Tuesday, December 14, 2021

गाम में सामाजिकता एखनो जीवित अछि

 

                                                 गाम में सामाजिकता एखनो जीवित अछि

एहि बेर मार्च में हमरा गाम छोड़ना पचास वर्ष पूरि गेल. मुदा, गाम आयब नहिं छूटल अछि. पहिने केवल दादा आ दाई गाम में रहैत रहथि. दादाक गेना चालीस वर्ष आ दाईक गेना अठारह वर्ष भए गेलनि आब. मुदा, गाम अबिते छी. ने अगहनी में ने आमक मास में , जहिया पहिने लोक धिया-पुता कें लए गाम अबैत छल. हमरा ओ आकर्षण नहिं. एहि बेर अयबाक कारण छल भाई लोकनिसँ भेंट- एक गोटे छियासी वर्षक छथि, दोसर अस्सीक धक्का पर . दरभंगा में लिटरेचर फेस्टिवल छलैक. ओहि समारोहक पहिल दिनक कार्यक्रममें भाग लेल आ गाम विदा भेलहुँ, तं दिनान्त हेबा पर रहैक. पहिने गाम अबैत रही त बाटे-बाट  सब गाम देखबा में अबैत छल. दरभंगाक पूब, सड़कक दहिना कात एकभिंडा पोखरि, तखन, सकरी, राजे-गंगौली, सरिसब-पाही, पैटघाट- ओतय एकटा टेढ़ भेल इनार रहैक, लोहना पाठशाला, आ तखन किरण जीक पड़ोसी, बिदेश्वर बाबाक मन्दिर. आब फोर लेन पक्की सड़क यात्रा कें जेहने सुलभ बना देलक अछि, तेहने अपरिचित, आ प्राणहीन. दूर-दूर गाड़ी हंकैत जाऊ, कोनो गाम नहिं देखबा में आओत. जेहने उत्तरप्रदेशक इलाका अपरिचित, तहिना अपन इलाका. जं कनेक साकांछ नहिं रहलहुँ  तं कखन बिदेश्वर स्थान छूटि जायत आ झंझारपुर बाज़ार पहुँचि जायब, बुझबो नहिं करबैक !

एहि बेर बड्ड ध्यानसँ  तकैत रहलहुँ तं लोहना पाठशाला देखबा में आयल. ओतुका मन्दिर हालहिं में ढौरल गेल छैक. आगू हाईवे छोड़ि दक्षिण दिस घुमलहुँ तं सूर्यास्त भए रहल छलैक. सूर्य चिन्हार लगलाह. एहि इलाकाक कतेक सूर्यक कतेक मुद्रा देखने छी. मुदा, आब कतेक बेर हिनकासँ भेंट हएबी बाँकी अछि, कहब कठिन. बिदेश्वर मन्दिरक बामाक गाछ वृक्ष सब एतय क्षितिजक प्रसारकें संकीर्ण कए देने छैक. मुदा, किछु आओर दक्षिण गेला पर धर्मपुरक बदिया बाधक बीच, जदुआहा पोखरिक ऊपर सूर्य आ हमरा बीच कोनो अवरोध नहिं. पोखरि में माँछ, घोंघारी, डोका-सितुआक शिकार में लागल श्वेत बगुलाक दल तखने ऊपर उड़ल. हम ओकर फोटो घिचल. ड्राइवर हमर गाड़ी रोकने रहथि. हमरा तन्मयतासँ सूर्यक लाल चक्काकें ध्यानस्थ भए देखैत कहलनि, ‘सर, हम आज तक ऐसा सूरज नहीं देखे हैं !’ हम पुछलियनि, ‘ सच ?’ ‘जी, सर !’

हम आगू बढ़लहुँ. धर्मपुरक पुरान कदम्ब गाछ जाहि तर बैसि हमर मातामह एवं  स्व. रमानाथ झाक पिता गप्प-सप्प करथि. ओ कदम्बक गाछ आ हुनक वंशजक स्थान आब  इंटाक छोट-सन कोठली ल लेने अछि. ओहि कोठली में आब दोकान चलैत छैक.

गाम पहुँचलहुँ तं चिराग रोशनी भए गेल रहैक. भाई जी दरबज्जा पर बैसल प्रतीक्षारत रहथि. नुनू भाई साँझहिं आरती ले दुर्गा-स्थान चल जाइत छथि, तें, पहिने पश्चिम दिस हुनके अंगना दिस गेलहुँ. अंगना जंगल भेल, भकोभंड ! भौजीक अकस्मात् कैन्सरसँ पीड़ित भए जायब, एकाएक सबकें उलटा-पुलटा कए देने छनि. नुनू भाई एकदम दुर्बल आ निराश लगलाह. बढ़ल दाढ़ी, धसल आँखिक. आँखि आ ठेहुन दुनूसँ लाचार ! एतेक स्वस्थ व्यक्ति जे हजारो बेर कामरु उठा कए देवघर गेल छथि, पाँच बेर दण्ड-प्रणाम केने छथि, हुनक परिस्थिति चकित करैत अछि. कहलनि, ‘हमरा नहिं लगैत अछि, बचतीह. भोजन किछु जाइत नहिं छनि. तखन देहो बेचि कए इलाज करेबे करबनि.’ चकित छी एतुका प्रशासन, बिहार सरकार आ नागरिक पर. जाहि शहर-लहेरियासराय में महाराज दरभंगा 192 5 ई. में विपुल दान आ भूमि दए टेम्पल मेडिकल स्कूलक स्थापना केने रहथि, ओतुका तं गप्प छोडू, पटना धरि में जनसामान्यक लेल कैन्सरक समुचित इलाजक  सुविधा नहिं छैक. तें बेर-बेर भौजी टाटा कैन्सर सेंटर में इलाज ले बनारस जाइत छथि ! नुनू भाई पेंशनर छथि, तें भारत सरकारक आयुष्मान भारत स्कीमक लाभ हुनका ले उपलब्ध नहिं ! इएह थिक अजुका बिहार ! नेता सुस्त, जनता कोनो अन्याय आ अव्यवस्था पर आक्रोश व्यक्त नहिं करैछ. चुनाव होइछ, नेता जितैत छथि, सरकार बनैत अछि. कोनो विरोध, कोनो आक्रोश नहिं. सरकार आ नेता ले एहिसँ नीक अओर की हेतैक !

हमर अपन घर सीलनसँ  भरल अछि. राति भरि जं एहि घर में रहलहुँ  तं भोर धरि दमा अवश्य भए जायत. आब प्रति वर्ष हमर अंगना में पानि भरैत अछि; एक दिस ऊँच सड़क, दोसर दिस पड़ोसीलोकनि  माटि भरि-भरि अपन-अपन डीह  ऊँच कए लेने छथि. कतहु पानिक  निकास नहिं. बंगलोर आ गाम एके हाल ! आब तं लोक चहबच्चा, पोखरि आ नासी धरि भरि कए घर बना रहल अछि !!

हमरालोकनि  एखन धरि घूरि-घूरि गाम अबैत छी. एहिं बेर गाम अयबाक बहाना भाई लोकनि छथि. जखन सेहो नहिं रहत, तखन गाम में की आकर्षित करत ! हम अपने गाम कें की दैत छिऐक ? हमरा के, आ किएक चिन्हत ?

भाई जी कहैत छथि, ‘आब ओ गाम नहिं अओताह. बड्ड कष्ट होइत छनि; एतय टाका देलहुँ लोक भेटब असंभव.’ एखन छोट शहर आ गाम में वृद्धाश्रम बनब आरंभ नहिं भेलैये. मुदा, शीघ्रे तकर आवश्यकता हेतैक; लोकक आयु बढ़ि रहल छैक. मुदा, सेवा केनिहार, बिहारसँ  बाहर शहर कमाइत छथि. एतय कोनो चाकरी नहिं. तखन बूढ़-बुढ़ानुसक सेवा कोना हेतनि !

मन्दिर में आरतीक बेर लागिचा गेल छैक. नुनू भाई मन्दिर पर जेताह. एकटा पड़ोसी महिला अपने घर में भोजन बना कए हुनका हेतु भोजन दए जाइत छथिन. गाम में एखनो सामाजिकता जीवित अछि, से आशाजनक थिक. शहर जकां एतय एखनो समाज विखंडित नहिं भेलैए. हम दुनू भाई लोकनि कें प्रणाम कयल. भाईजी उगुतबैत छथि: साढ़े छौ बाजि गेल छैक, आब जाऊ. हमरा मधुबनी जयबाक अछि. ओतहि रात्रि-विश्राम हेतैक. चारू कात अन्हार पसरि आयल छैक. तथापि, सब दिस सड़कक जालक सुविधासँ  हमरा मधुबनी जयबामें चालीस मिनटसँ बेसी नहिं लागत. हम गाम कें प्रणाम करैत छी, आ पश्चिम मुँहक बाट धरैत छी.


3 comments:

  1. गामक स्थिति पढ़ि बहुत दुख भेल । सभठाम ओहने हाल अछि ।

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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

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