Wednesday, April 1, 2020

प्रशंसा

प्रशंसा

'कोरोना की आयल आफद भ’ गेल. देशक हवा जेना भोपालक गैस भ’ गेल. प्रधानमंत्री की कहि देलखिन, जे एहि एक्कैस दिनमें जं घरसं पयर बाहर राखब तं अहाँक आगू दिसक ई डेग देशकें   21 वर्ष पाछू क’ देत. ताहि पर सं बुढा-बुढ़ीकें रोगक बेसी डर. भ’ गेल. ई जे टहलि कय कनेक मन्दिरपर आरतीओमें जाइत छलाह, सेहो बन्न कय देलनि. उपरसं जएह कहबनि, उलटे करताह. तीनिए दिनमें मोन अकच्छ भ’ गेले. आगू जानथि भगवती. अपना मोने खबासनी भने नीके अबिते छलि. बस, बंदीक तेसरे  दिन ओकर मानवाधिकारक हनन होबय लगलैक. एतेक वर्ष  धरि ओकर देहसं ढील-उड़ीस, टीबी, न्यूमोनिया, हौहटि-कलकलि घरमें नहिं आयल छल. मुदा, एहि तीने हफ्तामें ओ कोरोना अबस्से टा आनत ! जो ! ओकरो छुट्टी.
पण्डितजीक कनिया, परिहारपुरवाली, भगवतीक सिर निपैत भनभनाइते छलीह, कि फोन टनटना उठलनि. परिहारपुरवाली गोबरे लागल हाथें कपार पीटि लेलनि. भ’ गेल. आइ फेर यावत मुंहमें पानि देब अपराहान्त भ’ जायत. ई कनियाक गप्पक पेटारी जं एक बेर खुजलनि तं हुनका होश नहिं रहतनि, फ़ोनमें कतेक पैसा खर्च भेल. छौंडा कतबो कमायत, कपार, किछु बंचतै ! फोन नहिं भेल, जेपाल भ’ गेल. सेहो एहि बेरमें, जखन हमरा सबटा काज धयले अछि.
-  हलो.
- गोड लगैत छियनि, माँ.
- सौभाग्यवती रहू.
- एतय तं सौंसे शहर बन्न छैक. दरभंगाक की हाल ?
- की हाल रहतै. ओएह रामा, ओएह खटोला. सब काज ओहिना छैक. किछु बैसल रहतै.
- लोक बंदी मानै छै ? वस्तु-जात भेटै छैक ? खबासनी तं नहिं अबैत हेतनि .
- तं की हेतैक. ओ करिते की सब छले. बस बहाडन-सोहारन आ बरतन-बासन सएह ने. आओर तं सबटा अपने किने.
- हं.
- उपर सं मोन अकच्छ भ जाइए.
- की भेलनि ?
- की हेतैक. भरि दिन एके घरमें सब गोटे बन्न.
- ‘जरूरीओ छैक.’ घरमें तं दूइए गोटे छथिन, पुतहु सोचैत छथि.
- कपार जरूरी छै. कोनो आगि बरसैत छैक. भरि दिन के कटौटी करैत रहय.
 पुतहु मोने मोन मुसुकाइत छथिन.
- तर-तरकारी बिकाए अबैत छै ? आ कि  दोकान सं अपने आनय पड़ैत छनि ?
- डरें घर सं के निकलत ! तै में ...... भोरे सं हिनका रहै छनि. घर साफ़ कय लैत छी. बरतन मांजि लैत छी. भानस कय लैत छी.
- हं, मिल बांटि कय एक गोटे पर भार नहिं पड़तैक.
-हं. मुदा, सब कें सबटा काज सबकें करय नहिं ने अबैत छैक.
-हमरा लोकनि तं एतय काज बांटि लैत छी.
-‘बुधियारि छी’ सासु मने मन दांत पिसैत छथि. ‘ अहाँ लोकनि परदेसमें छी.जिद्द तं इहो करै छथि. एक दिन घर कि बहाडलनि, काल्हि भोरेसं डांड धेने छनि.’
-बाबूक डांड ठीक भ’ जेतनि, मूव लगाबय कहिहथिन. तैओ जलखइ-पनिपियाइओ जं सब अपन-अपन बना लियअ तं काज कनेक हल्लुक भ जाइत छै.
- किएक ने ! मुदा, सबहक बुते ब्रेडहु सेकल पार लगैत छैक. पांच मिनटक काज आ हमरा आधा घंटाक काज बढ़ि जायत.
- पुतहु मुंहपर ओढ़नी राखि हँसैत छथिन.
- की हेतैक. दुनू  गोटे संगहिं  जलखइ क’ लैत जाथु ने. से तं हेतनि.
- हं. अबस्से. हुनका कोनो पूजा-पाठ छनि. हम तं भोरे उठिकय सतुआनि नहिं क लेब ! - सासु खौंझा उठैत छथिन. पुतहु क्षुब्ध भ’ जाइत छथिन. 
- बात तं माँ ई ठीके कहैत छथिन. माँ, कने बाबूजी सं गप्प करा देथु’.
- गोड लगैत छियनि, बाबूजी.
- मस्त रहू. सब ठीक छैक ने.
-जी. ई सब कोना छथिन ? एखन तं बड्ड मोसकिल भ गेल हेतनि.
- नहिं. किछु ने. खाली परीक्षाक सीजनमें ट्यूशन सं जेकिछु प्राप्तिक आस छल से सब कोरोना गीडि गेल. आब बुड़बकहाक खेती अगिला साल. घर-अंगना अहाँक सासु सबटा नीक सं सम्हारने छथि. सब किछु तेना मैनेज करैत छथि  जे कोनो शिकायतक गप्पे नहिं.
- 'से ठीके. माँ सेहो हिनकर बड प्रशंसा करैत छलखिन !' कहैत पुतहु ओढ़नीसं मुँह झांपि हंसय लगैत छथिन. फोनक लाइन कटि जाइछ.


1 comment:

  1. पाठकीय सुझावक हेतु डाक्टर योगेन्द्र पाठक वियोगीक प्रति आभार.

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