Saturday, May 9, 2015

बाबा, सोहारी क्या होता है ?



बाबा, सोहारी क्या होता है ?

एहि बेर अप्रैल मास में गाम छोड़ना 44 वर्ष भ जायत. मुदा मोटा-मोटी प्रतिवर्ष दसमी-दुर्गापूजामें गाम जाइ छी . संयोग सं एहि बेर दसमी-दुर्गापूजामें गाम में बेस जुटान भेल रहै . एकदिन भोरुक पहर, मांझ अंगना में, धिया-पुता लोकनि जलखै ले जुटल रहथि. हम किनको जानिकय पुछलियनि, बाउ, अहाँ आओर सोहारी लेब ? उत्तर प्रत्यासिते भेटल. 'बाबा,सोहारी क्या होता है ?'
संभव छैक, गाओं घर में 'सोहारी' शब्द विलुप्त भ गेल होइ , वा मिथिला सं बाहर, हमर लम्बा प्रवासक अवधिमे गामक मैथिली हमर युगक मैथिली सं भिन्न भ गेल होइ. मुदा हमरा लोकनिक धिया-पुता मैथिली बाजब किएक छोड़ने जा रहल अछि ? वा हमरा लोकनि धिया-पुतासं मैथिलीमें बाजब किएक बन्न केने जाइत छी ? की सोहारीए शब्द जकां क्रमशः मैथिली सेहो विलुप्त भ जायत ?  ई प्रश्न हमरा लोकनि म सं कतेको कें खेहारैत अछि, आ एहि प्रश्न पर अनेको विद्वान लोकनि अपन-अपन मत  देने छथि. तथापि, मिथिलांचल सं बाहर आ मिथिलांचलक भीतर,पढ़ल लिखल परिवारमें बोल-चालमें मैथिलीक सिकुड़इत परिधिक कारण  आ मैथिलीक भविष्यपर ओकर प्रतिकूल प्रभावपर एहि लेखमें विचार करब हमर इष्ट अछि. संगहि ,एहि लेखमें  हमर किछु व्यक्तिगत विचार सेहो भेटत.
मैथिलक ओ पीढ़ी जे मिथिलांचल में पलल-बढ़ल अछि ओ मैथिली भले नहिं बजैत हो मुदा, मैथिली जनैत नहिं हयत से असंभव . तखन ई लोकनि मैथिली किएक नहिं बजैत छथि ? किछु गोटे तर्क देताह , पोथी तं हिन्दीएमे  छैक. धिया-पुता कें हिन्दीक नीक ज्ञान हयब आवश्यक छैक . तें हिन्दीए बाजय दियौक, हिन्दी सिखबामें सुविधा हेतैक. एक गोटे , मधुबनी में कहलनि , समाज में रहबाक अछि तं हिन्दी सिखहिं पड़त .' एहिमें कोनो संदेह नहिं जे, जं स्कूली शिक्षा मातृभाषा में होइतैक तं मैथिलीक प्रयोगकें बल भेटितैक आ मैथिली भाषीकें एतेक प्रतिकूल पारिस्थितिक सामना नहिं करय पडितैक. मुदा मिथिलांचलमें मातृभाषा मैथिलीमें शिक्षाक व्यवस्था हयत  तकर एखन कोनो सम्भावना देखबामें नहिं अबैछ. किन्तु, अपन घर-आँगन में मैथिली बजबामें कोन बाधा ? मैथिली नहिं बजबाक पाछू, प्रायः, अपन भाषाक प्रति हीन भावना निहित छै. मैथिली बजला सं अहां देहाती भुच्च बूझल जायब . हिंदी बजला सं लोक शहरुआ बूझत, आ अंग्रेजी बजला सं अहाँ  'कूल (cool)' कहायब . ततबे टा . मैथिली बजला सं हिन्दीक शुद्ध प्रयोग पर कोनो प्रतिकूल असर पड़ैत छैक से  हम नहिं मानैत छी. मैथिली बाजब सं कोनो आन भाषा सिखबामें कथमपि बाधा नहिं होइछ. अशुद्ध भाषा दोषपूर्ण शिक्षा पद्धतिक प्रतिबिम्ब थिक. दोषपूर्ण शिक्षा-पद्धतिएक कारण  उत्तर-प्रदेश सन हिन्दी-भाषी  प्रदेशहुमें  लिखित भाषामें शुद्ध हिन्दीक प्रयोग तकनहिं भेटत.
बोलचाल में मैथिली-सं-विमुख मैथिल लोकनिक दोसर तर्क छनि, धिया-पुताक सुविधा . माने, धिया-पुता कतेक भाषा सिखत ? असल में, अनुभव आ भाषा वैज्ञानिक लोकनिक मत मानी तं, मातृभाषाक  सीखब अनायास होइछ. संगहिं, धिया-पुता में नव-नव भाषा सिखबाक अद्भुत क्षमता होइत छैक ; ई  अनुभूत सत्य अछि. भारतीय सेना में अपन नौकरीक 25 वर्षक अवधिमें   हमरा मिथिलांचल तं दूर, बिहारहुमें  कहियो सेवाक अवसर नहिं भेटल . मुदा , हमरा लोकनि घर-परिवारमें मैथिली छोड़ि आन  कोनो भाषाक प्रयोगक आवश्यकता अनुभव नहिं कयल . संगहिं , इहो देखने छी जे मलयालम भाषी दम्पतिक अबोध नेनासब नेपाल में ओहने सहजतासं नेपाली बाजब सीखि लैछ जेना नेपाली लोकनि . हँ, वयस्क मलयाली वा हिन्दी भाषी ले ई असम्भव छनि. हमर अपने परिवारमें, अमेरिकामें जनमल, बरख तीनेक  हमर दौहित्र, जहिना -तहिना, माय संगे मैथिलीमे , पिताक संग हिन्दीमें , अंग्रेजी भाषीक  संग अंग्रेजीमें बजैक प्रयास करैत  छलाह से  देखल-सुनल अछि. हँ, समय-समय पर अंग्रेजी में   स्पेनिश भाषाक शब्द सेहो मिझरा जाइत छलनि . कारण, अमेरिका में  क्रेश केर परिचारिका लोकनि नेना सबहक  संगे स्पेनिश में बजैत जाइत छलीह.  अर्थात्, आरंभिक वर्षमें भाषाक सीखब  अनायास  होइछ . ओहिले व्याकरण आ पोथीक काज नहिं पडैत छैक . तें नेनाक भाषा शिक्षा सहजतासं होमय  दियउ, मुदा घर में मैथिली अवश्य बाजू. अहाँ चकित भले होइ, नेना एकहिं संग सब भाषा सीखि लेत.
मुदा , मैथिली  किएक बाजू ? सत्ते गप्प . मैथिली बजने कोन लाभ ? असलमें, सब किछु में सद्यः लाभ ताकब ने उचित आ ने संभव . हमरा जनैत, मातृभाषा  एकटा परिचय थिक . हमरा अपन भाषा अछि, सएह हमरा गौरवक बोध दैछ. एकर विपरीत, हमरा अपन भाषा अछि , मुदा ओकर लिपि नहिं छैक ताहि सं हमरा हीनताक बोध अवश्य होइछ . कतेक कें बुझेबैक, मैथिलीकें लिपि  छलैक मुदा हमरा लोकनि ओकरा बोहा देल . मुदा, जे धन बोहा गेल, से बोहा गेल . मुदा ई  विषयांतर भेल . हमर अपन धिया-पुता जखन स्कूल -कालेज में रहथि , कहथि, 'अपना भाई-बहिन में मैथिली में गप्प केने हमरा लोकनि अप्पन  गप्प अनका बूझय नहिं दैत छियैक ' ! तें, हुनका लोकनिकें अपन मातृभाषाक सद्यः लाभ बूझि पड़नि.
कतेक गोटे, तर्क देताह. मैथिली कतेक गोटे बूझत. असल में इहो एकटा भ्रान्ति थिक . मिथिला सं आसाम , वा दरभंगा सं दिल्ली चल जाऊ . उत्तर में नेपाल जाऊ वा दक्षिणपूर्वमें कलकत्ता वा भुवनेश्वर दिस जाउ , मैथिली बुझनिहारक कमी नहिं छै . दिल्ली क कनाटप्लेसमें वा हरिनगर में , वा चंडीगढ़में जं अजस्र रिक्सा- रेड़ीबला मैथिल छथि तं बंगलोर केर सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री आ तमिलनाडुकेर स्कूल कॉलेज सं ल कय भवन निर्माण धरिक क्षेत्र में अजस्र मैथिल भेटताह. जे जतहिं  छथि, मैथिली बाजथि तं मैथिली जीबैत रहतीह . अन्यथा, एखनुक वैश्विकरणक  बिहाडि में  प्रतिदिन अनेको भाषा उकन्नन भेल जा रहल अछि. मैथिलीक  दुश्मनक तं कमी नहिं छैक, मैथिलीकें निर्मूल हेबा सं मैथिली भाषिये बचा सकैत छी , अनका कोन गरज छैक. मैथिली बाजब तं प्रायः आनो  मैथिली बुझबाक प्रयास करत , बुझबाले  बाध्यताक अनुभव करत. एहि सं भाषाक समृद्धि संभव छैक . कारण, जं-जं लोक बुझत जे मैथिली भाषी गहिंकीक संख्या पैघ छैक , अपना बेगरतें , विभिन्न व्यवसाय सं जुड़ल आनो व्यक्तिसब मैथिली बुझबाक प्रयास करत. मनाली जाऊ, होटलक नाम बांग्लामें लिखल भेटत , गुजराती भोजनक प्रचारक बैनर देखबैक. उदाहरणक कमी नहिं छैक . चेन्नई में जाऊ लोक हिन्दीकें स्वीकार नहिं करत . मुदा, सुदूर दक्षिण में रामेश्वरम् ( रामनाथपुरम) चल जाउ सब पंडा-पुरोहित हिंदी बजैत भेटत ; पैसा दो , बिभूति लो .माने आन  भाषा सिखने जीविका  चलत तं अवश्य सीखब. हमरा लोकनि भाषा छोड़ैत चलब तं के गुदानत . भाषाक प्रयोगें मैथिलक रूपें हमरा लोकनिक परिचय बनत; पैघ, सबल समूहक सबठाम आदर होइत छैक.
भिन्न-भिन्न प्रदेशक लोकक संग मैथिल लोकनिक  विवाह-दानक चलान्सारि सेहो  बोल-चालमें मैथिलीक घटैत प्रयोगक एक कारण भ सकैत अछि . मुदा, ई भाषाकें छोड़बाक उचित कारण नहिं थिक . हमर पितामहीक मातृभाषा भोजपुरी रहनि. मुदा, मिथिलांचल में आबि ओ मैथिलीओ सीखलनि  आ हुनकर संतान लोकनि- हमर पिता,पित्ती लोकनि-भोजपुरियो सिखने छलाह ; हमर पित्ती स्वर्गीय डा.उमेश झाकें तं  भोजपुरीमें एहन दक्षता रहनि जे ओ भोजपुरी में भगवद्गीताक पद्यानुवाद सेहो छ्पओलनि . हमरा लोकनिक परिवार में  दू भाषाक संयोग सं दुनू भाषाक समृद्धि भेलै .
संभव अछि, किछु गोटे हिन्दी आ अंग्रेजी बाजबकें अपन प्रगतिगामी हयबाक प्रमाण मानैत होथि. मुदा, प्रत्येक प्रगतिगामी समाज अपन भाषाक समृद्धि ले सन्नद्ध रहल अछि . नहिं तं , अंग्रेजी भारत में कोना जडि  जमबैत , दक्षिण अमेरिका में यूरोपीय भाषा कोना स्थानीय भाषाक समूल नष्ट क दैत . हमरा लोकनिक पड़ोसे में नेपाल में देसी-भाषा फलि फूलि रहल अछि . तें शिक्षाक माध्यमक रूपें भलहिं जाहि भाषाक प्रयोग करी, घर आँगन में , धिया-पुताक संग , चिट्ठी-पत्रीमें मैथिली कें नहिं बिसरू . मातृभाषा अपन अस्मिता थिक , परिचय थिक , गौरव थिक .अंग्रेजी सीखब बाजब निर्विवाद बाध्यता थिक . हमरा ताहिसँ कोनो विरोध नहिं . अंग्रेजी , हिंदी , वा आन जे कोनो भाषा आवश्यक हो सीखू , मुदा मातृभाषा कें मरय  नहिं दियौक . संविधानक आठवीं अनुसूचीक स्थान वा साहित्य अकादेमीक पुरस्कार सरकारी सोंगर थिकैक , जनसाधारण द्वारा भाषाक प्रयोग भाषाक संजीवनी थिकैक . संजीवनीक श्रोत सुखायलासं भाषा जीबैत रहत ? जं पुष्पित-पल्लवित मैथिली जीवैत रहत तं हमरा लोकनि ओकर सघन छाया में संतुष्टिक अनुभव करब . जं मैथिली मरि गेलीह तं सरकारी मान्यता रहत , लोक कें पुरस्कार भेटतैक, मुदा मातृभाषा मैथिलीक क सुख विलुप्त भ जायत.   सरकारी मान्यता तं संस्कृतहु कें छैक . मुदा, संस्कृत शास्त्र-पुराण  धरि सीमित भ चुकल अछि . विद्वान लोकनि पढ़इत लिखैत छथि . मुदा संस्कृत आब ककर मातृभाषा थिक. आब ओकर गौरव केर गीत कतबो गाबी , पोखरिक जाठि सं सघन छाहरिक आस असंगत थिक. मैथिली बाजू . मैथिली लीखू . हँ, अपन राज्यमें मैथिलीमें प्राथमिक शिक्षा ले प्रयास जारी रहबाक चाही . आइ ने काल्हि हमरा लोकनि सफल हेबे करब जं सम्पूर्ण मैथिल समुदाय मैथिली जाति , धर्म, सम्प्रदाय आ राजनीति सं दूर, मातृभाषाक प्रति  गौरवक बोध होइनि .
मैथिलीक विप्पतिक ले मैथिलीक  पोथी, मैथिली सिनेमा, आ  रेडियोपर  मैथिलीमें युगानुकूल प्रसारणक अभावक योगदान अवश्य छैक. मुदा, उपाय. हम मैथिली पोथी किनबाले उद्यत रहैत छी . मुदा भेटत कतय . 'फ्लिपकार्ट' आ 'एमेजोन' सन  ऑनलाइन व्यावसायिक प्रतिष्ठान अंग्रेजीक पोथी दू दिन सं सात दिन धरिमें द्वारि पर पहुचा  दैत अछि . किन्तु, मैथिली पोथी तकनो नहिं भेटत . की ई  संभव नहिं, मैथिली लेखक लोकनि सेहो फ्लिपकार्ट आ एमेजोनक माध्यम सं पोथी बेचथि ? किननिहार अवश्य पोथी किनताह . हम एक डेग आओरो आगू जायब . मैथिली पोथीक सॉफ्ट-कॉपीक सेहो वितरण हेबाक चाही. आखिर, विदेश में टेबलेट कम्यूटर  आ 'किनडल' पर पोथी पढ़निहार पाठक कें अमेरिका आ ऑस्ट्रेलियामें के पोथी पहुँचओतनि ! पढ़निहारक कमी नहिं छैक. संगहिं, पोथीक सॉफ्टकॉपी उपलब्ध भेला सं कोनो नोकसान नहिं . न्यूयार्क टाइम्स सं जुड़ल प्रसिद्द पत्रकार आ लेखक थॉमस फ्रेडमैन कहैत छथि , इन्टरनेट पर पोथीक उपलब्ध भेला पर हुनक प्रसिद्द पुस्तक ' The World is Flat ' केर बिक्री में अप्रत्यासित बृद्धि भेल छलनि .
विदेशमें बसल मैथिल लोकनिक बीच  मैथिली पढ़निहार संख्या थोड नहिं अछि. थोड  अछि मैथिली में रुचिगर सामग्री .हमर एहि धारणाक  मूल में अछि हमर अपन अनुभव. हम अपन ब्लॉग-स्पॉट- कीर्तिनाथक आत्मालाप- पर  यदा-कदा किछु-किछु लिखैत छी. विगत अनेक वर्ष में हजारों पाठक हमर कृति पढ़ने छथि . मुदा आश्चर्यनक गप्प ई जे पढ़निहार में अधिकतर उत्तरी अमेरिकाक  अनाम पाठक लोकनि छथि ! ब्लॉग स्पेसक रीडरशिप एहि गप्पक प्रमाण थिक जे लोक मैथिलीकें तकैत अवश्य छैक . तें, मैथिली बजबामें धखाउ  नहिं. नेना-भुटकाक संग मैथिलीए में बाजू.   अहाँ मधुबनीमें छी वा सहरसा में , धनुषा वा झारखण्ड में , अहाँक भाषा मैथिली थिक तं बाजू , पढ़ू , सुनू . नेनाक कें मैक-बर्गर आ सोहारी दुनू खाय दियौ,  अंग्रेजी-हिंदी सिखबियउ मुदा गप्प सप्प में मैथिलिए बाजू .नहिं तं अपने घर में हमरा लोकनि अनभोआर भ जायब . हमरे लोकनिक  भाषापर हमर संतति लोकनि हंसत . 
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'उद्यान किरण' सं साभार
ई लेख विगत मास में 'किरण मैथिली साहित्य शोध संस्थान' द्वारा आयोजित किरण स्मृति पर्व 2015 पर प्रकाशित स्मारिका ' उद्यान किरण ' अंक 3 में अप्रैल 2015 में प्रकाशित भेल अछि .

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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

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