Saturday, December 18, 2021

बेटी

 

बेटी

1

रामदाई जखन ककरो मुँहे सुनथिन, ‘ कुमारि बेटी मरय तं सात कुलक पाप टरय तं बड्ड दुःख होइनि. होइनि जे लोक एना किएक कहैत छैक ?’ इहो सोचथि, ‘माए तं एना कहियो नहिं बजैत छैक. तें, राम दाई कें माए ले जतबे आदर होइनि, ततबे चिन्ता. सोचथि, बूढ़ भेलीह. बेटा लोकनि बाहर रहैत छथिन. रुपैया टाका सब गोटे पठा दैत छथिन. मुदा, माए गाम में एसगरे रहैत अछि. माए लग आबि कए के रहतनि ? संतोषक गप्प जे दाई कें  समांग छनि, आ ओ जेना छथि खुशी छथि. मुदा, तैयो दाई बेसी काल कहथिन, ‘अइ, जखने बूढ़ भेलहुँ, तखने दूरि गेलहुँ. सब कें होइत छनि, दाई ऐना नहिं करैत, ओना नहिं करैत छथि, बदलय नहिं चाहैत छथि.’ मुदा, दाई सब टा सुनैत रहथि आ सुनिओ कए अनठबैत रहथि. सोचैत रहथि, ‘बूढ़ कुकुर कतहु फाँस बझए ! आब हम की बदलब. जेना छी, कहुना निमहि जाए.’  अधिक काल कहथिन, ‘अधलाह नहिं सुनी, अधलाह नहिं देखी, अधलाह नहिं बाजी.  ई गप्प बड्ड पुरान गप्प थिकैक. ई बुढ़ारी में बड्ड काज अबैत छैक. तें, बुढ़ारी में आँखि स्वयं कमजोर भए जाइत छैक. कान कम सुनैत छैक. भगवान जानिए कए एना करैत छथिन. अप्रिय नहिं देखब, नहिं सुनब, तं किछु अनटोटल बजलो नहिं जायत. कम बाजब नीक छिऐक से तं लोक सब दिनसँ कहि एलैए ! तखन ककरा कथिक शिकाइत हेतैक?’ मुदा, शिकाइत हयबा ले कारण थोड़े चाहियैक. मुदा, दाई गप्प नहिं बुझथिन, से नहिं. पचासी वर्षक वयसक. अपन सब काज अपनहिं करथि. कखनो कए जं कोनो गप्प पर  तामसो होइनि तं बेटी-पुतहु लोकनि कें कहथिन, ‘अइ, अहाँलोकनि कें भगवान जिनगी समांग देथु. अहूँ लोकनि दाई हेबे करब.’

पछिला वर्ष अकस्मात् कोरोना आयल. एहन रोग ने सुनल, ने देखल. ई तेहन काल छल जे ककरा ने लहायब केलक; की बच्चा, की समर्थ, आ की बूढ़-ठेढ़. ताहू पर ई अगड़ाही मनुखेसँ दोसर मनुख धरि पसरैत छल. तें, जे जतहि छल, ओत्तहि रहि गेल. ककरो आंग-स्वांग होइ, केओ मरि जाय, कोनो उपाय नहिं. टेन बन्न, प्लेन बन्न. कठियारी तक जेबा ले  मनुख नहिं भेटैक. दूरस्थ में फँसल  धिया-पुता कानि कए रहि गेल, माए-बाप कें आगि धरि देबा ले नहिं आबि सकल. एखन धरि कहियो एहन अवसर नहिं आयल रहैक जखन मनुष्यकें मनुष्येसँ एतेक भय भेल रहैक. मुदा, उपाय की ? तथापि, जखन बसाते माहुर भए गेले, तखन लोक बचत कोना !

दाई नान्हिए टा में खीसा सुनने रहथि. कहाँदन वायुदेव हज़ारों वर्ष धरि शिवक कठिन तपस्या कयलनि. तपस्यासँ प्रसन्न भए आशुतोष शिव प्रकट भेलाह आ वायु कें कहलथिन, ‘अहाँ चंचल छी. तथापि एहन कठिन तपस्या कयल. हम प्रसन्न छी. तीन टा वर मांगू.’ वायु कहथिन, हे, महादेव हम सब ठाम रही. सब प्राणीमें वास करी, इत्यादि, इत्यादि....’ शिव, ‘तथास्तु’ कहि, अन्तर्धान भए गेलाह.

दाई आइ सोचैत छथि, तहिया  जं वायु शिवसँ तेसर वरदानक हेतु निरंतर अपन पवित्रताक वरदान मंगने रहितथि, तं आइ मनुखक ई हाल नहिं होइतैक. दाई-सन धर्मप्राणकें लगैत छनि, वायुदेव-मरुत-क अहंकार लोक-कल्याण पर भारी पड़ि गेल. तें, मनुख, विख भेल बसातक पराभव भोगि रहल अछि.

2

जखन एकाएक कोरोना-कोविड महामारी आयल तं पहिने एकर रूप लोक कें बुझबा में नहिं अयलैक. कारण, पहिने दूरस्थ में एक्का-दुक्का लोककें कोरोनाक रोग भेलैक. गाओं घर में तेना भए कए केओ बुझबो नहिं केलकैक. मुदा, जखन शहर सब में अजस्र लोक मरय लागल, तं,  डर सबठाम पसरए लागल. आइ कोन परिवारक लोक बेद बाहर नहिं रहैत छैक. जेना पहिने लोक दरभंगा-दिल्ली जाइत छल, आइ दुबई-क़तर-बिलेंत-अमेरिका जाइत अछि. ताहि परसँ, की गरीब, की धनिक, कोरोना-कोविड ककरो नहिं छोड़लक. सब एके रंग भए गेल, सब एके रंग डरायल.

दाई सावधान छलीह. लोकक एक दोसराक घर आंगन आयब-जायब बन्ने छलैक. किन्तु, जखन एक दिन अचानक दाईक नाकसँ पानि बहब शुरू भेलनि, तं ओ सबसँ पहिने ठंढा पानिसँ नहायब बन्न केलनि. श्याम-तुलसीक काढ़ा सेहो पिबय लगलीह. तथापि, दोसरे दिन ज्वर भए गेलनि. करीब हफ्ता भरि गामक डाक्टर आ देसी इलाज करबैत रहलीह. मुदा, एक दिन अचानक जखन श्वास लेबा मे कष्ट होबय लगलनि तं बुढ़ा एसगरे उठा-पुठा कए अस्पताल लए गेलखिन. जेकरे डर रहनि, सएह भेलनि. बूढ़ देह आ कोरोना सन काल ! जवान जहान सब तं कीड़ा-मकोड़ा जकाँ छटबा-पटबा भए रहल छल, बूढ़-ठेढ़क कोन कथा. बेटी सुनलखिन तं हुनका कोंढ फाटि गेलनि. ओ आव देखलनि ने ताव सोझे फारबिसगंज जिला अस्पताल पहुँचि गेलीह.

राम दाई फारबिसगंज गेलीह कि घर में महाभारत मचि गेल. सासु हनहन-पटपट करय लगलखिन. कहथिन, ‘कनियाँ कोन ज्ञाने माए लग उठि कए विदा भए गेलीह. माय बूढ़ छथिन. अस्सी वर्षक. कतेक दिन जिथिन. आ जं कनियाँ कें किछु भए गेलनि, हमर घर में कोरोना आबि गेल तं हम की भए क रहब ! हमरा एके टा बेटा आ एके टा पोता अछि !’

                                                                       

3

राम दाई फारबिसगंज पहुँचलीह तं माए कें ज्वर-उकासी आ श्वास लेबामें कष्ट रहनि. मुदा, होश में रहथिन. ऑक्सीजन लागल रहनि. परिवार कें रोगी लग बाहर भीतर जायब मना रहैक. मुदा, ताबत बुढ़ीकें फोन पर गप्प करबा जोकर रहथि. तें, राम दाईसँ गप्प भेलनि. राम दाईक बोली सुनि कए बुढ़ी कें बड्ड हुबा भेलनि. कहलखिन, ‘बाउ, इलाज तं भइए रहल अछि. बूढ़ छी. मुदा, अहाँ किए अएलहुँ. सुनैत छी, एहि रोगक लसेढ़ बड्ड खराब. अहाँ कें नेना छोट छथि, परिवार अछि. अहाँ हमरा देखि लेलहुँ. आब जाउ.’ माएक गप्प सुनि  राम दाई कें  आँखिसँ ढब-ढब नोर खसए लगलनि. कहलखिन, ‘ अहाँ ठीक भए जाएब. हम तं बाहरे छी. मुदा, हमरा तं गोटी भेल छल.सुनैत छिऐक ओहूसँ बड्ड लोक मरैत रहैक.  अहीँ कहैत छी, अहाँ हमरा छत्तीस दिन पर पथ्य  देने रही. हम कुमारिए रही. मुदा, अहाँ हमरा कहाँ छोड़ि  मरए देलहुँ.’ माए तखन चुप्प भए बेटीक गप्प सुनि लेलखिन. हुनका बजबामें आयास होइत रहनि. तथापि, हाथसँ आपस चल जेबा ले इशारा केलथिन, से अस्पतालक सीसा लागल खिड़की बाटें देखलखिन. मुदा, राम दाई कें माए कें छोड़ि कए आबि नहिं भेलनि.

दिन-रातिक इलाज. सूई, ऑक्सीजन, सेवा-सुश्रुषा. अस्पतालक डाक्टर-नर्स किछु उठा नहिं रखलकनि. मुदा, दाईक स्थिति बदसँ बदतर होइत चल गेलनि. अंततः, दाई कें डाक्टर लोकनि साधारण वार्डसँ आइ सी यू में लए गेलखिन. हुनक श्वास-नली में छेद धरि करए पड़लनि. डाक्टर निरंतर आबि कए राम दाई आ बुढ़ा कें दाईक परिस्थिति कहि जाथिन. राम दाई डाक्टरलोकनिक  व्यवहारसँ पूर्ण सन्तुष्ट रहथि. पन्द्रह दिन धरि निरंतर इलाज चलैत रहलनि. मुदा, दाईक परिस्थिति में सुधारक नाम नहिं.

एक दिन डाक्टर आबि राम दाई कें कहलथिन, ‘जे सब उपचार-प्रतिकार आवश्यक आ संभव छल, भए रहल छनि. मुदा, रक्त में ऑक्सीजन पर्याप्त नहिं होइत छनि. फेफड़ाक में बड्ड नोकसान भए गेल छनि. परिस्थिति बड्ड कठिन छैक.’ कहि डाक्टर चुप्प भए गेलाह.

मुदा, फेफड़ाक नोकसान आ दाईक ऊपर खतराक राम दाईक मन में नव समाधानक उदय भेलनि. ओ डाक्टरक चुप्पी तोड़ैत कहथिन, ‘डाक्टर साहेब, हम बेटी छियनि. सुनैत छियैक, जकर किडनी खराब भए जाइत छैक, अनकर नव किडनी लगओलासँ जान बचि जाइत छैक. सुनैत, छियैक आइ काल्हि लोकक फेफड़ा सेहो बदली होइत छैक. हम जवान-जहान छी. हम अपन एकटा फेफड़ा- अपन आधा ऑक्सीजन माए कें दए देबैक. एकटा फेफड़ा- आधा ऑक्सीजनसँ  हमर काज चलि जायत. हम बेटी छियैक, डाक्टर साहेब ! हमर माएक जान बचा लियौक.’

डाक्टर साहेब गुम्म भए गेलाह. तखने डाक्टर कें भीतरसँ बजाहटि भेलनि. कहलखिन, थम्हू. हम अबैत छी.

दाई ओही दिन आँखि मुनि लेलनि. दाई चलि गेलीह से एक संताप. मुदा, राम दाई सोचैत छथि आब गृह कलहक समाधान कोना हएत. घर कोना आपस जायब !

            

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