Saturday, April 18, 2020

यायावर जिनगी आ अपन घर

यायावर जिनगी आ अपन घर

मणिपाल मेडिकल कॉलेज, पोखरा, नेपालमें योगदान करबाक बेर आयल तं समस्या उठल जे पचीस वर्षसं जमा भेल जे घरेलू सामान एखन धरि भरि भारत संगे-संग घूमि रहल छल तकरा राखब कतय ! सोचबाक हेतु हफ्ता भरि सं कमक समय छल. अस्तु, सुपरिचित परिवारजनक सहयोग आ हुनके लगमें अपने शहरमें एकटा तीन कमराक फ्लैट किरायापर ल’ कय समस्याक तत्काल समाधान कयल. मुदा, करीब साढ़े तीन वर्षक पछाति जखन ओत्तहि अपन फ्लैट किनल तं पश्चाताप हयब स्वाभाविक छल : अनेरे एतेक दिन धरि एतेक किराया दैत रहलहुं. ई अपव्यय भेल. एहन भावना यदा-कदा मन मे आबिए जाइत छल.
एक दिन फेर सोचय लगलहु, ई किराया किएक देलिऐक ! ओहि किरायाक फ्लैटमें रखने की रही !! ओहि घर मे राखल वस्तुक बिना जखन तीन वर्ष बीतिए गेल आ ओही म सं कथुक खगता नहिं भेल तखन बक्सामें बन्न एहन वस्तु सबहक हेतु एतेक टाका किएक बुकल ! बेचबा जोग सामानकें जं बेचि देने रहितियैक  वा तीन वर्षक किरायामें खर्च टाका सं जं घरक सामान कीनि नेने रहितहु, एहन अपव्यय सं बंचि जैतहु. फेर मोन में भेल, चलू, आब जे भेल से भेल. मुदा, मन में लाभ हानिक मीमांसाक सहजे अंत नहिं भ रहल छल. कोना नहिं हो. अपन कमायल टाका, अपने वस्तु. सैन्य जीवनमें टाका बड्ड श्रम सं अबैत छैक. तें, आश्रमले किनल हर उपकरण-वस्तुक किनबाक अपन-अपन इतिहास होइत छैक. जखन सेल्फीक जमाना नहिं आयल रहैक तखनो नव किनल टीवी आ फ्रिज संगे कतेक गोटे फोटो घिचबैत रहथि, से देखल अछि ! तथापि, जखने कोनो आन काजक सुरता सं मनकथा थम्हइत छल, मोन कें मनाबी, जे भेल, से भेल.
अंततः, जखन अपन नव फ्लैटक  रंगब-ढौरब पूरा भ’ गेलैक तं वर्षहुसं बक्सामें बन्न सबटा सामानकें एकटा मिनी ट्रकमें लादल आ नव डेरा दिस बिदा भेलहुँ तं फेर मनकथा लागि गेल: धुत ! एतेक खर्चमे तं भरि घरक नव सामान भ’ जाइत. मुदा, सामान सब डेरामें भीतर भेले छल कि पत्नी पुछ्लनि, ‘ देखियौ तं नवका कप-डिशकेर सेट कोन बक्सामें छैक ; मध्यवित्त परिवारमें एक प्रकारक वस्तुक दोसर नव सेट यावत कीनि की लोक घर नहिं अनैत अछि तावत पहिलुक किनल सेटकेर नाम ‘नवके सेट’ रहैत छैक ! तें वर्षो पुरान सेटक नाम नवके रहैक ! हम शुरू भ गेलहुं.
छत्तीस टा बक्सा, गोड पचासेक कुंजीक झाबा, आ संगमें बक्सा सबहक नम्बरबार लिस्ट सहित प्रत्येक बक्सामें राखल वस्तु सूचीक डायरी ल कय हम बैसलहु तं वस्तु-जात तकबामें हमरा जरूरत सं किछु बेसिए समय लागि गेल.

बक्सा नम्बर 1 : हमर कन्याक बनाओल आ पारदर्शी प्लास्टिकमें फ्रेम कयल तीन-चारि गोट पैघ-पैघ मिथिला पेंटिंग. अरुणांचलक तिब्बती कारीगर द्वारा बनाओल महात्मा बुद्धकेर मस्तकक एक जोड़ा. जतय-जतय सेवा केने रही ताहि मिलिटरी यूनिट सबहक उपहार-यादगार- मेंमेंटो, प्लाक, साल्वर आ फ्रेम कयल फोटो. [मिलिटरी सेवाक दौरान ई स्मारक-उपहार सब बड आदर, प्रेम आ समारोह पूर्वक देल जाइत छलैक. सैनिक सेवाक भाई-चारा कहबाक नहिं, अनुभवक विषय थिक. तथापि, एकबेर केओ कहने रहथि, रिटायर भेलाक पछाति एहि म सं बहुतो बक्सेमें बन्न रहत. कारण, पछाति ने ओकरा चमकयबाक पैरुख रहैत छैक, ने मिलिटरी बंगला-जकां ओतेक जगह भेटत.]
एकर अलावा अपन आ  बच्चा लोकनिक फोटो आ आन कतेक वस्तु. हमरा तं लागल ई सब देखिते हमरा क्षणे भरिमे चकराता- दुमदुमा- चण्डीमन्दिर, दिल्ली, उधमपुर, बरेली, शिमला, लखनउ, सब ठामक अपन ड्राइंग-रूम, बेड-रूम आँखिक आगाँ नाचि आयल.

बक्सा नम्बर 2 : रोलर स्केट एक जोड़ा, टेबल-टेनिसक रैकेट, मारीते रास खेलौना. प्लास्टिक केर मुरुत; खेलओना भले भग्न भ’ जाय ओ फेकल नहिं जयतैक ! हमरा लोकनि लग  खेलौना स्वामित्व धिया-पुताक रहनि. तें, जे मालिक से जानथु ! हं, ताबते साइज़ एडजस्ट बला ई रोलर स्केट पर नजरि पड़ल. ई रोलर स्केट देखिकय एकटा रोचक प्रकरण अकस्मात मन पडि आयल आ हंसी लागि गेल : उधमपुर मिलिटरी स्टेशनमें जखन ई रोलर स्केट कीनि कय अनने रही घरमें झगड़ाक संभावना  प्रबल भ’ आयल रहैक. मुदा, वयसमें छोट, किन्तु, बुधियारीमें अव्वल नहिं तं बराबर, हमर बालक क्षणहिंमें दुनू भाई बहिनक बीच रोलर स्केटक उपयोगक समय- सारणी बनाकय प्रस्तुत क’ देने रहथि. कहलनि, हम दुनू गोटे झगड़ा नहिं करब.  मुदा, बाह रे ! बुधियार अपना ले ओ बेरुक पहरक समय निर्धारित केलनि आ जेठि बहिन बीच दुपहरियामें स्केटिंग करथु ! हमरा सबकें अनायास हंसी लागि गेल छल.
तहिना प्लास्टिककें दू बीतक पुतरी आ ओकर आँखि देखलियैक तं अकस्मात् हमरा हिचुकैत, अपन कन्याक पैघ-पैघ नोर भरल आँखिक आगाँ मूर्तिमान भ’ आयल. मोन पड़ल, पुरान होइत-होइत श्वेता नामक एकटा पुतरी एकाएक एकटा आँखि मटकायब बन्न क’ देने रहैक. ई गृहस्थक घरक कोनो मेडिकल इमरजेंसी सं कम नहिं. ओहि बीचे हमरा बंगलामें एकटा गोरखा सिविलियन सेवक सर्वेंट क्वार्टरमें रहैत छल. बीच दुपहरियामें सबसं लगमें उपलब्ध आँखिक डाक्टर ओएह छल. आ ओ अपन मल्टीपर्पस औजार ‘खुखरी’ ल कय डाक्टरी ले तुरत प्रस्तुत तं भेल, मुदा, ‘ तेहन ने दुर्घना भ’ गेलैक जे बुझू राष्ट्रीय विपदा आबि गेल रहैक: पुतरिक आँखिक ठीक हेबाक बदला ओकर आँखि आओर तर धसि  गेल रहैक ! बस भ’ गेल इमरजेंसी. दादा उठाओल गेलाह. अततः दुलारि कन्या आ आंखिक डाक्टर पिता. भरि दुनियाक आँखि दुरुश्त करैत छी आ ई श्वेताक ‘ डेढ़ आँखि’ ! ई तं बामा हाथक खेल थिकैक. तुरते एत्तहि गार्डेनमे, सबहक सोझाँ सर्जरी हेतैक आ श्वेता एखनहिं तोहरा देखिकय आँखि मटकौतह !’ संयोग सं सर्जरी सफल भेलैक. हमर इज्जत बंचल आ ‘ हमर कन्याक आँखिक नोरक संग दांत निपोड़ सं शोक केर घनीभूत छाया एकाएक बिला गेल रहैक !’ एहि 'श्वेता' कें देखिते ई पूरा नाटक अनायास दोबारा आँखिक आगाँ नाचि गेल छल.

बक्सा नम्बर-3 : फेर ड्राइंग रूम केर सामान. सब सं उपर एकटा भटरंग, झाम-सन पाथर. लद्दाखक सनेस. ई पाथर हम रंग्दुम बौद्ध-विहार लगक सुरु नदीक जल-बहावसं अनने रही. ई पाथर देखिते सुरु  नदीक जल-बहावक क्षेत्र, दूर दूर तक पसरल चारागाह, सुखायल नदी, आ रंग्दुम बौद्ध-विहार अनायास मन पडि आयल. ई पाथर बहुतो दिन धरि हमर ऑफिसमे टेबुल पर पेपर-वेटसं बेसी एकटा अनूप ट्राफी-जकां राखल रहैत छल; आखिर भारतमें कतेक गोटेकें जान्सकार जयबाक अवसर भेटैत छनि !
पुनः ओही बक्साक भीतर दाहिना कात हाथ देलिएक तं गामक कमार, बौअन ठाकुर, क हाथक बनाओल उक्खरि-समाठ-जांत आ बाज़ार सं किनल एल्युमीनियमक तसला-घैला- थारी- करछु-लोहिया-छोलनी अभरल. सबटा अमूल्य. ककरो फेकि देबैक तकर चर्चो जुनि करी !

बक्सा नम्बर- 4 : कमरसारिक सब उपकरण: बैसला-रुखान- रन्ना-आरी-रेती आ की की नहिं. हम अपन बालक कें जखन किछुओ टाका दियनि ओ अपना ले इएह सब उपकरण कीनि आनथि. आ ओहि औजार सबहक सहायता सं ओ मोटर- हवाई- जहाज- तीर-तलवार आ की की नहिं बनाबथि. एक बेर ओ हमरा ले बिछाओन पर राखि उपयोगक हेतु एकटा छोट-सन डेस्क सेहो बना देने रहथि. जखन आगू पढ़बाले ओ हमरा सबसं दूर जाय लगलाह तं अपन सबसं अमूल्य वस्तु-जकां कमरसारिक एहि उपकरण सब कें एकठाम जमा क’ कय हमरा हाथमें  सुन्झा गेल रहथि. हम तं हुनकर नेनपने सं हुनकर ‘दोस्त’ छियनि. तें, तं सबटा सम्हारि कय राखल छनि. तहिना आन बक्सा सबमें नेना लोकनिक बनाओल स्केच-पेंटिंग, हमर पत्नीक पाक –कलाक स्क्रैप-बुक, हमर जमा कयल मेडिकल विज्ञानक अनेक वस्तुक विशिष्ट संकलन- एक्स-रे प्लेट, वैज्ञानिक लेख आ यंत्र. एकर अतिरिक्त पुरान चिठ्ठी सब  सेहो भेटय लागल. दोसर बक्सा सब म सं कोनो बक्सा में कपड़ा-लत्ता, कतहु तिब्बती गलीचा, तं कतहु क्रोकरी-सेट. तखन उपन्यास, पत्र-पत्रिका, अपन लेख, फोटो अलबम केर दू सूटकेश, आ कथा-कविता-उपन्यासक रूपरेखा. समानक ढेर. मुदा, एहि सब में कतहु सोना-चानी तं कतहु नहिंए रहैक.  मुदा, ई सबटा वस्तु-जात बेचि दितियैक तं कबाड़में बिकैतैक. मुदा, पछाति जं किनय जैतहु तं कतय भेटैत, जेना, माता-पिताक लिखल चिट्ठी, नेना लोकनिक हाथक लेख, हुनके  लोकनिक बनाओल चित्रकला, आ अपन भोगल जिनगीक अनेक दस्तावेज़ !
खूजल बक्साक बीच हेड़ायल हम. हमरा देरी होइत देखि पत्नी हमरा तकैत एलीह, तं, हमरा देखिते हुनका हंसी लागि गेलनि.  कहलनि, हमरा बूझल छल. आइ पहिनहिं-जकां बक्सा खोलिकय अहाँ बक्सहिंमें बौआ गेल छी.  एहि म सं जे फेकबाक हो एक बेर बेरा  दिऔक. नहिं तं फेर अहाँ जहिया ई बक्सा सब खोलिकय बैसब, एहिना भुतिया जायब !
हमर मोनक मीमांसा अपन निष्कर्ष पर पहुंचि चुकल छल.कहलियनि, किछु नहिं फेकबै. घरक वस्तु कतहु फेकिऐक ! सबटा बक्सहिं में रहतैक! इएह तं थिक अप्पन घर !!     
        

            

2 comments:

  1. I appreciate your sentiment, I can even share some of it. But I have a practical way out. Some things can be used even today, if not by your family and you, then by others. Please, give these things away to the best available recipient. Other things can go to art collectors, museums and anyone else interested in them. That may extend the lease of their lives! They are islands in a stream, and they must live long!

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