Friday, May 15, 2015

मिथिलांचलक रामलीला : साठिक दसकमें

 
साठिक दसकमें मिथिलांचलमें रामलीला शब्द सुपरिचित रहै. रामलीलाक मंडली वा नाटक-कम्पनी जहिया कोनो गाम अबै सब ठाम ओकरे गप्प. गाम में पेपर-अखबार तं अबैत नहिं छलैक. समाचार आ खबरि सबटा गमैया होइछ छलैक . कमाऊ, कलकतिया-श्रमिकलोकनि जखन गाम आबथि तं संगे  ' कैलकत्ता 'क खबरि आनथि. मुदा, से तं पाबनिए-तिहार ; दसमी-दुर्गापूजा, छठि-चौरचन में ने . अनदिना तं लोककें  अपने एक-दोसराक चाडि रहैत छलै.  लोक पोखरि-इनार,खेत-खरिहानमें गामहिंक गप्प करैत छल - मुंगियाक गाय बिअयलैइये; पुरनी पोखरि में मछहर भेलैये ; अमुक टोलमें राति में डकैती भेलै ,परसू फलांक  पुतहु ट्रेन में कटिकय मरि गेलैक. इएस सब गप्प तं लोक दलानपर , घूड़ लग , पोखरिक मोहार पर , कीर्तन-मंडलीक मंडप पर , स्कूलपर करैत छल . मुदा, जखन रामलीलाक कम्पनी अबैत छलैक तं सब गप्प तर पडि जाइत छलैक. तखन माउगि-मेहर, धिया-पुता, हरबाह- चरबाहसब रामलीलाएक गप्प करैत - 'एह, हरियरका नुआवाली (नर्तकीक रोले में पुरुष-पात्र) जे नचइये ! गे दाई, केहन छै, मेंथरा( मंथरा), कुटनी बुढ़िया; आगिलगाओन ! कहै छियनि, दाइ, एखनो तं झगड़लगाओन लोक होइते छै. जखन भागमाने के नहिं छोड़लकनि, तखन .....'  महिसपर बैसल-बैसल  महिसबारसब कहितैक, 'हलुमानजी जे छरपइत छै. मर बहिं, राम-लछुमन दुनू भाइकें एकेसंग कान्हपर बैसाकय जे कुदै छौ ! आदि , आदि .
रामायणक कथानकक क्रमबद्ध अभिनयमे नाटक कंपनी कें मास दिन सं बेसी लागि जाइक . रामायणक कथा-क्रमक समाप्तिक पछाति गौआं लोकनिक आग्रहपर नाटक कंपनी दू-चारिटा लोकप्रिय नाटक वा फ़िल्मक नाट्य  रूपान्तर सेहो प्रस्तुत करैत छल . नाटक सब में बहुधा  तहियाक प्रचलित नाटक जेना, सत्य हरिश्चंद , वनदेवी , सुल्ताना डाकूक नाटकक मंचन होइत छलैक . मोन अछि, एकबेर हमर गाममें लोकप्रिय पारिवारिक  फिल्म 'धूल का फूल'क मंचन  सेहो भेल छल .  रामलीलाक कम्पनी तीस-चालीस गोटेक. कम्पनी में अभिनेता विदूषक सं ल कय गबैया-तबलची, भनसिया-खबास सब रहैत छलाह. एहि सब ग्रुपमें स्पेशलाइजेशन ( विशेषज्ञता ) सं बेसी मल्टीटास्किंग ( बहुधन्धी वृत्ति ) क प्रथा छलैक . सब गोटे मिलिकय दिनभरि भोजन-भात, हिसाब-किताब, आराम-विश्रामक व्यवस्था करैत छलाह आ रातिमें मेक-अप, लाइटिंगसं ल कय गाना-बजाना, नृत्य-नाटक  आ हँसी-विनोदधरि पार लगबैत छलाह. नाटक-मंडलीमें  खेतिहर-किसान आ कलाकार सब रहथि . किछु गोटे रोपनी-कटनीक मासमें अपन खेत-खरिहान देखथि, शुद्ध-बाधक समय सर-कुटुमैती करथि आ रुख-सुखमें नाटक खेलाथि, रामलीला करथि. नाटकक ग्रुपमें एक व्यक्तिक  नित्तह, एके भूमिकाक कारण, गाममें कलाकार लोकनिकें  लोकसब रामायणक पात्रहिं नामसं चिन्हनि, जेना, रामचन्द्रजी , लछुमनजी, हनुमानजी. असली नाम बुझबाक ककरो जिज्ञासाओ नहिं होइक. किछु व्यक्ति जे बहुधा विदूषक केर रोलमें उतरथि से अपन नाटकीय  छविक अनुरूपे अपन नाम राखथि. एकबेरुक दल में विदूषक छलाह, सुपाड़ीलाल ! नटुआ, गीतकार, गायक , बजनिया आ विदूषक दृश्य परिवर्तनक बीच-बीच, मंच-सज्जा बदलबाक समयमें, 'फिलर्स'सं लोकक मनोविनोद करैत छलाह आ आइ-माइ, भाइ बन्धुक प्रशंसाक पात्र बनैत छलाह . रामलीला कम्पनी सब बहुधा अगहनीक पछाति- प्रायः स्व. 'किरणजी'क प्रिय ऋतु हेमंतमें- गाम सब में अबैक. लोग धनकटनी दाउन-दोगाउन सं निश्चिंत रहैत छल . ऋतु अनुकूल. ने जाड़, ने 'रौद-घटा पुरिबा-ठनका' *. अगहनीक पछाति घरमें खयबाक जोग अन्न होइते छलै. तें  नाटक कम्पनीक प्रतिदिनक बुतादक जोगाड़ गौआं लोकनि सुलभ होइत छलैक. नाटक कम्पनीक प्रतिदिन बुताद (राशन-पानीक) व्यवस्था कोना होइत छलै से रोचक गप्प छै कनेक सेहो गप्प भइये जाय. राशन-पानिले गौआंसं, जकरा जे जुरैक, से योगदानकय गौरवक बोध करैत छल. जकरा नहिं जुरैक से अपन भाग्यकें दोख दैत यथासाध्य गौआंसबहक सम्मिलित प्रयासमें जोर लगाबय.   मुदा, ई प्रकरण विस्तारसं पछाति.   रामायणक सम्पूर्णक कथाक मंचनमें मास दिन सं बेसी समय लागि जाइत छलैक . कथानकक मुख्य-मुख्य प्रसंग कें एक-एक राति में, तीन-चारि घंटाक एपिसोडमें, मंचित कयल जाइत  छलैक . मुदा प्रसंग कोनो होइ, रामायणक कथा-नायक रामचंद्र, प्रतिदिन कोनो-ने-कोनो रूपमें : 'ठुमुकि चलत रामचंद्र, बाजत पैजनियाँ '  वा विश्वामित्रक आश्रममें शिष्यजकां , अथवा धनुर्धर योद्धा जकां, मंच पर अबिते छलाह . एकर अतिरिक्त, प्रत्येक राति एकबेर सुसज्जित राम-लक्ष्मणकें, समारोहपूर्वक मंचपर बैसाओले जाइत छलनि.  ओहि समय में नेपथ्यमें तं मंच-सज्जाक आन  ओरियाओनतं  चलैत रहै छलै, मुदा, मंचक आगां दर्शकमें एकटा अद्भुत रहस्य आ अनिश्चयक वातावरण व्याप्त रहैत छलैक. कि, तं, आइ देखीतं,  माला के उठाओत ! अर्थात ओहि राति , मंचपर, दोसर दिस राखल माला उठाकय जे व्यक्ति वा समूह रामचन्द्रजीक गरदनिमें माला पहिरओतनि ओएह अगिला दिन, नाटक-कम्पनीक भोजन-सांजनक भार उठाओत. माला उठलाक पछाति , मालाउठोनिहारक नाम नाटक-कम्पनीक मेनेजर मंचपरसं प्रसारित करथि. श्रोतागण ओहि गौरवशाली व्यक्तिक आ हुनकर परिवारक जय-जयकार करथि आ मनसं आशीर्वाद देथि.  मुदा माला उठबामें दर्शकक जिज्ञासाक दू कारण होइत छलैक. एक,तं, जे माला उठओताह से सामाजिक गौरवक पात्र हेताह ; दोसर, जे लोकनि माला उठेबामें अक्षम होथि - ओहि युगमें गरीबक  संख्या बेसी रहै - से अपन भाग्यकें दोष दैत हाहि कटताह, आ  माला उठाओनिहारक परिपोख खिधांस ककय मनक भड़ास निकालताह . माउगि-मेहर लोकनिक गप्प तं  फूटे. गप्प किछु एना होइ: 'सेह देखियौ, हिम्मत त केलकैक ;  'भगवान देने छथिन तें,ने' नहिं तं हमरो  लोकनिने माला उठबितहु ; 'हे दाइ, सेहो भाग सबकें होइ छै '; 'तः, छथिहे तं दू भाइ हमरो , तखन.....' . सर दिस आओरो गप्प होइतैक - 'देखियौ, आइ दछिनबारि टोलक अमाते सब हिम्मत केलक .' 'मर बहिं, कहिते तं छै, कलियुगमें राडे सब धर्म करत. कलकत्ता कमाइ जाइए . नहिं तं, देखनहिं तं रहियैक, बाप धडिया पहिरने रहैत छलै .' आदि...आदि....   आब जे माला उठौलनि, से अगिला चौबीस घंटाले नाटक-मंडलीक भोजन-भात, तेल-मशाला, नून-तेल-चाउर-दालि-तर-तरकारीक संगोर कय सब किछु नाटक-मंडलीक भंडारी धरि पहुँचा अओताह, जाहिसं 30-40 गोटेक नाटक-मंडली क चारि साँझक भोजन  थैहर-थैहर भ जाइनि. एकर अतिरिक्त जकरा जे जुरैक, केओ चारि टा सजमनि, एक घौड केरा, कुम्हड़-कदीमा, मूर-भांटा सेहो नाटक-कम्पनीकें पहुँचा अबैनि .                                                               नेना-भुटका, सासु-ससुर,  घर -परिवारक दायित्व कारण महिला लोकनि प्रतिदिनतं खेल देखबाले कोना जेतीह. उपरसं चोरहोक चिंता आ नाना प्रकारक झंझटि. पुरुख-पात्रकें पलखति आ रुचिक समस्या. माउगि आ पुरुखकें एकसंग जेबाक रिवाजतं रहैक नहिं. तथापि जकरा जहिया समय भेटै देखि आबय. तथापि रामलीलाक भिन्न-भिन्न प्रसंगक प्रति गामसब मान्यताक कारण, संयोगे, जं केओ वनवासक यात्रा-प्रकरण देखलनि तं रामक राज्याभिषेक अबस्से देखबाक प्रयास करथि .
प्रतिदिन रामायणक खेला समयपर आरम्भ करक हेतु कलाकार लोकनि झलफल होइते भोजन-भातसं निश्चिंत भ साज-श्रृंगारमें तत्पर भ जाथि . मंच-सज्जाक इन्चार्ज पेट्रोमैक्स इत्यादिक जोगाड़ कय इजोत करथि आ सेट लगाबथि . गबैया- बजनियाँ लोकनि अपन-अपन तबला-डुग्गी-हारमोनियम ल कय सांझे राति सं आलाप आरम्भ करथि . बीच-बीचमे लाउडस्पीकर पर गौआं लोकनिक आवाहन सेहो होनि: अबैत जाऊ . आइ  शीघ्रे अहिरावणवधक खेला आरम्भ हयत ... आदि... आदि . फेर गीत-नादक दौर . जागल धिया-पुता लाउडस्पीकरक आवाज सुनि लौल करब शुरू करय- ' आइ हम नहिं मानबै, हमहू जेबे टा करबै.' मुदा अंगना जाधरि सब व्यवस्थासं चैन हेतैक, कतेको नेना सूति जाथि आ रामलीला नहिं देखि पयबाक कचोट दोसर दिन भोर भेनहिं मोन पड़नि !  प्रतिष्ठित परिवारमें, खासकय नवकनियाले , रातियोकय अंगना सं बहरयबाक परम्परा नहिं रहैक. तें ओ लोकनि मनेटा  मसोसिकय संतोष करथि . जनिका ले बहरायब वर्जित नहिं छलनि , से पलखति पाबि एक-आध राति रामलीला देखि आबथि . छओड़ा-मांडर , जकरा संगबेले अनकर आस वा कठोर अनुशासनक भय नहिं रहैक, जेना, हरबाह-चरबाह, श्रमिक-वर्ग, वा  छेटगर विद्यार्थीसब, से सबदिना, दर्शक-मंडलीमें हाजिर होइत छल. प्रतिदिन जखन ई सबदिना दर्शक-मंडली हाजिर होइत छलैक  तखने , सियाबर रामचंद्र की जय , पवनसुत हनुमान की जय , लखनलाल की जय सं खेल आरम्भ होइ. खेलक बीच-बीचमें नटुआक नाच, गीत-संगीत, विपटा-विदूषक केर उतरा-चौरी आ हँसी-ठट्ठा होइ. मुदा, जोर रहै ओहि रातुक मूल कथाक मंचनपर. मुदा गौआंक बुलेटिनक मुख्य आकर्षण रहैक रामायणक कथाक  निर्णायक मोड़ सब . जेना, सीता-स्वयंवर, वनवास , सीता-हरण , लक्ष्मणक शक्तिबाण लागब , रावण-वध , रामक राज्याभिषेक जकरा ग्रामीण भाषा में लोक राजगद्दी कहैक. दर्शकसब एहिसब प्रकरण देखबाले दिन गनैत  रहैत छलाह. ततबे नहिं , वन-गमन दिन मंथरा कें लोक कोसैत छल आ रामक विपत्तिपर आँखिसं नोर बहबैत छल; लंका-दहन पर थोपड़ी पाडइत छल, आ राज्याभिषेक दिन हर्ष सं गद्गद होइत छल . मुदा प्रत्येक प्रकरणक बीच  एकाध टा एहन स्थल अबस्से अबैत छलैक जखन लोक कें राम-लक्ष्मणक पयरपर अठन्नी-चौअन्नी चढ़ेबाक अवसर भेटैत छलैक . मुदा नाटक कम्पनीले टाका उगाहबाक असली अवसर अबैत छलैक रामलीलाक इतिश्री, राज्यभिषेकक खेलाक पछाति. राज्याभिषेकक पछाति  सम्पूर्ण नाटक-मंडली, राम-लक्ष्मण सीता आ हनुमानकसंग द्वारिए- द्वारि भरि गाम बूलैत छलाह. आइ-माइसं ल कय खर-खबासिन धरि, जकरा जतेक विभव होइक, लोक 'भगवान'कें टाका-पैसा चढ़बइत छलनि, भक्ति पूर्वक पूजा-अर्चना करैत छलनि . पछाति जं गौआं लोकनिक आग्रह भेलनि तं नाटक-मंडली आओर किछु दिन गाममें रहि  सामाजिक नाटक सभक मंचन करथि , जकर चर्चा पहिनहु केने छी. खासकय राजा हरिश्चंद नाटकमे आँचर पसारि, भीख मंगइत  सैव्याक दृश्य देखि लोक जतबे द्रवित होइत छल, भीखमें ततबे बेसी पैसा चढ़इक आ तें बिलखइत सेवयाक ओहि दृश्यकें  ततबे लम्बा कयल जाइक जाहिसं भीखले आँचर ओड़ने, सैव्याक आँचर कैंचासं लत भ जाइनि .कोनो-कोनो नाटकमें गौआं युवक लोकनि कें सेहो अभिनय करबाक अवसर भेटनि .मुदा खिसा ओत्तहि नहिं खतम होइक. जखन नाटक कम्पनी गामसँ चल जाइक तखन कतेको मासधरि स्कूलक  चटियासब टिफ़िन ब्रेकमें रामायणक पात्र बनय आ अपन-अपन ग्रुपमें नाटक करय . ताहिमे राम-लक्ष्मण-हनुमान बनबाले सब तैयार. मुदा, राक्षस के बनत !कोन बहिन अपन भाइकें मृत्युक अभिनय करय देतैक !! नेना लोकनिपर नाटकक असरिक एकटा कारण रहैक : बेसी काल नाटक-कम्पनीक पड़ाव स्कूलक लगक फील्डमें , पीपरक गाछ तर, वा फुलबारिक बीचहिमें होइक. एहन ठाम नाटककार लोकनि कें अरण्य वा अशोक वाटिका बनेबाले गाछ-वृक्षक ताकय नहिं पड़नि. हनुमानजी सहजतासं मंचपर सं गाछ सबहक डारिपर वा नवगछुलीक फेंडसबपर छरपथि आ नेना-भुटकाक कौतुहलक पात्र बनथि. लक्ष्मणकें पाताल ल जयबाले, सुरंग बनयबालक हेतु  अहिरावणकें लगेमें हल्लुक माटि भेटि जाइनि. संगहिं, इजोरिया रातिमें लोककें लगहिंक मंदिरक चबूतरापर बैसि रामलीला देखब सुलभ भ जाइक.          

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