Wednesday, May 13, 2015

सिन्धुसं सागरधरि, असम सं ओखाधारि




 ई संस्मरण किएक 


संस्मरण की थिक ? किछु इतिहास आ किछु लेखा जोखा . मनुक्ख सं समाज बनैछ . आ समाजक इतिहास, देश-दुनियाक इतिहास होइछ. तें मनुक्खक इतिहास,  वृहत इतिहासक आधारशिला होइछ. मनुक्ख के छलाह . ओ समाजले की-की केलनि, ई  सब प्रश्न व्यक्तिक जीवन कें सामाजिक सार्थकता प्रदान करैछै. मुदा जं कोनो मनुख्यक जीवन सार्वजनिक हितक नहिंओ होइक तथापि 'मानुस जनम अनूप' तं थिकैक. तें अदनो मनुक्खक जीवन समाजक निरंतर गतिमान धाराक जल तं थिकैके. भले एक बुन्न जल, वा एकटा जिनगी क कोनो अपन स्वतंत्र अस्तित्व नहिं होइक. मुदा, बूंदे- बूंदे सं समुद्र तं बनैछ . अस्तु, हम अपन अनुभवकें मोन पाड़बामें प्रवृत भेलहुँ-ए.
हमरा लोकनिक जन्म, सद्यः प्राप्त स्वतन्त्रताक आलोक में भेल छल . देशमें नव स्फूर्ति आ आशा जागल छलैक. क्रमशः की भेलैक से सर्वविदित अछि. फलतः, आब स्वतंत्रताक 68 वर्षक पछाति, लोकक मन में निराशा आ अविश्वास जडि जमा चुकल छैक . एतबे दिन में आशा निराशा में कोना बदलि गेलैक ? मनुष्यमें एहन कोन परिवर्तन भेलैये जे लोकके समाज आ संविधान पर सं विश्वास उठि गेलैये. एहि  देशकर ओहि  वर्ग, जकरा पर पहिने ककरो अविश्वास नहिं छलैक ओकर विरुद्ध  अविश्वासक बीआ रोपबाक प्रयास भ रहल अछि. एहि सब अभियान सं समाजपर कोन केहन  असरि पड़तैक से सोचबाक विषय थिक . तथापि, हम भारतेंदु हरिश्चंदकेर ओहि उक्ति सं सहमत नहिं छी जाहिमे शताब्दी पूर्व ओ कहने रहथिन:
सब भांति देव प्रतिकूल एहि नाशा, 
 अब तजहु वीरवर भारत की सब आशा
हमरा लोकनि सफल हयब. एखनहु पूर्ण आशा अछि. हमर अपन जीवन यात्रा मिथिलाक विशुद्ध देहात सं आरम्भ भेल छल . पढ़लहुं चिकित्सा शाश्त्र आ अंततः सेना चिकित्सा कोर केर सेवाक प्रसादें चरितार्थ भेल भेल, 'अग्रतः सकलं शाश्त्रं, पृष्ठतः सशरं धनुः'. फलतः, भारतीय  सेनाक नौकरी आ असैनिक सेवाक प्रतापें  सम्पूर्ण देशकें लगसं देखबाक अवसर भेटल. अनुभव कहैत अछि , किछु-किछु तं  सम्पूर्ण भारतमें एके रंग छैक मुदा किछु-किछु सर्वथा भिन्न . भाषा सब ठाम भिन्न-भिन्न छै , मुदा, गरीब-गुरुबाक  स्वरुप एकेरंग . आधारभूत संरचना आ प्रशासन में भिन्नता छैक, मुदा राजनेता आ भ्रष्टाचारक  एकेरंग. हवा -पानि में भिन्नता छै , मुदा देवी देवताक स्वरुप आ धर्मभीरुता एकेरंग . मुदा एकटा रोग सब ठाम एकेरंग पसरि  रहलइये : सार्वजानिक चिकित्सा व्यवस्था में सरकारक घटैत भागीदारी आ प्राइवेट स्वास्थ्य सेवाक प्रसारक संग बढ़इत बेईमानी . ई परिवर्तन आम आदमीक जीवन कें दुस्कर तं बनाइये रहलैके, लोक कें आब वकीले- मुख़्तार जकां डाक्टर सं भय होमय लगलइये. मुदा करत की ? थिकाह तं  'वैद्यो नारायणो हरिः' ! मुदा, लगैत अछि, कनिएक दिन में वैद्य आ बनियाँ एके पांती में बैसाओल जयताह से असम्भव नहिं . पहिनहु  तं केओ कहनहिं  छथिन:
यमः हरति प्राणाः , वैद्यो प्राणाः धनानि च !
अस्तु,  वैद्यकें अहाँ यम बूझी  वा हरि, आब हमरासन सैनिक-वैद्यक  जीवनक अनुभव सुनू . हमर अनुभव जतय अहाँक अनुभवक संग पूरैत अछि , ओ समाजक सामान्य अनुभव भेल . जतय हमर आ अहाँक अनुभव फूट -फूट बाट धेने आगू बढ़इत अछि, कहबाले हमरालग किछु नव अवश्य अछि. सएह थिक एहि संस्मरणक सार्थकता. विश्वास राखू प्रत्येक अंकमें किछु रोचक अवश्य भेटत
     

No comments:

Post a Comment

अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

हिन्दुस्तान का दिल देखो