पुस्तक-समीक्षा
प्रसंगवश (कविता-संग्रह)
मधुबनी लिटरेचर
फेस्टिवल,2021, दरभंगा मे एकटा युवक हाथें-हाथ एकटा पोथी बिलहैत रहथि. हमरो देलनि।
पोथीक नाम छलैक ‘प्रसंगवश’. कवि थिकाह संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) निवासी डाक्टर
मनोज कुमार कुमार चौधरी.
पोथी हमरा हेतु श्रेष्ठतम
उपहार छी. पान खेनिहारक सामने केओ पनबट्टी खोलि कए राखि देथिन आ ओ पानक खिल्ली नहिं
उठओताह से असंभव. तहिना हमरा हाथ में पोथी आयल तं हम तुरत पन्ना उनटाओल. कविता
सबहक सहजता आ भाषा आकृष्ट केलक. लग में प्रोफेसर भीमनाथ झा बैसल रहथि. हम कहलियनि,
‘कवि सिद्धहस्त छथि. कविता सब नीक छैक.’ पछाति जखन पटना आपस अयलहुँ तं एकहिं बैसार
कुल तीसो कविता पढ़लहुँ. हमर आरंभिक धारणा दृढ़ भेल.
आजुक युग में जखन
मैथिलीक अस्तित्वे पर प्रश्न-चिन्ह ठाढ़ अछि, ‘प्रसंगवश’ एकटा शुभ संकेत थिक. कारण,
मैथिली विश्व भरि में पसरल मैथिली भाषीक ह्रदय में ओहिना जोगाओल राखल अछि जेना
माटि में बीआ सब जोगाओल रहैत अछि जे अनुकूल समय पर स्वतः अंकुरित भए जाइछ. डाक्टर
चौधरीक ‘प्रसंगवश’ तकरे प्रमाण थिक. कवि स्वयं सेहो से स्वीकार करैत कहैत छथि.
पोथीक निवेदन मे ओ कहैत छथि:
‘हमर
व्यक्तित्व मे जे किछु सरस अछि, कोमल अछि, ताहि सभसँ पोअरियामे अपन पितामह (स्वर्गीय
कुशेश्वर चौधरी) संग बितैल समय मूलभूत रूपे जुड़ल अछि. संभवतः ओकर श्रोत अछि. छव
दशकसँ ऊपर बीति गेल. मुदा, मोन अछि ओ ‘कचहरी’ ( माटिक देबाल आ खरक छप्पर वला एकटा
रसोई घर, ताहिसँ सटल एकचारी) आ तकर सम्मुख ओ विशाल वट वृक्ष, ओकर सघन छाहरि मे
असगर खेलाइत स्वयं-अविष्कृत खेल-कूद, मुक्त कल्पनाक उड़ान, इनारक जलसँ बनल भातक लालपन,
बबूरक लस्सासँ विविध आ विचित्र रूप रचना, गर्मीमे बड़कल अलकतरासँ बनल गोली, दरभंगा
बागमतीसँ निकसल पार्श्व धारक पारदर्शी पानि आ ओहिमे झलकैत माछ, बथनिआ सभक महिसक टटका
दूहल फेन भरल दूध आ ओहिमे फुलैल चूड़ा जे बिना गूड़ोके लगैत छलैक मीठ .’
अर्थात् , कविक मन मे नेनपनसँ
जोगओल संवेदनाक बीआ विदेशहुँ मे अनुकूल अवसर
पाबि, जे किछु कविताक रूप में समय-समय पर अंकुराइत रहल तकरे संकलन थिक, ‘प्रसंगवश’.
तें, स्पष्ट अछि, सुदूर भूतहु में जोगाओल मैथिलीक बीआ, विदेशहुँक जलवायुक संयोगे
कखन, कतय, कोन रूप मे प्रष्फुटित हयत, के कहत !
किन्तु, एहि पोथीक भाषा
सुच्चा ग्रामीण मैथिली अछि. शब्द-विधान कविक अप्पन छनि आ बिंब चमत्कृत करैछ. किछु
देखल जाय:
...मंत्रमुग्ध आइ हीलइत अछि
हिकरी, एश आ ओक
कोनों मधुर ताल पर
डोलइत अछि
आइ हरियर पाइनक नोक।
एतय जं भाव-बोध कविक छनि
तं गाछ-वृक्ष अमेरिकाक स्थानीय थिक ; ई व्यक्तिगत अनुभूति आ स्थानीय परिद्र्श्यक अद्भुत
संश्लेषण थिक. मुदा, सब किछु कविक हृदयक सोझ-साझ उदगार थिक. से कवि कहितो छथि:
‘.......आइ अछि अहाँके अर्पण
हमर छोट छीन उपहार ।
टूटल भांगल शब्दमे
हृदयक सोझ साझ
उद्गार।..’
हमरा जनैत ई पाँती पोथीक सार थिक.
एहि सबहक संग, आन कविता सब मे कविक दुविधा (बरु नीके केलें),
विदेश में रंगभेदक भय (ननमुहीं टाड़ी), पाछू
छूटल गामक प्रति मोह आ उद्वेग, प्रकृतिक प्रेम, आ पॉलिटिक्स (लेडी बर्ड जॉनसन) सब अछि। मुदा, हमरा जनैत, 'जाड़कालाक सुर्ज' एहि
संकलनक सबसँ उत्कृष्ट कविता थिक. महाकवि 'यात्री' मन पड़लाह. देखल जाय:
‘कारी केथड़ी कनपट्टी तक
घिंचने
कतेक काल तक एना
कुलबुलाइत रहब
अहाँ हे विवस्वान् ?
कनेक कनखियो त’ दिऔक .
देखू, कोना कठुआइल अछि
कांतिहीन गाछ सभक
कजरी पोतल कारी ठाढ़ि
कतेक निराश अछि परिवेश
कोना लागैत निष्प्राण ?
जुनि अगड़ाउ, जुनि अलसाउ
आब छोडू अपन भाभट
अहाँ हे विवस्वान् .’
ई सब किछु केवल बानगी
थिक. पोथीक आस्वाद ले पोथीक परायण करी. अनुमान अछि, किननिहार कें पोथी पुस्तक-भण्डार
सब मे उपलब्ध हेतनि. यद्यपि, पोथी में विक्रेता वा लेखकक पता नहिं भेटल.
सारांश मे, भावक
विविधता, कहबाक सरल-पारदर्शी शैली, सुच्चा ग्रामीण शब्दक प्रयोग आ साधल शिल्पक
कारण डाक्टर मनोज कुमार चौधरीक ‘प्रसंगवश’ केर स्वागत हयबाक चाही. हमरा विश्वास
अछि, पाठक लोकनिक बीच एहि पोथीक स्वागत हएत. हिनक आन कृतिक प्रतीक्षा रहत.
पोथीक नाम: प्रसंगवश (कविता-संग्रह)
कवि: डाक्टर मनोज कुमार चौधरी, Reynoldsburg,Ohio,USA.
ग्राम: पनिचोभ, जिला- दरभंगा.
( मुख्यतः अमेरिका आवाससँ पूर्व मुख्यतः कोलकाता
निवासी )
संस्करण: प्रथम, अक्टूबर 2021
पृष्ठ संख्या: 63
प्रकाशक : -
आदरणीय डॉ कीर्तिनाथ बाबू,
ReplyDeleteबड़ आभारी छी जे अपने “प्रसंगवश” पढ़लहुँ, एतेक उदार समीक्षा लिखलहुँ। हम विज्ञान आ प्रौद्योगिकीमे प्रशिक्षित छी। वैज्ञानिक अनुसंधान आ इंजीनियरिंग हमर पेशा रहल अछि। मुदा विज्ञानेतर विषय सभमे (साहित्य , इतिहास , दर्शन , सिनेमा , नाटक , सामयिकी मुद्दा , आदिमे) सदैव रुचि रहल अछि। अध्ययन कैल अछि।
अमेरिकाक व्यस्त जीवनमे आओर सभ विधामे लिखबाक अवसर त'' नहि भेटल, किन्तु समय समय पर मैथिली आ हिंदीमे कविता, निबंध लिखैत रहलहुँ। खासक कविता निमित्त अपन मातृ भाषा स्वाभाविक (natural & spontaneous ) माध्यम रहल अछि। प्राकृतिक विषय-वस्तु सम्बंधित भावना सभ मैथिलीयेमे प्रस्फुटित होइत अछि। अपने हमर भावना बुझलहुँ , हृदयक बात बुझलहुँ। अपने उचित कहल जे निम्नलिखित पाँती पोथीक सार थिक .
‘.......आइ अछि अहाँके अर्पण
हमर छोट छीन उपहार ।
टूटल भांगल शब्दमे
हृदयक सोझ साझ उद्गार।..’
अति प्रसन्न आ कृतज्ञ छी जे 'जाड़कालाक सुर्ज' अपनेके विशेख लागल, महाकवि यात्री मन पाड़लक। कविवर यात्रीजी सँ हम बाल्यावस्थे सँ प्रभावित रहल छी। हमर परम सौभाग्य छल जे ओ हमर पिता जी (स्व मदन चौधरी )क मित्र छलाह। अपन कतेको पुस्तकक सर्वप्रथम प्रति बाबूजी के देलखिन। कलकत्तामे हमर सभक डेरा पर अबैत छलाह। हुनकर अनेको हिन्दी कविता के हम कंठस्त केने रही। स्कूल क अन्त्याक्षरी कम्पीटीशन मे बड़ काज अबैत छल !
पोथी में विक्रेता क पता नहिं देलिऐक किएक त - एकटा बात त' ई जे मैथिली प्रकाशनक अनुभव नहिं अछि , दोसर ई जे पोथीक विक्रय हैत ताहि मे हमरा संदेह छल। मैथिली पुस्तक -पत्रिका के मार्केट कतेक सीमित छैक से जनिते छी। प्रोफेसर हरिमोहन झाजीक " रसमयी ग्राहक " त ' अपनेके मोने हैत। ओहि "चिट्ठी" मे कोनो तेहन अतिशयोक्ति नहिं रहैक। कचोटक बात जे 'लड्डूनाथ झा' के जे अनुभव भेलनि, से थोड़बे नून -तेल-मिरचाई अंतर रहैत, हमरो रहल अछि ! मैथिली क एक-दू टा प्रकाशक सँ सम्पर्को केलियन। ईमेल आदि के कोनो जबावो नहिं भेटल। मैथिली पुस्तक -पत्रिका के मार्केट कतेक सीमित छैक से जनिते छी। एक अनजान व्यक्तिक रचना के प्रकाशनमे हिचकिचाहट स्वाभाविक छैक।
भारतमे हमर बहिन-बहनोई सभ लग "प्रसंगवश"क प्रति छनि। किछु दरभंगा-मधुबनी क्षेत्रमे, किछु दिल्लीमे। किनको पोथी चाहियन त ' व्यवस्था कएल जा सकैत छैक । हुनका सभ पर हम पहिनहुँ बड़ भार द' चुकल छियनि। तैं पोस्टक माध्यमे त' नहिं, मुदा मधुबनी, दिल्लीमे व्यक्तिगत सम्पर्क क' पोथी उपलब्ध क' सकैत छथि।
पुनः अपनेके धन्यवाद दैत छी। एकटा निवेदन संगे शेष क' रहल छी। प्रोफेसर भीमनाथ झा आ अन्य सुधीगण के नजरिमे "प्रशंगवश " आनि हमरा अनुग्रहित कएल जाओ।
सादर ,
मनोज चौधरी
मैथिलीक पोथी नहिं बिकाइत छैक। सब लेखक-कवि एकर भुक्तभोगी छथि। हमर ब्लाॅग पर सेहो एहि विषयक अनेक लेख भेटत। समुद्रपार अहाँ-सन बहुत मैथिली-प्रेमी बसैत छथि। तें, हम बहुतो कें soft edition/ kindle edition प्रकाशित करबा ले प्रेरित करैत छियनि। मुदा,एहन पोथी जे पाठक कें नीक लगैक मैथिली मे तकर अभाव छैक। मुदा, जे पोथी चर्चा में अबैत छैक, लोक कें नीको लगैत छैक, सेहो नहिं बिकाइत छैक। हम travelogue 'लोहना रोडसँ लास वेगस' एकर टटका उदाहरण थिक।
ReplyDeleteअहाँक पोथी भीमबाबू कें भेटलनि हम तकर गवाह छी। एक प्रति केदार कानन कें सुपौल पहुँचनि तं नीक। ओ मैथिलीक हेतु समर्पिते टा नहिं 'भारती मंडन' नामक उत्कृष्ट मैथिली पत्रिकाक संपादन करैत छथि। एहि पत्रिकाक प्रत्येक अंक संग्रहणीय होइछ। मुदा, electronic edition नहिं छपैत छैक।
एतद्धि।
'भारती मंडन'सँ परिचित छी। भारत गेल रही त' किछु अंक लेने आयल रही।बड़ प्रभावित केलक। साधुवाद दइत छिअनि केदार काननजी के जे एहन उत्कृष्ट बहुआयामी पत्रिकाक संपादन करैत छथि।प्रयास करब हुनका एक प्रति पहुँचनि ।
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