Wednesday, December 1, 2021

मंगली

 

मंगली

आजुक राति फेर मंगली बिछाओन में मूति देलकइ. साओन-भादवक राति, आ तीतल बिछाओन. जीतनक मोन तं बिखिन्न भ गेलै. बेटी कें गारि-सराप देब आ अपन करमकें दोख देब  ओकर हिस्सक नहिं. कहलकइ , धुर बुच्ची , फेर मूति देलही . कहितें, से नहिं . पांच बरखक छौड़ी आ निसाभाग राति . मंगली की जानय, की भेलै . जीतन भिजल केथरी के कात क’ देलकै आ दोसर  कात सेजोट  पर पड़ि रहल . सोचलक , राति भेलैये तं भोर हेबे करतै . मुदा , जीतनकें बुझबामें नहिं एलइ  कतेक राति बीति चुकल छलै . रुख-सुख  रहितै तं तरेगन , तराजू , आ भोरुकबा सेहो देखैत. मुदा , साओन -भादव मास, मेघ लागल, आ बज्र अन्हार. ओढ़नासँ  मुंह झांपि  फेर पड़ि रहल. मुदा, निन्न कतय पाबी. अपना माथपर गुनदेब झाक हरबाहीक भारा छलैक  आ घरवाली  नबानीबाली दुधमुंहा बच्चाक भारा लगाक आँखि मूनि  लेलकइ .

जीतन जबानी में शरौ खेलाइत छल . देह तन्दुरुस्त रहै . बाबू लोकनि घी-मलीदा खाथि आ बैसल-बैसल हुकुम चलाबथि . ताहि पर ककरो सांगरही आ ककरो सुखैनी ध' लैनि . मुदा , जीतन मडुआ- भतुआ खाइ छल , देह मे माटिक औंसैत  छल आ दंड-बैसक लगबै छल . तही मे देह फौदायल रहै छलै. नढ़ेर-छिनारले गामघरमें छौड़ी-मौगीक कोन कमी. मुदा ,अखड़ाहा पर नारदजी सब दिन कहथिन , हमरा अखड़ाहा पर अयबें तं नवी पोखरि में डूब दे , गतानिक' कच्छा बान्ह,  महाबीरजीक धुजामें लोटाभरि जल ढार, आ अखड़ाहा पर आबि जो. नहिं तं , हमर तं बुझले छौ , अखड़ाहा पर टपय नहिं देबौ. ककर मजाल छी, नारदजी  कहल टारत ! आ नारदजीक सब चेला एक-नारी- ब्रह्मचारी-ए छल . जीतनक अंगनाबाली, नबानीबाली, बतर जबानीए में मरि  गेलैक. कतेको हित-मीत कहलकइ , 'मीता कहिया तक मंगलीक गूह-मूत करैत रहब. हर-हराठसँ  थाकिक आयब एक कर अन्नो के देत ! समंध क’ लियअ .  बूझब जे नबानीबाली कें ओएह लिखल छलै.' मुदा, जीतन ककरो नाकपर मांछी बैसय नहिं देलकनि . कहै , मर बैंह , फेरहाक पाड़ा छी !

आइ  सुतली राति में सबटा गप्प मोन पड़ैत छै . तेसर साल कातिक-अगहनमें कोना रातिक' नबानीबालीक देह छक-छक  भ’ जाइ . टोल पर ककरो-ककरो कहबो केलकइ . सब कहै , कातिकक  कफजाराक कोन छै . अढ़इया बोखार अबै छै, आ चल जाइ  छै . नबका धान होअय दही ने. नबका चाउरक  गोलहत्थी रान्हिक खाय लगबें ने तं अनेरे सब रोग-ब्याधि पड़ा जेतौ. कातिकक मास तेरहम मास होइछै . अन्न-पानिक कमी रहै छै . कहै छै , निर्धन कें दस टा दोख आ निर्बल कें दस टा रोग . कातिक तं ओहुना रोग-ब्याधिक माय छियै . एखनि तं कफजारा सोहाग-भाग छै ! मुदा , नबानीबालीक जर ने अढ़इया रहै आ ने सोहाग-भाग . एहि बरख कातिक में जे जर धेलकइ , दोसर जाड़ अबैत- अबैत संगहिं ल क' चल गेलैक .

जितनाकें मोन पड़ैत छै - झंझारपुरक मिसरजीक ओतय कतेक बेर गेल छल . कहथिन, जड़ियायल रोग छै, समय तं लगबे करतैक. कतेक बड़ीया  आ बोतल अनने हयत जीतन. मुदा , मौगिक देह गलिते चल गेलैक. पछाति कतेक देवो -सैव केलक . कोनो फैदा नहिं . मोने छै , नबानीबालीके  जितना कान्ह पर लादि कय हलसादाइ पोखरिक राजाजी थान धरि ल’ गेल रहय . भगता कें राजाजी सवारी कसने छलखिन, आ  भगता भाव  खेलाइ  छल.  जितनाकें देखिते भगता एकसुरे बाजय  लागल रहै - 'ल जाही , ल जाही . नै बंचतौ . अरुदा पूर भ गेलै.' जितना कें बुकौर लागि गेलै . जीतन नबानी बालीके राजाजिक गहबरक अंगनइमें भुइयें पर पाड़ि  देलकैक आ अपने ठेहुनियाँ रोपि कय  कल जोडि लेलक . दोहाई राजाजी ! बड़ आससँ  मौगी कें अनलियइ-ए . दुधपिबा बेटी टुगर भ’ जेतइ ! भगता दहिना हाथें एकटा अड़हुलक फूल जुमाक नबानीबाली दिस फेकलकइ . मुदा , जितना ने फूल लोकि सकल आ ने फूल नबानीबालीएक देह पर खसलइ . चुपे-चुप मौगी सब अपनामें कहलकै , 'मौगी नै ठहरतै' . जितना बड़ आससँ  फूल उठौलक , कल जोड़ि  राजाजीकें गोड़  लगलक आ फूलकें नबानीबालीक माथमें लगाक' अपन अंगपोछाक खूटमें बन्हलक आ नबानीबालीकें कन्हापर उठाकय गामपर ल’ अनलक. आ आखिर जे हेबाक छलैक, से भेलै ; नबानीबाली अगहन नहिं खेपि सकलै.

2

ओहि जमानामें जीतन सन लोकक धिया पुता स्कूल नहिं जाइत छलै . भरि दिन खेत खरिहान, पोखरि झाँखरि , गाछी-कलम में बौआयल, माल-बकरी चरौलक. खेबाक बेर में घूरि कय घर आयल, जे भेटलैक मारि-धूसि कय खेलक    सांझ होइत पटोटन द’ देलक. जाड़-गर्मी-बरखा आ अगहनी अबैत आ जाइत गेलैक, मंगली कहिया चेतन भ’ गेलैक जीतन कें बुझबो में नहिं एलैक. मुदा, मंगली चेतन भ’ गेलि छल  से मंगलीकें तहिया बुझबामें अयलैक जहिया जीतन चलिते फिरिते बिछाओन ध' लेलकैक. मैटुअर तं पहिनहिंसँ छल, आब बापक सहारा सेहो बिलएबाक आदंक भ’ एलैक . की करैत. बोनि-बुत्ता करय लागल, हवेली-महल धेलक . जे किछु भ’ सकलैक केलक. लोक सब कहैक, 'बुढ़बाकें लाज नहीं होइ छै . बेटीक बियाह क’ कय अपन घर बिदा करतैक कि बेटी हवेली-महल कमेतैक आ बुढ़बा एतय बैठल-बैठल अपन  पेट पोसतै.' मंगली कहै, 'हम दुधपिबा, रही माय मरि  गेल. बाबू हमरा पोसलक, हमर गूह-मूत केलक. आब ओकर देह खसि पड़लैक तं हम पुछियैक, बेटा कतय छह ? एहनो निसाफ होइ .' हित-मीत आ भौजाइक तूरक लोक हँसी करै, कहै , 'बैसल रह, बुढ़िया भ’ जेमें तं के पुछ्तौ !' मुदा, मंगली लेखें धनि सन. कातिकमें जीतन बिछाओन धेने छल. माघ-फागुन-चैत-बैसाख बीति गेलैक, जीतन कें बिछाओन  पर सं उठल नहिं भेलैक. साओन-भादवमें बियाह दानक कोन गप्प . आषाढ़ में टोलबैया सब जीतन कें चड़ियाबय लगलइ. सोमना कहलकैक,  मीता अपना रहैत मंगलीकें बिदा क’ दियउ.

खेत ने पथार, सुदुक पांच धूर डीह . हरबाहि में भेटिते  की छलै, चारि सेर धान वा अढ़ाइ सेर मडुआ . जलखइ में पाँव भरि भिजाओल चाउर वा एकटा मडुआक रोटी आ नोन-मरचाइ . जीतन सोचय , हमरा अपन आब कोन . मुदा, जं घरदेखियाक आवभगत नहिं भेलै , आ बरिआतीके मरजादो खोअबाक बंदोबस नहिं भेल तं सिउंथमें सिनूरो कोना पड़तैक. एक राति जीतनकेर मोन कनेक आसान रहैक . मंगली लग में शीतल-पाती पर पड़ल छलि . जीतन कहलकै, बुच्ची, एगो गप्प कहियौ ?

-‘कह’ ने.

-‘हम आब बूढ़ भेलहुँ. हमर आब कोन ठेकान . तों नान्हियेटा छलें, तोहर माय तोरा छोड़िक’ चल गेलौ . जेना तेना एतेक दिनसँ  तोहीं  हमर संगबे  छलें . मुदा, बेटी जाति तं सब दिनसँ  अपन घर जाइते छै . सब कहैए अपना सोंझां जं तोरा हम ककरो अंक नहिं लगा देबौ तं हम ककरा भरोसे तोरा छोड़बौक. कहैत-कहैत जीतन कें बुकौर लागि गेलैक. मंगली कहलकै, 'आब बुझलियैक, हरि घड़ी तोहर मुँह किएक लटकल रहै छह. तोरा एखनि किछु नहिं हेतह . आ सोचह जे मरिए गेलह, तं चकेठ -सन देह आ हम दू कौर अन्नो ने कमा सकब ! जीतन, के हँसी लगी गेलैक. कहलकैक, ‘देह ने चकेठ  लगइ  छौ , अक्किल कतयसँ  औतौक . बेटी-धी कतौ एना नहिरा में रहै छै. तोहर माय मरि गेलहु. लोक कहय कि , अंगनासँ  तं मरिए गेलह, ऐ पिलपिलही कें ल’ क’ कोन सनाथ हेबह. बेटा रहितह  तं कमा  क’ खोअयबो करितह. एकरो बलान में फेकि आबह, आ समंध क’ लैह . हम सब कें कहलियैक, कमलामाइ - कोशीमाइ- गंगामाइ सब तं बेटिये छथिन. लोक पूजा करै छनि कि नहिं . हमहूँ बूझब जे कमले माई कें सेबने छी . ओ तं दोहाइ राजाजी, तोहर मायके तं जे भेलै से भेलै. मुदा, तोरा बचा लेलखुन, नहिं तं हम कतहु के रहितहुँ . आ लोकक आँखिमें गेजड़  फूटल छै , देखै नइ छै जे एखनो दू कौर सुअन्नो तं तोहरे  भरोसे भेटै-ए.’

-‘आ तै पर  तोहर एहन गियान जे हम कंठ ठेकल छियह.’

जीतनकें फेर मुसुकी छूटि गेलैक. कहलकैक, ‘कहलियउने, गियान कतयसँ  औतौ. आब तं हम दिन सँ  दिन निचे मुंहें हयब, तं तोरा हम एत्तहि हमरे सेबने रहय देबौ !’

- ‘तं की . बलजोरी बैला देबह.’

-  एहनो भेलैये. बैला नै देबौ तं हमरे माथ पर सब दिन बैसल रहबें ?’ - ई कहैत जीतनक ठोरपर मुसुकी आबि गेल रहै.

- मुदा, जितनक गप्प सुनि मंगलिक आँखिनसँ  ढब-ढब नोर  खसय  लगलैक. कहलैक, ‘जहिया गूह-मूत करै छलह, तहिया हम बोझ नहिं भेलियह . आब जखन तोहर सेवाक बेर आयल अछि तं एहन-एहन गप्प कहै छह.’ आ मंगली हिचुकि-हिचुकि कानय  लागलि. जीतनकें कहला सन पछताबक होमय लगलैक. कहलकैक, ‘बत्ताहि छें . लोक बेटी-धी कें तं सब दिन सं अहिना कहि एलैये.’

-‘एना कहि एलैये तं लोक बेटी कें बलानो मे भसा दई छलै, नोन चटा क' मारिओ दै किने. तहिये किएक ने हमरा भसा एलह, बलान में.’

आब जीतन केर कनबाक  पार छलै . कहलकैक, 'बुच्ची, जहिया साओन भादवक मास में तितल बिछाओन में राति बितौलौ तहिया तं तोरा एक बेर किछु नहिं कहलियौ . आब तोरा फेक एबौ. कहै छियौ ने , अक्किल कतयसँ  ओतौक ! तोरासँ  गप्प करब बेकार.’

-तों’ कहै छह तं किछु ने. हम कहलियह तं हमरासँ  गप्पो नै करबह. ..... आब एखनि बस करह. दिनुका भात रखने छियह, दलिसग्गा संगे खा लैह . थमह, चूल्हि पजारिक' दलिसग्गा कने सुसुम का दैत छियै आ थारी परसने अबैत छियह.’

जीतन गुन-धुनमें पटियहिं पर पड़ल रहल. मंगली चूल्हि पजारय चलि गेल.

किछुए कालमें मंगली थारी परसि कय नेने एलइ . जीतन उठिकय बैसल. लोटाक पानिसँ  हाथ-मुंह धोलक आ भात ढाहिक दलिसग्गा ओहि पर ढारि देलकै. मोलायम भात आ तप्पत दलिसग्गाक स्वाद जीतनकें बड़ दीव लगलै. कहलकैक , बुच्ची, बड़ आशीर्वाद दै छियउ. भगमान एहिना समांग देने रहथुन. कहै छै लोक बेटा आ बेटी. हमरा ले तं तोंही टा सहारा छें.’

मंगली गप्प उपरे लोकि लेलकैक. कहलकैक - एखनी गप्प नै करह . सरि भ’ क दू मुट्ठी भात खा लैह . मुदा, एकटा गप्प कहैत छियह, काल्हि जे भ’ जेतइ, लहेरियासराय ल’ चलैत छियह . सुनै छियैक खेराती अस्पताल मे सबहक इलाज होइ छैक.’

- ‘लहेरियासराय जायब से सुसकै हेतह . आब हमरा लोकनिक कोन. एहिना रोग -व्याधि हैत, देह खसत, आ चलि जायब. तों अपन चिन्ता करै.’

मुदा, मंगली जितनक कोनो गप्प नहिं मानलकैक. हारि कय जीतन डाक्टरसँ  देखओलनि आ जे कहलकनि यथासाध्य इलाज-पथ्य शुरू केलनि.

3

जाड़क मास बितलइ. इलाज-पथ्य आ मंगलिक सेवासँ  जीतन उठि के ठाढ़ भेलाह आ लाठी भरें चलब शुरू केलनि . शरौ खेलायल देह आ मेहनतियाक मोन. एक दिन टुघरैत- टुघरैत, लागल-लागल राजाजीक थान धरि पहुंचि गेलाह . साँझुक पहर रहै. राजाजीक थानमें कएक गोटे बैसल छल. जीतन कें देखि टोलबैया सबकें नीक लगलैक. मूसन उठिक ठाढ़ भेल. हाथ जोड़ि क’ कहलैक – ‘दोहाइ राजाजी ! मीता, अहाँ अपना पैर पर ठाढ़ तं भेलहुँ . भरोस नइ छल अहाकें राजाजीक थान में देखब.’

जितन ठेंगा अंगनै में राखि देलकैक आ ओत्तहि सबहक लग में चुक्की माली भ’ क बैसि गेल. बसंता कहलैक, कका , तमाकू खेबह ? मूसन गप्प उपरे लोकि लेलकैक. मर, देबही, कि पूछै छही . जीतन कहलकैक – ‘लाबह.’ बसंता तमाकूक ज़ूम जितनक तरहत्थी पर राखि देलकैक . जीतन तमाकूक ज़ूमकें चुटकी में उठा क’ ठोर तर राखि लेलक . कहलैक –‘तोरा सब संगे एतय बैसलहुँ-ए  तं मोन आन तरह लगैये. अपना तं डेग उठेबाक हिम्मत नहिं होइ छले . मुदा, बुच्ची, हाथ क’ ठेंगा देलक आ हाथ पकड़िक’ ठाढ़ क’ देलक. कहलक, लागल लागल जाह, तं आबि गेलहुँ.’

मूसन कहलकैक – ‘कोनो बेजाय कहलकह. कमासुत बेटी आ गियानक गप्प. एहन भाग सब के होइ छै !’

जीतन के कोंढ़ फाटि गेलैक. कहलकैक – ‘मीता, एहन अभागलो केओ छैक. जुआनि बेटी आ हमरा सन अथबल  बाप !’

- ‘कथी ले तरद्दुद करै छी . भगमान कतौ गाम गेलखिने. हँ , एकटा गप्प तं कहबे नै केलहुँ : एक गोरे एकटा लड़िकाक कथा कहै छले. सूरत में काज करैए. बूढ़ बाप एसकरे गाम रहै छै. केओ लोक-बेद चाहियैक. हमरा मंगलीपर धियान गेल. मुदा, हम कोना किछु कहितियैक . मुदा एतबा अबस्से कहलियैक, हम मीतासँ  पुछबैन. अहाँ करबैक ?’

जीतन मूसनक दुनू हाथ ध’ लेलकैक. कहलकैक, ‘मीता अहाँ हमर मुँहक गप्प छीनि लेलौं. मुदा, एकटा मंगली अछि कि जखन विवाह-दानक गप्प करै छी, नाक पर माछी नहिं बैसय दैत अछि. कहैये तोरा छोड़ि क’ हम कतौ नइ जायब. अहीं कहू, एहन कतौ भेलैये !’

-‘थम्हू ने. किएक अगुताई छी.’

जीतन गाम पर घूरि कए आयल तं मुन्हारि  साँझ भ’ गेल रहैक. दुखिताह देह आ बहुत दिन परक चालि . दुआरि पर अबिते जीतन जौड़ाखट्टा  पर पड़ि रहल.

जीतन के पड़ल देखि मंगली पुछलकैक , 'आबि गेलह ?' हमरा तं होइ छल आगू बढ़ि कय देखिअह.’

-‘बहुत दिनपर दरबज्जा परसँ  बहरायल रही . मीता भेटि गेल . दुःख-सुखक गप्प उठि गेलै. तें.’

 पछाति, जखन जीतन मंगली कें मूसनक गप्प कहलकैक तं मंगली गुम्म भ’ गेल. कहलकैक, ‘एखन हमरा बड़ काज अइ.’ आ ओ जीतन लगसँ  टरि गेल. मुदा, मंगलीक मोन मे गप्प घुरिआय लगलैक. होइक जे जं एहना ठाम बाबू मरि गेल तं ओकर भूत हमरा जीयअ नहिं देत. बुढ़बा तेहन ने लगारी अछि जे हमर जान नहिं छोड़त. इएह सब सोचैत मंगली पथिया में राखल सेर दुइएक मडुआ उठौलक आ जांत में पिसय लागल. एक दिस मंगली जांत में मडुआक झीक दैक आ दोसर दिस जीतनक कहल गप्प कें सोचए. एहना में लगैक जे ओकर माथ जांतक पट्टाक संगहिं संग घूमि रहल छैक. मुदा, कनेक कालक पछाति भेलैक जे घुमैत माथ में किछु निस्तुकी गप्प पेराइत दूधक ऊपर अलगैत मक्खन जकाँ ऊपर आबय लगलैए. भेलै, ठीक छै, फूसि कें कनेक नंगड़ा आबी. ओ जांतक हाथड़ छोड़ि देलकैक, चिक्कसक पथिया कें एक कात कए देलकैक, उठि कय ठाढ़ भेल आ दलान पर पड़ल जीतन लग आबि क’ ठाढ़ भ’ गेल.

‘ की छियहु ? मडुआ पिसल भ’ गेलह ?

मंगली किछु नहिं कहलकैक.

‘तीमन की बनेबहक ?’

‘मनसा आबि कए एहि गाम बसतै ?’- मंगली हठात्  पूछि बैसलकैक.

जीतन कें किछु बुझबा में नहिं एलैक. मंगली फेर पुछलकैक, ‘मनसा आबि कए एहि गाम बसतै ?’

एक्के गप्प दोसर बेर सुनि, एकाएक जीतनक भक्क टुटलैक. कहलकैक, बताहि भेलेहें ! एहनो भेलैये !! अनबधानक गप्प.

-‘तखन हम बियाह नहिं करबै. हम तोरा छोड़ि कए कतहु नहिं जेबै.’

जीतन केर आँखिसँ भट-भट नोर खसए लगलैक. कहलकैक, ‘के कहतैक बेटी अनकर धन छियैक. उचित तं छियैक नहिं, तखन तों, कहैत छह, तं पुछबै मीता कें. हमरा नहिं लगइए  केओ मानत एहन अजगुत बात. तै पर लड़िका त सूरत कमाइ छै.’

मुदा, मंगली अपन गप्प पर अड़ल छलि. ओ टस्ससँ मस नहिं भेल. कहलकैक, जे हम एक गोटेक नहिं, दुनू गोटेक बापक भार उठा लेबैक जं दुनू एक ठाम रहैक. हम जतय जायब दुनू बुढ़ा हमरे संग रहत, नैहर आ सासुर. बाबू के हम नहिं छोड़बै ! मरला उत्तर तं हम कतेक बड़का लोक कें जवारी आ भोज करैत देखै छियै, आ जीत्ता जी माय-बाप काहि कटैत छै. जीत्ता जी सेवा ने सेवा भेलै, अतमा त  ओहीसँ जुड़ाइ छै. जित्ता जी माए-बाप काहि काटत, आ मरला उत्तर नौ गाम जेवारी ! हमरा नहिं सोहाइए !! मंजूर छै, त कहौ. नहिं तं हम अपन घर, आ ओ अपन घर !’

दोसर दिन मूसनसँ भेंट भेलैक तं जीतन डेराइते-डेराइत सब बात कहि पुछलकैक, ‘की कहै छी, मीता ?’ ‘कहबै की. मंगली कोनो बेजाय कहैए.’ मूसन कहलकैक,’ ठीके तं कहैए मंगली. मरला उत्तर तं सब भोज करैए. जित्ता जी सेवा करए से ने बहादुर ! ठीक छै. हम पूछि अबै छियै.मंजूर हेतैक तं ठीक. दुनू घर सम्हरि जेतै.’

मूसन घुरतिए मंगल क’ श्रीपुर गेलाह. लड़िका आ ओकर बुढ़ा कें सब टा गप्प फरिछा कए कहलखिन. लड़िका, जेकांत,क बाबू, आनन्द, कहलखिन, ‘ कोनो बेजाय कहै छथिन, हम दुनू गोरे संग रहबै, तं ठीके दुनू घर सम्हरि जेतैक. फूट-फूट में  ककरो एक गोटे के दू मुट्ठी अन्नो के देतैक. हमरा कोनो उजुर किए हैत. हमरा एगो मनुख चाही. समधियो कें तं मनुख चाहियनि. कनियाँ दुनू गोरे कें संगे रखथिन. हमर बेटा सूरत. समधिक बेटी सासुर. ककरो ने केओ देखनिहार ! केहन निम्मन गप्प कहलखिन. कहियौ तं. के कहतै मौगी कें अक्किल नहिं होइ छै !’

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