Friday, April 17, 2020

अनटोटल


अनटोटल

मोचन केर आँखि खुजलैक तं ओ एकटा नर्सकें अपना मुँह पर मुडियाडी देने देखलक. मुदा, ताधरि ओकरा किछु सुनबा जोग नहिं भेल रहैक.
-‘ चलू. अहाँक माथ पर टांका लागत. भ सकैत अछि ओपरेशनो होअय’.
कथिक ऑपरेशन आ टांका से बुझबाक आ पुछबाक ने मोचनकें होश रहैक आ ने तागति.
-‘ रातिमें कखन खेने रहियैक ?’ नर्स कनेक लग भ कय पुछलखिन.
- ‘_____’
-‘रातिमें कखन खेने रहियैक ? भरल पेट में कोना बेहोश कयल जायत !’
मोचनक दुनू आँखिसं दहो- बहो नोर बहय लगलैक.
-‘दुर्बलता अछि ? पानि चढ़ओला सं ठीक भ' जायत. भोजन कखन केने रहियैक ?’ नर्सकें जतेक आस्ते सं भेलनि, फेर पुछलखिन.
- ‘रविक राति’. एहि सं आगू मोचनकें किछु बाजि नहिं भेलैक.
रविएक दिन तं रहैक जनता कर्फ्यूक दिन. तकरा तं तीन दिन भ गेलैक, नर्स हिसाब लगौलनि. मोचनकें सेहो दिमागपर कतेक जोर लगओलासं धीरे-धीरे मोन पड़य लगलैक. मोचन आ लोचन दुनू भाई मीलि कय खिच्चडि रन्हने छल. आलूक साना सेहो बड़ सुअदगर बनल रहैक. लोचन भानस करबामें ओस्ताद अछि आ मोचन काज करबामें भूत. मोचन  कहैत छैक, ‘हम भीम छी, हमरा नौ हाथीक बल अछि’. मुदा, एकटा अंतर छैक ; हाथी सुखायलो घास खाकय अपन बल बचौने रहैछ. मनुक्खकें तं भरि पेट अन्न चाहिऐक !                                       
कोरोना वाइरस,एखुनका रक्तबीज, सौसे संसारमें अगडाही लगौने अछि. की गरीब, आ की धनिक. सब देशमें एके हाल. असलमें सेहो नहिं. धनिक देश सब में तं लाख सं बेसी मरि चुकल अछि. मुदा, हमरो सबहक ओहिठाम लसेढ़ तं पहुँचिए गेल अछि. सब ठाम लोक डरें त्रस्त अछि. की बड़का, आ की छोटका.
तखन 25 मार्च 2020 क जखन प्रधानमंत्री अपने हाथ जोडिकय कहलथिन जे ‘कत्तहु नहिं बहराउ. घरे में रहू . आ जं अगिला 21  दिन घरसं बाहर पयर रखलहु तं भारत 21 बरख पाछू भ जायत’. तखन दुनू भाई सोचलक : एक तं परधानमंत्री. तैपर ऐना कल जोडि कय कहैत छथिन. एहनामें हमरेलोकनि एहन कुपात्तर छी  जे कहल नहिं करबनि! बेचाराकें तं अपन पलिबारो नहिं छनि. तखन जे किछु करै छथिन, एही लोक ले ने ! लोचन थारी-बाटी मंजैत छल. कहलकै, ‘ त्त. भैया गप्प तं तों एक नम्मर कहै छह’. बिलट अपन तरहत्थीपर सरैसा-तमाकू लटबैत छल. एक मुट्ठा बड़की तमाकू  बेर बिपत्ति ले गाम सं नेने आयल छल. जखन एहन फुरसतिमें बैसैत जाइत छल तं बिलट ई सनेस दोस-महीमकें दैत छलैक. कहलकै, ‘ भैया, गप्प तं  परधानमंत्री वाज़िब कहै छथिन. बलू, कहां, कहां, तं सैकड़ा क सैकड़ा छटबा-पटबा भ गेलैये.हमरो सब के की हयत से जानथि बिदेसरनाथ. मुदा, ई लोक घरमें बैसल रहत से पार लगतै ! एतय तं सब दिन लूटि लाउ, कूटि खाउ ! बैसल रहतै तं लोक खेतैक की ! मुँहमें जाबी लगा जाइ जेबही ? आ लोक बेद ?’                
भोलाई बुझू बुढ़ाड़ीमें दिल्ली आयल छथि. घर पलिबारमें केओ नहिं, मुदा कर्जा माथपर छनि. गाम में अनाज ने सरकार सस्तामें द देतैक, नगदी कतय सं पाबी. पचास सालक मर्दकें बृद्धावस्था पेंशन के देतैक. तखन टोलबैया सब दिल्ली अबैत रहैक, संग भ गेलाह. मुदा, कहै छै, जायब ने नेपाल, कपार तं संगहिं जायत. ने राशन काट छनि आ ने इंटा जोड़ैक मजदूर बला रजिस्टरमें नाम दर्ज भेलनि. तखन जतबो भेटै छनि, गाम सं बहुते बेसी. दस गोटेमें रहै छथि, किछु बंचि जाइत छनि. ओ दूरहि सं गप्प पिबैत रहथि. कहलखिन, ‘ हौ जे भगवान मुँह चीरने छथिन , सएह ने दाना देथिन ! कथी ले तरद्दुत करै जाइत छह.’ मुदा, तालाबंदीक तीनो दिन नहिं बितलैक. लोकक चूल्हि पजरब बन्न होबय लगलैक. उपर सं मकान-मालिक सब खोली खाली करा देतै, सेहो गलगुल होबय लगलैक. मनेजरा आइ भोरे कहुनाक चोरा-नुकाकय, गलिए कूचिए मालिक लग तनखा लेबय गेलो तं खालीए हाथ आपस आबि गेल. मेट अपने गौआं छलैक. कहलकैक, कि तं इंटा उघब एखन बन्न भ गेलैक. एतय एबाक कोनो काज नहिं. संयोग सं एही तीन दिनमें कतेक गुरुद्वारा, मन्दिर, महजित, आ दाता-दानी भंडारा-लंगर लगौलनि. मुदा, चारि बेरक बुताद के देतैक. आ कतेक बेर के के कतय-कतय चलिकय जायत.                                                                      
परसूए रातिक तं गप्प थिकैक. गोड़  दसेक छौंड़ा-मांडरसब आयल रहैक. कहै जाइ जे गाम चलै चलह ने. एतय कतेक दिन बैसल रहब ! आ गाममें  माय–बाप-पलिबार  भूखे मरैत रहत !! लागल-लागल दस गोटेक जेर में पहुँचिए जेबै. बाटमें कतहु कोनो सवारी जं भेट गेल तं आओर निम्मन !
सब गोटे बैसि कय सोचय लागल. ‘आब तं गामोमें केओ एको कोस पाँव-पैदल नहिं जाइछ. आ  ई चारि सौ कोस ! पाँव-पैदल !! तीन मास सं कम नै लगतैक.’- भोलाइ कहलकै.
-‘ से जं सुरता लागि गेल तं दिन में आठ-दस कोस तं मारिए देबैक.’ बिलट टिपलकै. ‘हम तं एक बेर सहारनपुरसं हरिद्वार बोलबम में गेलो रही. बेसी लोक में अबलो-दुबल के हुबा आबि जाइत छैक.’
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मोचन अस्पतालमें कोना पहुँचल, मोन नहिं छैक. डाक्टर कतबो पुछथिन, कहैक, ‘ रातिए तं खिच्चडि आ आलूक चोखा खाकय सूतल रही. रवि दिन मालिक !’ डाक्टर कहथिन, आइ वृहस्पति छियैक. काल्हि बुध रहैक.’
मोचनकें माथ घूमय लगलैक. लगै जेना, डाक्टर, नर्स, औजार, टेबुल-कुर्सी, अलमारी, सब किछु घिरनी भ गेलैये. ओ आँखि मूनि लेलक.
डाक्टर पुछलखिन, ‘माथ कोना फूटल ?’
माथ कोना फूटल ! मोचन दाहिना हाथें माथ हंसोथलक तं पांचो आंगुर सोनिते-सोनताम भ गेलैक. मुदा, मोन नहिं पडलैक, माथ कोना फूटल. मुदा, ओहने हालतमें ककरो कहैत सुनबामें एलैक, ‘ लगैए माथक चोट सं रोगीकें सब किछु बिसरि गेलैये. किछुओ मोन नहिं छैक.’
                                                                       

3
कर्णपुर, मधुपुर, सोनपुर, हरिपुर केर गोड़ पचासेक मजदूर मंगल दिन अधरतिए जमुनापार झुग्गीसं विदा भेल छल. गाड़ी-घोड़ा  चलब बन्न भ गेल रहैक. तें सड़क पर गुज्ज अन्हार. आ सेहो नीके. पुलिस-पटेल सुनै छियैक, लोककें बाहर भीतर जयबासं मना करैत छैक. मुदा, जं-जं पौ फाटय लगलैक, पहिने जे बटोही सब गोट-पंगरा रहैक, से आब गोलिआय लगलैक. जखन इजोत भेलैक तं बिलटकें आश्चर्य लागि गेलैक. कहलकैक, भैया, हम तं सोचने रही चुपे-चाप निकलि लेब. मुदा, ई तं बोल-बम भ गेल !                                          
भोलाइ वयसमें सब सं जेठ. स्वभावसं कनेक चुप्प. कहलकैक, ‘ कल-कुसल चलै चल. ठंढा-ठंढी जतेक हेतैक , झीकि दै जेबै. जखन रौद हेतै, कतहु दम मारहि पड़तह. आब रातिमें च’रमें रहब कि मंडिल पर, जानथि बाबा बैदनाथ !
तैयो, चैत-बैसाखक मास. जखन नौ करीब बजलैक, बिलटकेर जीह सट-सट घिचय लगलैक. कहलकैक, ‘भैया,  एक लोटा सातु जं घोरि लितहु. एको-एको घोंट जं पियब तं कनेक हुबा आबि जायत. बिलटक गप्प सबकें जंचलैक आ सब ओत्तहि बाटक कातक आमक गाछीमें चिक्कन ठाम देखि कय  बैसि गेल. मुदा, बिलट जावत सातु घोरलक, भोलाइ गमछा ओछा ओत्तहि गाछक त’रमें पडि रहल छल. थाकल देह, भोलाइ छनेमें निभेर निन्न भ’ गेल. बिलट कनेक काल एम्हर-ओम्हर देखलक आ हबर-हबर एक घोंट सातु मुँहमें ढारि  लेलक. ताबत मोचन आ लोचन सेहो मुँह-हाथ धोने हाथमें लोटा लेने जुमल.
-       वाह ! सब सं पहिने अपने हौ !
-       भैया कि कहू जीह सट-सट घिचने जाइ छल.
-       बड़ बढ़िया. भोला भैया तं सूति रहलै. उठह ने हौ ! एखन तं पांचो कोस नै भेलह आ थस खा गेलह.
भोलाइ उठल आ एक चुरू पानि सं मुँह धोलक.  कहलकै, ‘ मारे मुँह, एहि पीच पर चलब. छनेमें तरबाक गरमी टिकासन ध’ लै छैक. बाध-बोनमें चलैमें एना कहाँ होइ छैक.’
‘ कहियाक गप्प करैत छह ! आब कतय बाध-बोन.  आ के पयरे चलैए. हरजोत्ता सब  सेहो आब ट्रेक्टर पर फेरी लगबैये !’ आ चारू गोटे  भभाकय हंसय लगलैक. घोरल सातुक जलथम्हन पर सबकें तुरते चलबाक सुरता ध लेलकैक. आ चारू गोटे उठि कय विदा भ गेल.
                                        4
दिन केर करीब एक बजैत रहैक. कड़ा रौद. कतहु छाहरि नहिं. सड़कक बीचोबीच पुलिस लोहाक गजाडा ठाढ़ केने छल. हाथ में लाठी. माथ पर लोहाक टोप आ ताहिपर मुँहक आगाँ लोहाक जाली. हजारों लोक. मौगी-पुरुख- बच्चा-बुतरू. साइकिल-रिक्शा-ठेला आ पाँव-पैदल. माथ पर मोटा आ कांख तर बच्चा. ककरो पीठ पर झोरा. ककरो हाथ में डोल. जकरा जे किछु छलैक, कतय छोड़ैत . जै वस्तुक काज हयत से तं फेर किनहि पड़त.  एहि सं नीक, जतेक सक्क हो, संगे नेने चलू. सभक सेह विचार भेलैक. फेर घूरि कय आयब, कतय काज भेटत, नहिं भेटत. कोन खोली में  रहब, कोन ठेकान . मुदा, एहन हालत केओ सोचनहु नहिं छल. भोलाइ कें सिद्ध अन्न खेना तीन सांझ भ’ गेल रहैक. सातुक गोली लोक कहिया धरि खायत.  गाम में बाल-बच्चा कोन धरानी रहतैक. तें, जकरा हिम्मत भेलैक दिल्ली सं गामक बाट ध’ तनने छल. मुदा, एतय सं आगूक बाट बन्न छैक. पुलिस भोंपू पर एलान करै छै, ‘ आगू जायब मना छैक.’ मुदा, जे एक बेर बाट धेलक , से पयर पाछूए करत  आ घुरबे करत तं जायत कतय ? अपटी खेत में ! खोलीक कुंजी मकान-मालिक लग आ काज बन्न फूटे. आगू पाछू दुनूक बाट बन्न ! सभक एक्के गप्प. मानबनि नहिं. गाम तं जेबे करब. अपन डीह पर पहुंचि गेलहुं तं  करमीओ-चिचोढ़  उसिनि कय खा लेब. मुदा, डिल्लीमें जान नहिं देब ! फल ई भेलैक जे जहिना-जहिना गरमी बढ़इत लोकक मगज सेहो गरमाए लगलै. गोलियाइत लोक आ अगियायल पेटक पित्त तेना माथ पर चढ़लैक जे लोक पुलिसक गजेड़ा ठेलब शुरू कय देलकै. पांच-दस-बीस-पचीस-पचास-सैकड़ा. इएह ले उएह ले सबटा गजाडा बाढ़िक पानिक जोर पर माटिक भीत-जकां खसि पड़लैक. मुदा, एतय भीत पहिने ढहलैक, बाढ़ि पछाति अयलैक. से तेहन दानव-सन पिचकारी जे के कतय गेल, के कहत. तै पर सं लाठी. सब जहत्तर पहत्तर. कतय मोटा आ कतय मोटरी. कतय बच्चा आ कतय माय-बाप. ककर डांड टूटलैक आ ककर टांग. दू दिन तं मोचनकें इहो नहिं बुझलकैक जे ओकर घुट्टीपर पलस्तर चढ़ल छैक.
                                    5
पछिला पांच दिन सं मोचन मिड्ल स्कूल में अछि. माथ परहक घाओ सुखा रहल छैक.पयर नंगडाइत छैक. मुदा, कोनो ना बाहर भीतर क लैत अछि. ल’गक कोनो गुरुद्वारासं दिनुक समयमें एक बेर किछु गोटे आबि कय भोजन परसि जाइत छथिन्ह. पीबाक हेतु पानि सेहो ओएह लोकनि द’ जाइत छथिन. मुदा, लोचन, भोला आ बिलट कतय गेल ? की भेलैक ओकरा सब कें ?’ जानथि भगवान ! बिछाओन पर पड़ल-पड़ल मोचन सोचैये. एतय खेनाइ तं दिन में एक बेर द जाइए, मुदा, ई खेनाइ लोचनक बनाओल खेनाइक परतर क’ सकतै ! ई सोचैत फेर मोचन केर आँखि सं दहो बहो नोर खसय लगैत छैक. नहिं जानि ओ सब कतय कोन धरानी अछि !! केओ संगो छैक कि हमरे-जकां एसकरे-एसकर अछि ! जिबितो अछि , कि मरि गेल. सुनै छियैक पुलिस गोलीओ चलौने रहै. ई सब सोचिते,फेर मोचनक माथ घूमय लगैत छैक. आ ओ आँखि मूनि लैत अछि. जेना आँखि मुनला सं ओहि दिनुका घटना आँखिक आगूसं बिला जेतैक.
मिडिल स्कूलक ओही कोठली में एक कात इब्राहिम पड़ल अछि. इब्राहिमक घर मोरादाबाद लग कोनो गाओं में छैक.ओ दिल्लीक राजौरी गार्डेन लग कोनो लोहा-लक्कड़क कारखानामें काज करैत छल.  कारखाना बन्न भ’ गेलैक तं घरमुँहा भ’ गेल छल. आब ने घरमें ने घाटमें . भीम बहादुरक घर  धारचूला जिला नेपालमें छैक. गाम नहिं जा सकल. मुदा, कोनो मलाल नहिं. दुःख वा सुख, भीम बहादुर अपनों हँसेये आ अनको हँसबैत रहैए. काल्हि एकरा केओ फ़ोन पर कहलकैक, एकर जे गौआं सब नेपाललग पहुँचिओ गेल छल तकरा नेपाल पुलिस नेपालमें टपए नहिं देलकैक. सुनैए किछु गोटे सोचलक नदीमें हेलि पाया पार क’ लेब आ कालीमें कूदि गेल, मुदा, पुलिस पानि म सं छानि कय बहार क लेलकैक आ आब तीनू गोटे भारतहिं में मिडिल स्कूल में भीमे बहादुर-जकां खिच्चडि खा रहलए. ई खीसा सुनबैत भीम बहादुर भभाकय हंसय लागल छल.
इब्राहिमक  एकटा गौआं परसू दिल्लीमें पुलिसक लाठी चार्ज सं बंचबाले यमुनामें कूदि गेल रहैक. ओहि तीनमें  केओ आन दू गोटे दिहाड़ी मज़दूर छलैक. एकर गौआं आ एक गोटे आओर तं जान बंचा लेलक, मुदा तेसर कतय गेल से के कहत ! एहि मिडिल स्कूलमें ने तं ने केओ बाहर सं अबैत छैक ने कोनो खबरि. मोचन एक दिन एक गोटे सं पुछबो केलकैक: ‘हौ भाई, एतय सं निकलैक कोनो द्वारा नहिं छैक. हमर पलिबारके पूर मास भ जेतैक. डाक्टर कहने छै पेट चीर कय  बच्चा बहार करथिन.’                                                      
भगबान भरोसे बैसल रहू ! कहि कय बगलमें सतरंजी पर उतान पड़ल पडोसी विरक्तिमें दोसर दिस मुँह घुमालेने रहैक.
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सताबारी महतो काल्हि बाटक कातहिं मरि गेल. दिल्ली सं पयरे भोपाल बिदा भ’ गेल छल. बी. एस-सी. पास सतबारी कोनो नीक नौकरीक तलाशमें भरि भोपालक कतेक चक्कर लगौने छल. आखिरीमें केबुल कम्पनीमें टाका असुलबाक नौकरीक अलावा आन दोसर कोनो काज नहिं भेटलैक. दरमाहा तीन हज़ार टाका. पुछलकैक, ‘भरि दिन पयरे आ साइकिल पर फेरी देबैक आ टाका तीने हज़ार ?’                       
‘अहाँ एतुका छी. अपन घर अछि, जे भेटैये ल’ लियअ आ काज चलाउ. देखै नहिं छियैक, केबुलक सबटा पेमेंट इन्टरनेट पर भ’ रहल छैक. इहो नौकरी कहिया धरि अछि, के कहत.  एसटीडी पीसीओ, मोबाइल रिपेयर, आ फोटो स्टूडियो-जकां इहो नौकरी एखन धरि बिलायल नहिं से शुकुर मानू.’               सतबारी काज तं ध’ लेलनि, मुदा, मास दिनसं बेसी टीकि नहिं सकलाह. आ अन्ततः, गुडगाँव आबि एकटा कॉल सेंटरमें काज ध’ लेलनि. मुदा, इहो काज बेसी दिन नहिं चललनि . जहाँ कोरोनाक अगडाही पसरय लगलैक आ सरकार बंदीक घोषणा केलक सब कॉल सेंटर एकाएक बन्न भ’ गेल. सताबारीकें गुडगाँवमें कुल्लम एके मास तं भेल रहनि.सोचलनि, एतय बैसल रहब तं आमदनी किछु ने, फजूलमें मकानक किराया भरैत रहब. गाड़ी-घोडा बन्न भ’ गेल रहैक. मुदा, जवान देह में हिम्मत आ जोश असम्भवो कें  संभव करबाक संकल्प करा लैत छैक. आ सतबारी पीठपर रक-सैक रखलनि आ भोपाल ले पयरे बिदा भ’ गेलाह. सुनैत छी, चलैत-चलैत आगराधरि टपि गेल रहथि, मुदा, गर्मी आ हरारत सं देह बम बाजि गेलनि. जखन भेलनि जे आब किछु अनहोनी भ’ जायत तं सडकेक कात में पडि रहलाह. मोबाइल फ़ोन में मात्र ओतबे चार्ज, आ शरीर में एतबे तागति बंचल रहनि, जे कहुना गाम पर ककरो कहलखिन जे कहुना गाड़ी ल’ कय आउ आ जान बंचा लियअ. मुदा, यावत गाम पर सं केओ पहुँचलखिन ताधरि मोबाइल चार्ज आ अपन बत्ती दुनू गुल भ’ गेल रहनि. घर- परिवार हाहि काटि कय रहि गेलखिन. हंस तं उडि गेल छल ! भगवान जाने, कतेक परिवारकें आओर कतेक पराभव सहय पड़लैके एहि कोरोना-काण्डमें.                                                  
मोचन स्कूलक एहि हालक एक कोनमें पड़ल-पड़ल जहिना सबटा खेड़हा जहिना चुपचाप सुनि रहल छथि तहिना हुनका आओर आतंक पैसि रहल छनि. आतंकक एहि सर्दी सं मोचनक देह एकाएक थर-थर कांपय लगैत छनि. मोचनकें एहि गर्मीमें थर-थर कपैत देखि एक गोटे बगल में राखल एकटा ओढ़ना देह पर ओढ़ा दैत छनि. देहक दुल्क्ब थम्हइत छनि तं सोचैत छथि, अन्नक मारि आ उपर सं पुलिसक लाठी. चलू, जान तं बंचल. मुदा, लोचनक सुरता सं फेर कोंढ़ उनटय लागैत छनि.
                                     7
‘लोक कहैत छै, घोदा-माली नहिं होउ. नहिं, तं, कोरोना ध’ लेत ! मर बंहिं, के छी ई कोरोनो जे एकरा मनुखक सोसा नहिं सोहाइत छै. जहां धेलक, कि मनुखक कंठे मोकय लगै छै ! मोचन सतरंजीपर पड़ल-पड़ल स्वगत कोरोनाकें दस हज़ार गारि पढ़इत छथि.’ भीम बहादुर मैथिली बुझैये. मोचनक गारि सुनि कय भीम बहादुर ठहक्का मारि कय हंसय लगैछ.
मोचनक गारि सुनि कय इब्राहिम अपने-अपने बाजय लगैये, ‘हरमजादा ई करोना आया  चीन से. हूँआ पैदा हुआ तो मरदूद वहीँ रहता. हम एका दावत दिए रहे !’ इब्राहिम कें बड्ड तामस चढ़इत छैक. उत्ताप में कहि बैसैछ, ‘ ई बहिंं.....द आया कैसे !’
 ‘सएह तं सब पूछै छै.’  एकटा बगलगीर बाजल.
-‘सुन्दइ छौं, तबलिग हरू बाइर बाटो करोना डिल्ली  लिए र आयो’- सुधंग भीम बहादुर जे सुनने छल से सोझे नेपालीमें  अनायासे ओकर मुंह सं बहरा गेलैक.
- आ अमेरिका कोना गेलै ? केओ टिपलकै.
- हवाई जहाज सं.
- आ बिलेंत ?
-हवाई जहाज सं.
- आ इण्डिया ?
- मर बंहिं, हवाई जहाज सं. अक्किल छौ कि पाथर ! – हौलक दोसर कोन सं राम खेलाओन यादव नरछि उठला. मैट्रिक पास रामखेलाओन दिल्लीमें सब्जीक ठेला  लगबैत छथि. मुदा, पेपर रोज़ पढ़इ छथि. हुनका दिन दुनियाक खबरि छनि. तें, अलूल-जलूलक गप्प में टोक नहिं दैत छथिन. मुदा, जखन ज्ञानक बात में केओ अनटोटल टाङ अड़बै  छैक तं हुनका रहि नहिं होइत छनि.
- ‘तखन जखन ई रोग हवाई जहाज सं अयलैक, तं ई रोग बलू ओएह ने अनलनि जे हवाई जहाज चढ़इ छथि ?’-  राम जीवनक एहि गप्प सं हालमें एकाएक सब निशब्द भ’ गेल !
- हं, ओएह लोकनि ई करोना अनलनि जे हवाई जहाज चढ़इत छथि.- राम खेलाओन जोर द’ कय कहलखिन. 
 -हं’. सरकारी हवाई जहाजो हुनके सबकें  ढकढियारिकय डिल्ली अनलकनि जे ढााकी-क-ढाकी कोरोना एतय अनलनि’- केओ आओर टिपलकैक. एहि पर एक बेर फेर ठहक्का भेलैक.
- तखन जखन हवाई जहाजमें भरि क  बाहरसं कोरोना अनबे करै गेलाह तं टेन किएक बन्न क देलखिन ?- ठहक्का थम्हिते अनायास मोचनक मुंह सं मोचंड-सन गप्प निकलि गेलनि.
फल ई भेलै जे कोरोनाक विप्पतिक मारल सब एके बेर मोचनक गप्प कें  उपरे लोकि लेलकैक: माने बाहर सं रोग आयल तं तोंहों गाम ल जा कय बीया बाग़ कय आबह ! अनटोटल गप्प !! अमरुख नहिंतन !! कोनो बेजाय ने पुलिस तोहर टांग तोडि देलकह ! -एखन तक चुप्प सरबजित सिंह दपटि लेलकनि. बांकी सब अवाक् भ गेल. कोठलीमे एकाएक सब निःशब्द भ' गेलै.
मोचन केर मोन बड्ड अपरतिब भ’ गेलैक.नीरवता एहि क्षणमे  ओकर टूटल टांगक दर्द जे एखन धरि बिसरल रहैक, से एकाएक टीस मारि उठलैक. आ ओ दोसर दिस मुँह घुमाकय पछताबय  लागल जे किनस्याति माथक चोट सं तं ने  ओकरा मुंह सं एहन अनटोटल निकलि गेलैक !   

         

              

6 comments:

  1. मोचनसँ किरणजी मोन. पडलाह,कोरोना पर सामयिक कथा,सँवेदनामे ललित क निकट,मारमिक,प्रभावी,अहाँक शिल्प आ शैली बड आकर्षक.. शुभकामना

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद.

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  2. Reminds me of the "puush kii raat" by Premchand. End of the story, however, left me confused rather than angry or sad. But authentic prose and touching conversation!

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  3. प्रभावशाली कथा। कोरोना अवधिक भयावहता आ व्यवस्थाक उदासीनता, निरंकुशताक निर्द्वंद अभिव्यक्ति कथाक विशिष्टता।

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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

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