटित हयत, के कहत !                 

किन्तु, एहि पोथीक भाषा सुच्चा ग्रामीण मैथिली अछि. शब्द-विधान कविक अप्पन छनि आ बिंब चमत्कृत करैछ. किछु देखल जाय:

 ...मंत्रमुग्ध आइ हीलइत अछि

हिकरी, एश आ ओक

कोनों मधुर ताल पर डोलइत अछि

आइ हरियर पाइनक नोक।

एतय जं भाव-बोध कविक छनि तं गाछ-वृक्ष अमेरिकाक स्थानीय थिक ; ई व्यक्तिगत अनुभूति आ स्थानीय परिद्र्श्यक अद्भुत संश्लेषण थिक. मुदा, सब किछु कविक हृदयक सोझ-साझ उदगार थिक. से कवि कहितो छथि:   

‘.......आइ अछि अहाँके अर्पण

हमर छोट छीन उपहार ।

टूटल भांगल शब्दमे

हृदयक सोझ साझ उद्गार।..’

हमरा जनैत ई  पाँती पोथीक सार थिक.

एहि सबहक संग, आन कविता सब मे कविक दुविधा (बरु नीके केलें), विदेश में रंगभेदक भय (ननमुहीं टाड़ी), पाछू छूटल गामक प्रति मोह आ उद्वेग, प्रकृतिक  प्रेम, आ पॉलिटिक्स (लेडी बर्ड जॉनसन) सब अछि। मुदा, हमरा जनैत, 'जाड़कालाक सुर्ज' एहि संकलनक सबसँ उत्कृष्ट कविता थिक. महाकवि 'यात्री' मन पड़लाह. देखल जाय:

‘कारी केथड़ी कनपट्टी तक घिंचने

कतेक काल तक एना कुलबुलाइत रहब

अहाँ हे विवस्वान् ?

कनेक कनखियो त’ दिऔक .

देखू, कोना कठुआइल अछि

कांतिहीन गाछ सभक

कजरी पोतल कारी ठाढ़ि

कतेक निराश अछि परिवेश

कोना लागैत निष्प्राण ?

जुनि अगड़ाउ, जुनि अलसाउ

आब छोडू अपन भाभट

अहाँ हे  विवस्वान् .’

ई सब किछु केवल बानगी थिक. पोथीक आस्वाद ले पोथीक परायण करी. अनुमान अछि, किननिहार कें पोथी पुस्तक-भण्डार सब मे उपलब्ध हेतनि. यद्यपि, पोथी में विक्रेता वा लेखकक पता नहिं भेटल.

सारांश मे, भावक विविधता, कहबाक सरल-पारदर्शी शैली, सुच्चा ग्रामीण शब्दक प्रयोग आ साधल शिल्पक कारण डाक्टर मनोज कुमार चौधरीक ‘प्रसंगवश’ केर स्वागत हयबाक चाही. हमरा विश्वास अछि, पाठक लोकनिक बीच एहि पोथीक स्वागत हएत. हिनक आन कृतिक प्रतीक्षा रहत.

 

पोथीक नाम: प्रसंगवश (कविता-संग्रह)

कवि: डाक्टर मनोज कुमार चौधरी, Reynoldsburg,Ohio,USA.

        ग्राम: पनिचोभ, जिला- दरभंगा.

        ( मुख्यतः अमेरिका आवाससँ पूर्व मुख्यतः कोलकाता निवासी )

संस्करण: प्रथम, अक्टूबर 2021

पृष्ठ संख्या: 63

प्रकाशक :         -

Saturday, December 18, 2021

बेटी

 

बेटी

1

रामदाई जखन ककरो मुँहे सुनथिन, ‘ कुमारि बेटी मरय तं सात कुलक पाप टरय तं बड्ड दुःख होइनि. होइनि जे लोक एना किएक कहैत छैक ?’ इहो सोचथि, ‘माए तं एना कहियो नहिं बजैत छैक. तें, राम दाई कें माए ले जतबे आदर होइनि, ततबे चिन्ता. सोचथि, बूढ़ भेलीह. बेटा लोकनि बाहर रहैत छथिन. रुपैया टाका सब गोटे पठा दैत छथिन. मुदा, माए गाम में एसगरे रहैत अछि. माए लग आबि कए के रहतनि ? संतोषक गप्प जे दाई कें  समांग छनि, आ ओ जेना छथि खुशी छथि. मुदा, तैयो दाई बेसी काल कहथिन, ‘अइ, जखने बूढ़ भेलहुँ, तखने दूरि गेलहुँ. सब कें होइत छनि, दाई ऐना नहिं करैत, ओना नहिं करैत छथि, बदलय नहिं चाहैत छथि.’ मुदा, दाई सब टा सुनैत रहथि आ सुनिओ कए अनठबैत रहथि. सोचैत रहथि, ‘बूढ़ कुकुर कतहु फाँस बझए ! आब हम की बदलब. जेना छी, कहुना निमहि जाए.’  अधिक काल कहथिन, ‘अधलाह नहिं सुनी, अधलाह नहिं देखी, अधलाह नहिं बाजी.  ई गप्प बड्ड पुरान गप्प थिकैक. ई बुढ़ारी में बड्ड काज अबैत छैक. तें, बुढ़ारी में आँखि स्वयं कमजोर भए जाइत छैक. कान कम सुनैत छैक. भगवान जानिए कए एना करैत छथिन. अप्रिय नहिं देखब, नहिं सुनब, तं किछु अनटोटल बजलो नहिं जायत. कम बाजब नीक छिऐक से तं लोक सब दिनसँ कहि एलैए ! तखन ककरा कथिक शिकाइत हेतैक?’ मुदा, शिकाइत हयबा ले कारण थोड़े चाहियैक. मुदा, दाई गप्प नहिं बुझथिन, से नहिं. पचासी वर्षक वयसक. अपन सब काज अपनहिं करथि. कखनो कए जं कोनो गप्प पर  तामसो होइनि तं बेटी-पुतहु लोकनि कें कहथिन, ‘अइ, अहाँलोकनि कें भगवान जिनगी समांग देथु. अहूँ लोकनि दाई हेबे करब.’

पछिला वर्ष अकस्मात् कोरोना आयल. एहन रोग ने सुनल, ने देखल. ई तेहन काल छल जे ककरा ने लहायब केलक; की बच्चा, की समर्थ, आ की बूढ़-ठेढ़. ताहू पर ई अगड़ाही मनुखेसँ दोसर मनुख धरि पसरैत छल. तें, जे जतहि छल, ओत्तहि रहि गेल. ककरो आंग-स्वांग होइ, केओ मरि जाय, कोनो उपाय नहिं. टेन बन्न, प्लेन बन्न. कठियारी तक जेबा ले  मनुख नहिं भेटैक. दूरस्थ में फँसल  धिया-पुता कानि कए रहि गेल, माए-बाप कें आगि धरि देबा ले नहिं आबि सकल. एखन धरि कहियो एहन अवसर नहिं आयल रहैक जखन मनुष्यकें मनुष्येसँ एतेक भय भेल रहैक. मुदा, उपाय की ? तथापि, जखन बसाते माहुर भए गेले, तखन लोक बचत कोना !

दाई नान्हिए टा में खीसा सुनने रहथि. कहाँदन वायुदेव हज़ारों वर्ष धरि शिवक कठिन तपस्या कयलनि. तपस्यासँ प्रसन्न भए आशुतोष शिव प्रकट भेलाह आ वायु कें कहलथिन, ‘अहाँ चंचल छी. तथापि एहन कठिन तपस्या कयल. हम प्रसन्न छी. तीन टा वर मांगू.’ वायु कहथिन, हे, महादेव हम सब ठाम रही. सब प्राणीमें वास करी, इत्यादि, इत्यादि....’ शिव, ‘तथास्तु’ कहि, अन्तर्धान भए गेलाह.

दाई आइ सोचैत छथि, तहिया  जं वायु शिवसँ तेसर वरदानक हेतु निरंतर अपन पवित्रताक वरदान मंगने रहितथि, तं आइ मनुखक ई हाल नहिं होइतैक. दाई-सन धर्मप्राणकें लगैत छनि, वायुदेव-मरुत-क अहंकार लोक-कल्याण पर भारी पड़ि गेल. तें, मनुख, विख भेल बसातक पराभव भोगि रहल अछि.

2

जखन एकाएक कोरोना-कोविड महामारी आयल तं पहिने एकर रूप लोक कें बुझबा में नहिं अयलैक. कारण, पहिने दूरस्थ में एक्का-दुक्का लोककें कोरोनाक रोग भेलैक. गाओं घर में तेना भए कए केओ बुझबो नहिं केलकैक. मुदा, जखन शहर सब में अजस्र लोक मरय लागल, तं,  डर सबठाम पसरए लागल. आइ कोन परिवारक लोक बेद बाहर नहिं रहैत छैक. जेना पहिने लोक दरभंगा-दिल्ली जाइत छल, आइ दुबई-क़तर-बिलेंत-अमेरिका जाइत अछि. ताहि परसँ, की गरीब, की धनिक, कोरोना-कोविड ककरो नहिं छोड़लक. सब एके रंग भए गेल, सब एके रंग डरायल.

दाई सावधान छलीह. लोकक एक दोसराक घर आंगन आयब-जायब बन्ने छलैक. किन्तु, जखन एक दिन अचानक दाईक नाकसँ पानि बहब शुरू भेलनि, तं ओ सबसँ पहिने ठंढा पानिसँ नहायब बन्न केलनि. श्याम-तुलसीक काढ़ा सेहो पिबय लगलीह. तथापि, दोसरे दिन ज्वर भए गेलनि. करीब हफ्ता भरि गामक डाक्टर आ देसी इलाज करबैत रहलीह. मुदा, एक दिन अचानक जखन श्वास लेबा मे कष्ट होबय लगलनि तं बुढ़ा एसगरे उठा-पुठा कए अस्पताल लए गेलखिन. जेकरे डर रहनि, सएह भेलनि. बूढ़ देह आ कोरोना सन काल ! जवान जहान सब तं कीड़ा-मकोड़ा जकाँ छटबा-पटबा भए रहल छल, बूढ़-ठेढ़क कोन कथा. बेटी सुनलखिन तं हुनका कोंढ फाटि गेलनि. ओ आव देखलनि ने ताव सोझे फारबिसगंज जिला अस्पताल पहुँचि गेलीह.

राम दाई फारबिसगंज गेलीह कि घर में महाभारत मचि गेल. सासु हनहन-पटपट करय लगलखिन. कहथिन, ‘कनियाँ कोन ज्ञाने माए लग उठि कए विदा भए गेलीह. माय बूढ़ छथिन. अस्सी वर्षक. कतेक दिन जिथिन. आ जं कनियाँ कें किछु भए गेलनि, हमर घर में कोरोना आबि गेल तं हम की भए क रहब ! हमरा एके टा बेटा आ एके टा पोता अछि !’

                                                                       

3

राम दाई फारबिसगंज पहुँचलीह तं माए कें ज्वर-उकासी आ श्वास लेबामें कष्ट रहनि. मुदा, होश में रहथिन. ऑक्सीजन लागल रहनि. परिवार कें रोगी लग बाहर भीतर जायब मना रहैक. मुदा, ताबत बुढ़ीकें फोन पर गप्प करबा जोकर रहथि. तें, राम दाईसँ गप्प भेलनि. राम दाईक बोली सुनि कए बुढ़ी कें बड्ड हुबा भेलनि. कहलखिन, ‘बाउ, इलाज तं भइए रहल अछि. बूढ़ छी. मुदा, अहाँ किए अएलहुँ. सुनैत छी, एहि रोगक लसेढ़ बड्ड खराब. अहाँ कें नेना छोट छथि, परिवार अछि. अहाँ हमरा देखि लेलहुँ. आब जाउ.’ माएक गप्प सुनि  राम दाई कें  आँखिसँ ढब-ढब नोर खसए लगलनि. कहलखिन, ‘ अहाँ ठीक भए जाएब. हम तं बाहरे छी. मुदा, हमरा तं गोटी भेल छल.सुनैत छिऐक ओहूसँ बड्ड लोक मरैत रहैक.  अहीँ कहैत छी, अहाँ हमरा छत्तीस दिन पर पथ्य  देने रही. हम कुमारिए रही. मुदा, अहाँ हमरा कहाँ छोड़ि  मरए देलहुँ.’ माए तखन चुप्प भए बेटीक गप्प सुनि लेलखिन. हुनका बजबामें आयास होइत रहनि. तथापि, हाथसँ आपस चल जेबा ले इशारा केलथिन, से अस्पतालक सीसा लागल खिड़की बाटें देखलखिन. मुदा, राम दाई कें माए कें छोड़ि कए आबि नहिं भेलनि.

दिन-रातिक इलाज. सूई, ऑक्सीजन, सेवा-सुश्रुषा. अस्पतालक डाक्टर-नर्स किछु उठा नहिं रखलकनि. मुदा, दाईक स्थिति बदसँ बदतर होइत चल गेलनि. अंततः, दाई कें डाक्टर लोकनि साधारण वार्डसँ आइ सी यू में लए गेलखिन. हुनक श्वास-नली में छेद धरि करए पड़लनि. डाक्टर निरंतर आबि कए राम दाई आ बुढ़ा कें दाईक परिस्थिति कहि जाथिन. राम दाई डाक्टरलोकनिक  व्यवहारसँ पूर्ण सन्तुष्ट रहथि. पन्द्रह दिन धरि निरंतर इलाज चलैत रहलनि. मुदा, दाईक परिस्थिति में सुधारक नाम नहिं.

एक दिन डाक्टर आबि राम दाई कें कहलथिन, ‘जे सब उपचार-प्रतिकार आवश्यक आ संभव छल, भए रहल छनि. मुदा, रक्त में ऑक्सीजन पर्याप्त नहिं होइत छनि. फेफड़ाक में बड्ड नोकसान भए गेल छनि. परिस्थिति बड्ड कठिन छैक.’ कहि डाक्टर चुप्प भए गेलाह.

मुदा, फेफड़ाक नोकसान आ दाईक ऊपर खतराक राम दाईक मन में नव समाधानक उदय भेलनि. ओ डाक्टरक चुप्पी तोड़ैत कहथिन, ‘डाक्टर साहेब, हम बेटी छियनि. सुनैत छियैक, जकर किडनी खराब भए जाइत छैक, अनकर नव किडनी लगओलासँ जान बचि जाइत छैक. सुनैत, छियैक आइ काल्हि लोकक फेफड़ा सेहो बदली होइत छैक. हम जवान-जहान छी. हम अपन एकटा फेफड़ा- अपन आधा ऑक्सीजन माए कें दए देबैक. एकटा फेफड़ा- आधा ऑक्सीजनसँ  हमर काज चलि जायत. हम बेटी छियैक, डाक्टर साहेब ! हमर माएक जान बचा लियौक.’

डाक्टर साहेब गुम्म भए गेलाह. तखने डाक्टर कें भीतरसँ बजाहटि भेलनि. कहलखिन, थम्हू. हम अबैत छी.

दाई ओही दिन आँखि मुनि लेलनि. दाई चलि गेलीह से एक संताप. मुदा, राम दाई सोचैत छथि आब गृह कलहक समाधान कोना हएत. घर कोना आपस जायब !

            

Tuesday, December 14, 2021

गाम में सामाजिकता एखनो जीवित अछि

 

                                                 गाम में सामाजिकता एखनो जीवित अछि

एहि बेर मार्च में हमरा गाम छोड़ना पचास वर्ष पूरि गेल. मुदा, गाम आयब नहिं छूटल अछि. पहिने केवल दादा आ दाई गाम में रहैत रहथि. दादाक गेना चालीस वर्ष आ दाईक गेना अठारह वर्ष भए गेलनि आब. मुदा, गाम अबिते छी. ने अगहनी में ने आमक मास में , जहिया पहिने लोक धिया-पुता कें लए गाम अबैत छल. हमरा ओ आकर्षण नहिं. एहि बेर अयबाक कारण छल भाई लोकनिसँ भेंट- एक गोटे छियासी वर्षक छथि, दोसर अस्सीक धक्का पर . दरभंगा में लिटरेचर फेस्टिवल छलैक. ओहि समारोहक पहिल दिनक कार्यक्रममें भाग लेल आ गाम विदा भेलहुँ, तं दिनान्त हेबा पर रहैक. पहिने गाम अबैत रही त बाटे-बाट  सब गाम देखबा में अबैत छल. दरभंगाक पूब, सड़कक दहिना कात एकभिंडा पोखरि, तखन, सकरी, राजे-गंगौली, सरिसब-पाही, पैटघाट- ओतय एकटा टेढ़ भेल इनार रहैक, लोहना पाठशाला, आ तखन किरण जीक पड़ोसी, बिदेश्वर बाबाक मन्दिर. आब फोर लेन पक्की सड़क यात्रा कें जेहने सुलभ बना देलक अछि, तेहने अपरिचित, आ प्राणहीन. दूर-दूर गाड़ी हंकैत जाऊ, कोनो गाम नहिं देखबा में आओत. जेहने उत्तरप्रदेशक इलाका अपरिचित, तहिना अपन इलाका. जं कनेक साकांछ नहिं रहलहुँ  तं कखन बिदेश्वर स्थान छूटि जायत आ झंझारपुर बाज़ार पहुँचि जायब, बुझबो नहिं करबैक !

एहि बेर बड्ड ध्यानसँ  तकैत रहलहुँ तं लोहना पाठशाला देखबा में आयल. ओतुका मन्दिर हालहिं में ढौरल गेल छैक. आगू हाईवे छोड़ि दक्षिण दिस घुमलहुँ तं सूर्यास्त भए रहल छलैक. सूर्य चिन्हार लगलाह. एहि इलाकाक कतेक सूर्यक कतेक मुद्रा देखने छी. मुदा, आब कतेक बेर हिनकासँ भेंट हएबी बाँकी अछि, कहब कठिन. बिदेश्वर मन्दिरक बामाक गाछ वृक्ष सब एतय क्षितिजक प्रसारकें संकीर्ण कए देने छैक. मुदा, किछु आओर दक्षिण गेला पर धर्मपुरक बदिया बाधक बीच, जदुआहा पोखरिक ऊपर सूर्य आ हमरा बीच कोनो अवरोध नहिं. पोखरि में माँछ, घोंघारी, डोका-सितुआक शिकार में लागल श्वेत बगुलाक दल तखने ऊपर उड़ल. हम ओकर फोटो घिचल. ड्राइवर हमर गाड़ी रोकने रहथि. हमरा तन्मयतासँ सूर्यक लाल चक्काकें ध्यानस्थ भए देखैत कहलनि, ‘सर, हम आज तक ऐसा सूरज नहीं देखे हैं !’ हम पुछलियनि, ‘ सच ?’ ‘जी, सर !’

हम आगू बढ़लहुँ. धर्मपुरक पुरान कदम्ब गाछ जाहि तर बैसि हमर मातामह एवं  स्व. रमानाथ झाक पिता गप्प-सप्प करथि. ओ कदम्बक गाछ आ हुनक वंशजक स्थान आब  इंटाक छोट-सन कोठली ल लेने अछि. ओहि कोठली में आब दोकान चलैत छैक.

गाम पहुँचलहुँ तं चिराग रोशनी भए गेल रहैक. भाई जी दरबज्जा पर बैसल प्रतीक्षारत रहथि. नुनू भाई साँझहिं आरती ले दुर्गा-स्थान चल जाइत छथि, तें, पहिने पश्चिम दिस हुनके अंगना दिस गेलहुँ. अंगना जंगल भेल, भकोभंड ! भौजीक अकस्मात् कैन्सरसँ पीड़ित भए जायब, एकाएक सबकें उलटा-पुलटा कए देने छनि. नुनू भाई एकदम दुर्बल आ निराश लगलाह. बढ़ल दाढ़ी, धसल आँखिक. आँखि आ ठेहुन दुनूसँ लाचार ! एतेक स्वस्थ व्यक्ति जे हजारो बेर कामरु उठा कए देवघर गेल छथि, पाँच बेर दण्ड-प्रणाम केने छथि, हुनक परिस्थिति चकित करैत अछि. कहलनि, ‘हमरा नहिं लगैत अछि, बचतीह. भोजन किछु जाइत नहिं छनि. तखन देहो बेचि कए इलाज करेबे करबनि.’ चकित छी एतुका प्रशासन, बिहार सरकार आ नागरिक पर. जाहि शहर-लहेरियासराय में महाराज दरभंगा 192 5 ई. में विपुल दान आ भूमि दए टेम्पल मेडिकल स्कूलक स्थापना केने रहथि, ओतुका तं गप्प छोडू, पटना धरि में जनसामान्यक लेल कैन्सरक समुचित इलाजक  सुविधा नहिं छैक. तें बेर-बेर भौजी टाटा कैन्सर सेंटर में इलाज ले बनारस जाइत छथि ! नुनू भाई पेंशनर छथि, तें भारत सरकारक आयुष्मान भारत स्कीमक लाभ हुनका ले उपलब्ध नहिं ! इएह थिक अजुका बिहार ! नेता सुस्त, जनता कोनो अन्याय आ अव्यवस्था पर आक्रोश व्यक्त नहिं करैछ. चुनाव होइछ, नेता जितैत छथि, सरकार बनैत अछि. कोनो विरोध, कोनो आक्रोश नहिं. सरकार आ नेता ले एहिसँ नीक अओर की हेतैक !

हमर अपन घर सीलनसँ  भरल अछि. राति भरि जं एहि घर में रहलहुँ  तं भोर धरि दमा अवश्य भए जायत. आब प्रति वर्ष हमर अंगना में पानि भरैत अछि; एक दिस ऊँच सड़क, दोसर दिस पड़ोसीलोकनि  माटि भरि-भरि अपन-अपन डीह  ऊँच कए लेने छथि. कतहु पानिक  निकास नहिं. बंगलोर आ गाम एके हाल ! आब तं लोक चहबच्चा, पोखरि आ नासी धरि भरि कए घर बना रहल अछि !!

हमरालोकनि  एखन धरि घूरि-घूरि गाम अबैत छी. एहिं बेर गाम अयबाक बहाना भाई लोकनि छथि. जखन सेहो नहिं रहत, तखन गाम में की आकर्षित करत ! हम अपने गाम कें की दैत छिऐक ? हमरा के, आ किएक चिन्हत ?

भाई जी कहैत छथि, ‘आब ओ गाम नहिं अओताह. बड्ड कष्ट होइत छनि; एतय टाका देलहुँ लोक भेटब असंभव.’ एखन छोट शहर आ गाम में वृद्धाश्रम बनब आरंभ नहिं भेलैये. मुदा, शीघ्रे तकर आवश्यकता हेतैक; लोकक आयु बढ़ि रहल छैक. मुदा, सेवा केनिहार, बिहारसँ  बाहर शहर कमाइत छथि. एतय कोनो चाकरी नहिं. तखन बूढ़-बुढ़ानुसक सेवा कोना हेतनि !

मन्दिर में आरतीक बेर लागिचा गेल छैक. नुनू भाई मन्दिर पर जेताह. एकटा पड़ोसी महिला अपने घर में भोजन बना कए हुनका हेतु भोजन दए जाइत छथिन. गाम में एखनो सामाजिकता जीवित अछि, से आशाजनक थिक. शहर जकां एतय एखनो समाज विखंडित नहिं भेलैए. हम दुनू भाई लोकनि कें प्रणाम कयल. भाईजी उगुतबैत छथि: साढ़े छौ बाजि गेल छैक, आब जाऊ. हमरा मधुबनी जयबाक अछि. ओतहि रात्रि-विश्राम हेतैक. चारू कात अन्हार पसरि आयल छैक. तथापि, सब दिस सड़कक जालक सुविधासँ  हमरा मधुबनी जयबामें चालीस मिनटसँ बेसी नहिं लागत. हम गाम कें प्रणाम करैत छी, आ पश्चिम मुँहक बाट धरैत छी.


अपना गाँव

 



इस सूरज से अपनी यारी है

सूरत इसकी जानी पहचानी है

सुबह-सुबह जब ऊपर आता है

खेतों के उपर  जब शाम को इठलाता है,

लगता है,

इस सूरज से अपनी यारी है

सूरत इसकी जानी पहचानी है .

उछलती मछलियाँ पोखर में दिख जाती हैं

लडकियाँ अब यहाँ इस में कहाँ नहातीं हैं

पानी पीने कोई बैल नहीं अब आता है

पोखर अपने भाग्य पर झुंझलाता है !

फिर भी,

इस वन-प्रांतर  से अपनी यारी है

सूरत इसकी जानी पहचानी है .

घर-घर में होती थी खूब लड़ाई

पर सब करते थे कुनबे की खूब बड़ाई

अब बंद पड़े दरवाजे, सूरत है बेजान

सारा गाँव ही है सुनसान !

फिर भी,

यहाँ के दरवाजों से अपनी यारी है

सूरत इसकी जानी पहचानी है .

हर बरस लौट कर आता हूँ

बरहम बाबा से बतियाता हूँ,

लगता है

बूढ़े बरगद, पीपल में अभी बहुत है जान

होंगे यहीं कहीं भगवान !

क्योंकि,

इस के खेतों से इनकी यारी है

सूरत इसकी जानी पहचानी है.

बिसरे गीतों को दुहराता हूँ

अपने अंतर को सहलाता हूँ  

थोड़ी खुशबू

थोड़ी हवा यहाँ की सीने में भर ले जाता हूँ

क्योंकि

खुशबू अपनी पहचानी है

इस पानी से अपनी यारी है

Tuesday, December 7, 2021

लाख टकाक बिल

 

लाख टकाक बिल

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वर्ष 2012 में सवा दू लाख टाका बहुत रहैक. एकेटा रोगीक हिसाब में एतेक टाकाक बकिऔताक सूचना जखन एकाउंट्स विभागसँ  अयलनि तं मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्ट डाक्टर रंगनाथनक तमसा गेलाह. तुरत ओ अपन सचिव कें बजौलनि आ डाक्टर कपूरकें बजयबाक आदेश देलखिन. मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्टक बजाहटि सुनि डाक्टर कपूर तुरत पहुँचलाह. मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्टक डाक्टर कपूर कें कहलखिन जे एकटा समस्या सामने अछि: एकेटा रोगीक खाता में बहुत टाका बकिऔता छैक. तकर जाँच करय  पड़तैक, जाहिसँ तुरत टाकाक असूली भए सकय. एहि काज ले अनुभवी व्यक्ति चाही. एहि हेतु अहाँसँ बेसी उपयुक्त हमरा आओर केओ नहिं बूझि पड़ैछ. केस बच्चा विभागक आइ सी यू क थिकैक.’ डाक्टर कपूर मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्टसँ जाँचक आदेश लए काज मे लागि गेलाह.  केस बच्चा विभागक आइ सी यू क रहैक. अस्तु, डाक्टर कपूर तुरत बच्चा वार्ड अयलाह आ ओतहिसँ जाँच आरंभ कयलनि. मुदा, आश्चर्यजनक रहैक जे ओहि आइ सी यू  में ओहि नामक रोगीक कोनो पता नहिं. ड्यूटी-सिस्टर लोकनिसँ सेहो किछु भांज नहिं लगलनि. केसक एडमिशन रजिस्टरसँ रोगीक एडमिशनक तारीख तकलनि. बुझबा में अयलनि जे ई केस ओतय दू माससँ बेसी पहिने भर्ती भेल रहैक. मुदा, रजिस्टर में डिस्चार्जक तारीख आ समयक खाना रिक्त रहैक. डाक्टर कपूरकें बुझबामें भांगठ नहिं रहलनि जे दीपक नामक ई रोगी एतय भर्ती तं अवश्य भेल छल, मुदा, ओकर बाद की भेल रहैक तकर रहस्य केस-शीट भेटले  पर खुजतैक. मुदा, एतबे अनुसन्धान मे डाक्टर कपूरकें एतबा तं बुझबा में आबय लगलनि जे ई केस ओहन सोझ नहिं, जेहन पहिने हुनका बूझि पड़ल रहनि. अस्तु, ओ मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्ट डाक्टर रंगनाथन लग पुनः गेलाह आ सब किछु फरिछा कए कहलखिन जे जाँच में किछु समय लगतैक.

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सुनामाया पोखरा-बागलुंग सड़कक  कातहिं अपन घरक कनिए टा ओसारा पर चाह-बिस्कुट-पकौड़ीक दोकान करैत छलि. ओसाराक एक कात छोट सन चूल्हि. देवाल पर मोट-मोट खुट्टी पर देल तख्ता. तख्ता पर चीनीक बासन, चाहक पत्तीक अल्युमिनियमक डब्बा, आ ताजा तोड़ल तेजपात. कात में शीशाक बोइयाम में थोड़ेक बिस्कुट. आ दोसर बोइयाम में टॉफी, चेमनचूस आ लोलीपॉप. ओसाराक कगनी लग, चूल्हाक चौखुट चबूतरा पर एक कात शीशाक गिलास सब आ दोसर दिस, दूधक बरतन, छनना आ चाह बनेबाक सॉसपैन. इएह भेल सुनामायाक दोकान.

घरक ओलती में बाटक कातहि राखल एकटा बेंच पर गहाकि सब आबि कए बैसैत छल. बरखा बुन्नी भेल तं सुनामायाक ‘बूढ़ो’, मानबहादुर, बेंचकें ओसारहि पर एक कात अंटा दैत छलैक. मान बहादुरकें जखन, जतय बोनि लगैत छलैक, मेहनत मजदूरी कए लैत छल. तीन टा छोट-छोट नेना- रत्नमाया, पशुपति, आ सबसँ छोट, दीपक. घरक पछुऐत में एकरा लोकनिक किछु धूर ज़मीन रहैक. ओहि में दुनू बेकती मिलि कए आलू रोपैत छल. एहि इलाका मे हेमजा गाँओ आलूक खेती ले ओहिना प्रसिद्द अछि जेना शिमलाक कुफरी वा नीलगिरिक ऊटी. खेतक कोलाक काते-कात मानबहादुर थोड़ेक मूर बाग़ कए दैत छलैक, आ आरि पर किछु कोबीओक गाछ रोपि दैत छलैक. गर्मी मास में एतबे जमीन में कोनो बेर दुनू बेकती थोड़ेक कोदोक खेती सेहो कए लैत  छल. ओना एहि  गाम में, गरीब वा धनिक, केओ तर-तरकारी किनि कए नहिं खाइत छल. अपना बाड़ी में जे भेलैक ओहीसँ लोक गुजर करैत छल.अन्न-पानिक बेसाह त सभक सोहाग-भाग छलैक.

रत्नमाया आ पशुपति लगेक स्कूल में पढ़इत छलैक. दीपक तं दुधपीबे छल. स्कूलसँ आबि रत्नमाया जं बरतन-बासन मंजबा मे मायक हाथ बंटबैक, तं पशुपतिकें बुआ मान बहादुरक संग हऽरक लागन धरबामें बड्ड नीक लगैक. जखन बापक मन खुशी देखैक तं पशुपति मान बहादुर कें कहैक, ‘बुआ, आब तं हम हऽर जोतिए लैत छी, अगिला साल हमरा आलू आ कोदो सेहो रोपय दिहह.’ पशुपतिक ई  गप्प सुनि मान बहादुरक थोर पर मुसुकी छिटकि जाइक. पशुपति बापक मुसुकीकें सहमति बुझि मने-मन खुशी सेहो होअए आ माए कें कहैक जे ‘अगिला सालसँ हमहू एसगरे बुआ जकाँ हऽर जोतबैक. तों, कहबें तं चाह सेहो बना देबहु. तों भरि दिन एसगरे हरान होइत रहै छें, से हमरा नीक नहिं लगैए. आ हं पैघ भेला पर हमहू लाहुरे बनबैक, हं कं जेबै !’  पशुपतिक गप्पक उत्तर में माए केवल दुलारसँ ओकर माथ हंसोथि दैक आ फेर अपन काज मे लागि जाय.ओना स्कूल आ हुच्ची-फुच्ची काजक अलावा ई दुनू भाई-बहिन दीपक कें सेहो थतमारैत छल. मुदा, एतय कहिया कोन आफत आबि जायत कहब मोसकिल. कखन पिरथी डोलि जायत, भुइकम्प भए जायत, कोन ठेकान. ताहि पर माटिक आ पाथरक घर-आँगन. कथू कें ढहैत देरी नहिं. मुदा, जाहि इलाकामें जीवन कठिन होइत छैक, लोक आफद-आसमानीसँ  डराइत नहिं अछि. आफद  अबैत छैक, चल जाइ छैक. लोक दहाइत अछि, डूबैत अछि. मुदा, हारि नहिं मानैत अछि. बरखा-बाढ़ि-अंधड़-तूफ़ान आ भुइकम्प लोककें उखाड़ि  कए फेकिओ दैत छैक तैओ लोक माटि पर राखल जिम्मरक सट्टा जकाँ फेर जड़ि पकड़ि लैत अछि.

संयोगसँ एतए एहि बेर  बेजोड़ बरखा भए रहल छल. बरखा-बुन्नीक मास मे ओहुना पहाड़ में जन-बोनिहार कें जन नहिं लगैत छैक. एतय धानो खेती सब ठाम नहिं होइत छैक. जतय भूमि थोड़ेक समतल आ चाकर छैक, लोक धान रोपि लैछ. आन ठाम कोनो खेती नहिं. घर-घरहट, पक्की सड़कक बनब आ मरम्मति बरखाक बादे शुरू हेतैक. तें, ओहि बीच मान बहादुर बेसी काल घरे बैसल रहैत छल. थाल-थाल भेल बाड़िओ में की करत. एहिना में ओहि दिन मान बहादुर दलान पर बैसल छल कि एकाएक बड्ड जोर आसमर्द भेलैक. लगलैक जेना लगक पहाड़ टूटिकय सेती नदी में खसि पड़ल होइक. ऊठि कय मान बहादुर पछुआड़ दिस गेल तं सेती नदी कें देखि किछु नहिं फुरलैक; सेतीक पानि  जे भोर खन नदीक पेन लागल रहैक से अचानक बाढ़िसँ एखन दुनू पाट धरि भरि गेल रहैक. पानिक बेगक किछु कहल नहिं जाय. ई तं किछु नहिं छल. कनिए कालक बाद लोक जे देखलक से कि कहियो लोककें बिसरतैक ! धारक गाढ़ मटियाह, उधियाइत पानि. पानि मे गाछ-वृक्ष, लकड़ी, घास-फूस, माल-महीस आ मनुक्ख. सब किछु एके संग बहैत देखि मान बहादुर ठेहुन एकाएक बेकाजक भए गेलैक. ओ ठामहि बैसि गेल. प्रकृतिक ई अचानक प्रकोप अभूतपूर्व छल. ओ ओतहिसँ सुनमाया कें हाक देलकैक. मानबहादुरक हाक सुनि सुनमाया दौड़लि आयलि. उधियाइत सेती कें देखि ओकरो आदंक ल’ लेलकैक. जं सेती मे एहिना आओर पानि बढ़लैक, तन भेलैक जे सेती कतेको घर बहाकय संगे लए जायत. भगवान-भगवान करैत  दुनू गोटे दूरेसँ अकला देवी भगवती कें हाथ जोड़ि परनाम केलक.  मुदा, पानि जहिना अचानक बढ़ल रहैक , घंटा-दू घंटाक बीच पानि तहिना घटहु लगलैक. मुदा, पानिक संग जतेक किछु बहि कए आयल छलैक, कछेर में जहाँ-तहाँ तकर ढेर लागि गेल छल. ओहि में मनुख आ मवेशीक शव, लकड़ी, कचरा, पांक आ पाथर, सब किछु रहैक. एहि म सँ  लकड़ीक तं सब के चाही. तें, जमा भेल लकड़ीक डारि-पात-सील-ढेंग जमा करबा ले लोक अपन जानक परवाहि छोड़ि सेती नदी में उतरए लागल. अनका जारनि आ लकड़ी एकट्ठा करैत देखि मानबहादुर आ सुनमाया सेहो नीचा उतरल. जतेक लकड़ी भ’ सकलैक ततेक अपन कोला में जमा केलक. भरि दिन जारनि जमा करैत-करैत दुनू गोटे थाकि कए तेना चूर भए गेल जे साँझे राति खा पीबि सूति रहैत गेल. ओहुना एम्हुरुका गाँओ में लोक साँझ होइते खा-पीबि सूति रहैत अछि. टहलनिहार सब चाह ले सुनमायाक दोकान पर भोरे साढ़े तीन-चारिए बजेसँ  जुमए लगैत छैक. सबेरे सुतलासँ सबेर उठबा मे आलसो नहिं होइत छैक.

मुदा, आइ राति केओ सुति नहिं सकल. बीचहि राति दीपक कें एके संग रद्द-दस्त शुरू भए गेल रहैक. आ से एहन जे कनिए काल में नेना बेहवाल भए गेल रहैक. दीपक केर हालत देखि सुनामाया कें किछु नहिं फुरलैक. ओ हाँई-हाँई बाहर ओसारा पर सुतल मान बहादुर कें उठौलक. हाथ छुच्छ आ दुखित नेना. ओंघयले मान बहादुर दौड़ि कय पड़ोस में गेल आ बम बहादुरकें  जा कए उठौलकैक: ‘ दाई, दीपक कें  बड्ड जोर झाड़ा-पखाला लागि गेलैए. छौड़ा  बेहोश जकाँ पड़ल अछि. किछु बुझि नहिं पड़ैए. की करिऐक ? भोरे सुनमाया दोकान खोलिते से सोचने छल. आब की करू ? ऊपरसँ  पानि झहरि रहल छैक.’

बम बहादुर भारतीय सेनाक भू.पू. ( भूतपूर्व सैनिक) छल. बेर बेगरता में ओ समाजक लग हरदम ठाढ़ होइत छल. ओ तुरत मान बहादुरक संग भेल आ दीपक कें उठाकए नेपाल टीचिंग अस्पताल लए गेल.

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पोखरा में जखन नेपाल टीचिंग अस्पताल बनैत रहैक तं लोक सब जा कय देखय. केहन-केहन मशीन. कतेक टा कतेक ऊँच आ मकान. ताधरि पोखरा में ने कतहु सात-महला मकान रहैक आ ने केओ लिफ्ट देखने छल. इस्कुलिया बच्चा सब तं केवल लिफ्ट पर चढ़बा ले नेपाल टीचिंग हॉस्पिटल में पैसैत छल. केओ कहैक सरकार 1 रुपैया प्रति एकड़क हिसाबसँ  सेनाक जमीन इण्डियाक प्राइवेट कंपनी कें दए देलकैए; नेपालक राजनीति में इण्डिया कें मुद्दा बनैत कनिओ देरी नहिं लगैत छैक. किछु लोक कहैक, जमीन ककरो होउक, खस्ता छलैक. रुपैया ककरो होउक, एतय एक हज़ार नेपाली के रोजगार तं भेटतैक. अपन सरकार तं हमरा सब कें नौकरी देत नहिं. किछु लोक इहो कहैक, एतय टीचिंग अस्पताल भेलासँ एतुको धिया-पुता तं पढ़बे करत, एतुका गरीब-गुरबा कें मुफ्त इलाज सेहो हेतैक. आ से भेलैको, किछु अर्थ में. लोक कें रोजगार भेटलैक, स्थानीय लोकक धिया-पुता ओतय पढ़बो शुरू केलक आ बहुतो कें मुफ्तो इलाज होइक.

ओही आस पर ओहि राति सुनमाया आ मान बहादुर दीपक कें ल’ कय सोझे नेपाल टीचिंग हॉस्पिटल पहुँचल छल. संयोगसँ तखन इमरजेंसी विभाग में एकटा लगे पासक हाउस-सर्जन, डाक्टर सुदीप, ड्यूटी पर छलाह. दीपक केर हालत बड्ड खराब रहैक. लगातार झाड़ा-पखालासँ बच्चाकें देह में पानिक कमी भए गेल रहैक. ओकर शरीरक स्थिति अत्यंत  चिंताजनक रहैक. फलतः, डाक्टर सुदीप तुरत आरंभिक उपचार केलखिन आ बच्चा विभागक इमरजेंसी पर तैनात ड्यूटी-विशेषज्ञ कें बजओलनि. विशेषज्ञक विचार भेलनि जे दीपक कें आइ सी यु में भरती कयल जाय. मानबहादुर डांड में जे रुपैया अनने छल से पहिनहिं में सधि गेल रहैक. मुदा, सीनियर डाक्टर आ मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्टक मौखिक आदेश पर दीपक तुरत आइ सी यु में भरती कयल गेल;  ओकर इलाज शुरू भए गेलैक. एहिसँ सुनमाया आ मन बहादुर कें बड्ड हुबा भेलैक.  मुदा, जखन बच्चा विभागक इमरजेंसी ड्यूटी-विशेषज्ञ सुनमाया आ मानबहादुर कें कहलखिन जे बच्चाक देहसँ बहुत पानि चल गेल छैक आ बच्चाक जान पर खतरा छैक तं दुनूक मोन झूर-झमान भए गेलैक. दुनू गोटे अपना में विचार कयलक. मानबहादुर सुनमायाकें दीपक कें ल कए आइ सी यु बढ़बा ले कहलकैक. ओ अपने  मानबहादुर किछु पैसा कौड़ीक जोगाड़ ले बमबहादुरक संग हेमजा आपस गेल. मानबहादुर जाइत- जाइत  सुनमाया कें कहैत गेलैक, हम इएह गेलहुँ आ इएह अयलहुँ. मुदा,आइ सी यु में दीपक केर उपचार आरंभ भेला घंटो भरि नहिं  बितल हेतैक कि नर्स आबि कए सुनमाया कें एक कात ल जा कए कहलैक जे हमरा लोकनिक बुतें जतेक भेल केलहुँ, किन्तु, दीपक केर जान नहिं बचा सकलिऐक. ई गप्प सुनि सुनमायाक आँखिक आगाँ अन्हार भए एलैक. ओ ओतहि खसि पड़ल. होश आपस एलैक तखनो नर्स लगे में ठाढ़ रहथिन. ओ सुनमाया कें एकटा चीनी मिट्टीक कप में पीबा ले पानि देलखिन. ओम्हर मान बहादुरक कोनो पता नहिं. नर्स पुछलखिन, ‘बुढ़ो कहाँ छथि ? बजा अनियनु.’ सुनमाया तुरत मानबहादुर कें बजयबा ले गेल. ओ सौंसे अहुरिया कटलक. मान बहादुरक कोनो पता नहिं. झहरैत बरखा, अन्हार राति आ उफनैत सेती नदी. एहना में ओकरा अपनो घूरि कए नर्स लग जेबाक हिम्मत नहिं भेलैक. ओकर बाद सुनामाया कतय रहि गेल, ओकरा  की भेलैक, से ककरो बुझबा में नहिं एलैक. परात भ’ गेलैक. डाक्टर आ नर्सक ड्यूटी बदलबाक बेर भए गेलैक. सुनमाया आ मान बहादुरक तखनो कोनो पता नहिं.

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तीन दिन धरि लगातार अनुसन्धानक बाद डाक्टर कपूर कें सब बात बुझबा में अयलनि. हुनका आइ बच्चा वार्डहिक लॉकर में पुरान केस-शीट सबहक बंडल मे दीपक परियारक केस-शीट भेटलनि. केस रिकॉर्डसँ स्पष्ट छलैक जे मानवीय आधार पर मौखिक आदेश आ बिनु टाका जमा केने दीपक भर्ती भेल छल आ ओकर उपचार भेल रहैक. मुदा, भर्ती भेलाक किछुए समयक भीतर नेनाक मृत्यु भए गेल रहैक सेहो केस-रिकॉर्ड में दर्ज रहैक. किन्तु, केस-शीटक  रिकॉर्ड एखनो अपूर्ण रहैक; रिकॉर्ड में संबंधी कें शवक सुपुर्दगीक कोनो संकेत नहिं रहैक. अपूर्ण कागजी काररवाई चकित करबा योग्य छल. एहिसँ भारी हॉस्पिटल बिलक उत्तर स्पष्ट नहिं छल.

अंततः, डाक्टर कपूर एकाएकी, रिकॉर्ड में दर्ज सब अधिकारी आ स्टाफसँ  संपर्क करब शुरू केलनि. जेना-जेना डाक्टर नर्स स्टाफसँ डाक्टर कपूरक गप्प भेलनि, पर्त-दर-परत गप्प खुजय लागल. चूंकि केस रिकॉर्ड में कतहु मृत शरीर कें माय-बाप कें सुपुर्द करबाक रिकॉर्ड नहिं रहैक, तें, नेनाक नाम सेहो हॉस्पिटल रिकॉर्डसँ काटल नहिं गेल रहैक. तखन नेना तं कतहु अस्पताले में हेतैक. अस्तु, डाक्टर कपूर अपने अनुमान पर शव-गृह गेलाह आ ओतुका रिकॉर्डक जाँच=पड़ताल केलनि. शव-गृहक रिकॉर्डसँ सब किछु अयना जकाँ झलकय लागल छल. शव-गृहक लॉकर में दीपकक शव यथावत् सुरक्षित छल ! ततबे नहिं, ओहि नेनाक शांत भेलाक बाद सुनमाया आ मान बहादुरकें  अस्पताल में घुरि कए फेर कहियो केओ नहिं देखने रहैक, सेहो गप्प पछाति जाँच में खूजल. ओहि नेनाक सुखायल शव देखि डाक्टर कपूरक मोन द्रवित भए गेलनि. सब बात स्पष्ट छलैक: बेचारा नेनाक जान नहिं बचि सकलैक. माय-बाप टाका जोगाड़ ले जे गेल रहैक, से गेले रहि गेलैक. के जानय ओकरा सबहक की भेलैक.

आब एहि नेनाक मृत शरीरक की कयल जाय से ओहि दिनक तात्कालिक समस्या छलैक. गरीब समाजक बीचक अस्पताल सब में एहन समस्या नव नहिं. जखन दुखित दीपक अस्पताल आयल छल तहिया तात्कालिक आदेश ले केस सीनियर विशेषज्ञ आ मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्ट लग पहुँचल रहनि, सेहो बात जाँच में खूजल. निर्णय ई भेलै रहैक  जे  कागजी कार्रवाई कें लंबित राखि नेनाकें शव-गृह में राखल जाय. सएह भेल रहैक. तथापि, ओतय स्टाफ लोकनि दिन-भरि मानबहादुरक बाट तकैत रहल छल. किन्तु, नहिं जानि कोन मज़बूरी रहैक, जे ओ सब आयल नहिं. दोसरो दिन ओकर सबहक कोनो पता नहिं. तेसरो दिन केओ जखन नहिं आयल तं निरंतर काजक दवाब में आइ सी यु क सब स्टाफ आ चिकित्सक लोकनि सेहो एहि घटनाकें बिसरि गेलाह. पछाति, मास बितलैक. डाक्टर नर्स लोकनिक ड्यूटी बदलि गेलनि. संयोगसँ  मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्ट सेहो बदलि गेल छलाह. अस्पताल में नव-नव रोगीक आयब-जायब चालू छल. मुदा, पछाति बाँकी बचल कागजी कार्रवाई सब किछु कें घोर-मट्ठा कए देने रहैक. बाँकी बचल कागजी कार्रवाई, बकिऔता टाका आ दीपक, सबहक स्मरणसँ निर्मूल भए चुकल छल. दोसर दिस, भले दीपक परियार कहिया ने निष्प्राण भए गेल छल, कम्प्यूटर में दीपक परियारक बिल बनिते रहि गेलैक. ओएह बिल आब जाँच आरंभ भेलाक दिन सवा दू लाख टाका भए गेल छल; जाँच पूरा होइत-होइत  तं बिल किछु अओर बेसीए भए गेल रहैक.

सबटा तथ्य मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्टक सामने अयला पर मेडिकल सुपरिन्टेन्डेन्ट डाक्टर रंगनाथन डाक्टर कपूर कें बस एतबे कहलथिन: ‘जाँच पूरा भेल. बात साफ़ भेलैक. अहाँ अपन दायित्व पूरा कयल. धन्यवाद. अहाँ जाउ. आब आगूक कार्रवाई हमर दायित्व थिक.’

सुनमाया आ बम बहादुरक संग की बितलैक से के जानय !  

Wednesday, December 1, 2021

मंगली

 

मंगली

आजुक राति फेर मंगली बिछाओन में मूति देलकइ. साओन-भादवक राति, आ तीतल बिछाओन. जीतनक मोन तं बिखिन्न भ गेलै. बेटी कें गारि-सराप देब आ अपन करमकें दोख देब  ओकर हिस्सक नहिं. कहलकइ , धुर बुच्ची , फेर मूति देलही . कहितें, से नहिं . पांच बरखक छौड़ी आ निसाभाग राति . मंगली की जानय, की भेलै . जीतन भिजल केथरी के कात क’ देलकै आ दोसर  कात सेजोट  पर पड़ि रहल . सोचलक , राति भेलैये तं भोर हेबे करतै . मुदा , जीतनकें बुझबामें नहिं एलइ  कतेक राति बीति चुकल छलै . रुख-सुख  रहितै तं तरेगन , तराजू , आ भोरुकबा सेहो देखैत. मुदा , साओन -भादव मास, मेघ लागल, आ बज्र अन्हार. ओढ़नासँ  मुंह झांपि  फेर पड़ि रहल. मुदा, निन्न कतय पाबी. अपना माथपर गुनदेब झाक हरबाहीक भारा छलैक  आ घरवाली  नबानीबाली दुधमुंहा बच्चाक भारा लगाक आँखि मूनि  लेलकइ .

जीतन जबानी में शरौ खेलाइत छल . देह तन्दुरुस्त रहै . बाबू लोकनि घी-मलीदा खाथि आ बैसल-बैसल हुकुम चलाबथि . ताहि पर ककरो सांगरही आ ककरो सुखैनी ध' लैनि . मुदा , जीतन मडुआ- भतुआ खाइ छल , देह मे माटिक औंसैत  छल आ दंड-बैसक लगबै छल . तही मे देह फौदायल रहै छलै. नढ़ेर-छिनारले गामघरमें छौड़ी-मौगीक कोन कमी. मुदा ,अखड़ाहा पर नारदजी सब दिन कहथिन , हमरा अखड़ाहा पर अयबें तं नवी पोखरि में डूब दे , गतानिक' कच्छा बान्ह,  महाबीरजीक धुजामें लोटाभरि जल ढार, आ अखड़ाहा पर आबि जो. नहिं तं , हमर तं बुझले छौ , अखड़ाहा पर टपय नहिं देबौ. ककर मजाल छी, नारदजी  कहल टारत ! आ नारदजीक सब चेला एक-नारी- ब्रह्मचारी-ए छल . जीतनक अंगनाबाली, नबानीबाली, बतर जबानीए में मरि  गेलैक. कतेको हित-मीत कहलकइ , 'मीता कहिया तक मंगलीक गूह-मूत करैत रहब. हर-हराठसँ  थाकिक आयब एक कर अन्नो के देत ! समंध क’ लियअ .  बूझब जे नबानीबाली कें ओएह लिखल छलै.' मुदा, जीतन ककरो नाकपर मांछी बैसय नहिं देलकनि . कहै , मर बैंह , फेरहाक पाड़ा छी !

आइ  सुतली राति में सबटा गप्प मोन पड़ैत छै . तेसर साल कातिक-अगहनमें कोना रातिक' नबानीबालीक देह छक-छक  भ’ जाइ . टोल पर ककरो-ककरो कहबो केलकइ . सब कहै , कातिकक  कफजाराक कोन छै . अढ़इया बोखार अबै छै, आ चल जाइ  छै . नबका धान होअय दही ने. नबका चाउरक  गोलहत्थी रान्हिक खाय लगबें ने तं अनेरे सब रोग-ब्याधि पड़ा जेतौ. कातिकक मास तेरहम मास होइछै . अन्न-पानिक कमी रहै छै . कहै छै , निर्धन कें दस टा दोख आ निर्बल कें दस टा रोग . कातिक तं ओहुना रोग-ब्याधिक माय छियै . एखनि तं कफजारा सोहाग-भाग छै ! मुदा , नबानीबालीक जर ने अढ़इया रहै आ ने सोहाग-भाग . एहि बरख कातिक में जे जर धेलकइ , दोसर जाड़ अबैत- अबैत संगहिं ल क' चल गेलैक .

जितनाकें मोन पड़ैत छै - झंझारपुरक मिसरजीक ओतय कतेक बेर गेल छल . कहथिन, जड़ियायल रोग छै, समय तं लगबे करतैक. कतेक बड़ीया  आ बोतल अनने हयत जीतन. मुदा , मौगिक देह गलिते चल गेलैक. पछाति कतेक देवो -सैव केलक . कोनो फैदा नहिं . मोने छै , नबानीबालीके  जितना कान्ह पर लादि कय हलसादाइ पोखरिक राजाजी थान धरि ल’ गेल रहय . भगता कें राजाजी सवारी कसने छलखिन, आ  भगता भाव  खेलाइ  छल.  जितनाकें देखिते भगता एकसुरे बाजय  लागल रहै - 'ल जाही , ल जाही . नै बंचतौ . अरुदा पूर भ गेलै.' जितना कें बुकौर लागि गेलै . जीतन नबानी बालीके राजाजिक गहबरक अंगनइमें भुइयें पर पाड़ि  देलकैक आ अपने ठेहुनियाँ रोपि कय  कल जोडि लेलक . दोहाई राजाजी ! बड़ आससँ  मौगी कें अनलियइ-ए . दुधपिबा बेटी टुगर भ’ जेतइ ! भगता दहिना हाथें एकटा अड़हुलक फूल जुमाक नबानीबाली दिस फेकलकइ . मुदा , जितना ने फूल लोकि सकल आ ने फूल नबानीबालीएक देह पर खसलइ . चुपे-चुप मौगी सब अपनामें कहलकै , 'मौगी नै ठहरतै' . जितना बड़ आससँ  फूल उठौलक , कल जोड़ि  राजाजीकें गोड़  लगलक आ फूलकें नबानीबालीक माथमें लगाक' अपन अंगपोछाक खूटमें बन्हलक आ नबानीबालीकें कन्हापर उठाकय गामपर ल’ अनलक. आ आखिर जे हेबाक छलैक, से भेलै ; नबानीबाली अगहन नहिं खेपि सकलै.

2

ओहि जमानामें जीतन सन लोकक धिया पुता स्कूल नहिं जाइत छलै . भरि दिन खेत खरिहान, पोखरि झाँखरि , गाछी-कलम में बौआयल, माल-बकरी चरौलक. खेबाक बेर में घूरि कय घर आयल, जे भेटलैक मारि-धूसि कय खेलक    सांझ होइत पटोटन द’ देलक. जाड़-गर्मी-बरखा आ अगहनी अबैत आ जाइत गेलैक, मंगली कहिया चेतन भ’ गेलैक जीतन कें बुझबो में नहिं एलैक. मुदा, मंगली चेतन भ’ गेलि छल  से मंगलीकें तहिया बुझबामें अयलैक जहिया जीतन चलिते फिरिते बिछाओन ध' लेलकैक. मैटुअर तं पहिनहिंसँ छल, आब बापक सहारा सेहो बिलएबाक आदंक भ’ एलैक . की करैत. बोनि-बुत्ता करय लागल, हवेली-महल धेलक . जे किछु भ’ सकलैक केलक. लोक सब कहैक, 'बुढ़बाकें लाज नहीं होइ छै . बेटीक बियाह क’ कय अपन घर बिदा करतैक कि बेटी हवेली-महल कमेतैक आ बुढ़बा एतय बैठल-बैठल अपन  पेट पोसतै.' मंगली कहै, 'हम दुधपिबा, रही माय मरि  गेल. बाबू हमरा पोसलक, हमर गूह-मूत केलक. आब ओकर देह खसि पड़लैक तं हम पुछियैक, बेटा कतय छह ? एहनो निसाफ होइ .' हित-मीत आ भौजाइक तूरक लोक हँसी करै, कहै , 'बैसल रह, बुढ़िया भ’ जेमें तं के पुछ्तौ !' मुदा, मंगली लेखें धनि सन. कातिकमें जीतन बिछाओन धेने छल. माघ-फागुन-चैत-बैसाख बीति गेलैक, जीतन कें बिछाओन  पर सं उठल नहिं भेलैक. साओन-भादवमें बियाह दानक कोन गप्प . आषाढ़ में टोलबैया सब जीतन कें चड़ियाबय लगलइ. सोमना कहलकैक,  मीता अपना रहैत मंगलीकें बिदा क’ दियउ.

खेत ने पथार, सुदुक पांच धूर डीह . हरबाहि में भेटिते  की छलै, चारि सेर धान वा अढ़ाइ सेर मडुआ . जलखइ में पाँव भरि भिजाओल चाउर वा एकटा मडुआक रोटी आ नोन-मरचाइ . जीतन सोचय , हमरा अपन आब कोन . मुदा, जं घरदेखियाक आवभगत नहिं भेलै , आ बरिआतीके मरजादो खोअबाक बंदोबस नहिं भेल तं सिउंथमें सिनूरो कोना पड़तैक. एक राति जीतनकेर मोन कनेक आसान रहैक . मंगली लग में शीतल-पाती पर पड़ल छलि . जीतन कहलकै, बुच्ची, एगो गप्प कहियौ ?

-‘कह’ ने.

-‘हम आब बूढ़ भेलहुँ. हमर आब कोन ठेकान . तों नान्हियेटा छलें, तोहर माय तोरा छोड़िक’ चल गेलौ . जेना तेना एतेक दिनसँ  तोहीं  हमर संगबे  छलें . मुदा, बेटी जाति तं सब दिनसँ  अपन घर जाइते छै . सब कहैए अपना सोंझां जं तोरा हम ककरो अंक नहिं लगा देबौ तं हम ककरा भरोसे तोरा छोड़बौक. कहैत-कहैत जीतन कें बुकौर लागि गेलैक. मंगली कहलकै, 'आब बुझलियैक, हरि घड़ी तोहर मुँह किएक लटकल रहै छह. तोरा एखनि किछु नहिं हेतह . आ सोचह जे मरिए गेलह, तं चकेठ -सन देह आ हम दू कौर अन्नो ने कमा सकब ! जीतन, के हँसी लगी गेलैक. कहलकैक, ‘देह ने चकेठ  लगइ  छौ , अक्किल कतयसँ  औतौक . बेटी-धी कतौ एना नहिरा में रहै छै. तोहर माय मरि गेलहु. लोक कहय कि , अंगनासँ  तं मरिए गेलह, ऐ पिलपिलही कें ल’ क’ कोन सनाथ हेबह. बेटा रहितह  तं कमा  क’ खोअयबो करितह. एकरो बलान में फेकि आबह, आ समंध क’ लैह . हम सब कें कहलियैक, कमलामाइ - कोशीमाइ- गंगामाइ सब तं बेटिये छथिन. लोक पूजा करै छनि कि नहिं . हमहूँ बूझब जे कमले माई कें सेबने छी . ओ तं दोहाइ राजाजी, तोहर मायके तं जे भेलै से भेलै. मुदा, तोरा बचा लेलखुन, नहिं तं हम कतहु के रहितहुँ . आ लोकक आँखिमें गेजड़  फूटल छै , देखै नइ छै जे एखनो दू कौर सुअन्नो तं तोहरे  भरोसे भेटै-ए.’

-‘आ तै पर  तोहर एहन गियान जे हम कंठ ठेकल छियह.’

जीतनकें फेर मुसुकी छूटि गेलैक. कहलकैक, ‘कहलियउने, गियान कतयसँ  औतौ. आब तं हम दिन सँ  दिन निचे मुंहें हयब, तं तोरा हम एत्तहि हमरे सेबने रहय देबौ !’

- ‘तं की . बलजोरी बैला देबह.’

-  एहनो भेलैये. बैला नै देबौ तं हमरे माथ पर सब दिन बैसल रहबें ?’ - ई कहैत जीतनक ठोरपर मुसुकी आबि गेल रहै.

- मुदा, जितनक गप्प सुनि मंगलिक आँखिनसँ  ढब-ढब नोर  खसय  लगलैक. कहलैक, ‘जहिया गूह-मूत करै छलह, तहिया हम बोझ नहिं भेलियह . आब जखन तोहर सेवाक बेर आयल अछि तं एहन-एहन गप्प कहै छह.’ आ मंगली हिचुकि-हिचुकि कानय  लागलि. जीतनकें कहला सन पछताबक होमय लगलैक. कहलकैक, ‘बत्ताहि छें . लोक बेटी-धी कें तं सब दिन सं अहिना कहि एलैये.’

-‘एना कहि एलैये तं लोक बेटी कें बलानो मे भसा दई छलै, नोन चटा क' मारिओ दै किने. तहिये किएक ने हमरा भसा एलह, बलान में.’

आब जीतन केर कनबाक  पार छलै . कहलकैक, 'बुच्ची, जहिया साओन भादवक मास में तितल बिछाओन में राति बितौलौ तहिया तं तोरा एक बेर किछु नहिं कहलियौ . आब तोरा फेक एबौ. कहै छियौ ने , अक्किल कतयसँ  ओतौक ! तोरासँ  गप्प करब बेकार.’

-तों’ कहै छह तं किछु ने. हम कहलियह तं हमरासँ  गप्पो नै करबह. ..... आब एखनि बस करह. दिनुका भात रखने छियह, दलिसग्गा संगे खा लैह . थमह, चूल्हि पजारिक' दलिसग्गा कने सुसुम का दैत छियै आ थारी परसने अबैत छियह.’

जीतन गुन-धुनमें पटियहिं पर पड़ल रहल. मंगली चूल्हि पजारय चलि गेल.

किछुए कालमें मंगली थारी परसि कय नेने एलइ . जीतन उठिकय बैसल. लोटाक पानिसँ  हाथ-मुंह धोलक आ भात ढाहिक दलिसग्गा ओहि पर ढारि देलकै. मोलायम भात आ तप्पत दलिसग्गाक स्वाद जीतनकें बड़ दीव लगलै. कहलकैक , बुच्ची, बड़ आशीर्वाद दै छियउ. भगमान एहिना समांग देने रहथुन. कहै छै लोक बेटा आ बेटी. हमरा ले तं तोंही टा सहारा छें.’

मंगली गप्प उपरे लोकि लेलकैक. कहलकैक - एखनी गप्प नै करह . सरि भ’ क दू मुट्ठी भात खा लैह . मुदा, एकटा गप्प कहैत छियह, काल्हि जे भ’ जेतइ, लहेरियासराय ल’ चलैत छियह . सुनै छियैक खेराती अस्पताल मे सबहक इलाज होइ छैक.’

- ‘लहेरियासराय जायब से सुसकै हेतह . आब हमरा लोकनिक कोन. एहिना रोग -व्याधि हैत, देह खसत, आ चलि जायब. तों अपन चिन्ता करै.’

मुदा, मंगली जितनक कोनो गप्प नहिं मानलकैक. हारि कय जीतन डाक्टरसँ  देखओलनि आ जे कहलकनि यथासाध्य इलाज-पथ्य शुरू केलनि.

3

जाड़क मास बितलइ. इलाज-पथ्य आ मंगलिक सेवासँ  जीतन उठि के ठाढ़ भेलाह आ लाठी भरें चलब शुरू केलनि . शरौ खेलायल देह आ मेहनतियाक मोन. एक दिन टुघरैत- टुघरैत, लागल-लागल राजाजीक थान धरि पहुंचि गेलाह . साँझुक पहर रहै. राजाजीक थानमें कएक गोटे बैसल छल. जीतन कें देखि टोलबैया सबकें नीक लगलैक. मूसन उठिक ठाढ़ भेल. हाथ जोड़ि क’ कहलैक – ‘दोहाइ राजाजी ! मीता, अहाँ अपना पैर पर ठाढ़ तं भेलहुँ . भरोस नइ छल अहाकें राजाजीक थान में देखब.’

जितन ठेंगा अंगनै में राखि देलकैक आ ओत्तहि सबहक लग में चुक्की माली भ’ क बैसि गेल. बसंता कहलैक, कका , तमाकू खेबह ? मूसन गप्प उपरे लोकि लेलकैक. मर, देबही, कि पूछै छही . जीतन कहलकैक – ‘लाबह.’ बसंता तमाकूक ज़ूम जितनक तरहत्थी पर राखि देलकैक . जीतन तमाकूक ज़ूमकें चुटकी में उठा क’ ठोर तर राखि लेलक . कहलैक –‘तोरा सब संगे एतय बैसलहुँ-ए  तं मोन आन तरह लगैये. अपना तं डेग उठेबाक हिम्मत नहिं होइ छले . मुदा, बुच्ची, हाथ क’ ठेंगा देलक आ हाथ पकड़िक’ ठाढ़ क’ देलक. कहलक, लागल लागल जाह, तं आबि गेलहुँ.’

मूसन कहलकैक – ‘कोनो बेजाय कहलकह. कमासुत बेटी आ गियानक गप्प. एहन भाग सब के होइ छै !’

जीतन के कोंढ़ फाटि गेलैक. कहलकैक – ‘मीता, एहन अभागलो केओ छैक. जुआनि बेटी आ हमरा सन अथबल  बाप !’

- ‘कथी ले तरद्दुद करै छी . भगमान कतौ गाम गेलखिने. हँ , एकटा गप्प तं कहबे नै केलहुँ : एक गोरे एकटा लड़िकाक कथा कहै छले. सूरत में काज करैए. बूढ़ बाप एसकरे गाम रहै छै. केओ लोक-बेद चाहियैक. हमरा मंगलीपर धियान गेल. मुदा, हम कोना किछु कहितियैक . मुदा एतबा अबस्से कहलियैक, हम मीतासँ  पुछबैन. अहाँ करबैक ?’

जीतन मूसनक दुनू हाथ ध’ लेलकैक. कहलकैक, ‘मीता अहाँ हमर मुँहक गप्प छीनि लेलौं. मुदा, एकटा मंगली अछि कि जखन विवाह-दानक गप्प करै छी, नाक पर माछी नहिं बैसय दैत अछि. कहैये तोरा छोड़ि क’ हम कतौ नइ जायब. अहीं कहू, एहन कतौ भेलैये !’

-‘थम्हू ने. किएक अगुताई छी.’

जीतन गाम पर घूरि कए आयल तं मुन्हारि  साँझ भ’ गेल रहैक. दुखिताह देह आ बहुत दिन परक चालि . दुआरि पर अबिते जीतन जौड़ाखट्टा  पर पड़ि रहल.

जीतन के पड़ल देखि मंगली पुछलकैक , 'आबि गेलह ?' हमरा तं होइ छल आगू बढ़ि कय देखिअह.’

-‘बहुत दिनपर दरबज्जा परसँ  बहरायल रही . मीता भेटि गेल . दुःख-सुखक गप्प उठि गेलै. तें.’

 पछाति, जखन जीतन मंगली कें मूसनक गप्प कहलकैक तं मंगली गुम्म भ’ गेल. कहलकैक, ‘एखन हमरा बड़ काज अइ.’ आ ओ जीतन लगसँ  टरि गेल. मुदा, मंगलीक मोन मे गप्प घुरिआय लगलैक. होइक जे जं एहना ठाम बाबू मरि गेल तं ओकर भूत हमरा जीयअ नहिं देत. बुढ़बा तेहन ने लगारी अछि जे हमर जान नहिं छोड़त. इएह सब सोचैत मंगली पथिया में राखल सेर दुइएक मडुआ उठौलक आ जांत में पिसय लागल. एक दिस मंगली जांत में मडुआक झीक दैक आ दोसर दिस जीतनक कहल गप्प कें सोचए. एहना में लगैक जे ओकर माथ जांतक पट्टाक संगहिं संग घूमि रहल छैक. मुदा, कनेक कालक पछाति भेलैक जे घुमैत माथ में किछु निस्तुकी गप्प पेराइत दूधक ऊपर अलगैत मक्खन जकाँ ऊपर आबय लगलैए. भेलै, ठीक छै, फूसि कें कनेक नंगड़ा आबी. ओ जांतक हाथड़ छोड़ि देलकैक, चिक्कसक पथिया कें एक कात कए देलकैक, उठि कय ठाढ़ भेल आ दलान पर पड़ल जीतन लग आबि क’ ठाढ़ भ’ गेल.

‘ की छियहु ? मडुआ पिसल भ’ गेलह ?

मंगली किछु नहिं कहलकैक.

‘तीमन की बनेबहक ?’

‘मनसा आबि कए एहि गाम बसतै ?’- मंगली हठात्  पूछि बैसलकैक.

जीतन कें किछु बुझबा में नहिं एलैक. मंगली फेर पुछलकैक, ‘मनसा आबि कए एहि गाम बसतै ?’

एक्के गप्प दोसर बेर सुनि, एकाएक जीतनक भक्क टुटलैक. कहलकैक, बताहि भेलेहें ! एहनो भेलैये !! अनबधानक गप्प.

-‘तखन हम बियाह नहिं करबै. हम तोरा छोड़ि कए कतहु नहिं जेबै.’

जीतन केर आँखिसँ भट-भट नोर खसए लगलैक. कहलकैक, ‘के कहतैक बेटी अनकर धन छियैक. उचित तं छियैक नहिं, तखन तों, कहैत छह, तं पुछबै मीता कें. हमरा नहिं लगइए  केओ मानत एहन अजगुत बात. तै पर लड़िका त सूरत कमाइ छै.’

मुदा, मंगली अपन गप्प पर अड़ल छलि. ओ टस्ससँ मस नहिं भेल. कहलकैक, जे हम एक गोटेक नहिं, दुनू गोटेक बापक भार उठा लेबैक जं दुनू एक ठाम रहैक. हम जतय जायब दुनू बुढ़ा हमरे संग रहत, नैहर आ सासुर. बाबू के हम नहिं छोड़बै ! मरला उत्तर तं हम कतेक बड़का लोक कें जवारी आ भोज करैत देखै छियै, आ जीत्ता जी माय-बाप काहि कटैत छै. जीत्ता जी सेवा ने सेवा भेलै, अतमा त  ओहीसँ जुड़ाइ छै. जित्ता जी माए-बाप काहि काटत, आ मरला उत्तर नौ गाम जेवारी ! हमरा नहिं सोहाइए !! मंजूर छै, त कहौ. नहिं तं हम अपन घर, आ ओ अपन घर !’

दोसर दिन मूसनसँ भेंट भेलैक तं जीतन डेराइते-डेराइत सब बात कहि पुछलकैक, ‘की कहै छी, मीता ?’ ‘कहबै की. मंगली कोनो बेजाय कहैए.’ मूसन कहलकैक,’ ठीके तं कहैए मंगली. मरला उत्तर तं सब भोज करैए. जित्ता जी सेवा करए से ने बहादुर ! ठीक छै. हम पूछि अबै छियै.मंजूर हेतैक तं ठीक. दुनू घर सम्हरि जेतै.’

मूसन घुरतिए मंगल क’ श्रीपुर गेलाह. लड़िका आ ओकर बुढ़ा कें सब टा गप्प फरिछा कए कहलखिन. लड़िका, जेकांत,क बाबू, आनन्द, कहलखिन, ‘ कोनो बेजाय कहै छथिन, हम दुनू गोरे संग रहबै, तं ठीके दुनू घर सम्हरि जेतैक. फूट-फूट में  ककरो एक गोटे के दू मुट्ठी अन्नो के देतैक. हमरा कोनो उजुर किए हैत. हमरा एगो मनुख चाही. समधियो कें तं मनुख चाहियनि. कनियाँ दुनू गोरे कें संगे रखथिन. हमर बेटा सूरत. समधिक बेटी सासुर. ककरो ने केओ देखनिहार ! केहन निम्मन गप्प कहलखिन. कहियौ तं. के कहतै मौगी कें अक्किल नहिं होइ छै !’

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