अशिक्षा आ विपन्नता
अन्धविश्वासक उर्बर भूमि थिकैक. मिथिलांचलमें बीसम शताब्दीक पूर्वार्धमें जेहने
अशिक्षा रहैक, तेहने विपन्नता. तें,ओझा-गुणी, भगता -भाव , नाम उचाड़ब , बाटी चलायब
सं ल कय सांप-बीछ्क बिक्ख झाड़बासं ल कय भूत-पिसाच-चुड़ैनितककें बसमे करबाक खूब
प्रचार रहै. आब शिक्षाक प्रसार, चिकित्सा सेवाक सुलभता, आ वैकल्पिक व्यवसाय सबहक कारणें
ई सब लुप्त प्राय भ गेल छैक से प्रसन्नताक विषय थिक. तथापि, कहियोकाल कतहु एकर सबहक
अवशेष भेटि जाय से असम्भव नहिं. हमरा ई सब देखल कम अछि, माय-पितियाइनिक मुहें सुनल
बेसी अछि. हमर अपन पित्ती स्व. घूरन झा
स्वयं किछु गौआंकें संगोर क कय तन्त्र-विद्या सिखय कामरूप-कामख्या(असम) गेल छलाह. ओहि
युगमें ओझा-गुणी-भगता-योगीक प्रचारक कारणों रहैक. समाज गरीब छलैक, बेसी लोक विपन्न
आ रोग-व्याधिसं बेकल रहै छल. संक्रामकरोग-प्रतिरोधी टीकाकरण आरम्भ भेल रहैक. मुदा,
संग-संग पचनिया लोकनिक दल सेहो ढोल-झालि-मृदंग लकय गामें गाम घूमथि, 'शीतला-माता'क
कीर्तन करथि आ धिया-पुता कें स्माल-पौक्सक पाच देथिन, टीकाकरण करथिन. डाक्टर लोकनि
कमे ठाम छलाह; प्रसूति-नेना, पुरुष-नारि सबहक स्वास्थ्य आ जीवन भगवानेक भारा. जतय डाक्टरलोकनि छलाहो तं लोक कें
डाक्टर-बैदक नामहिं सुनि आतंक पैसि जाइत छलैक. कतेक रोगिक परिवारक मुंहें सुनने
हेबइ, लहेरियासराय (मेडिकल कॉलेज) अस्पताल इलाजले
ल जेबैक से हम सकबै, सुसकहिं हेतइ ? माने, आधुनिक चिकित्सा पद्धतिक इलाज महग
छैक से धारणा समाजक निम्न आ निर्धन वर्गमें तहियो रहैक, आइयो छैक. अशिक्षित
समाजमें डाक्टरी इलाजक प्रति सन्देहक कारण
सामाजिक मान्यता आ शुद्ध-अशुद्धक विचार सेहो
रहैक. डाक्टरी औषध कोना आ कथी सं बनैत छलैक ताहि विषयमें अनेक भ्रान्ति रहैक. लोक
धर्मभ्रष्ट हेबासं डेराइत छल. हमर टोलक, वयसाहु, शकुंती, जकरा बड़कालोटाक आकारक घेघ रहैक, कलकत्ता
रिटर्न छलि . जखन मौका लगैक लोककें कलकत्ताक अपन अनुभव सुनेबामें शकुंती गौरवक बोध
करय. शकुंतीकें कतेक बेर कहैत सुनने हेबैक, बौआसिन, कलकत्ता में देखलियै. गीध-डोकहर
सबहक गूह जमा करैत छलैक. कि तं औखद आ गोटी बनओतैक. मारे मुंह.....' माने,
डाक्टर-बैद सुलभ नहिं . डाक्टर उपलब्ध छथि तं धर्म भ्रष्ट हेबाक भय आ सामाजिक मान्यताक
आरि-धूर. ततबे नहिं ओहि युगमें पानि-बाढ़िक कारण सांप-कीड़ाक कोन कमी. इंटाक घर आ
कोठा बिरले रहैक . तखन सांप-बीछ सं बचाव कोना हो ! तें, योगी-गुणी-भगताकेर खूब
प्रधानता रहनि. झंझारपुर स्टेशन लग नवटोल नामक गाओं छैक . नवटोलक दुर्गास्थानक
पुजेगरी भगतजी जखन भोरूपहर पूजापर बैसथितं
हुनका चारूकात कारनी (रोगी/पीड़ित) लोकनि चरूकात घोदामाली भ कय बैसथि . कारनी लोकनि
अपन-अपन विभवक अनुकूल अरबा चाउर,
कैंचा-पैसा ल कय जाथि . भगतजी कारनीक आगूमें एकटा ताम्बाक सराइ राखि देथिन आ
कहथिन, ' एहि सराइमें अपना हाथें एक मुट्ठी चाउर राखि दियउ .' भगतजी भूमि पड़ पड़ल
सराइ आ ओहि महक चाउरपर अपन दृष्टि केन्द्रित करथि आ कहय लगथिन: ' अहाँक बेटा
पच्छिमदिस भागल छथि. मास दिनक पछाति अओताह; अहाँक बेटीक रोग अपने परिवारक लोकक कयल
अछि; केओ कटहरक को खेबाले देने रहथिन ?....आदि, आदि . एहि सब प्रकारक वक्तव्यक
सत्यता वा असत्यताक हमरा कोनो अनुभव नहिं अछि . मुदा, एहि सबसँ अनेको बेर घर-परिवारमें
कलहकेर बीजक बपन भ जाइक आ परिवारक शान्ति
भंग भ जाइक. एक आओरो प्रकारक गुणी, बाटी चलौनिहार,क नाम सुनल अछि. बाटी चलयबाक
उपयोग हडायल वस्तुके तकबाले होइत छलैक. बाटी चलाओनिहार एकटा बाटी कें भूमिपर राखि,
ओकरा पकडिकय रखैत छलाह आ मन्त्र पढ़इत
बाटीपर किछु अन्न छिटइत रहथि . मान्यता छलैक, चोरायल वस्तुकें ल कय चोर जाहि बाटें गेल छल, बाटी ओही दिस ससरैत बढ़त.
माने, बाटीकें चोरक अनुगमन करबाक हिस्सक होइक ! छै ई विश्वासक गप्प ? मुदा, लोक ,बाटी
चलबबैत तं छल. हँ , एहि सब सं कतेकबेर अशोभनीय स्थिति उत्पन्न भ जाइ. सुनल अछि
,एकबेर हमर एकटा पित्तीक दरबज्जापरसं
बिछाओन चोरि भ गेलनि . ओ बाटी चलबौलनि . बाटी चलैत-चलैत गामक पछबरिया बाधकें पार
कय दोसर गाममें ककरो द्वारि पर जा कय अंटकलैक. बिछाओन किएक भेटतनि. मुदा, निश्चिते घरबैयाकें बड अपमानक बोध भेलैक. फलतः ,
स्थिति लाठी लठओवलि धरि पहुंचि गेलैक ! जादू-टोनाक एकटा आओर विधि हमर माय हमरा
कहने छलीह. चिडियाडी -चाउर खोआकय चोरक पहचान करब . विधि एना होइक. मुग़ल बादशाहक जमानाक
एकटा कोनो सिक्का चिड़ियाडी सिक्का कहल
जाइक. जं चोरायल वस्तुक चोरिक संदेह कोनो व्यक्ति वा व्यक्ति-समूहपर हो तं संदिग्ध
व्यक्तिलोकनिकें एकठाम जमा कयल जाय .
पानिमें भिजाओल चाउर आनल जाय . चिड़ियाडी सिक्कासं निकती पर तौलि, भिजाओल चाउरक
थोड़-थोड़ मात्रा संदिग्ध व्यक्तिलोकनिकें खेबाले देल जाइनि. संदिग्ध व्यक्तिलोकनि चाउरके आधा
चिबाकय भूमिपर उगलथि . जकरा मुंहसं
सोनितायल चाउर बहरायल, वएह चोर साबित भेल. छलैक ई घोर अन्याय, मुदा, होइत
तं छलैक. हमरा लगइए ओहि युग में मुंहक घाव, आ दांतक पायोरिया रोग आम छल हेतैक. जे
मुंहक रोगी भेल, से निर्दोषहु, अनेरे सामाजिक प्रताड़ना आ जुर्मानाक भागी होइत छल .प्रसन्नताक
विषय जे पछिला पचास साल में मिथिलांचलमें एहन अन्धविश्वास कतहु देखबामें नहिं आयल
अछि . मुदा देवताक कोपक भयतं एखनहु देखिते छी. देवी-देवताक कोप आ कोपक शमनले लोक की-की ने करैत छल, आ करैत अछि.
पिछड़ावर्गमें गोसाउनिक घर में आ दलित-वर्ग
दुसाध लोकनिमें, राजा सलहेसक स्थान में भाव करयबाक प्रथा एखनहु छैक. शिक्षाक
प्रसार, बढ़इत सुख-समृद्धि, आवागमनक सुविधा,
आ डाक्टर वैद्यक उपलब्धताक कारण, कतेको पुरातन विधि आब ध्वस्त भ चुकल अछि,
अकाल मृत्यु कम भेलैये, लोकक आयु बढ़लइए; आब गाम- घर में 80 वर्ष पार आ नब्बेक
धक्कामें पहुँचल वृद्ध रहरहां भेटि जयताह, से प्रसन्नता विषय थिक. ततबे नहिं, शहरी
संस्कृतिक प्रभाव ओहि पुरातन परंपरा सबहक जडिपर आघात अवश्य केलकैक अछि मुदा सब
किछु निर्मूल हेबामें समयतं लगिते छैक. सुनैत छी, छठि परमेसरीक भयसं बिहार-उत्तरप्रदेशमें छठिक पर्वक आस-पास चोरि आ
डाका अपने-आप बन्न भ जाइत छैक. कि तं, छठि-परमेसरी बड तमसाहि छथि, अनिष्ट क देतीह.
काश, चोर-छिनार-डकैत-व्यभिचारी-घुसखोरसबकें, अपना
कोपक बलें, छठि-परमेसरी सालोभरि अपना नियंत्रण में रखितथि !
कीर्तिनाथक आत्मालाप, आत्ममंथनक क्षणमें हमर मनक दर्पण थिक. 'Kirtinathak aatmalap' mirrors my mind in moments of reflection.
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