Friday, December 1, 2017

तिरुवल्लुवर आ किरणजी


                            तिरुवल्लुवर आ किरणजी

आइ 'किरण' जयंती थिक. तें किरणजी स्मरण हयब स्वाभाविक. किन्तु, जयंतीए दिन टा किएक, किरण जी आनहु दिन मन पडैत छथि. मुदा, विगत कतेक वर्षसं  हम किरण जी कें मिथिलासं बाहर भारतक आन कीर्तिपुरुष सबहक संग मिलान करैत रहलहुए. एकटा एहन अमरकवि जे हमरा सतत किरणजीक स्मरण करबैत रहैत छथि ओ थिकाह संत कवि तिरुवल्लुवर. तिरुवल्लुवर कतेक दिन पहिने भेल छलाह से कहब कठिन. किरणजी हेबनिक थिकाह. तथापि एहि तुलना में हमरा किछु आपत्तिजनक नहिं बूझि पड़ैत अछि.
की किरणजी काव्य-साहित्यमें तिरुवल्लुवरक काव्य सदृश कोनो एहन तत्व छनि  जे हुनका तिरुवल्लुवरक संग जोड़ैत छनि ? एहि लेखमें हम एतबे तकबाले प्रस्तुत छी. हँ , एतबा आरम्भहिं में हम कहय चाहब, एहि लेखक माध्यम सं ने हम किरणजीकें तिरुवल्लुवर प्रमाणित करय चाहैत छी, आ ने तिरुवल्लुवर कें किरण . एक गोटे संत थिकाह , दोसर गोटे बीसम शताब्दीक वैद्य-शिक्षक-गिरहस्त-साहित्यकार. तथापि जं दुनू गोटे कें एकटा किछु एक दोसराके एक समकक्ष ठाढ़ करैत अछि ओ थिक दुनूक चिंतनक स्पष्टता, विचारक विस्तार, ठाहिं-पठाहिं कथ्य, आ कालजयी एवं  सार्वलौकिक स्वरुपक. दुनूक बीचक इएह गुण हमरा हिनका दुनू बीचक आओर समानत तकबाले प्रेरित केलक. अस्तु, पहिने तिरुवल्लुवरसं कनेक परिचय-पात करी; किरणजीक परिचय एतय आवश्यक नहिं.
धार्मिक आस्थामें तिरुवल्लुवर  पूर्ण नास्तिक तं नहिए छलाह, नहिं तं कुरलकेर आरम्भ ईश-वन्दना सं कोना होइत. तथापि, बहुतो गोटे हिनका अनैश्वरवादी मानैत छथिन. तें, जं कदाचित  तिरुवल्लुवर सत्यतः नास्तिक  छलाह तं किरणजीसं भैयारी हएब असंभव नहिं. ततबे नहिं एकदिस जं तिरुवल्लुवरक सूक्ति आ सुभाषित हुनका ऋषि-सन  आभा प्रदान करैत अछि, तं दोसर दिस राजधर्म विषयक हुनक उक्ति  हुनका चाणक्यकेर पांति बैसबैत अछि. अस्तु, तिरुवल्लुवर आओर जे किछु होथि, ओ छथि सबहक प्रिय, लोकप्रिय. विचारमें समकालीन छथि, सार्वलौकिक छथि. ओहि रूपें दुनू में कोनो समानता नहिं. किन्तु, किरणजी काव्यमे सरल भाषा आ  मानव-जीवन सं सम्बद्ध विषयपर हुनक उद्गार भेटत. किन्तु, किरणजी औपचारिक रूपें कोनो सूक्ति-सुभाषित प्रकाशित केने छथि कि नहिं से हम नहिं कहि सकैत छी. हं, समाजमे सब जाति-धर्मक लोक, आ सब व्यवसायक नागरिकमें समन्वय, अन्यायक प्रति प्रखर उद्घोष, परम्पराक भंजन, आ नव सोचकें स्थापित करबाक दुर्दान्त  आग्रह किरण जी परिचय थिक, से सर्व विदित अछि. ओना कहबी, फकड़ाक प्रति किरणजीक आकर्षण आ बाध-बोन में हुनका द्वारा बीछल काव्य सर्व विदिते अछि. तिरुवल्लुवर तं अपन कहबी ले प्रसिद्द छथिए. तें जखन तिरुवल्लुवर उद्घोष करैत छथि :
                पापी आ क्रूर राजा
                हो एहन ने हत्यारा                : कुरल,551
                राजा करय उपहारक मांग
                एहन नृपति थिक दस्यु समान       : कुरल,552
तं लगैत अछि किरणजी फांड बान्हि तिरुवल्लुवर संग  बाना बन्हने ठाढ़ छथि.
किरणजी जाति-पांति, वर्ण-भेद, धनिक गरीब भेदक विरोधी रहथि, से सर्व विदित अछि: प्रमाण चाही तं सुनू:
'गायक वर्ण छइ होइत कैल, हांसा,
गहुमना , चरक , सिलेब , कारी ,गोल चितकाबर , तामसन लाल
परंच सबथिक गाय समान रूपसं
आदर स्नेहक बेरमें
........................................
रंग थिक प्रकृतिक देल , दिनकरक किरणक खेल ...
                                       पराशर ,1988 ,पृष्ठ, 7
कुरलमें सेहो जाति , धर्म , सम्प्रदायक चर्चा नहिं छैक. मानवीय गुणकें तिरुवल्लुवर सर्वोपरि आ  वंश-कुलसं ऊपर मानैत छथि. विश्वास नहीं हो तं तिरुवाल्लुवरे सं सुनू :
गुणक खान, जीवसं  प्रीति
ब्राह्मण थिकाह वएह विभूति        : कुरल,30
ज्ञानी, उत्तम जन्मे भल नीच
जनम सं ऊँच अज्ञानी नहिं नीक          : कुरल,30

बरखाक मादे तिरुवल्लुवर कहैत छथि
दै अछि सबतरि जीवन दान
बरखा निश्चय  थिक अमृत समान   : कुरल 11

आब किरण जी सं सुनू :
अन्ने थिक प्राण , अन्ने थिक भगवान
करू परिश्रम धरती कोडू
अन्न खूब उपजाउ
बरखा पानिके घेडिक राखू
पौटी विरचि पटाउ                पराशर ,1988 ,पृष्ठ 2
..............................

पुरुषार्थक मादे तिरुवल्लुवर कहैत छथि :
उर्जावान स्वतः धनवान
आओर सबहिं छथि वृक्ष समान कुरल, 600.
रूसओ भाग्य , परिश्रम देत
बोनि कमाईक निश्चय भेंट          कुरल, 619
करथि पराजित भाग्यक दोष
हारि ने  मानथि  श्रम संयोग कुरल, 620
किरण सं सुनू :
दाढ़ी-मोंछ न पुरुषक लच्छन
...............................................
बान्हि नदीकेर दुस्तर धारा , ढाहि पहाड़क सिखर अपारा
मनुखक गति निरबाध करक हित करय बाट नव सिरजन ....
नाथि बाघ-केसरि-मतंग के दांत तोडि बिखधर भुजंगकें
बसमे करय , रहय नित करइत , मानब रिपुक निकन्नन .
                               - विजेता विद्यापति,1978, पृष्ठ 37
ततबे नहिं, किरण जी जं 'माटिक महादेव' कें अपन अंतिम परिणामक स्मरण दियबैत छथिन, तं,  तिरुवल्लुवर निर्धनताक कारण भिक्षाटनक बाध्यता सं एतेक आहत होइत छथि, जे ईश्वर कें श्राप द बैसैत छथिन:
ईश्वर स्वयं मांगथि भीख आ होथु नाश
जं केओ जीवय भीखक  आस . कुरल : 1062
मुदा हुनका एतबे सं सन्तोष नहिं होइत छनि. ईश्वरक मनमाना व्यवहार सं तिरुवल्लुवर एतेक क्षुब्ध होइत छथि जे ओ ईश्वरक तुलना नीच धरि सं क बैसैत छथि. अस्तु, किरण आ तिरुवल्लुवरमें अनेक समानता छनि से तं निर्विवाद. किन्तु, तकर अन्वेषण केर अवश्यक छैक. तें, एहि लेख कें विशद विवेचनाक सिनोप्सिस बुझू. अध्येता-अन्वेषी ले ई मात्र विचारक  बीया भेल. अन्वेषणक परिणाम क्रमशः भेटत.

No comments:

Post a Comment

अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

हिन्दुस्तान का दिल देखो