Tuesday, April 21, 2020

गरम चाहक एक कप

गरम चाहक एक कप
कोरोना संकट की आयल, कि दुनिया हीलि गेल. ई भूकंप सम्पूर्ण संसारके तेना नीक-जकां दोमि देलक जे गरीब- धनिक, उंच-नीच सभक बीचक आरि-धूर मास भरिक भीतरे ध्वस्त भ’ गेल. सरकारी अफसर लोकनि जे दिन-दुनियाक समस्यासं निरपेक्ष मस्त रहैत छलाह से एकाएक टकुआ-तान भ’ गेलाह. कम्यूटर-उद्योगमें सेवारत सम्पूर्ण समुदाय घर-बैसि गेल. बुढ़ी-दाई आ होम-मेकर लोकनि जे अफरात  खाली समय सासु-बहू सीरियलक अनमनामें कटैत छलीह, तनिका सबकें रामायण-महाभारतक पुरान, लभरल प्रिंट देखि-देखि मोन अकच्छ भ’ गेलनि. छोट नेना सबकें कनेक आफियत अवश्य भेलैक. ओकरा लोकनिकें किछु दिनले भोरे उठब आ मोटका बस्ता उघबासं कनेक छूट भेटलैक. किन्तु, होम-मेकर लोकनि पर एकटा नव आफत आबि गेलनि. खाली, घर-बैसल पुरुख-पात्रक फरमाइश, चिक-चिक, टीका-टिपण्णी काजमें अनावश्यक बाधाक अतिरिक्त कबाछु-जकां प्रतीत होबय लगलनि. एकर अतिरिक्त कतेको परिवारमें नशाखोरी, आ हिंसा एकटा फूटे विप्पति-जकां पेंपी देबय लागल.
पांच बरखक बाँसुरी जेहने दुलारि अछि, तेहने बुधियारि. परिवारक तापमान कखन केहन अछि, ओ तकर अचूक थर्मामीटर थिक. शब्दक छोट-छोट लुत्ती में नुकायल चिनगीकें चिन्हबामें ओकरा एको छन नहिं लगैत छैक . ओकर चेहरा अयना थिकैक आ आँखि ओकर बोली. तें, ओकरो बुझबामें ककरो कोनो भांगठ नहिं.
आइ COVID-19 क तालाबंदीक सत्ताईसम दिन- सोम दिन- थिकैक. आइओ ने बाँसुरी स्कूल जेतीह , ने पिता ऑफिस. मंगल रहितैक तं बाबी भोरे उठिकय  11 बेर हनुमान चालीसा आ पांच बेर हनुमानष्टक पढ़ितथिन. आइ सेहो नहिं. सोचने रहथि कनेक लेट उठब. किन्तु, गौरी उठलीह तं पौने आठ बाजि गेल रहनि. सभकें चाहक देरी तं भइए गेल रहैक. बाँसुरी कें सेहो भूख लागि गेल रहैक. ओहुना छुट्टीमें सबदिन  ओ भोरे उठती, से कोनो नव नहिं !
तें, गौरी उठिते सोझे भनसामें ढुकलीह . चूल्हि पर एक दिस चाहक पतीला आ दोसर दिस बाँसुरीले दूधमें  सूजीक हलुआ चढ़ा, हाथमें फूलक झाड़ू ल' कय आँखि मुननहिं ड्राइंग रूम बहाडय लगलीह. सोफा पर बैसल पतिदेव मोबाइलमें समाचार आ शेयरक हाल देखय लगलाह. सासु ज्योतिष-गुरुक 'आजके तारे' कें मन्दिरक आरतीक तन्मयतासं सुनय लगलीह. एतबेमें पतिदेव यावत समाचारमें Life and Style पेज पर पहुँचलाह, कि हुनका लॉक-डाउनमें बिरियानी बनयबाक सरल विधि सब पर नजरि पडलनि. कहलखिन, ‘ शुकुर आइ मंगल नहिं थिकैक ! भ’ चलय !!’ गौरीक देह पर अस्सी मोन पानि पडि गेलनि.
एही बीच, किछुए क्षण पहिने, जे बाँसुरी सूजीक खीरक प्रतीक्षामें टेबुलपर बैसल छलि, एकाएक बिला गेल छलि. बीचमें माय खीर आनि टेबुल पर राखि देलखिन आ घर पुनः बहाडबा में लागि गेलीह. किन्तु, बाँसुरी निपत्ता. माय दू बेर हाक देलखिन.
- इएह अयलहुं . 
आ बाँसुरी मायक हाथक बाढ़निक सोझे आगाँ आबिकय ठाढ़ भ' गेलीह. पांच बरखक नेना. माय भूमिपर सं नजरि उठाकय देखलखिन. हाथमें खेलौनाक ट्रे. बीचमें प्लास्टिकक एकटा गिलास आ एकटा चाहक कप- दुनू खाली.
माय पुछलखिन.’ ‘ ई की थिकै ?
देखैत नहिं छही, ठंढा पानि आ गरम चाह. तोरे  ले. गौरीकें मुसुकी छूटि गेलनि. कहलखिन, 'वएह तं राखल छैक हमर चाह. टेबुल पर'.
-‘नहिं . ओ तं सेरा  गेलैक. तोरा गर्म चाह नीक लगै छौ ने !’ कहैत बाँसुरी मायक दुनु जांघक बीच सटि अयलनि.
‘ तों सभक ख़याल रखैत छही. तोहरो तं केओ  ख़याल रखतौ. पहिने ई चाह पी ले. एकदम गरम छै. ’ कहैत बाँसुरी खेलौनाक चाहक खाली कप गौरीक हाथमें पकड़ा देलकनि.
गौरी बाढ़नि एक कात राखि बेटीकें कोरा में उठा लेलखिन. हुनकर दुनू आँखि सं भट-भट नोर खसय लगलनि.                                                                                                

2 comments:

  1. Touching! There is an adult in every child, says a slogan at the entrance of the Dsisney Land in the U S A, perhaps because of the extraordinary powers of empathy a child has! Charles Dickens portrayed just this on a larger canvass.

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